Pad Kupad
Author:
Ashtbhuja ShuklaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 160
₹
200
Unavailable
‘पद-कुपद’ हिन्दी कविता की जनोन्मुख परम्परा में एक प्रतिमान है। अष्टभुजा शुक्ल ऐसे कवि हैं जिन्हें मनुष्यता के मौलिक मर्म का गहन ज्ञान है। उनकी कविताओं में वह गाँव और क़स्बा है जिसका संघर्ष निरन्तर बढ़ता जा रहा है। राजनीति और अर्थशास्त्र की भूमंडलीय परिभाषाओं के सम्मुख जो जीवन प्रायः भूलुंठित दिख रहा है, उसका प्रतिरोध अष्टभुजा शुक्ल की रचनाओं में गतिशील है।</p>
<p>पद-शैली में अष्टभुजा की ये अधिकांश रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर पहले ही पाठकों-आलोचकों की प्रशंसा प्राप्त कर चुकी हैं। यह छन्द की वापसी जैसा कोई उपक्रम नहीं है, बल्कि शताब्दियों से आ रही कबीरी पुकार का पुनर्नवन है। स्वीकृत पद-शैली के आयतन में कवि ने समकालीन समाज के अन्तर्विरोधों व अन्तःसंघर्षों को व्यक्त किया है।</p>
<p>‘लोहे के कुछ चने सुबह थे, सायं जिन्हें भिगोया/पानेवाले राज पा गए, अष्टभुजा सब खोया।’ —आम जन के दु:ख-दर्द को प्रकट करते हुए अष्टभुजा शुक्ल इसके लिए उत्तरदायी व्यक्ति, प्रवृत्ति, व्यवस्था तक जाते हैं। जिस प्रखर राजनीतिक विवेक की आज हिन्दी कविता में सर्वाधिक आवश्यकता है, वह ‘पद-कुपद’ का प्राण-तत्त्व है।</p>
<p>शब्द की त्रिशक्ति के पारखी अष्टभुजा शुक्ल के इन पदों में व्याप्त व्यंग्य अनायास कवि नागार्जुन की याद दिलाता है। इन रचनाओं में जाने ऐसे कितने शब्द हैं जो विस्मृतप्राय पुरखों की तरह सामने आ खड़े होते हैं। कहना न होगा कि यह काव्यभाषा केवल अष्टभुजा के रचना-संसार में ही सम्भव है। यदि एक उदाहरण देना हो तो गन्ना पर रचा पद पढ़ा जा सकता है। बीस पंक्तियों में समूचा जीवन और उसका दर्शन समाया है—‘कटकर, छिलकर, निचुड़-निचुड़कर होकर गेंड़ी-गेंड़ी/अष्टभुजा की गाँठ बची तो फिर पनपेगी पेंड़ी’।</p>
<p>‘पद-कुपद’ वस्तुतः हिन्दी की जातीय कविता का अर्थवान विस्तार है। पथरीले यथार्थ के बीच अदम्य जिजीविषा की दूब अर्थात् अनहारी हरियाली की पहचान इन पदों को महत्त्वपूर्ण बनाती है।
ISBN: 9788126723409
Pages: 96
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Proof Reader
- Author Name:
Hemant Dwivedi
- Book Type:

- Description: समय का चक्र पूरे संसार में जनसामान्य के हितों के विरुद्ध घूम रहा है। ऐसे में मुक्ति की सांस्कृतिक कार्यवाही का सबसे मुखर अस्त्र, दीनों की साथी और आन्दोलनों का प्राण कविताएँ बनी हैं। दुख और तनावों से घिरा कवि मायूस नहीं है बल्कि अपनी सबसे शक्तिशाली भूमिका में है। ऐसा ही चुप्पा किस्म का अलग-थलग दिखने वाला एक कवि बरबस अपनी कविताओं के कारण हमारा ध्यान खींचता है—हेमंत देवलेकर। हेमंत की कविताएँ सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक सन्दर्भों के साथ बिना ‘कवितापन’ खोये संवाद करती हैं। वे संवेदनाओं को आकार में ढालते हैं। उनकी कविताओं के टटके बिम्ब, भाषिक ताज़गी, हरियारी महक बार-बार पढ़े जाने की ज़िद्द लिए सगेपन के साथ हमारे भीतर उतरती है। हेमंत के यहाँ पीड़ा और शक्ति के ज़िन्दा बिम्ब चमत्कार बनकर नहीं बल्कि अन्तर्मन को बेधने आते हैं। उनका कविमन और कविकर्म ‘सामूहिकता’ और ‘सहअस्तित्व’ से बँधा है। कवि जानता है कि इन दो शब्दों में ही वैश्विक सांस्कृतिक विरासत और दुनिया को बचा लेने का शऊर है। हेमंत अदबी नहीं प्रकृति भाषा के पक्षधर हैं। इनकी कविताएँ सामान्य प्रसंगों से जुड़ी हुई होकर भी हमें गहरी मनोवैज्ञानिक सच्चाइयों तक लेकर जाती हैं, हमें हमारे समय के पतझड़िया मौसम और भूरे रंग से रूबरू कराती हैं, परन्तु अवसाद में नहीं ढकेलती। बकौल कवि ‘मेरी कलम की स्याही में... खून भी उपलब्ध होता है और दवाएँ भी’। मौजूदा दौर में हेमंत की इतनी बेधक और मारक, ज़िन्दगी से भरी, धूप के टुकड़े को आँसुओं से नम रखने वाली कविताएँ, विसंगति और त्रासदी के बीच एक ‘भरोसे’ की तरह अपने सघनतम रूप में संगी-साथी की तरह पाठकों के बीच उतरेंगी। इसी विश्वास और इसी आस के साथ पुनः ‘हर पेड़ कहीं दूर फिर अपना पेड़ बसाना चाहता है। —शशिकला राय
Rangon Ki Manmani
- Author Name:
Wasim Nadir
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Mahabazar Ke Mahanayak
- Author Name:
Prahlad Agarwal
- Book Type:

