Pratinidhi Kavitayen : Bhagwat Ravat
Author:
Bhagwat RawatPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
भगवत रावत की काव्य-चिन्ता के मूल में बदलाव के लिए बेचैनी और अकुलाहट है। इसीलिए उनकी कविता में संवादधर्मिता की मुद्राएँ सर्वत्र व्याप्त हैं, जो उनके उत्तरवर्ती लेखन में क्रमश: सम्बोधन-शैली में बदल गई हैं। पर उनकी कविता में कहीं भी नकचढ़ापन, नकार, मसीही अन्दाज़ और क्रान्ति की हड़बड़ी नहीं दिखाई देती।</p>
<p>भगवत रावत शुरू से अन्त तक प्रतिबद्ध मार्क्सवादी कवि के रूप में सामने आते हैं। सोवियत संघ के विघटन के बावजूद मार्क्सवाद के प्रति उनकी आस्था और विश्वास खंडित नहीं हुआ। हाँ, उनका यह मत ज़रूर था कि अगर विचारधारा मैली हो गई है तो पूरी निर्ममता के साथ उसकी सफ़ाई करो। मैल जमने मत दो।</p>
<p>भगवत रावत को सबसे ज़्यादा विश्वास ‘लोक’ में है। उनकी कविताओं से गुज़रते हुए आपको लगेगा कि इस कवि का लोक से नाभिनाल रिश्ता है। लेकिन उनकी कविता लोक से सिर्फ़ हमदर्दी, सहानुभूति, दया, कृपा-भाव पाने के लिए नहीं जुड़ती, बल्कि इसके उलट वह लोक की ताक़त और उसके स्वाभिमान को जगह-जगह उजागर करती है। उनकी उत्तरवर्ती कविताओं को पढ़ते हुए साफ़ ज़ाहिर होता है कि उन्हें सही बात कहने से कोई रोक नहीं सकता—न दुनिया, न समाज, न व्यवस्था, न कोई ताक़तवर सत्ता-पुरुष। आज़ादी के बाद प्रगतिशील कविता के इतिहास में लोकजीवन को आवाज़ देने और उसके हक़ की लड़ाई लड़नेवाले कवियों को जब याद किया जाएगा तो भगवत की कविताएँ हमें बहुत प्यार से पास बुलाएगी और कहेगी—‘आओ, बैठो, बोलो तुम्हें क्या चाहिए।’
ISBN: 9788126726639
Pages: 151
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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—कुमार अम्बुज
Pratinidhi Shairy : Mirza Rafi 'Sauda'
- Author Name:
Mirza Rafi 'Sauda'
- Book Type:

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Description:
मीर तक़ी ‘मीर’ के समकालीन मिर्ज़ा मुहम्मद रफ़ी ‘सौदा’ 18वीं सदी के चार प्रमुख उर्दू शायरों में गिने जाते हैं। आम तौर पर सौदा को क़सीदे का शायर समझा जाता है, और इसमें कोई शक नहीं कि, सौदा के कुछेक क़सीदे ग़ज़ब के हैं। लेकिन सच बात यह है कि सौदा को इस रूप में पेश करना उनके साथ नाइंसाफ़ी से कुछ कम नहीं है। अपनी हज्वियाती नज़्मों (निन्दा-काव्यों) में और अपने शह्र-आशोवों में सौदा का हमें एक और ही रूप दिखाई देता है जो न तो उनके क़सीदों में नज़र आता है और न उनकी ग़ज़लों में। इन हज्वियाती नज़्मों और शह्र-आशोवों में सौदा अपने वक़्त की कड़वी सामाजिक सच्चाइयों के बारे में, 18वीं सदी की पतनशील सामन्ती सभ्यता के बारे में जिस स्पष्ट दृष्टि का परिचय देते हैं, वैसी दृष्टि उनके किसी भी अग्रज या समकालीन शायर के यहाँ नहीं दिखाई देती। मीर और दर्द के यहाँ भी नहीं। इसमें शक नहीं कि सौदा ख़ुद इस सामन्ती संस्कृति से जुड़े हुए रहे और इसीलिए इसके पतन से उनका प्रभावित होना स्वाभाविक था, उनका अफ़सोस करना भी उतना ही स्वाभाविक था। लेकिन सौदा इस पतनशील संस्कृति का मातम ही नहीं करते, बढ़-चढ़कर उन लोगों पर चोटें करते हैं, उनकी क़लई खोलते हैं जो इस पतन के लिए ज़िम्मेदार थे। इस सिलसिले में सौदा ने जादू-बयानी का जो परिचय दिया है, वह अपनी मिसाल आप है।
अकसर आलोचकों ने मीर और सौदा के तुलनात्मक अध्ययन के प्रयास किए हैं, और यह नतीजा निकाला है कि मीर सौदा से कोसों आगे हैं। आलोचकों की इस राय में बहुत कुछ सच्चाई है। ख़ासकर ग़ज़लों में जहाँ मीर का अन्दाज़े-बयाँ दिल को छू लेने की हैसियत रखता है, वहीं सौदा का अन्दाज़े-बयाँ ज़्यादातर भाषा के खिलवाड़ों तक सीमित रहता है। फिर भी इसमें शक नहीं कि सौदा को कुछ कम करके आँकना ग़लत होगा—ख़ासकर हजो और शह्र-आशोब जैसी विधाओं में उनका कोई जवाब नहीं है। ख़ुद उन्हीं के शब्दों में कहें तो सौदा हिन्द के शायरों के पैग़म्बर तो नहीं हैं लेकिन सुख़न कहने में उन्हें एज़ाज़ ज़रूर हासिल है।
