Prarthna Ke Shilp Mein Nahin

Prarthna Ke Shilp Mein Nahin

Language:

Hindi

Pages:

156

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

312 mins

Buy For ₹75

* Actual purchase price could be much less, as we run various offers

Book Description

देवी प्रसाद मिश्र के लिए 1987 का ‘भारत भूषण पुरस्कार’ प्रस्तावित करते हुए प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह की संस्तुति थी कि परम्परा के साथ एक नए सम्बन्ध की स्थापना<strong>, </strong>सामाजिक सरोकार और जीवन्‍त भाषा-संवेदना के कारण देवी प्रसाद मिश्र युवा कवियों में अपनी विशिष्ट पहचान बनाते हैं।</p> <p>‘परम्परा पाठ’ और ‘यह समय’ दो हिस्सों में बँटी इस कविता-पुस्तक का कैनवस किसी आदिम मनुष्य की संघर्ष-कथा से लेकर 1988 में मुफ़लिसी और तकलीफ़ में टूटते राम गरीब तक फैला है। हिन्दी कविता में सम्भवतः पहली बार अतीत और समकालिकता को उनकी अविच्छिन्नता और द्वन्द्वात्मकता में आमने-सामने रखा गया है। एक विस्तृत समय-संवेदना में फैली ये कविताएँ भारतीय मनुष्य की उत्पीड़ा और प्रतिरोध को अद्भुत अन्तरंगता<strong>, </strong>अनुभूति और इतिहासोन्मुखता के साथ व्यक्त करती हैं। अनुभूति और सहानुभूति की इतनी विस्तारधायी और सघन उपस्थिति सचमुच विरल है। दु:ख और दु:ख के कारणों की पड़ताल करती ये कविताएँ किसी भी दुखवाद के विरुद्ध हैं।</p> <p>राज्य<strong>, </strong>सत्ता<strong>, </strong>अत्याचार<strong>, </strong>दु:ख<strong>, </strong>अस्तित्व<strong>, </strong>भाषा<strong>, </strong>कविता<strong>, </strong>सरोकार<strong>, </strong>नैतिकता<strong>, </strong>संघर्ष<strong>, </strong>क्रान्ति<strong>, </strong>परिवर्तन जैसे मुद्दों से टकराती देवी प्रसाद की कविताएँ शिल्प के किसी एकाश्मीय या मोनोलिथिक रूप को अस्वीकृत करती हैं और इस तरह मानो निराला के रचनाकर्म के प्रति प्रतिश्रुत होती हैं।</p> <p><strong>‘</strong>प्रार्थना के शिल्प में नहीं<strong>’ </strong>सिर्फ़ निरीहता और याचक मानसिकता के निषेध की ही नहीं<strong>, </strong>एक सकारात्मक और जनवादी विकल्प की अपूर्व और संवेदनशील प्रस्तावना है।

More Books from Rajkamal Prakashan Samuh