Sach Sune Kai Din Huye
Author:
Badri NarayanPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
बद्रीनारायण अपनी पीढ़ी के उन दो-तीन कवियों में हैं जिनकी कविता से एक साफ़ चेहरा और कुछ रास्ता निकलता नज़र आता है। यह महज़ अच्छे और ‘होनहार’ कवि ही नहीं, सामाजिक अंतःकरण रखने वाले कवि भी है। अपनी परिस्थिति और अपनी काव्यवस्तु से उनका रिश्ता प्रगीतात्मक होकर भी ज़मीनी, जिम्मेदार और क़तई मामूली है और उसी के नाप की भाषा और संवेदना उन्होंने अर्जित की है। उक्ति-वैचित्र्य, बेपर की उड़ान और वाक् चातुर्य से किसी क़दर परहेज़ करते हुए वह एक ही चक्कर में घर-बार, दुनिया-जहान, अंतरिक्ष और तारामण्डल के नज़ारों को समेट लाते हैं। इसकी वजह है, उनके अनुभव की अखण्डता और भाव-जगत की सचाई। उनकी कविता में कोई नक़ली सेट नहीं है, न ऐसी सृष्टि जो सिर्फ़ कविता के लिए रची गई हो।</p>
<p>बद्रीनारायण जिस ‘लोक’ का बयान करते हैं उसमें विभिन्न चीजों ओर मनोभावों के अपने वज़न, आयतन, अनुपात और सापेक्ष स्थिति का खयाल रखते हैं। वह किसी चीज़ को ‘लार्जर दैन लाइफ़’ साइज़ में पेश करने के विशेषाधिकार का ज़्यादा इस्तेमाल नहीं करते। स्केल की यह समझ सिर्फ़ उनकी शैली या काव्यगत स्ट्रेटेजी की ही नहीं, उस दार्शनिक रवैये की निशानदेही करती है जिसमें मानवीय खुद्दारी, बेकली और करुणा तो है, मनुष्य होने की बिलावजह अकड़ और प्रशस्ति नहीं है। ऐसे विनम्र मानववाद से ही वह आत्मिक संगीत निकल सकता है जो इतिहास के वर्तमान चरण में हमारे संकट, व्यथा, रुदन, चिंता और आघात से रिश्ता बनाता हो।</p>
<p>हिन्दी में कहने को तो व्यापकतर सामाजिक और नैतिक सरोकार की कविता खूब लिखी जाती है, पर ग़ौर से देखें तो वह बहुत संकीर्ण दायरे और सीमित कार्यक्रम की कविता है। बद्रीनारायण की कविता इस दायरे को बढ़ाने और इस कार्यक्रम में कुछ बातें जोड़ने का काम करती है। इसे पढ़कर यह उम्मीद भी बँधती है कि बद्रीनारायण भविष्य में जीवन में आशा-निराशा के उपलब्ध स्रोतों से परे जाकर सांस्कृतिक-सामाजिक संकट की तीव्रता और जटिलता को एक चुनौती और एक बुलावे की तरह स्वीकार करेंगे, क्योंकि वह उस सन्तुलन, विवेक और निश्चय के मालिक हैं जो कविता को मात्र एक संरक्षणात्मक क्रिया ही नहीं, एक आलोचनात्मक और परिवर्तनकामी कर्म बनाते हैं ।</p>
<p>–असद ज़ैदी
ISBN: 9788119092208
Pages: 96
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: फ़ना बुलन्दशहरी का मूल नाम हनीफ़ मोहम्मद था। आपका बुनियादी ताल्लुक़ उत्तर प्रदेश सूबे के बुलन्दशहर से था। आपकी पैदाइश का वक़्त मुस्तनद तौर बता पाना मुमकिन है, न ही बुलन्दशहर में आपकी पैदाइश की जगह और शिजरा। इसकी वाहिद वजह यही है कि फ़ना साहब एक सूफ़ी शायर थे। और सूफ़ी शायर अपना कलाम सिर्फ़ अपने महबूब के लिए लिखते हैं और ख़ुद को दुनिया से छुपा कर गुमनाम कर लेना उनका तरीक़ा रहा है। आपकी पैदाइश के कुछ बरस बाद ही आप हिजरत करके पाकिस्तान चले गए। शायरी का शौक़ बचपन से था। उस दौर के मशहूर शायर क़मर जलालवी के शागिर्द हो गए। आपका सूफ़ियाना ताल्लुक़ मोहम्मद शरीफ़ मियाँ क़ादरी नक़्शबंदी पीलीभीत से था और आपका आख़िरी वक़्त गुजराँवाला और लाहौर की ख़ानक़ाहों में गुज़रा। यहीं 1 नवम्बर 1986 को आपका इन्तिक़ाल हो गया।
