Pathron Ka Kya Hai
Author:
Vinay VishwasPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 316
₹
395
Available
यशस्वी युवा कवि विनय विश्वास का यह पहला कविता-संग्रह है। अपने समय के सच से टकराते संवेदनशील मनुष्य के अनुभव इनकी कविताओं का आधार हैं। न यह सच एक जैसा है, न इससे टकराव के अनुभव—इसलिए ये कविताएँ भी एकायामी नहीं। न इनमें प्रकृति और मनुष्य को अलग-अलग किया जा सकता है, न युगीन वास्तव और व्यक्तिगत संसार को। न राजनीति और परिवार को अलग-अलग किया जा सकता है, न शब्द और जीवन को। अनुभव की बहुलता और बहुस्तरीयता इनका ऐसा सच है, जिसने इन्हें दम्भी मुद्राओं की बनावट, कलात्मक दिखाई देनेवाली निरीहता और वहशी अराजकता से बचाकर ज़िन्दगी के प्रति सच्ची कविताएँ बनाया है।</p>
<p>इन कविताओं की सच्चाई उन पर बड़ी सहजता से व्यंग्य करती है, जो धर्म-ईमान की सौदागरी बड़े गर्व से किया करते हैं, दूसरों की मौत से अपनी साँसें खींचा करते हैं, पानी की तरह हर रंग में मिल जाया करते हैं और इनसान होते हुए भी कभी मक्खियों तो कभी केंचुओं को मात दिया करते हैं। इन कविताओं की सच्चाई उन सपनों की लड़ाई में कन्धे से कन्धा मिलाए जूझती है, जिनका भरोसा ईमानदारी और मेहनत की अप्रासंगिक होती पूँजी पर अब भी क़ायम है। इन कविताओं की सच्चाई सम्बन्धों के लगातार क्रूर होते इस्तेमाल का विरोध भी करती है और टूट-टूटकर बनते हुए नए मनुष्य के सौन्दर्य को जीती भी है। इन कविताओं की सच्चाई संवेदनात्मक उद्देश्य की मिट्टी से फूटते वैचारिक भावों के उन अंकुरों की पक्षधर है, जो हवा के ज़हर को ऑक्सीजन की तरह सर्जनात्मक चुनौती देने के लिए ही जन्मे हैं। इन कविताओं की सच्चाई रचना के हर स्तर पर अनुभव से नाभिनालबद्ध होने के कारण अतिरिक्त तराश या सपाटता से मुक्त है। इसीलिए इनमें से बहुत-सी कविताओं को जिस उत्सुकता के साथ पढ़ा गया है, उसी उत्साह के साथ सुना भी गया है।</p>
<p>सम्प्रेषण के संकट से दो-चार होती समकालीन कविता के दौर में ये कविताएँ प्रमाण हैं कि पाठकों और श्रोताओं को एक साथ प्रभावित करनेवाली कविताई बिना कोई रचनागत समझौता किए अब भी सम्भव है। निःसंकोच कहा जा सकता है कि पढ़ी और सुनी जानेवाली कविताओं के बीच की गहरी खाई को पाटते हुए सम्प्रेषण के संकट को सर्जनात्मक तरीक़े से हल करने में इन कविताओं की भूमिका उल्लेखनीय है।
ISBN: 9788126710003
Pages: 95
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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और मेरे चश्मे के नम्बर में छुपी थीं
गुज़रे पलों की निशानियाँ।’’
क्योंकि विजय बाक़ायदा शायरी नहीं करते, यानी मेरी तरह यह उनके लिए ज़रिया-ए-रोज़गार नहीं है। लेकिन ग़मे-रोज़गार के लिए बाक़ायदा लिखते रहते हैं अख़बारों में, रिसालों में और ख़तों में। मैं उनके शायराना ख़ुतूत हासिल कर चुका हूँ। उनकी नज़्में निजी लगती हैं लेकिन वह इतनी निजी हैं नहीं। एक जागी हुई चेतना और मुकम्मिल Social consciousness का एहसास देती हैं। वह अपना चौगिर्द लफ़्ज़ों से पेंट करते हैं, लेकिन लफ़्ज़़ों के वक़्फ़ों में इतना कुछ लिख देते हैं कि उसमें इतिहास नज़र आने लगता है। एक कोताहिये ‘ज़मीर’—
‘‘कल रात मेरा ज़मीर मर गया—
मर तो शायद काफ़ी पहले गया था...
मैंने इस एहसास को,
आत्मा तक उतरने नहीं दिया।
आख़िर अपनों की मौत से कौन समझौता कर पाया है!’’
वह अपना माज़ी और वरसे में मिली धरती और उसकी सुन्दरता बयान करते हैं और उनमें छोटे-छोटे चित्र भी उनकी ज़िन्दगी का हिस्सा रहे हैं। स्कूल के पीछे इमली का पेड़ खेतों की कोरों पर मिट्टी की मेंड़ सब गुम हो गया मेरे बच्चो, मैं तुमसे शर्मिन्दा हूँ—विरासत के नाम पर छोड़कर जाऊँगा उजड़ी-सी धरती, स्याह आसमान। विजय जितनी CASUALLY लिखते हैं, उतने ही ग़ौर से पढ़ने के क़ाबिल हैं, क्योंकि इस सादगी के पीछे एक निहायत ज़िम्मेदार की आत्मा जाग रही है।
The Spiritual Poems of Rumi
- Author Name:
Rumi
- Book Type:

