Mera Ghar
Author:
TrilochanPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 396
₹
495
Available
style="font-weight: 400;">वयोवृद्ध त्रिलोचन इस समय हिन्दी के सम्भवतः सबसे गृहस्थ कवि हैं, इस अर्थ में कि हिन्दी भाषा अपनी जातीय स्मृतियों और असंख्य अन्तर्ध्वनियों के साथ, सचमुच उनका घर है। वे बिरले कवि हैं जिन्हें यह पूरे आत्मविश्वास से कहने का हक़ है कि ‘पृथ्वी मेरा घर है/अपने इस घर को/अच्छी तरह मैं ही नहीं जानता।’ इस घर में हुब्बी, पाँचू, टिक्कुल बाबा आदि सब रसे-बसे हैं। त्रिलोचन की कविता साधारण से साधारण चरित्र या घटना या बिम्ब को पूरे जतन से दर्ज करती है, मानो सब कुछ उनके पास-पड़ोस में है, कि ‘तारे सब सहचर हैं मेरे’।</p>
<p style="font-weight: 400;">इस संग्रह में त्रिलोचन की ऐसी कई कविताएँ पहली बार पुस्तकाकार संगृहीत हो रही हैं जो उनके किसी पिछले संग्रह में नहीं आ सकी थीं और इधर-उधर पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई थीं। इस चयन में बिना चीख़-पुकार मचाए, ‘पीड़ा-संग्रह’ है और यह मानने की बेबाकी भी<br>कि—</p>
<p style="font-weight: 400;">‘मुझे अपने मरने का</p>
<p style="font-weight: 400;">थोड़ा भी दु:ख नहीं</p>
<p style="font-weight: 400;">मेरे मर जाने पर</p>
<p style="font-weight: 400;">शब्दों से मेरा सम्बन्ध</p>
<p style="font-weight: 400;">छूट जाएगा।’</p>
<p style="font-weight: 400;">त्रिलोचन की कुछ अवधी कविताएँ इस संग्रह को ‘घर की बोली’ देती हैं। उनमें न सिर्फ़ ‘भाखा की महिमा’ प्रगट है, पर स्वयं त्रिलोचन का अत्यन्त स्पन्दित भाषा संसार भी—एक बार फिर। —अशोक वाजपेयी
ISBN: 9788126705962
Pages: 84
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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पंडित नन्ददुलारे वाजपयी ने लिखा है कि हिन्दी में सबसे कठिन विषय निराला का काव्य-विकास है। इसका कारण यह है कि उनकी संवेदना एक साथ अनेक स्तरों पर संचरण ही नहीं करती थी, प्रायः एक संवेदना दूसरी संवेदना से उलझी हुई भी होती थी। इसका सबसे बढ़िया उदहारण उनका 'अणिमा' नमक कविता-संग्रह है।
इसमें छायावादी सौन्दर्य-स्वप्न को औदात्य प्रदान करनेवाला गीत 'नुपुर के सुर मन्द रहे, जब न चरण स्वच्छन्द रहे' जैसे आध्यात्मिक गीत हैं, तो 'गहन है यह अन्धकरा' जैसे राष्ट्रीय गीत भी। इसी तरह इसमें 'स्नेह-निर्झर बह गया है' जैसे वस्तुपरक गीत भी। कुछ कविताओं में निराला ने छायावादी सौन्दर्य-स्वप्न को एकदम मिटाकर नए कठोर यथार्थ को हमारे सामने रखा है, उदाहरणार्थ—'यह है बाज़ार', 'सड़क के किनारे दूकान है', 'चूँकि यहाँ दाना है' आदि कविताएँ। 'जलाशय के किनारे कुहरी थी' प्रकृति का यथार्थ चित्रण करनेवाला एक ऐसा विलक्षण सानेट है, जो छन्द नहीं; लय के सहारे चलता है ।
उपर्युक्त गीतों और कविताओं से अलग 'अणिमा' में कई कविताएँ ऐसी हैं जो वर्णात्मक हैं, यथा—'उद्बोधन', 'स्फटिक-शिला' और 'स्वामी प्रेमानन्द जी महाराज', ये कविताएँ वस्तुपरक भी हैं और आत्मपरक भी। लेकिन इनकी असली विशेषता यह है कि इनमें निराला ने मुक्त-छन्द का प्रयोग किया है जिसमें छन्द और गद्य दोनों का आनन्ददायक उत्कर्ष देखने को मिलता है।
आज का युग दलितोत्थान का युग है। निराला ने 1942 में ही 'अणिमा' के सानेट—'सन्त कवि रविदास जी के प्रति'—की अन्तिम पंक्तियों में कहा
था : 'छुआ परस भी नहीं तुमने, रहे/कर्म के अभ्यास में, अविरल बहे/ज्ञान-गंगा में, समुज्ज्वल चर्मकार, चरण छूकर कर रहा मैं नमस्कार’।
—नंदकिशोर नवल
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