Panchami
- Author Name:
Gopal Singh 'Nepali'
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Description:
इधर दो वर्षों से नवीन तारकों के सदृश जितने कवि हिन्दी के काव्याकाश में चमकते हुए दीख पड़े, सौन्दर्य के सुख-स्पर्श आदी से जिन्होंने मन को वशीभूत कर लिया तथा प्रकाश और दृष्टि दी, श्री गोपाल सिंह नेपाली उन्हीं में से एक हैं। मुझे उनके काव्य में शक्ति, प्रवाह, सौन्दर्य-बोध तथा चारु चित्रण एक विशेषता लिये हुए दीख पड़े।...उनमें साहित्य की एक प्रखर प्यास है, जिसके बुझने पर उनकी जाति तथा साहित्य का कल्याण निर्भर है।
—सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
गोपाल सिंह ‘नेपाली’ की सरस्वती स्नेह, सहृदयता और सौन्दर्य की सजीव प्रतिमा है।
—सुमित्रानन्दन पन्त
श्री गोपाल सिंह नेपाली’ हमारे रस सिद्ध कवि और जनता के हृदयहार।
—रामधारी सिंह ‘दिनकर’
गोपाल सिंह ‘नेपाली’ ...हिन्दी भारती की वीणा का एक तार...प्रवाह समता, भाषा की सरलता, भावों की रागात्मकता उनकी हर रचना में देखी जा सकती है। हिन्दी कविता को जनमानस तक पहुँचाने में उनका अद्वितीय योगदान है।
—हरिवंशराय बच्चन
नेपाली जी की रचनाओं में सहजता और व्यंजना का अद्भुत संयोग देखने को मिलता है।
—नरेन्द्र शर्मा
Kavya Chayanika
- Author Name:
Pramod Kovaprath
- Book Type:

- Description: बिगड़ते पर्यावरण की समस्या आज मनुष्य के लिए भूख के बाद दूसरी सबसे बड़ी समस्या है। भूख जिस तरह एक देह के अस्तित्व के लिए आसन्न ख़तरा होती है, उसी तरह पर्यावरण-विनाश सृष्टि के अस्तित्व के लिए होता है। एक-एक व्यक्ति के रूप में जी रहे हम लोगों की आँखों से वह ख़तरा भले ही इतने स्पष्ट और ठोस रूप में न दिखाई देता हो, और भले ही हम बीच-बीच में प्रकृति द्वारा दी जानेवाली चेतावनियों को नज़रअन्दाज़ करने की ढीठता भी जुटा लेते हों, लेकिन जल, ज़मीन, हवा और हरियाली का सतत क्षरित होता जीवन उन निगाहों से अनचीन्हा नहीं रह जाता जो प्रस्तुत उल्लास की झीनी चदरिया के पार दूर क्षितिज के धुँधलके में लिखी जा रही नाश-विनाश की पटकथाओं की पंक्तियाँ पढ़ लेती हैं, यानी कवियों और रचनाशील हृदयों की निगाहें। यह पुस्तक प्रकृति और कवि के इसी अपने, और समाज की रिश्तेदारियों के धोखादेह प्रपंच से परे, उनके निहायत पवित्र और निजी रिश्ते का दस्तावेज़ है। पाठकगण इस किताब को सरकारों और संस्थाओं के रस्मी पर्यावरण-प्रेम और शुष्क रुदन के काव्यानुवाद के रूप में न लें। यह समष्टि-मन के रचनाकुल और ईमानदार स्नायुओं की पीड़ाजनित प्रतिक्रियाओं का संकलन है जिसमें हिन्दी के नए-पुराने, वरिष्ठ, श्रेष्ठ और सजग रचनाकारों ने प्रकृति के साथ अपनी सम्बन्ध-यात्रा के सबसे चिन्तित क्षणों को वाणी दी है। संग्रह में एक सौ एक समकालीन कविताएँ और पैंतालीस कवि शामिल हैं। कौन छोटा है, कौन बड़ा है, यह सवाल अप्रासंगिक है। क्योंकि कविता का विषय महत्त्वपूर्ण है, समस्याओं की भयंकरता प्रासंगिक है। एक ही त्रासदपूर्ण मुद्दा सबके लिए महत्त्वपूर्ण है। सब में आशंकाएँ हैं तो साथ ही आशाएँ भी हैं। प्रकृति की आसन्न मृत्यु पर चीख़ने के बजाय प्रतिरोध खड़ा करना ये रचनाकार अपना दायित्व समझते हैं।
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