- Description: The Spiritual Poems of Rumi: A Special Collection of Spiritual Poems Discover the wisdom of Jalaluddin Muhammad Balkhi Rumi, the revered Persian mystic and Sufi master, in this beautifully illustrated edition. For over eight centuries, Rumi’s timeless poetry has captivated readers from all walks of life, offering profound insights into love, friendship, and spirituality. This carefully curated collection features – Brilliant translations that bring Rumi’s universal themes to life, inviting readers to embark on a spiritual journey toward self-discovery and a deeper connection to the world around them. With verses that transcend time and culture, Rumi’s words resonate with anyone seeking a greater understanding of the self and our collective oneness. In this exquisite edition, adorned with intricate, richly colored designs, reflecting the beauty and depth of Rumi’s words, this book is more than just a collection of poems—it is a cherished tool for self-reflection and spiritual growth. Whether you are new to Rumi’s work or a lifelong admirer, this series will serve as a meaningful companion on your journey of inner awakening.
Bakhtiyarpur
- Author Name:
Vinay Saurabh
- Book Type:

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Description:
कुछ चीज़ें होती हैं जो हम से छूट जाती हैं, कभी हमारे हाथ से फिसल जाती हैं, कभी उन्हें हमसे छीन लिया जाता है; कुछ चीज़ें होती हैं जो हमारे पास रह जाती हैं और छूटी हुई, जा चुकी चीज़ों, लोगों, जगहों की याद हमें दिलाती रहती हैं। कुछ सपने होते हैं हमारे, कुछ इच्छाएँ होती हैं, कुछ नहीं किए जा सके काम होते हैं, जो हमें अकसर बुलाते रहते हैं। प्रेम होता है, जिसके दोनों तरफ़ पीड़ा होती है—पा लेने की अपनी, न पाने की अपनी।
ऐसी ही चीज़ों से हम बनते हैं, हमारी दुनिया बनती है। विनय सौरभ का कवि जैसे इस दुनिया की हर खुली-अधखुली खिड़की में झाँकता-देखता फिरता रहता है। हर किसी के अनुभवों का उदास-सा विस्तार मालूम होतीं इस संग्रह की कविताएँ जीवन के अधूरेपन की तरफ़ इतने अनायास ढंग से इशारा करती हैं कि हम अपनी तथाकथित पूर्णताओं को लेकर सन्देह से भर उठते हैं।
स्मृतियों, विडम्बनाओं और मध्यवर्गीय जीवन की साँवली उदासियों में अपनी कविता को आकार देनेवाले विनय सौरभ के इस संग्रह में वे कविताएँ भी हैं जो राजनीति, सत्ता और बाजार की आक्रामकताओं की आलोचना करती हैं; और उनके जादू को समझने, उनके तिलिस्म को तोड़ने की कोशिश भी करती हैं।
कविता-प्रेमी पाठक को इस किताब में ऐसे अनेक स्थल मिलते हैं जहाँ वह ठहरकर अपने आप और अपनी दुनिया को दुबारा से देखना चाहता है।
Kahin Bahut Door Se Sun Raha Hoon
- Author Name:
Shamsher Bahadur Singh
- Book Type:

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Description:
शमशेर की कविता का स्थायी मूल्य है, स्वच्छ और निर्मल कविता की परख। इसी नाते शमशेर रूपवादी आलोचकों की तरह, परम्परावादी या यथास्थितिशील नहीं हैं। आधुनिक कविता की स्थायी मूल्यदृष्टि की खोज वह कवि के अनुभव और काव्य के उपकरणों की ज़रूरत के अनुसार करते हैं। इस कसौटी पर वे बड़े कड़े हैं। वे परम्परा की श्रेष्ठतम कविता, कला और सौन्दर्य की ‘प्राचीन या आधुनिक’ हार्दिकताओं को विकसित करते हैं। विकास की उनकी ज़मीन व्यापक है। शमशेर हिन्दी-उर्दू के दोआब के कवि हैं।
ग़ालिब और निराला की मार्मिक भाषाओं के स्वरूप और नाद को शमशेर ने अपनी कविता में आत्मसात् कर लिया है। शमशेर का कलाकार कवि अपनी कला-प्रयोगशाला में तल्लीन रहनेवाला एक वैज्ञानिक कवि है। वह प्रयोगशाला में ‘अत्याधुनिक मर्म की सूचनाएँ’ खोजता रहता है। पतनशील आधुनिक सभ्यता के बाज़ार की चीख़-पुकार से असन्तुष्ट...शमशेर आत्मज्ञान से विकसित होती कविता या कला के विज्ञान को टटोलते चलते हैं।
शमशेर का खोजी सौन्दर्य संगीत की स्वच्छ और निर्मल ऊँचाइयों से कभी निराश नहीं होता। शमशेर के लिए नया रूप लेती मानवीय कला, ऊँची कला का आईना है। वे जानते हैं कि कब पूँजीपति या सत्ता उनकी कविता या कला को संरक्षण देते हैं। शमशेर की ख़ामोशी में एक एब्स्ट्रैक्ट पेंटिंग बनती है, जहाँ कलानुभव का इतिहास, भूले-बिसरे मित्रों की यादें, और अपनी मौत का विडम्बना-भरा प्रसंग घुल-मिल जाता है—कोलाज जैसा। घुल-मिल जाने के अनेक कलानुभवों को वे व्यंग्य की शैली में चित्रित करते हैं और कभी रंगमंच पर ‘जात्रा’ या ‘बाउल’ से लीला करते नज़र आते हैं।
‘काल से होड़ लेता शमशेर’ में
—विष्णुचन्द्र शर्मा
Bheer Ke Bhavsagar Mein
- Author Name:
Vinay Dube
- Book Type:

