Kabhi Nahin Socha Tha
Author:
Surjeet PatarPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
सुरजीत पातर की कविताएँ हमें एक पूरी क़ौम के जलते हुए जंगल में घिरे होने का अहसास कराती हैं। रात, अँधेरा, सन्नाटा, ख़ौफ़, चीख़, आग जैसे शब्दों की बारंबारता से वह पूरा माहौल मुखर हो उठता है। आग कभी आदमी को जलाती है और कभी आदमी के सीने में ही जल उठती है।<br>बँटवारे का दर्द आधुनिक पंजाब की दुखती रग है। पाँच नदियों में से ढाई हिन्दुस्तानी पंजाब के हाथ आईं। और फिर पिछले पन्द्रह वर्षों से जारी घनीभूत तनाव। यह तनाव गुरु नानक और गुरु गोविन्द सिंह के व्यक्तित्वों में टकराव से पैदा होकर पंजाब के मानसिक संसार को विभाजित करता हुआ शब्द और अर्थ तक के बीच फैल जाता है। सच्चाई का बयान करने में कभी कविता साथ देती है लेकिन कभी उसके दबाव से बिखर उठती है। जब कवि को कविता की व्यर्थता का अहसास होता है तभी हमारे सामने भाषा के पार एक जीती-जागती दुनिया खड़ी हो जाती है।<br>इन कविताओं में सूफ़ी परम्परा से लेकर आधुनिक काव्यान्दोलनों तक का विशाल फलक रूप और टेकनीक के स्तर पर मौज़ूद है। रूप की यह विविधता एक विशाल सच्चाई को हर बार नए तरीके से कहने और फिर भी कुछ बचा रह जाने की बेचैनी से पैदा हुई है।
ISBN: 9789360860455
Pages: 175
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
‘चिदंबरा’ मेरी काव्यचेतना के द्वितीय उत्थान की परिचायिका है। उसमें ‘युगवाणी’ से लेकर ‘अतिमा’ तक की रचनाओं का संचयन है—सन् ’37 से ’57 तक प्राय: बीस वर्षों की विकास-श्रेणी का विस्तार।
‘चिदंबरा’ की पृथु-आकृति में मेरी भौतिक, सामाजिक, मानसिक, आध्यात्मिक संचरणों से प्रेरित कृतियों को एक स्थान पर एकत्रित देखकर पाठकों को उनके भीतर व्याप्त एकता के सूत्रों को समझने में अधिक सहायता मिल सकेगी। इनमें मैंने अपनी सीमाओं के भीतर, अपने युग के बहिरन्तर के जीवन तथा चैतन्य को, नवीन मानवता की कल्पना से मंडित कर, वाणी देने का प्रयत्न किया है। मेरी दृष्टि में ‘युगवाणी’ से लेकर ‘वाणी’ तक मेरी काव्य-चेतना का एक ही संचरण है, जिसके भीतर भौतिक और आध्यात्मिक चरणों की सार्थकता, द्विपद मानव की प्रकृति के लिए, सदैव ही अनिवार्य रूप से रहेगी।
‘‘पाठक देखेंगे कि (इन रचनाओं में) मैंने भौतिक-आध्यात्मिक, दोनों दर्शनों से जीवनोपयोगी तत्त्वों को लेकर, जड़-चेतना सम्बन्धी एकांगी दृष्टिकोण का परित्याग कर, व्यापक सक्रिय सामंजस्य के धरातल पर, नवीन लोक-जीवन के रूप में, भरे-पूरे मनुष्यत्व अथवा मानवता का निर्माण करने का प्रयत्न किया है, जो इस युग की सर्वोपरि आवश्यकता है?’’
—भूमिका से
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