Har Subah Taza Gulab
Author:
Gulab KhandelwalPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 32
₹
40
Available
ग़ज़ल एक छन्द मात्र नहीं है। यह अभिव्यक्ति की एक अत्यन्त नाजुक विधा है जिसमें सपाटबयानी नहीं चलती। गुलाब खंडेलवाल का यह ग़ज़ल संग्रह ग़ज़ल की इस क्षमता को नए और पुराने के बीच सन्तुलन क़ायम रखते हुए नए सिरे से सिद्ध करता है।</p>
<p>गुलाब जी ने ग़ज़ल की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाने की कोशिश की है और उनकी ग़ज़लों ने भी कवि और सहृदय<strong>, </strong>साहित्य और संगीत तथा हिन्दी और उर्दू के बीच की दूरी को कम करने में बड़ी भूमिका निभाई है।</p>
<p>प्रस्तुत ग़ज़लों में उर्दू की अभिव्यक्ति-भंगिमा के साथ हिन्दी कविता की रसदृष्टि और बिम्ब विधायकता का दुर्लभ संयोग देखने को मिलता है। उर्दू कविता के ठेठ पुराने माहौल और उसके अधिकांश रूढ़ प्रतीकों को छोड़कर परम्परित ग़ज़ल को उसके कृत्रिम परिवेश से निकालकर जीवन की सहज भावभूमि पर खड़ा करने का प्रयास इन ग़ज़लों में सहज ही दिखता है।</p>
<p>मन की मार्मिक अनुभूतियों के साथ-साथ अपने समय-समाज की तीखी चुनौतियों को स्वर देनेवाली ये ग़ज़लें अपनी गेयता और उद्धरणशीलता के कारण भी ध्यान खींचती हैं। जो पाठक इन्हें कवि के भावाकुल क्षणों की वाणी मानकर पढ़ेगा<strong>,</strong> उसे अपने हृदय की निगूढ़ झंकार इनमें सुनाई पड़ेगी।
ISBN: 9788180312168
Pages: 62
Avg Reading Time: 2 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है आख़िर इस दर्द की दवा क्या है इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’ कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे
Rang Birange Baal Geet
- Author Name:
Rameshraaj
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- Description: छोटे बच्चों के लिए छोटे, सुंदर बाल गीत
Kaifiyat
- Author Name:
Kaifi Azmi
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Description:
अपने समकालीन श्रेष्ठ कवियों में कैफ़ी आज़मी का नाम बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है। कैफ़ी ने प्रगतिशील उर्दू कविता का माथा बहुत ऊँचा किया है और उसको बहुत शक्तिसम्पन्न बनाया है।
फ़ैज़ की नज़्मों में ग़ज़ल की-सी लाक्षणिकता, शिल्प-लाघव और प्रतीकों के व्यंग्यार्थ मिलते हैं; इसीलिए कुछ और भी, विषम वर्ग संघर्ष झेलनेवालों की कसक, पीड़ा और उम्मीद की चमक...जैसे चिंगारियाँ उड़ती हों...अपनी त्रासदिक मोहिनी से हमें विकल कर देती हैं। या मख़दूम...मख़दूम मुहीउद्दीन का अपना खरा समर्पित व्यक्तित्व अनायास ही हर इन्क़िलाबी का प्रतिनिधि व्यक्तित्व-सा बन जाता है, और तब शायरी की ज़मीन से वह कुछ ऊपर उठ जाता है...शायरी की ज़मीन को भी शायद कुछ ऊपर उठाते हुए।
कैफ़ी का अन्दाज़-ए-बयाँ कुछ और है। इन सबों से न्यारा। वह भावनाओं की पवित्रता, मुहावरे की शुद्धता और भाषा के स्वाभाविक सौन्दर्य और सौष्ठव और इनकी परम्परा की ख़ूबसूरती को बरक़रार रखते हुए, एक आम दर्दमन्द इनसान से एक आम दर्दमन्द इनसान की तरह मिलता है...अपनी कविताओं में...एक जाने-पहचाने रफ़ीक़ और दोस्त की तरह...बिलकुल हमारे दिल की बातों को गुनगुनाते हुए, कुछ हमारे ही दिल के लहज़े में। और सबसे बड़ी बात : उसके पास, इन सारी कैफ़ियत में, एक साफ़ दृष्टि और साफ़-स्पष्ट दिशा है...कि वह हमें कभी नहीं भटका सकता! हम आश्वस्त हैं।
—शमशेर बहादुर सिंह
Aawazon Ke Ghere
- Author Name:
Dushyant Kumar
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Description:
अपने आप से, अपने परिवेश और व्यवस्था से नाराज़ कवि के रूप में दुष्यन्त कुमार की कविताएँ हिन्दी का एक आवश्यक हिस्सा बन चुकी हैं। आठवें दशक के मध्य और उत्तरार्ध में अपनी धारदार रचनाओं के लिए बहुचर्चित दुष्यन्त जिस आग में होम हुए, उसे उनकी रचनाओं में लम्बे समय तक महसूस किया जाता रहेगा।
‘आवाज़ों के घेरे’ दुष्यन्त कुमार का एक ज़रूरी कविता-संग्रह है। इसमें धुआँ-धुआँ होती उस शख़्सियत को साफ़ तौर पर पहचाना जा सकता है, जिसे दुष्यन्त कहा जाता है। समग्रत: ये विरोध की कविताएँ हैं लेकिन रचनात्मक स्तर पर कवि का यह विरोध व्यवस्था से अधिक अपने आप से है, जहाँ व्यक्ति न होकर वह एक वर्ग है—मुट्ठियों को बाँधता और खोलता। बाँधना, जो उसकी ज़रूरत है और खोलना, मजबूरी। एक प्रकार की निरर्थकता और ठहराव का जो बोध इन कविताओं में है, वह सार्थक और गतिशील होने की गहरी छटपटाहट से भरा हुआ है। स्पष्टत: कवि का यही द्वन्द्व और छटपटाहट इन कविताओं का रचनाधाय है, जिसे सहज और सार्थक अभिव्यक्ति मिली है।
दुष्यन्त लय के कवि हैं, इसलिए मुक्तछन्द होकर भी ये कविताएँ छन्दमुक्त नहीं हैं। साथ ही यहाँ उनके कुछ गीत भी हैं और बाद में सामने आई बेहतरीन ग़ज़लों की आहटें भी। संक्षेप में, यह संग्रह दुष्यन्त की असमय समाप्त हो गई काव्य-यात्रा का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव है।
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