Jangal Mein Jheel Jagati
Author:
Haribhajan SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
आधुनिक पंजाबी कविता में अपनी तरह के अकेले कवि हरिभजन सिंह की कविताओें के इस संकलन को उनकी प्रतिनिधि रचनाओं का संकलन भी कहा जा सकता है। उनके पहले कविता-संग्रह ‘लासां’ (1956) से लेकर ‘मत्था दीवे वाला’ (1982) तक के सात संग्रहों से चुनी गईं ये कविताएँ उनके कवि-व्यक्तित्व को काफ़ी कुछ सामने ले आती हैं। साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत ‘ना धुप्पे ना छाँवे’ शीर्षक संग्रह की कविताएँ भी इस पुस्तक में संकलित हैं।</p>
<p>गहरे अर्थों में सामाजिक और स्वानुभूति के प्रति अत्यन्त सजग उनके कवि-व्यक्तित्व के बारे में इस चयन की सम्पादक गगन गिल ठीक ही कहती हैं कि उनकी अधिकांश कविता आत्मालाप होते हुए भी अकेले आदमी की कविता नहीं, उसमें कोई है, जो सदा उपस्थित है।</p>
<p>हरिभजन सिंह की कविता में व्यक्ति-मन से टकराते सामाजिक आलोड़न की प्रतिध्वनियाँ इतने प्रामाणिक रूप में सुनाई देती हैं कि स्वातंत्र्योत्तर भारत की आधी सदी का मोटा-मोटी एक ख़ाका हमारी चेतना में बन जाता है—ख़ाका उस यातना का जिसे इतिहास नहीं, कविता ही समझ और प्रकट कर सकती है। बांग्लादेश निर्माण के दौरान बहा ख़ून, आपातकाल, पंजाब का उग्रवाद, ऑपरेशन ब्लूस्टार और परमाणु हथियारों जैसी हर पल मौजूद विपदा को उन्होंने अपनी कविताओं में लगातार सम्बोधित किया है।</p>
<p>वे आवेग के कवि नहीं हैं, उनकी कविता रुककर अपने समय की पड़ताल करती है, और इस तरह उनका सघन और चिन्तनशील मनीषी काव्य-मन एक दीर्घकालीन प्रभाव के रूप में हम तक पहुँचता है।
ISBN: 9789360865559
Pages: 208
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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हमें आज भी कबीर के नेतृत्व की ज़रूरत है, उस रोशनी की ज़रूरत है जो इस सन्त सूफ़ी के दिल से पैदा हुई थी। आज दुनिया आज़ाद हो रही है। विज्ञान की असाधारण प्रगति ने मनुष्य का प्रभुत्व बढ़ा दिया है। उद्योगों ने उसके बाहुबल में वृद्धि कर दी है। मनुष्य सितारों पर कमन्दें फेंक रहा है। फिर भी वह तुच्छ है, संकटग्रस्त है, दुःखी है। वह रंगों में बँटा हुआ है, जातियों में विभाजित है। उसके बीच धर्मों की दीवारें खड़ी हुई हैं। साम्प्रदायिक द्वेष है, वर्ग-संघर्ष की तलवारें खिंची हुई हैं। बादशाहों और शासकों का स्थान नौकरशाही ले रही है। दिलों के अन्दर अँधेरे हैं। छोटे-छोटे स्वार्थ और दंभ हैं जो मनुष्य को मनुष्य का शत्रु बना रहे हैं। जब वह शासन, शहंशाहियत और प्रभुत्व से मुक्त होता है तो ख़ुद अपनी बदी का ग़ुलाम बन जाता है। इसलिए उसको एक नए विश्वास, नई आस्था और नए प्रेम की आवश्यकता है जो उतना ही पुराना है जितनी कबीर की आवाज़ और उसकी प्रतिध्वनि इस युग की नई आवाज़ बनकर सुनाई देती है।
—भूमिका से
Pida, Neend Aur Ek Ladki
- Author Name:
Prerana Sarwan
- Book Type:

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डायरी से :
दु:ख का गर्भपात नहीं होता है। दु:ख सतमासे भी नहीं होते हैं। दु:ख तो सम्पूर्ण रूप से जन्मते हैं जीवन की कोख से, इस विचार मात्र से मेरे भीतर दु:खों की ज्वालामुखी उमड़ पड़ती है। उसी बहते हुए लावे में हैं हज़ारों दु:खों के भ्रूण, जो एक क्षण में पूर्ण रूप से जन्म लेते हैं। जो मेरे पतन के कारण हैं या उन्नति के, मैं नहीं जानती। मैंने स्वयं से बाहर निकलकर कभी कुछ देखने का साहस या प्रयास नहीं किया। मैं भीतर ही भीतर जीवन की खाई को गहरा करने में लगी रहती हूँ। मुझे याद है, मुझे चाँद ने कभी नहीं छुआ लेकिन बन्द कमरों में आकर सूरज की आग मेरी कोमल देह को झुलसाती रही, पीड़ा देती रही।
11 जुलाई, 1999
मेरी प्रत्येक कविता जीवन की प्रत्येक साँस का ऋण चुकाती है। मेरे जाने पर जीवन मुझ पर एहसान या दया की दुहाई न दे। मैं नहीं कहूँगी अपनी व्यथा, पर मेरी कविता जीवन के मुझ पर किए हुए अन्याय की कथा कहेगी। मृत्यु के बाद भी मेरी कविता ख़ामोश नहीं होगी। मेरी कविता की सत्यता से यह जीवन मृत्यु के बाद भी नहीं बच पाएगा।
25 जनवरी, 1999
कितना बचाया पर आज आख़िरकार गिन्नी चिड़िया के एक बच्चे को खा गई। हम क्या कर सकते हैं! ईश्वर ने जीवों की यही नियति निर्धारित की है। उसकी लीला वो ही जाने, चिड़िया जैसी कितनी इच्छाएँ मेरी रोज़ मरती हैं और आँसुओं में बहा दी जाती हैं।
20 मई, 2011
Yaad Kiya Dil Ne
- Author Name:
Dr. Trinetra Bajpai
- Book Type:

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Description:
हिन्दी फिल्म संगीत का एक दौर ऐसा भी था जब गीतों, गजलों, नज्मों की सम्पदा सुमधुर धुनों और संयत लय-ताल के साथ हमारे जीवन के तकरीबन हर पहलू की जीवन्त व्याख्या की तरह हमारे साथ रहती थी। हर मन की हर बात कहने के लिए कोई-न-कोई गीत निकल आता था, दर्द की, खुशी की, अफसोस की, शोक की हर लहर किसी-न-किसी गीत से जाकर जुड़ जाती थी। आज भी जरूरत के वक़्त वही गीत हमारे काम आते हैं।
और उन गीतों के पीछे थी ऐसे अनेक संगीतकारों की सुर-साधना, अनेक ऐसे गायकों की संगीत-चेतना जिनमें से बहुतों का नाम भी हम आज के धूम-धड़ाके में भूल गए हैं, या जान ही नहीं पाए।
यह किताब उन्हीं नामों की स्वर्ण-तालिका को प्रकाशित करती है। वे संगीत-निर्देशक जिन्होंने हिन्दी फ़िल्म संगीत की जड़ें गूँथी, अपनी धुनों से देश के जन-गण को स्वर दिया, ऐसी लयबद्ध पंक्तियाँ दीं जो कहीं-न-कहीं हर किसी को आपस में जोड़कर देश की सामूहिक संवेदना को आकार देती हैं।
इस पुस्तक के केन्द्र में खास तौर पर उन संगीतकारों का जीवन और कृतित्व है जिन्होंने फ़िल्म संगीत को एक नई, सुरीली और कलात्मक दिशा दी और फ़िल्म-संगीत के उस दौर को सम्भव किया जिसे आगे चलकर संगीत का ‘स्वर्ण युग’ कहा गया। संगीत की गहरी समझ, शोध और लोकप्रियता के आधार पर यहाँ ऐसे 26 संगीतकारों पर फोकस किया गया है। अपने क्षेत्र के इन युग-प्रवर्तकों के साथ ही यहाँ उन लोगों के काम को भी रेखांकित किया गया है जिन्होंने भारतीय फ़िल्म संगीत के खजाने को समृद्ध करने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई और जो आज भी सक्रिय हैं।