Vidyapati Padavali
- Author Name:
Ramvriksh Benipuri
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Description:
यह ‘विद्यापति पदावली’ इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि इसका संग्रह बेनीपुरी जी ने किया है। हिन्दी के प्रसिद्ध ललित निबन्धकार बेनीपुरी कवि, कहानीकार ही नहीं ग़रीबों, पीड़ितों और शोषितों के लिए आजीवन संघर्षरत रहे। ऐसे लेखक के द्वारा विद्यापति की पदावली का सम्पादन प्रतीकात्मक अर्थ रखता है।
पुस्तक के प्रारम्भ में बेनीपुरी जी द्वारा लिखी गई भूमिका केवल विश्लेषण और सूचना की दृष्टि से नहीं, बल्कि नई अर्थ-मीमांसा की दृष्टि से नई है। इससे विद्यापति को हम पहले से कुछ अधिक जानने लगते हैं।
विद्यापति की यह पदावली शब्दों के अर्थ की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। बेनीपुरी जी शब्द पारखी थे। उन्होंने इस पदावली में शब्दों के सांकेतिक अर्थ को भी स्पष्ट करने का प्रयास किया है जो अन्यत्र दुर्लभ है। विद्यापति के पदों को गाते हुए चैतन्य महाप्रभु समाधिस्थ हो जाते थे। आनन्द कुमार स्वामी को पदावली काव्य-कला की दृष्टि से बहुत प्रिय थी। उन्होंने लिखा भी है। उस पदावली का यह प्रस्तुतीकरण अत्यन्त उपयोगी है। बेनीपुरी जी विद्यापति को ‘हिन्दी का जयदेव’ और ‘मैथिल कोकिल’ कहते थे। उनकी वाणी का बेनीपुरी द्वारा भावित यह संस्करण लोगों को अवश्य रुचेगा। भूमिका में बेनीपुरी ने अपनी चिर-परिचित शैली में पदों की भाषा और कविता माधुरी का जो वर्णन किया है, वह तो अन्यत्र दुर्लभ है ही।
‘राजा की गगनचुम्बी अट्टालिका’ से लेकर ग़रीबों की टूटी हुई फूस की झोंपड़ी तक में विद्यापति के पदों का जो सम्मान है; भूतनाथ के मन्दिर और कोहबर घर में पदों की जो प्रतिष्ठा है, उसको ध्यान में रखते हुए ही यह पुस्तक बेनीपुरी जी ने सम्पादित की है। इससे विद्यापति और उनकी पदावली की नई अर्थवत्ता और चमक उजागर होती है। पाठ्यक्रम की दृष्टि से यह सर्वोत्तम है।
Meghdoot
- Author Name:
Kalidas
- Book Type:

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Description:
भारतीय संस्कृत साहित्य की अमूल्य थाती ‘मेघदूत’ प्रकृति तथा विपरीत परिस्थितियों में फँसे एक मनुष्य के अवचेतन रिश्ते का प्रतीक है। कालिदास ने अपनी यह महान रचना एक मिथकीय घटना के आधार पर बुनी है, जिसमें भगवान कुबेर का सेवक और अनन्त यौवन के वरदान से विभूषित यक्ष अपनी यक्षिणी के मोह के वशीभूत हो अपने स्वामी के लिए रोज़ सुबह ताज़े फूल तोड़ने का अपना कर्तव्य भुला बैठता है। इस पर क्रोधित हो कुबेर यक्ष को एक वर्ष के लिए जंगल में संन्यासी का जीवन बिताने के लिए भेज देता है।
एकान्तवास के दौरान जहाँ यक्ष का ध्यान प्रकृत और उसके तत्त्वों की ओर जाता है, वहीं उसके शरीर और एकाकी हृदय को बदलते मौसमों की मार भी झेलनी पड़ती है। परिणामस्वरूप यक्ष विभ्रम का शिकार हो जाता है। उसे प्रकृति की तमाम वस्तुओं में मानवीय क्रियाओं का आभास होने लगता है और वह उनमें अपनी भावनाओं का मनोछवियों का प्रतिबिम्ब देखने लगता है। आकाश में छाए-भरी बादलों में उसे अपना एक दोस्त दिखाई देता है जो दूर हिमालय में स्थित अलकानगरी में उसके लिए अवसादग्रस्त उसकी प्रेमिका तक उसका सन्देश लेकर जा सकता है। इस कृति में मृत्युंजय ने इतिहास और विरासत की छवियों को जिस अनूठे ढंग से समकालीन सन्दर्भों में पकड़ा है, उसके चलते यह पौराणिक नाट्य एक गीतात्मक प्रस्तुति बन गया है। पौराणिक चरित्रों और प्रतीकों को पाद-टिप्पणियों और प्राचीन ग्रन्थों के हवाले से समझाया गया है, उससे यह पुस्तक और भी पठनीय हो जाती है।
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