Navmallika
Author:
Kunal, Kamlanand Jha, Kamini, Hare Kraishn JhaPublisher:
Antika Prakashan Pvt. Ltd.Language:
MaithiliCategory:
Poetry0 Ratings
Price: ₹ 405.9
₹
495
Available
आधुनिक मैथिलीक समग्र पत्रकारिताक इतिहास मे दिल्ली सँ प्रकाशित 'अंतिका'क भूमिका बहुत तरहें अन्यतम रहल छै। कोनो पूर्व वा समकालीन मैथिली पत्रकारिताक उपरौंझ मे वा प्रतिस्पर्धा मे नहि, अपितु पत्रिकाक अपन प्रयोगशील संरचना, दृष्टिकोण ओ बहुकोणीय साहित्य-प्रयोगक समानांतर अभ्यास रूप मे। हमरा बुझने मैथिलीक समकालीन आधुनिक बोधक रचनाशीलता केँ देशक समस्त भाषा-साहित्यक मुख्य प्रवाह मे आनि वैश्विक गतिविधि पर्यंत जोड़बा मे 'अंतिका'क भूमिका सदैव अहम आ उल्लेखनीय रहतैक। अपन एहि विशेष भूमिकाक अद्यतन शृंखला मे 'अंतिका'क आरंभिक 25 अंक सभ मे सँ आजुक समय मे हस्तक्षेप करैत महत्त्वपूर्ण चौंतीस कविक बीछल कविताक संकलन 'नवमल्लिका'क प्रकाशनक प्रयोग सेहो हमरा अभिनव आ प्रीतिकर लागलए तथा प्रासंगिक सेहो। हमरा जनैत एहि प्रक्रिया मे रचना ओ रचनाकारक सामाजिक प्रयोजनीयता एक टा नव संदर्भ मे भविष्योन्मुख होइत छै। निश्चये एहन उपक्रम कोनो सजग सचेष्ट सम्पादकीय बोध आ रचनात्मक ऊहिए सँ संभव होइत छै। -गंगेश गुंजन # मैथिली पत्रकारिताक परंपरा मे 'अंतिका' नवाचारक लेल जानल जाइत अछि जकर प्रमाण थिक ई कविता संचयन। 'नवमल्लिका' मे संकलित चारि पीढ़ीक कवि आ हुनक कविताक कैनवास बहुआयामी अछि आ प्रयोगधर्मी सेहो। मैथिलीक कोनो एक पत्रिकाक अंक सँ एहन उत्कृष्ट संकलन निकालब हमरा जनतबे असंभव। विषयक विविधता, काव्यगत-प्रयोगधर्मिता आ समग्र-प्रभावान्विति मे ई संकलन छात्र-प्राध्यापक आ कविताक विज्ञ पाठक लेल अनमोल उपहार थिक। — प्रो. ज्ञानतोष कुमार झा
ISBN: 9789388799874
Pages: 224
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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इन कविताओं में उनके इस मूल स्वर के साथ कुछ और भी जुड़ा है। संग्रह में संकलित कई कविताएँ ऐसी हैं जो शोषण के चालाक षड्यंत्रों में ईश्वर की अवधारणा और असहाय जन-मानस में उसके भय की भूमिका को चीन्हती हैं। भीतर और बाहर की कई जकड़नों में धर्म, ईश्वर और आस्था ने जिस तरह मनुष्य-विरोधी ताक़त के रूप में काम किया है, वह बृहत् भारतीय समाज की विडम्बना है; लेकिन आदिवासी साधनहीनता पर उनका प्रभाव और भी घातक होता है। ‘मज़दूर जब अपने अधिकार के लिए उठे/तो कुछ ईश्वर भक्तों ने उनसे/हाथ जोड़कर प्रार्थना करने को कहा।’ और ‘धीरे-धीरे हर हिंसा हमारे लिए/ईश्वर द्वारा ली जा रही परीक्षा बन गई।’ इस विडम्बना को ये कविताएँ हर संभव कोण से पकड़ने का प्रयास करती हैं।
आधुनिक शहरी सभ्यता के सम्पर्क से आदिवासी जीवन शैली में दिखाई देनेवाली विरूपताओं की तरफ़ भी जसिंता की नज़र गई है जिससे पता चलता है कि विकास का हमला सिर्फ़ जंगल के संसाधनों और वहाँ के निवासियों के दोहन तक ही सीमित नहीं है, वह उनके सांस्कृतिक बोध को भी विकृत कर रहा है।
जल, जंगल और आदिवासी जीवन से बाहर देश के सामान्य हालात भी इस संग्रह की कविताओं में जगह-जगह झाँकते दिखाई देते हैं। सत्ता का तानाशाही मिज़ाज हो या अपने ही देश की सैनिक ताक़त को अपने ही लोगों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति, कुछ भी कवि की निगाह से नहीं चूकता। यह संकलन निश्चय ही जसिंता की रचना-यात्रा का अगला चरण है।