फ़िल्म-संगीत के प्रेमी पाठक इस अनूठी पुस्तक को सन्दर्भ ग्रंथ की तरह सहेज सकते हैं।
Amrit Manthan
- Author Name:
Ramdhari Singh Dinkar
- Book Type:

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Description:
‘अमृत मंथन’ राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की ओजस्वी कविताओं का संकलन है।
इस पुस्तक में दिनकर जी की कुछ कविताएँ 1945 से 1948 के बीच लिखी गई थीं, जो तत्कालीन परिस्थितियों की दस्तावेज़ हैं तथा राष्ट्रकवि की जनहित के प्रति प्रतिबद्ध मानसिकता को हमारे सामने लाती हैं।
इन कविताओं में जहाँ देश के विराट व्यक्तित्वों के प्रति कवि का श्रद्धा-निवेदन है, वहीं कुछ कविताओं में उत्कट देश-प्रेम की ओजस्वी अभिव्यक्ति है। कुछ कविताएँ देशी एवं विदेशी कवियों की उत्कृष्ट रचनाओं का सरस अनुवाद हैं तो कुछ कविताओं में निसर्ग का सुन्दर चित्रण है।
इन कविताओं की विशेषता है—इनकी प्रांजल, प्रवाहमयी भाषा, उच्चकोटि का छंद-विधान और सहज भाव-सम्प्रेषण।
हिन्दी काव्य के स्वर्ण-युग की यात्रा करने के लिए यह पुस्तक उत्तम साधन है।
Safeena
- Author Name:
Bittu Sandhu
- Book Type:

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Description:
कुछ कविताएँ नदियों में बहते-बहते अपना गीत नापती हैं। कुछ पर्वतों से पिघलकर, टहनियों पर झूल, बारिशों में धुल, सपाट काग़ज़ पर बिछ जाती हैं।
कुछ सूरज से या चाँद से, या आकाश और धरती के बीच जो भी पनपे, उससे शब्द उधार माँग लाती हैं।
कुछ ये कविताएँ भी हैं, जो एक अलग ही धरा पर उगी, सिंची और अर्पण हो गईं।
बिट्टु की कविताएँ बहुत भीतर की भभकती लौ से जन्मी, एक सुरीली लहर में तैरकर, उनकी आँखों से टपक जाती हैं।
उनके दिन कई रंगों से सने हैं। कहीं वे समाज-सेवा का रंग भरती हैं, तो कहीं रिश्तों के जालों में उलझे लोगों को काउंसल करती हैं। बहुतों की मित्र हैं, प्रेरणा हैं, चाह हैं। इन्हीं से भरे दिनों और उनके बीच के पहरों से बटोरी भावनाओं को घर ले जाती हैं। और फिर, किस शब्द को कैसे बुनना है, किसको छानना है, बीनना, सिलना, लेपना, पोतना और कुरेदना है, ये बिट्टु ख़ूब जानती हैं।
इसलिए उनकी कविताएँ कराहती हुई चाह से उठकर, खौलते पानी में सिंचकर, आँसू भी बहाती हैं, उसे पोंछती भी हैं, सपने भी सँजोती हैं, और फिर दोनों हाथों से अर्पण हो, सतहों से उठ, विशालता में लीन भी हो जाती हैं।
जब प्रेम लेन-देन से उठकर प्रार्थना बन जाए तो उनकी कविताएँ झूमती भी हैं, अर्पण में खो भी जाती हैं।
बिट्टु के शब्द किसी भी भावना में बिखरें और जुड़ें, उनका गीत लय में ही बहता है। हमेशा।
उन्हीं की तरह।
यह संग्रह इसी गीत की ध्वनि है।
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