Mallika
Author:
Devdas ChhotrayPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
हमारे समय में सामाजिक यथार्थ और सामाजिकता का ऐसा आतंक है कि प्रेम-कविता की जगह घटती गई है—उसे सामाजिकता से भटकाव की विधा तक करार दिया गया है। ऐसे प्रेम-वंचित समय में ओड़िया के प्रसिद्ध कवि देवदास छोटराय की प्रेम कविताओं का हिन्दी के प्रसिद्ध कवि-आलोचक प्रभात त्रिपाठी के अनुवाद में यह संचयन ताज़ी हवा की तरह है। प्रेम मनुष्य का स्थायी भाव है और उसका कविता में अन्वेषण सदियों से कविता के लिए अनिवार्य रहा है। ओड़िया में, सौभाग्य से, जातीय स्मृति सक्रिय-सजीव है और वह इस कविता में अन्त:ध्वनित होती रहती है। हिन्दी में इस अनुवाद का महत्त्व इसलिए होगा कि यह कविता में प्रेम और स्मृति के पुनर्वास की कविता है। रज़ा फ़ाउंडेशन इस पुस्तक को सहर्ष प्रकाशित कर रहा है।</p>
<p>—अशोक वाजपेयी
ISBN: 9789388933384
Pages: 94
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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लीलाधर जगूड़ी की कविता की यह भी विशेषता है कि वे अनुभव की व्यथा और घटनाओं की आत्मकथा इस तरह पाठक के सामने रखते हैं कि उनका यह कथन सही लगने लगता है कि—‘कविता का जन्म ही कथा कहने के लिए और भाषा में जीवन-नाट्य रचने के लिए हुआ है।’ वे अक्सर कहते हैं कि ‘कविता जैसी कविता से बचो।’ 24 वर्ष की उम्र में उनका पहला कविता-संग्रह आ गया था। 1960 से यानी कि 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध से 21वीं सदी के दूसरे दशक बाद भी उनकी कविता का गद्य समकालीन साहित्य की दुनिया में किसी न किसी नए संस्पर्श के लिए प्रतीक्षित है और पढ़ा जाता है। उनके कविता-संग्रहों के प्राय: नए संस्करण आते रहते हैं। कविता न बिकने और न पढ़े जाने के बदनाम काल में बिना किसी आत्मप्रचार के लीलाधर जगूड़ी की कविताएँ अपने पाठकों का निर्माण करती चलती हैं। वे अपनी कविता की मोहर बनाकर बार–बार एक जैसी कविताओं से उबाते नहीं हैं। वे पहले की तरह आज भी प्रयोग और प्रगति के पक्षधर हैं। लीलाधर जगूड़ी की कविताओं में विषय–वस्तुओं का जो अद्वितीय चयन और प्रस्तुतीकरण होता है, वह अपनी ही उक्ति के अनुसरण से लगातार बचते रहने की सजग कोशिश के कारण भी आकर्षित करता है। इनकी कविताओं की निरन्तर परिवर्तनशील पद्धति समीक्षा और आलोचना को भी अपना स्वभाव बदलने के लिए प्रेरित करती है। इनकी कविता के ज़मीन–आसमान कुछ अलग ही रंग के हैं।
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Description:
रघुवीर सहाय का यह बहुचर्चित कविता-संग्रह कवि के अपने व्यक्तित्व की खोज की एक बीहड़ यात्रा है। मनुष्य से नंगे बदन संस्पर्श करने के लिए ‘सीढ़ियों पर धूप में’ संग्रह में कवि ने अपने को लैस किया था : अब वही साक्षात्कार इस दौर की कविताओं में उसके लिए एक चुनौती बनकर आया है।
बनी-बनाई वास्तविकता और पिटी-पिटाई दृष्टि से रघुवीर सहाय का हमेशा विरोध रहा है। अपनी कविताओं में उन्होंने अनुभव और भाषा दोनों के वैविध्य से जूझते हुए जो पाया था, वह चौंकाने या रोआब डालनेवाला कुछ नहीं था : वह नए मानव-सम्बन्ध का परिचय था और यह एक रोचक घटना है कि वह बहुधा परम्परावादियों के यहाँ ‘सहज’ कहकर मान्य हुआ, जबकि वह सहज बिलकुल नहीं था।
अपने को किसी क़दर सम्पूर्ण व्यक्ति बनाने की लगातार कोशिश के साथ रघुवीर सहाय ने पिछले दौर से निकलकर ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ में एक व्यापकतर संसार में प्रवेश किया है। इस संसार में भीड़ का जंगल है जिसमें कवि एक साथ अपने को खो देना और पा लेना चाहता है। वह नाचता नहीं, चीखता नहीं और सिर्फ़ बयान भी नहीं करता। वह इस जंगल में बुरी तरह फँसा हुआ है लेकिन उसमें से निकलना किन्हीं सामाजिक-राजनीतिक शर्तों पर उसे स्वीकार नहीं। नतीजा : ये कविताएँ।
भारतभूषण अग्रवाल के शब्दों में : ‘‘भीड़ से घिरा एक व्यक्ति—जो भीड़ बनने से इनकार करता है और उससे भाग जाने को ग़लत समझता है—रघुवीर सहाय का साहित्यिक व्यक्तित्व है।...
रघुवीर सहाय की अनेक रचनाएँ आधुनिक कविता की स्थायी विभूति बन चुकी हैं; उनके नागर मन की भावप्रवणता, सूक्ष्मदर्शिता और तटस्थ निर्ममता अब नए परिचय की मोहताज नहीं। पर अभी यह पहचाना जाना शेष है कि सहज सौन्दर्य और सूक्ष्म अनुभूति से निर्मित रघुवीर सहाय का काव्य-संसार जितना निजी है, उतना ही हम सबका है—एक गहरे और अराजनीतिक अर्थ में जनवादी। सचमुच, ऐसे ही कवि को जनता से घृणा करने का अधिकार दिया जा सकता है।’’
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