Digant
- Author Name:
Trilochan
- Book Type:

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Description:
‘दिगंत’ में कवि त्रिलोचन के कुछ सॉनेट संकलित हैं। हिन्दी में सॉनेट तो प्रसाद, पन्त, निराला आदि अन्य कवियों ने भी लिखे हैं, लेकिन त्रिलोचन ने सॉनेट के रूप में विविध प्रकार के नए प्रयोग कर सॉनेट को हिन्दी कविता में मानो अपना लिया है। जीवन के अनेक प्रसंगों की मार्मिक और व्यंग्यपूर्ण अभिव्यंजना इन कविताओं में हुई है।
त्रिलोचन के सॉनेटों की भावभूमि छायावाद नहीं है, और न प्रयोगवादी ही, यद्यपि भाषा, लय और विन्यास सर्वथा नवीन और चमत्कारपूर्ण हैं। जीवन के वैषम्यों की गहरी चेतना होने के कारण ही त्रिलोचन का दृष्टिकोण आशावादी है और उन्होंने अपनी अनुभूतियों को नई भाषा में ढालकर तीखी अभिव्यक्ति दी है जो सीधे हृदय पर चोट करती है।
—शिवदान सिंह चौहान
Pathron Ka Kya Hai
- Author Name:
Vinay Vishwas
- Book Type:

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Description:
यशस्वी युवा कवि विनय विश्वास का यह पहला कविता-संग्रह है। अपने समय के सच से टकराते संवेदनशील मनुष्य के अनुभव इनकी कविताओं का आधार हैं। न यह सच एक जैसा है, न इससे टकराव के अनुभव—इसलिए ये कविताएँ भी एकायामी नहीं। न इनमें प्रकृति और मनुष्य को अलग-अलग किया जा सकता है, न युगीन वास्तव और व्यक्तिगत संसार को। न राजनीति और परिवार को अलग-अलग किया जा सकता है, न शब्द और जीवन को। अनुभव की बहुलता और बहुस्तरीयता इनका ऐसा सच है, जिसने इन्हें दम्भी मुद्राओं की बनावट, कलात्मक दिखाई देनेवाली निरीहता और वहशी अराजकता से बचाकर ज़िन्दगी के प्रति सच्ची कविताएँ बनाया है।
इन कविताओं की सच्चाई उन पर बड़ी सहजता से व्यंग्य करती है, जो धर्म-ईमान की सौदागरी बड़े गर्व से किया करते हैं, दूसरों की मौत से अपनी साँसें खींचा करते हैं, पानी की तरह हर रंग में मिल जाया करते हैं और इनसान होते हुए भी कभी मक्खियों तो कभी केंचुओं को मात दिया करते हैं। इन कविताओं की सच्चाई उन सपनों की लड़ाई में कन्धे से कन्धा मिलाए जूझती है, जिनका भरोसा ईमानदारी और मेहनत की अप्रासंगिक होती पूँजी पर अब भी क़ायम है। इन कविताओं की सच्चाई सम्बन्धों के लगातार क्रूर होते इस्तेमाल का विरोध भी करती है और टूट-टूटकर बनते हुए नए मनुष्य के सौन्दर्य को जीती भी है। इन कविताओं की सच्चाई संवेदनात्मक उद्देश्य की मिट्टी से फूटते वैचारिक भावों के उन अंकुरों की पक्षधर है, जो हवा के ज़हर को ऑक्सीजन की तरह सर्जनात्मक चुनौती देने के लिए ही जन्मे हैं। इन कविताओं की सच्चाई रचना के हर स्तर पर अनुभव से नाभिनालबद्ध होने के कारण अतिरिक्त तराश या सपाटता से मुक्त है। इसीलिए इनमें से बहुत-सी कविताओं को जिस उत्सुकता के साथ पढ़ा गया है, उसी उत्साह के साथ सुना भी गया है।
सम्प्रेषण के संकट से दो-चार होती समकालीन कविता के दौर में ये कविताएँ प्रमाण हैं कि पाठकों और श्रोताओं को एक साथ प्रभावित करनेवाली कविताई बिना कोई रचनागत समझौता किए अब भी सम्भव है। निःसंकोच कहा जा सकता है कि पढ़ी और सुनी जानेवाली कविताओं के बीच की गहरी खाई को पाटते हुए सम्प्रेषण के संकट को सर्जनात्मक तरीक़े से हल करने में इन कविताओं की भूमिका उल्लेखनीय है।
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