- Description: सिनेमा कला का वह रूप है जो बाज़ार की शर्तों पर भी चलता है, और बाज़ार के लिए नयी शर्तें और मे'आर भी तय करता है। भारत में यही एकमात्र आर्ट है जिसकी रचना बाज़ार को ध्यान में रखकर की जाती है; वह बाज़ार जिसमें जनता ख़रीदार है, उसी की पसन्द-नापसन्द से सिनेमाई उत्पाद का भविष्य तय होता है। प्रहलाद अग्रवाल हिन्दी के उन गिने-चुने लेखकों में हैं जिन्होंने सिनेमा के उतार-चढ़ाव पर हमेशा निगाह रखी है, नये ट्रेंड्स को पकड़ा है, सामाजिक-राजनीतिक सन्दर्भों में उनकी व्याख्याएँ की हैं, और फ़िल्मीगॉसिप की जगह सिनेमा का एक भाषिक विमर्श रचने का प्रयास किया है। इस पद्यात्मक किताब में वे यही काम थोड़ा अलग ढंग से कर रहे हैं। इसमें उनकी कुछ लम्बी कविताएँ ली गयी हैं जिनका विषय हिन्दी सिनेमा, उसके नायक-महानायक, सपनों की उस नगरी के भीतरी यथार्थ, उसके आदर्श, समाज के साथ उसके रिश्तों पर उन्होंने एक ख़ास तरंग में अपनी अनुभूतियों को बुना है। कह सकते हैं कि यह हिन्दी फिल्मों के स्याह-सफ़ेद की काव्यात्मक व्याख्या है, जिसे पढऩे का अपना आनन्द है। इसे पढ़ते हुए हमें सूचनाएँ भी मिलती हैं और विचार भी। इसमें फिल्म पत्रकारिता का स भी है और कविता भी। ''सिनेमा हमारे समय में एक प्रबल उपस्थिति, लोकप्रिय विधा और कलात्मक और मानवीय सम्भावनाओं का वितान लिये हुए है। प्रह्लाद अग्रवाल सिनेमा के अनूठे रसिक हैं और उस पर उन्होंने कई तरह से विचार किया है। यह पुस्तक नयी रोचक शैली में लिखी गयी है। इसे प्रस्तुत करते हुए हमें प्रसन्नता है।" —अशोक वाजपेयी.
DHARTI KABHI BANJH NAHI HOTI
- Author Name:
Vinod Sharma
- Book Type:

- Description: Collection of hindi poems
Jeevan Ke Din
- Author Name:
Prabhat
- Book Type:

-
Description:
ये लोक में टहलती हुई कविताएँ हैं। इन्होंने शहर की मुख्यधारा से सिर्फ़ लिपि उठाई है, बाक़ी सब इनका अपना है। नागर मुख्यधारा में रहते-बहते न इन कविताओं को रचा जा सकता है, न पढ़ा जा सकता है। इन्हें लिखने के लिए धीमी हवा की तरह बहते पानी की सतह जैसा मन चाहिए होता है, जो निश्चय ही कवि के पास है। कवि ने इन कविताओं को जैसे धीरे-धीरे उड़ती चिडिय़ों के पंखों से फिसलते ही अपनी भाषा की पारदर्शी प्याली में थाम लिया है, और फिर काग़ज़ पर सहेज दिया है। इनमें दु:ख भी है, सुख भी है, अभाव भी है, प्रेम भी, बिछोह भी, जीवन भी और मृत्यु भी, और इन कविताओं को पढ़ते हुए वे सब प्रकृति के स्वभाव जितने नामालूम ढंग से, बिना कोई शोर मचाए हमारे आसपास साँस लेने लगते हैं। यही इन कविताओं की विशेषता है कि ये अपनी विषयवस्तु के साथ इस तरह एकमेक हैं कि आप इनका विश्लेषण परम्परागत समीक्षा-औज़ारों से नहीं कर सकते। ये अपने आप में सम्पूर्ण हैं; और जिस चित्र, जिस अनुभव को आप तक पहुँचाने के लिए उठती हैं, उसे बिना किसी बाह्य हस्तक्षेप के जस का तस आपके इर्द-गिर्द तम्बू की तरह तान देती हैं, और अनजाने आप अगली साँस उसकी हवा में लेते हैं।
संग्रह की एक कविता ‘गड़रिये’ जैसे इन कविताओं के मिज़ाज को व्यक्त करती है—‘वे निर्जन में रहते हैं/ इनसानों की संगत के वे उतने अभ्यस्त नहीं हैं जितने प्रकृति की संगत के/...वे झाड़ों के सामने खुलते हैं/वे झिट्टियों के लाल-पीले बेरों से बतियाते हैं/...वे आकाश में पैदल-पैदल जा रही बारिश के पीछे-पीछे/दूर तक जाते हैं अपने रेवड़ सहित...’
ये कविताएँ अपने परिवेश के समूचेपन में पैदल-पैदल चलते हुए सुच्चे फूलों की तरह जुटाई गई कविताएँ हैं; जिनका प्रतिरोध, जिनकी असहमति उनके होने-भर से रेखांकित होती है। वे एक वाचाल समाज को थिर, निर्निमेष दृष्टि से देखते हुए उसे उसकी व्यर्थता के प्रति सजग कर देती हैं, और उसके दम्भ को सन्देह से भर देती हैं।
Bhoomija
- Author Name:
Nagarjun
- Rating:
- Book Type:

- Description: राम-कथा में सीता सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पात्र हैं। कथा-विस्तार के केन्द्र में वही प्रमुख हैं। सीता नारी के उद्दाम स्वाभिमान की प्रतीक हैं। सीता का परित्याग जहाँ नारी-शोषण की व्यथा-कथा है, वहीं भूमि से उत्पन्न उस पुत्री का अपनी पवित्रता व शुचिता के प्रमाण हेतु दिव्य आवाहन—जिसके बाद धरती फटती है और वह भू-समाधि ले लेती है—उस शोषण से मुक्ति का चरम है। आज के सर्वाधिक लोकप्रिय एवं वरिष्ठ कवि नागार्जुन ने प्राचीन कथा-प्रसंगों को आधुनिक सन्दर्भों में बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। इस प्रबन्धकाव्य में प्रकृति के उद्दीपन रूप के यत्र-तत्र बड़े ही विलक्षण चित्र मिलते हैं। भावों की सहजता तथा यथार्थ से निकटता तो आकर्षित करती ही है, साथ ही छन्द, लय और गति इसे मुग्धकारी पठनीयता प्रदान करते हैं। रचनाकार का विस्तृत परिचय, कथा-प्रसंग, चर्चित पात्र-प्रसंग तथा शब्दार्थों के दिए जाने से ‘भूमिजा’ एक अधिक उपयोगी काव्यकृति बन गई है।
Neelima
- Author Name:
Gopal Singh 'Nepali'
- Book Type:

- Description: प्रकृति और मानवता, ये दो बिन्दु गोपाल सिंह नेपाली के कवि-मन की स्थायी धुरी रहे हैं—एक तरफ प्रकृति में निहित असीम सौन्दर्य और सम्भावनाएँ, दूसरी तरफ पराधीनता, विषमता, शोषण और अभावों के बीच डूबती-उतराती-हाँफती मनुष्यता। उनकी कविताओं में ये दोनों ही सरोकार प्रबल रूप में अपनी उपस्थिति जताते हैं। ‘नीलिमा’ में संग्रहीत कविताओं में ये दोनों भाव देखे जा सकते हैं। ‘गगन भी नील नयन भी नील’ इस संग्रह की पहली कविता है। इस कविता में आई तुलनात्मक भावधारा को नेपाली जी अपने लिए किंचित नई एवं भिन्न मानस-क्षितिज की वस्तु मानते थे। कविता के छात्रों और सर्जकों के लिए आज भी उनकी कविताएँ इसलिए प्रासंगिक और पठनीय हैं कि जीवन और मन के हर भाव को कविता में व्यक्त करने का सतत प्रयास उनके यहाँ दिखता है, और यह सिर्फ वर्णन नहीं है, विचार, दृष्टि और अनुभूति को एक जगह जोड़ता छन्द-बद्ध काव्य है। ‘तारों की रात’, ‘संध्या गान’, ‘प्रभातगान’, ‘धार पर जले लहर के दीप’ आदि अनेक कविताएँ हैं जो प्रकृति को देखने के लिए हमें एक विशेष दृष्टि देती हैं, वहीं ‘कवि’ शीर्षक गीत में वे मनुष्य संसार से प्राप्त भावनाओं को भी व्यक्त करते हैं जग को दुख है, जग रोता है/कुछ पाता है, सब खोता है युग-ईश्वर की बलि-वेदी पर/जग बार-बार बलि होता है ; मैं जग के दुख में शामिल हूँ इन आँखों में जलधार लिये।
Thoda-Thoda Punna Thoda-Thoda Paap
- Author Name:
Kedar
- Book Type:

-
Description:
परिपक्व जीवन-अनुभवों और भाषा की गहरी समझ के साथ लिखी गई ये कविताएँ लोकजीवन की आत्मीय छवियों और सामाजिक सरोकारों से उपजी ज़िम्मेदार दृष्टि की परिचायक हैं।
केदार जानते हैं कि ‘एक पूरी ज़िन्दगी लिखना नहीं ठट्ठा-हँसी है / खीर है टेढ़ी’—ये कविताएँ ज़िन्दगी को लिखने के इसी कठिन उद्यम से निर्मित हुई हैं। इन कविताओं का कवि किसी धारा से बाँधा हुआ नहीं है। अनुभूति की प्रामाणिकता और परिवेश की पुनर्रचना केदार के काव्यात्म को एक सघन आयाम देते हैं। बचपन से लेकर जीवन के विभिन्न चरणों के विशिष्ट अनुभव इन कविताओं में उतरे हैं तो बतौर मनुष्य स्वयं से साक्षात्कार से लेकर समाज की स्थूल परिधियों और वहाँ मौजूद विसंगतियों तक उनकी दृष्टि जाती है।
‘सर्कस’, ‘होमवर्क’ और ‘कक्षा’ जैसी पारदर्शी कविताएँ जो बचपन का उत्सव मनाती हुईं हमें अपने सहज छन्द-प्रवाह से निर्भार करती हैं तो ‘नसीहत’ और ‘चिट्ठीरसैन’ जैसी कविताएँ हमें सोच के एक भिन्न और गम्भीर स्तर पर ले जाती हैं।
‘एक-एक शब्द की / चुकानी पड़ती क़ीमत / बहुत जलता लहू / हाथ, उस दिन ख़ाली हो जाता / शब्दों में जिस दिन कुछ / उतरता’—कहने वाले केदार अभिव्यक्ति का दायित्व भी जानते हैं और मूल्य भी।
Gorakhbani
- Author Name:
Gorakhnath
- Book Type:

-
Description:
मध्यकालीन भारत के जिस दौर में गुरु गोरखनाथ का व्यक्तित्व सामने आया, वह विभिन्न सामाजिक और नैतिक चुनौतियों के सामने एक असहाय और दिग्भ्रमित दौर था। ब्राह्मणवाद और वर्ण-व्यवस्था की कठोरता अपने चरम पर थी, आध्यात्मिक क्षेत्र में समाज को भटकानेवाली रहस्यवादी शक्तियों का बोलबाला था। इस घटाटोप में गोरक्षनाथ जिन्हें हम गोरखनाथ के नाम से ज़्यादा जानते हैं, एक नई सामाजिक और धार्मिक समझ के साथ सामने आए।
वे हठयोगी थे। योग और कर्म दोनों में उन्होंने सामाजिक अन्याय और धार्मिक अनाचार का स्पष्ट और दृढ़ प्रतिरोध किया। वज्रयानी बौद्ध साधकों की अभिचार-प्रणाली और कापालिकों की विकृत साधनाओं पर उन्होंने अपने आचार-व्यवहार से उन्होंने निर्णायक प्रहार किए और अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्तियों से समाज को चेताने का कार्य किया। मन्दिर और मस्जिद के भेद, उच्च व निम्न वर्णों के बीच स्वीकृत अन्याय, अनाचार तथा सच्चे गुरु की आवश्यकता और आत्म की खोज को विषय बनाकर उन्होंने लगातार काव्य-रचना की।
इस पुस्तक में उनके चयनित पदों को व्याख्या सहित प्रस्तुत किया गया है ताकि पाठक गोरख की न्याय-प्रणाली को सम्यक् रूप में आत्मसात् कर सकें। मध्यकालीन साहित्य के अध्येताओं के लिए यह पुस्तक विशेष रूप से उपयोगी है।
Pratinidhi Kavitayen : Chandrakant Devtale
- Author Name:
Chandrakant Devtale
- Book Type:

- Description: चन्द्रकान्त देवताले की कविता के विषय-वस्तु संसार के ऐतिहासिक तथ्य मात्र नहीं हैं, एक अदम्य और अनवरत् जारी सृजनात्मक ऊर्जा के जादुई स्पर्श से ही चन्द्रकान्त इन विषयों का काव्य-रूपान्तरण करते हैं। उनकी कविताओं में मौजूद लयों की विविधता के पीछे शिल्प-संयम या कौशल या नवाचार की ज़ाहिर चेष्टा की जगह एक तरह की रागाविष्ट स्वत:स्फूर्तता ही अधिक है। इसी वजह से उनके वस्तु-वर्णन भी किसी रैखिक वैचारिकता में विन्यस्त नहीं लगते। वास्तव में उनकी कविता की पक्षधर वैचारिकता या उसकी प्रतिबद्धता का स्रोत मानव विवेक के आदिम संघर्ष और अपनी लोकोन्मुख सांस्कृतिक परम्परा में है। उपभोग और उन्माद की सभ्यता के बेरोक प्रसार, राजनैतिक संस्कृति में लगातार जारी गिराव, शोषण, दमन और अन्याय को पालने-पोसनेवाली बाज़ारू रफ़्तार के विरुद्ध, ख़ालिस देसी सन्दर्भों के धधकते अनुभवों में वाग्मिता और बेबाकी से विन्यस्त चन्द्रकान्त देवताले की कविता कवि की पक्षधरता का एक मार्मिक और अविस्मरणीय दस्तावेज़ है। चन्द्रकान्त देवताले की कविता श्रम के सम्मान और लोक-संस्कृति की स्मृतियों से ही अपनी मूल्य-चेतना को निरन्तर संस्कारित करती रही है। इसीलिए उनके यहाँ न तो भारतभूमि में जन्म लेने और जीने की गद्गद आत्ममुग्ध भारतीयता है और न ही ऐसी कोई महान विश्वदृष्टि जिसे पास-पड़ोस के रोज़मर्रे का दु:ख और अन्याय ही न दिखे। चन्द्रकान्त देवताले की कविता का सार अगर करना ही हो, तो मुक्तिबोध के शब्दों में 'वह आवेगत्वरित कालयात्री है’।
Vah Ladki Jo Motorcycle Chalati Hai
- Author Name:
Anant Bhatnagar
- Book Type:

- Description: पुरातन की स्मृति और अभाव अक्सर ही कविताओं के प्रेरक कारक होते हैं, या तो हम किसी बीते क्षण को कविता में सम्बोधित करते हैं या फिर किसी भविष्य की कामना हमें कविता में सोचने को प्रेरित करती है। लेकिन इस संग्रह की ज़्यादातर कविताएँ वर्तमान को सम्बोधित हैं और आधुनिक सभ्यता के कुछ नए उपादानों को समझने की कोशिश करती हैं; मसलन—‘मोबाइल फ़ोन’, ‘बाज़ार’, ‘सेज के नाम से जाने जानेवाले विशेष आर्थिक क्षेत्र’ और ‘वह लड़की जो मोटरसाइकिल चलाती है’। >इस नई दुनिया को कवि बिना किसी पूर्वग्रह के एकदम ताज़ा निगाह से देखता और समझता है और पाठक को भी अपनी यात्रा में शामिल करता चलता है—‘क्या/आप नहीं चौंके थे/उस दिन/जब आपने/पहली बार किसी/एक लड़की को/मोटरसाइकिल चलाते/हुए देखा था?’ यह दृश्य कवि को एक नए युग का आरम्भ लगता है, लेकिन इसके भविष्य को लेकर उसे कुछ शंका भी है—‘क्या शादी के बाद भी/चला पाएगी वह मोटरसाइकिल/...क्या/वह आगे बैठी होगी/और पति/होगा/पीछे सवार?’ संग्रह का दूसरा खंड ‘उम्र का चालीसवाँ’ बढ़ती आयु के अहसास की कविताओं का है जिसके विषय में ख़ुद कवि का कहना है कि ‘उम्र के इस संक्रमण काल में रचित ये कविताएँ नितान्त निजी जीवन से लेकर सामाजिक स्तर तक बदलते रिश्तों के प्रति प्रतिक्रिया हैं। इन कविताओं में कई विशुद्ध हास्यबोध की रचनाएँ भी हैं, जिन्हें संग्रह में सम्मिलित करने के पीछे मेरी सोच यह है कि हास्य को केवल मंचीय जुमलेबाज़ी के लिए छोड़ देना हास्यबोध के साथ अन्याय है।’ संक्षिप्त मुहावरे में रची ये कविताएँ हिन्दी कविता-प्रेमियों को निश्चय ही पसन्द आएँगी।
Aakash Dharti Ko Khatkhataata Hai
- Author Name:
Vinod Kumar Shukla
- Book Type:

-
Description:
विनोद कुमार शुक्ल समकालीन कविता के संसार में उन थोड़े से ऐसे कवियों में शुमार हैं जिन्होंने समकालीन कविता की दिशा और दृष्टि को काफ़ी हद तक नियंत्रित किया है। उनकी इस हैसियत को हिन्दी में लगभग सभी कवियों ने स्वीकार किया है।
काव्याभिव्यक्ति में मित कथनों का जितना सार्थक प्रयोग वे करते हैं, उतना शमशेर ही कर पाते थे। शब्दों को कम से कम ख़र्च करके कैसे अर्थ के भंडार को समेटा जाए इसे सीखने के लिए विनोद कुमार शुक्ल की कविता काम की चीज़ है।
उनकी कविता नितांत समसामयिक होकर भी समयातीत लगती है। वह पीछे भी देखती है और आगे भी, पर उल्लेखनीय बात यह है कि वह अपने समय में धँसी होने के बावजूद अपने समय में फँसती नहीं है। उनके काव्यबोध में जो अचूक क़िस्म की पारदर्शी सूक्ष्मता है, वह कई लोगों को जटिलता, रूपवाद, कलावाद का अवतार लगती है लेकिन रूपवादी कविता है नहीं। काव्य-प्रयोगों के लिए उनसे बड़ा कवि आज कम से कम हिन्दी में दिखाई नहीं देता
वे विचारधारा के पुल से होकर रास्ता तय करने वाले कवि नहीं हैं, बल्कि वे कविता की नदी को ख़ुद तैर कर पार करने वाले कवि हैं। कम से कम उनके लम्बे कवि-कर्म का संघर्ष यही प्रतिमान हमारे सामने रखता है। वे हिन्दी कविता के संसार में उन थोड़े से कवियों में हैं जिन्होंने चालू मुहावरे को तोड़कर अपनी कविता में संवेदना और काव्य-शिल्प के लिए अनोखा आयाम चुना है। अपनी काव्यभाषा के चुनाव में वे जितने विरल, संयमी और जागरूक कवि हैं, उतने कम ही कवि रहे हैं। यह उनकी चुनिन्दा कविताओं का संकलन है।
Nepathy Mein Hansi
- Author Name:
Rajesh Joshi
- Book Type:

- Description: ये कविताएँ पिछले सात आठ बरसों में लिखी गई है । हमारे आसपास इस बीच बहुत तेजी से परिवर्तन हुए हैं । घटनाओं की गीत इतनी तेज और अप्रत्याशित बल्कि कहना चाहिये कि विस्मित कर देने वाली है कि उसे अव- धारणाओं में पकड़ना अगर असंभव नहीं तो कठिन अवश्य हो गया है । दृश्य गहरी मानवीय तकलीफों और बेचैनियों से भरा है । इन कविताओं में .शायद इसके कुछ संकेत मिलें । शायद इसीलिए इन कविताओं में 'मूड्स' की बहुत भिन्नताएं हैं । निराशा, उदासी और उन्माद के इस दृश्य के बीच भी उम्मीद बची है । और यह उम्मीद है, इस देश की विराट श्रमशील जनता-जों बहुत थोड़े में अपना गुजर-बसर करते हुए भी, ज्यादा से ज्यादा जगह को मनुष्य के रहने लायक और सुंदर बनाने में जुटी हैं । ये कविताएँ उस धुँधले उजाले को देख और दिखा सकें ऐसी मेरी इच्छा है ।
Lahoo Mein Fanse Shabd
- Author Name:
Shyam Kashyap
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी में युवा कविता के बाद नए कवियों की एक पीढ़ी आई थी, जिसने आत्मीयता और घरेलूपन से भरी कविताएँ लिखकर हिन्दी कविता की उदासी और एकरसता से भरी हुई दुनिया में नवीन स्फूर्ति का संचार किया। श्याम कश्यप उस पीढ़ी के अन्यतम सदस्य थे, जिनकी कविताएँ ‘गेरू से लिखा हुआ नाम’ में संगृहीत हुईं और इस तरह अपनी पहचान बनाई। लेकिन प्रचार-प्रसार के तंत्र को मुँह चिढ़ानेवाले श्याम ने महत्त्व काव्य-साधना को दिया, उतना अपने यशो-विस्तार को नहीं, जिसके परिणामस्वरूप उनके अपने पाठक भी उनसे किंचित् निराश होते रहे। लेकिन पहले संग्रह के बाद प्रकाशित होनेवाला उनका यह दूसरा संग्रह ‘लहू में फँसे शब्द’ इस बात का प्रमाण है कि इस बीच भले ही उनकी कविताएँ ठिकाने से उनके पाठकों तक नहीं पहुँचीं, वे कविता के साथ निरन्तर रहे हैं और कविता लगातार उनका पीछा करती रही है।
स्वभावतः श्याम की इस संग्रह की कविताओं में प्रत्यक्ष होनेवाला विकास हमें सम्मोहित करता है। श्याम सर्वप्रथम प्रकृति के कवि हैं, फिर मनुष्य के, फिर समाज के, फिर सम्पूर्ण मनुष्यता क्या, सम्पूर्ण पृथ्वी के। उनकी ऐन्द्रिय संवेदना जिन विलक्षण और उदात्त बिम्बों में अभिव्यक्त होती है, वे हमारे भीतर उस अवकाश की सृष्टि करते हैं, जो मानवीय आत्मा के पंख फैलाने के लिए आवश्यक है और जो वर्तमान युग में लगातार कम होता जा रहा है। जहाँ तक मनुष्य से लेकर सम्पूर्ण पृथ्वी तक की बात है, श्याम ने अपनी कविताओं में उसके अनेकानेक आयामों को समेटा है। इन तमाम वस्तुओं के प्रति एक गहन चिन्ता का भाव ही नहीं है इनमें, वह आस्था भी है, जो निराशा के बादलों को इन्द्रधनुषी किरणों से तार-तार कर देती है।
निस्सन्देह श्याम सटीक वर्णन और चित्रण के कवि हैं, लेकिन ‘लहू में फँसे शब्द’ की कविताएँ पढ़ते हुए आप जैसे-जैसे आगे बढ़ते जाएँगे, ऐन्द्रिय संवेदना से भावों में और भावों से फिर विचारों में उतरते जाएँगे, जहाँ की दुनिया उस अमूर्तता से युक्त है, जिसके बिना कोई कला-कृति सार्थक नहीं हो सकती। कहने की आवश्यकता नहीं कि आज का यांत्रिकता और औपचारिकता से भरा हुआ दौर जहाँ हमें निरर्थकता के किनारे तक पहुँचा रहा है, श्याम की ये कविताएँ जिनमें शब्द, बिम्ब, भाव और विचार सभी विस्फोट करते हैं, हमारे सामने एक उजास से भरे हुए क्षितिज का उन्मीलन करती हैं। प्रसाद के शब्दों को ज़रा-सा बदलकर कहें, तो ‘तुमुल कोलाहल-कलह में यह हृदय की बात रे मन!’
Janos Arany : Kathageet evam Kavitayen
- Author Name:
MARGIT KOVES
- Book Type:

-
Description:
हंगरी में उस समय एक संघर्ष चला जिसके अन्तर्गत हंगेरियन संस्कृति एवं साहित्य की स्वायत्त और जीवन्त सांस्कृतिक जड़ों का महत्त्व प्रस्तुत किया गया। इन प्रयासों में हंगेरियन राष्ट्रीय अभिजात वर्ग की भूमिका अहम रही। राष्ट्रीय आदर्श यानोश आरन्य और पैतोफ़ि के कार्यों में प्रकट थे। राष्ट्रीय आभिजात्यवाद, मौखिक परम्परा और साहित्यिक कार्य में जनता, किसान और अन्य सामाजिक समूहों को शामिल किया गया। ये अठारहवीं शताब्दी में शुरू हुआ और पैतोफ़ि और यानोश आरन्य के कार्यों में प्रभावशील रहा। पचास, साठ और सत्तर के दशक में पाल ज्युलोई (1826-1909) किश्फालुदी साहित्यिक संस्था के अध्यक्ष थे और बुडापेस्ट विश्वविद्यालय के प्राध्यापक रहे। पैतोफ़ि की मृत्यु के बाद पचास, साठ और सत्तर के दशक में राष्ट्रीय आभिजात्यवाद के प्रस्तुत होने के बाद आरन्य की कविताओं में परिपक्वता आई जोकि उनकी लघु कविताओं और अनुवाद-कार्य में दृष्टिगोचर होती है।
नाज्यकोरोश में स्थायी कार्य मिलने से पूर्व उन्हें तिसा परिवार में अध्यापन का कार्य मिला।
इस संग्रह में संकलित अधिकतर कविताएँ पचास के दशक में रची गई थीं मसलन ‘करार’, ‘मूँछ’ और ‘वो भी क्या दिन थे’; हालाँकि ‘विद्वान की बिल्ली’ कविता का रचनाकाल सन् 1847 है।
स्वतंत्रता-संग्राम की विफलता के बाद हंगेरियन साहित्यकारों ने काव्य-अभिव्यक्ति के नए रूपों की तलाश की। यह तलाश राष्ट्रीय आभिजात्यवाद के लिए भी महत्त्वपूर्ण थी जिसके तहत हंगेरियन पारिवारिक हालात को एक आदर्श रूप में दर्शाया गया। 'घरेलू गुफ़्तगू' कविता इसका एक उदाहरण है।
Aurat Ki Janib
- Author Name:
Dhirendra Kumar Patel
- Book Type:

- Description: इस संग्रह की कविताओं में ‘स्त्री’ को मानवीय पक्ष में उजागर करने के लिए उनके जीवन का चित्रण यथार्थ रूप में गहरे भावबोध से हुआ है। आज स्त्री विमर्श ने स्त्रियों के मौन को तोड़ा है। वे मुखर हुई हैं। उनका दबा क्रोध, आवेश पीड़ा स्वानुभूति के धरातल पर अभिव्यक्त हो रहा है, साथ ही स्त्री जीवन के लिए निर्धारित मानक और मूल्य भी बदलाव की सहज माँग करने लगे हैं। सबसे बड़ी बात ‘पैदा हुई औरत’ और ‘बनायी गयी औरत’ का भेद स्पष्ट होने लगा। इस स्पष्टता ने औरतों की एक नयी समझ विकसित की है। वे स्त्रीजनित तमाम समस्याओं, कुण्ठाओं और हिंसा को मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक स्तर पर समझने लगीं। वे समझने लगीं कि औरत के प्रेम की ताकत को वैसे शरीर के दायरे में सीमित कर दिया गया है। आख़िर पुरुष वर्ग ने शुरू से नारी के गुणों को लेकर उसकी इतनी सराहना कर दी है कि नारी उसी को अपना सर्वस्व मानने लगी। उसी के आधार पर जीवन जीती चली आ रही है। प्रस्तुत संग्रह की कविताएँ स्त्री के पक्ष में समाज से संवाद है।
Navmallika
- Author Name:
Kunal +3
- Book Type:

- Description: आधुनिक मैथिलीक समग्र पत्रकारिताक इतिहास मे दिल्ली सँ प्रकाशित 'अंतिका'क भूमिका बहुत तरहें अन्यतम रहल छै। कोनो पूर्व वा समकालीन मैथिली पत्रकारिताक उपरौंझ मे वा प्रतिस्पर्धा मे नहि, अपितु पत्रिकाक अपन प्रयोगशील संरचना, दृष्टिकोण ओ बहुकोणीय साहित्य-प्रयोगक समानांतर अभ्यास रूप मे। हमरा बुझने मैथिलीक समकालीन आधुनिक बोधक रचनाशीलता केँ देशक समस्त भाषा-साहित्यक मुख्य प्रवाह मे आनि वैश्विक गतिविधि पर्यंत जोड़बा मे 'अंतिका'क भूमिका सदैव अहम आ उल्लेखनीय रहतैक। अपन एहि विशेष भूमिकाक अद्यतन शृंखला मे 'अंतिका'क आरंभिक 25 अंक सभ मे सँ आजुक समय मे हस्तक्षेप करैत महत्त्वपूर्ण चौंतीस कविक बीछल कविताक संकलन 'नवमल्लिका'क प्रकाशनक प्रयोग सेहो हमरा अभिनव आ प्रीतिकर लागलए तथा प्रासंगिक सेहो। हमरा जनैत एहि प्रक्रिया मे रचना ओ रचनाकारक सामाजिक प्रयोजनीयता एक टा नव संदर्भ मे भविष्योन्मुख होइत छै। निश्चये एहन उपक्रम कोनो सजग सचेष्ट सम्पादकीय बोध आ रचनात्मक ऊहिए सँ संभव होइत छै। -गंगेश गुंजन # मैथिली पत्रकारिताक परंपरा मे 'अंतिका' नवाचारक लेल जानल जाइत अछि जकर प्रमाण थिक ई कविता संचयन। 'नवमल्लिका' मे संकलित चारि पीढ़ीक कवि आ हुनक कविताक कैनवास बहुआयामी अछि आ प्रयोगधर्मी सेहो। मैथिलीक कोनो एक पत्रिकाक अंक सँ एहन उत्कृष्ट संकलन निकालब हमरा जनतबे असंभव। विषयक विविधता, काव्यगत-प्रयोगधर्मिता आ समग्र-प्रभावान्विति मे ई संकलन छात्र-प्राध्यापक आ कविताक विज्ञ पाठक लेल अनमोल उपहार थिक। — प्रो. ज्ञानतोष कुमार झा
Deepshikha
- Author Name:
Mahadevi Verma
- Book Type:

- Description: दीप-शिखा में मेरी कुछ ऐसी रचनाएँ संगृहीत हैं जिन्हें मैंने रंगरेखा की धुंधली पृष्ठभूमि देने का प्रयास किया है! सभी रचनाओं को ऐसी पीठिका देना न संभव होता है और न रुचिकर, अतः रचनाक्रम की दृष्टि से यह चित्रगीत बहुत बिखरे हुए ही रहेंगे! मेरे गीत अध्यात्म के अमूर्त आकाश के नीचे लोक-गीतों की धरती पर पीला हैं!
Pratinidhi Kavitayen : Bhagwat Ravat
- Author Name:
Bhagwat Rawat
- Book Type:

-
Description:
भगवत रावत की काव्य-चिन्ता के मूल में बदलाव के लिए बेचैनी और अकुलाहट है। इसीलिए उनकी कविता में संवादधर्मिता की मुद्राएँ सर्वत्र व्याप्त हैं, जो उनके उत्तरवर्ती लेखन में क्रमश: सम्बोधन-शैली में बदल गई हैं। पर उनकी कविता में कहीं भी नकचढ़ापन, नकार, मसीही अन्दाज़ और क्रान्ति की हड़बड़ी नहीं दिखाई देती।
भगवत रावत शुरू से अन्त तक प्रतिबद्ध मार्क्सवादी कवि के रूप में सामने आते हैं। सोवियत संघ के विघटन के बावजूद मार्क्सवाद के प्रति उनकी आस्था और विश्वास खंडित नहीं हुआ। हाँ, उनका यह मत ज़रूर था कि अगर विचारधारा मैली हो गई है तो पूरी निर्ममता के साथ उसकी सफ़ाई करो। मैल जमने मत दो।
भगवत रावत को सबसे ज़्यादा विश्वास ‘लोक’ में है। उनकी कविताओं से गुज़रते हुए आपको लगेगा कि इस कवि का लोक से नाभिनाल रिश्ता है। लेकिन उनकी कविता लोक से सिर्फ़ हमदर्दी, सहानुभूति, दया, कृपा-भाव पाने के लिए नहीं जुड़ती, बल्कि इसके उलट वह लोक की ताक़त और उसके स्वाभिमान को जगह-जगह उजागर करती है। उनकी उत्तरवर्ती कविताओं को पढ़ते हुए साफ़ ज़ाहिर होता है कि उन्हें सही बात कहने से कोई रोक नहीं सकता—न दुनिया, न समाज, न व्यवस्था, न कोई ताक़तवर सत्ता-पुरुष। आज़ादी के बाद प्रगतिशील कविता के इतिहास में लोकजीवन को आवाज़ देने और उसके हक़ की लड़ाई लड़नेवाले कवियों को जब याद किया जाएगा तो भगवत की कविताएँ हमें बहुत प्यार से पास बुलाएगी और कहेगी—‘आओ, बैठो, बोलो तुम्हें क्या चाहिए।’
Aahaten Aas Paas
- Author Name:
Pankaj Singh
- Book Type:

-
Description:
पंकज सिंह हैं। उनके एप्रोच से मतभेद हो सकता है : एक हद तक। लेकिन उनकी एक उत्कट आकांक्षा, कुछ यथार्थ को व्यक्त करने की, और उस यथार्थ से गुथने की—इससे इनकार नहीं किया जा सकता। यह कुछ ऐसी है जैसी कि मुक्तिबोध ने की थी अपने ज़माने में बहुत मेहनत से। उस यथार्थ को व्यक्त करने की। यथार्थ को व्यक्त करना कलाकार का बहुत ही पहला और बहुत ही बुनियादी धर्म है, और उस धर्म में वह कामयाब ही हो, यह ज़रूरी नहीं है। लेकिन ऐसी कोशिश और उस कोशिश में किसी हद तक भी कामयाब होना मेरे लिए बड़ी आदरणीय चीज़ होती है। तो उसमें विभिन्न रूप से विभिन्न दृष्टियों से जो कवि संलग्न है और उसमें अगर काव्य के स्तर पर काव्याभिव्यक्ति के स्तर पर कुछ किया है उन्होंने तो उसका आदर होना चाहिए और मैं उनका आदर करता हूँ...
—शमशेर बहादुर सिंह
(‘पूर्वग्रह’, जनवरी-अप्रैल, 1976)
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...