Adhunik Rajasthani Kavya
Author:
Rameshwar Dayal ShrimaliPublisher:
Sahitya AkademiLanguage:
RajasthaniCategory:
Poetry1 Reviews
Price: ₹ 49.8
₹
60
Available
विद्वान संपादक आज़ादी रै आंदोलण अर आज़ादी आयां पछै रै बिग्साव रै वेला री कोई आधी सदी रै ४० कवियां री टाळवीं कवितावां भेली कर र इण संग्रै नै कविता प्रेमियां सारू ग्रै जोग बनयो है।
ISBN: 8126001917
Pages: 148
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Mirza Shauq Lakhnawi
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- Description: मौलाना अब्दुल माजिद दरियावादी ने नवाब मिर्ज़ा ‘शौक़’ लखनवी को ‘उर्दू का एक बदनाम शायर’ तो कहा ही, साथ ही यह फ़ैसला भी सुना दिया कि ‘आज उर्दू की तारीख़ में कहीं उसके लिए जगह नहीं।’ यह और बात है कि सच्चाई आख़िर सिर चढ़कर बोलती है, और अपने इसी लेख में मौलाना ने आख़िर यह बात मानी कि ‘शौक़’ की डायरी की ख़ूबियों ने उनके नाम को गुमनाम नहीं होने दिया; उन्हें बदनाम करके सही, ज़िन्दा रखा। अलावा इसके, आख़िर में वे ख़ुद को यह भी कहने के लिए मजबूर पाते हैं कि ‘मशरिक़ के बेहया सुख़नगी, उर्दू के बदनाम शायर, रुख़सत! तू दर्द भरा दिल रखता था; तेरी याद भी दर्दवालों के दिलों में ज़िन्दा रहेगी। तूने मौत को याद रखा; तेरी याद पर, इंशाअल्लाह, मौत न आने पाएगी।’ इस सिलसिले में स्वर्गीय प्रो. ‘मजनूँ’ गोरखपुरी की बात भी याद रखने योग्य है। लिखते हैं कि उनके एक अंग्रेज़ प्रोफ़ेसर ‘शौक़’ की ‘ज़ह्रे इश्क़’ से बेहद प्रभावित हुए और बोले, ‘तुम लोग हो बड़े कमबख़्त। यह मस्नवी और इस क़समपुर्सी की हालत में! आज यूरोप में यह लिखी गई होती तो शायर की क़ब्र सोने से लेप दी गई होती और अब तक इस मस्नवी के न जाने कितने नुस्ख़े, रंग-बिरंगे एडिशन निकल चुके होते।’ प्रो. ‘मजनूँ’ गोरखपुरी ने तो बल्कि इस मस्नवी का शुमार जनवादी साहित्य में किया है—“ख़वास के लिए यह ऐब है; मगर इसकी क़द्र अवाम से पूछिए।” मुहावरेदार ज़बान और दिलकश तर्ज़े-बयान, देसज और अरबी-फ़ारसी शब्दों पर एक समान अधिकार और उन्हें आपस में दूध-शक्कर कर देने की क्षमता, पात्रों का जीवन्त चरित्र-चित्रण और उनकी भावनाओं का मर्मस्पर्शी वर्णन, इश्क़े-मजाज़ी से इश्क़े-हक़ीक़ी तक की दास्तान—ये तमाम ऐसी ख़ूबियाँ हैं जो ‘शौक़’ को शायरों की पहली क़तार में ला खड़ी करती हैं। और एक मस्नवी जब रंगमंच पर पेश की जाए, फिर पूरा हॉल मातमघर बन जाए, चारों तरफ़ से सिसकियों और हिचकियों की आवाज़ें आनी लगें, कुछ लोग ग़श खाकर लुढ़क पड़ें, घर जाकर एक लड़की आत्महत्या कर ले, कुछ और लोग आत्महत्या की कोशिश करें, और फिर सरकार इस मस्नवी पर पाबन्दी लगा दे, तो आप इसे क्या कहेंगे? ‘शौक़’ को अश्लील कहनेवालों से यह बात ज़रूर पूछी जानी चाहिए कि अश्लीलता थोड़ी देर का मज़ा भले दे ले, क्या वह भावनाओं में इस तरह का तूफ़ान उठाने की क्षमता रखती है।
Shayad
- Author Name:
Sudhir Ranjan Singh