- Description: विनय दुबे कविता से खेलते हैं, जैसे कोई बच्चा खेलता है, लेकिन खिलौनों से नहीं, किसी खेल के औज़ार से जैसे—हॉकी या बल्ला, जिससे चाहें तो हथियार का काम भी लिया जा सकता है। खेल-खेल में बनती दिखती ये कविताएँ इसीलिए पढ़ने-सुनने के थोड़ी देर बाद धारदार शस्त्र की तरह चमकती प्रतीत होती हैं। विनय दुबे, जैसा उन्होंने स्वयं कहा, चीज़ों को ‘गम्भीरता’ से नहीं, ‘कॉमिकली’ लेते थे। बड़ेपन और ताक़त के आरोपित मुलम्मे से ढकी चीज़ों को जैसे वे अपने जीवन में शरारत से हिला-डुलाकर देखते रहे होंगे, वैसे ही उनकी कविताएँ भी देखती हैं। मसलन ‘मैं शिकायत करूँगा’ शीर्षक कविता में ईश्वर से उनका सम्बोधन—‘‘प्रधानमंत्री जी से आपकी शिकायत करने जा रहा हूँ कि जो/ईश्वर है वह मेरी नहीं सुनता है।’’ जिस चीज़ पर उनकी कविता अन्ततः भरोसा करती है, वह है स्थानीयता और मामूलीपन, उसी के पक्ष में उसकी तमाम मुद्राएँ हैं। वे उस विचार से भी आतंकित नहीं जो पूँजी की तरह बर्ताव करने लगता है, न अन्तरराष्ट्रीयता से, न धन बल से, न सत्ता बल से। ‘‘मेरा प्रेम होशंगाबाद के अमरूद हैं/...दिल्ली की राजनीति नहीं है। कोई सद्भावना यात्रा भी नहीं है प्रधानमंत्री जी की।’’ तमाम ताक़तों के ख़िलाफ़ उनकी कविताएँ आधा-सा हँसता हुआ एक विदूषकीय मुखौटा गढ़ती हैं, कोई विमर्श नहीं, क्योंकि विमर्श फिर एक-एक सत्ता की तरह पेश आने लगता है। उनकी कविता का अटूट विश्वास प्रेम है, जहाँ वह बार-बार लौटती है, कुछ ऐसे निष्कर्षों के साथ—‘हमारे समय का सबसे बड़ा झूठ/शासन है हमारे समय का सबसे बड़ा अन्याय/प्रशासन है हमारे समय का सबसे बड़ा फ़रेब/दिल्ली है’ (‘दुखी है कबीरदास’ कविता से)
VAH EK AUR MAN...
- Author Name:
Shri Praveen Kumar
- Book Type:

- Description: ये ज़रूरी नहीं कि सबका सच एक हो जाए, सबके अहसासात एक हो जाएँ, सबके नज़रिए, सबके फलस़फे एक हो जाएँ न मैं अपने जज़्बों को खुद थाम पाया कहाँ होंठ सीना, न मैं जान पाया सर्दजोशी का आलम, सुलगती़िफज़ाएँ न वो चुप हुआ है और न मैं बाज़ आया। रु़खसती रु़ख बदलने का भी नाम है बेरु़खी रोकना आज़माइश मेरी आँसुओं सा निकलकर कहाँ चल दिए धूल सी भर गई है नुमाइश मेरी। —इसी संग्रह से इस काव्य-संकलन में मानवीय रिश्तों का स्थायी भाव प्रेम, यत्र-तत्र-सर्वत्र है और उसी में रूबरू हुए दिल को छूनेवाले तमाम मंजरों का मर्यादित तस्करा भी है। समय के प्रवाह में जज्बातों को थामने, उनसे गुफ्तगू करने की कशिश गीतों और नज्मों में मुसलसल है, तो मसरूफियत के आगोश में अपनों से दूर हो जाने की पीड़ा भी कमोबेश इसमें शामिल है।
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