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Description:
हाल के दशकों में जिन कवियों ने अपनी प्रतिभा और काव्य-व्यवहार से सर्वाधिक चकित और विस्मित किया है, उनमें सुधीर रंजन सिंह अग्रणी हैं। हिन्दी कविता के लगभग एकरस हो रहे स्वर को सुधीर ने अपनी कविताओं से न केवल भंग किया बल्कि उसे अनेक रंगों, रसों, ध्वनियों से सघन और संकुल किया। नितान्त अछूते, अनाघ्रात विषयों को कविता के कक्ष में आबद्ध करते हुए सुधीर रंजन ने कहन और प्रस्तुति की नई प्रविधि विकसित की जिसके अगले संस्करण के तौर पर इस नए संग्रह को देखा और परखा जा सकता है। कविता के ब्रह्मांड में व्यतीत ये परिवर्तन इतने सूक्ष्म एवं तरंगरूप हैं कि ज़रा-सी असावधानी पाठक को इस सम्पूर्ण ऐश्वर्य से वंचित कर सकती है। प्रस्तुत संग्रह 'शायद’ भी इसी सावधानी की माँग करता है, क्योंकि कई स्तरों पर यहाँ पारम्परिक सौन्दर्य-बोध विखंडित एवं निरस्त होता है :
गिद्ध आँखों से देखें तो
मुरदा होना सबसे सुन्दर होना है
इसीलिए यह पूरी कविता-पुस्तक जीवन का जयघोष है। अनेकानेक व्यक्तियों, चरित्रों, प्रसंगों, अनुभूतियों से समृद्ध यह संग्रह भाषा को भी नई भंगिमा से बरतता और अन्वेषित करता है। इसका एक उदाहरण ‘बैठना क्रिया से अभिप्राय’ कविता है जो सीधे-सीधे एक क्रिया का फलित पाठ है—सात अलग-अलग स्थितियों में, जो मिलकर सम्पूर्ण जीवन-पक्ष रचती हैं और एक गहरे राजनीतिक आशय से सारगर्भित होती हैं। 'धूप से पीठ टिकाए’ जैसे अनेक स्थल हैं जो हमें रोक लेते हैं। ऐसा अमूर्तन पहले नहीं मिलता। सुधीर के यहाँ होनेवाले ये भाषिक 'विचलन’ एक सर्वथा नए जीवन-बोध से उद्धृत हैं जिसका एक अप्रतिम उदाहरण है 'धन्य’ शीर्षक कविता जो पुन: अपने अन्दरूनी आशय में राजनीतिक है पर ऊपर से ऐसा भास नहीं होता। यही कारण है कि ये कविताएँ गम्भीर पाठ की अपेक्षा करती हैं।
सुधीर ने कुछ नए चरित्र भी रचे हैं। इनमें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं 'सड़क किनारे के मैकेनिक’, 'दर्जी’, 'सोनाराम लोहार’ और 'गायें’। यहाँ गायें भी चरित्र की तरह हैं। बेहद मार्मिक। सुधीर शायद पहली बार कविता की खोजबत्ती को अन्दर की तरफ़ घुमाते हैं जिसका परिणाम है 'आत्मस्वीकृति’ जैसी विलक्षण कविता। 'बिना किसी ग़लती और भूल के मैं कोई काम नहीं कर सकता था।’ इसी आभ्यन्तरीकरण का शायद यह देय हो कि कवि ने मृत्यु एवं अन्त के आभास को लेकर कुछ गहरी कविताएँ लिखी हैं। सुधीर की कविताओं में सान्द्रता एवं बौद्धिक त्वरा बढ़ी है। जीवन के सन्धान, भाषा के आकस्मिक प्रयोग एवं बिम्बों की शृंखला इस संग्रह को विशिष्ट बनाते हैं। शायद, और यही तो नाम है इस पुस्तक का, सुधीर अकेले कवि हैं अपनी पीढ़ी के जो अत्यन्त संयत एवं धीर भाव से गहरी उत्तेजना की सृष्टि करते हैं और शान्त प्रतीत होती सतह को भी घूर्णों से भर देते हैं। सुधीर की कविता भविष्य की वाणी है—किसी एक यात्रा के पहले कई गुना अधिक भोगी भटकन।
—अरुण कमल
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