Gujrat Ke Baad
Author:
Jagannath Prasad DasPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
कविता संवेदना और विचार के सहमेल से यथार्थ को उसकी समग्र सम्भावना के साथ व्यक्त करती है। जगन्नाथ प्रसाद दास की कविताओं को पढ़ते हुए निरन्तर अनुभव होता है कि कविता समकालीन यथार्थ के साथ परम्परा के संघर्ष को भी प्रकट करती है। ‘गुजरात के बाद’ की कविताएँ गहन आत्मानुभूति से उपजी हैं। परिवेश का प्रभाव तो है ही, कवि ने स्मृतियों को टटोलते हुए अर्थ की पूँजी सहेजी है।</p>
<p>इन कविताओं में उम्मीद का उजाला है। यह उजाला विषाद के क्षणों में भरोसा दिलाता है। कवि ने हमारे समय के संकटों को कई जगह संकेतित किया है। ‘अरण्य’ की पंक्तियाँ हैं : “वनस्पति की सघनता को भेदकर/लकड़हारे की पदचाप सुनाई पड़ती है/सहज कलरव का अविरल छन्द/हठात् थम जाता है/इतिहास की अन्तिम कथा-सा।”</p>
<p>जगन्नाथ प्रसाद दास की इन मूलत: ओड़िया कविताओं का अनुवाद करते समय राजेन्द्र प्रसाद मिश्र ने कविता की बहुअर्थी प्रकृति का ध्यान रखा है।
ISBN: 9788126726165
Pages: 80
Avg Reading Time: 3 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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ख़ुशी इस बात की है कि ये रवायत बड़ी ख़ूबसूरत अकेला ने शुरू की है ताके उनके शायरों को जिनके पीछे कोई काम करनेवाला नहीं था या जिन्हें लोगों ने नेग्लेक्ट किया या जिन लोगों का राइटर्ज़ एसोसिएशन ये काम करती या कुछ इस तरह के आर्गेनाइज़ेशन काम करती, उन शायरों के कलाम को विजय अकेला ने सँभालने का एक सिलसिला शुरू किया है वरना फ़िल्मों में लिखा हुआ कलाम या फ़िल्मों में लिखी हुई शायरी को ऐसा ही ग्रेड दिया जाता था जैसे ये किताबों के काबिल नहीं है; ये तो सिर्फ़ फ़िल्मों में है...बाक़ी आपकी शायरी कहाँ है? ये हमेशा शायरों से पूछा जाता था। ये एक बड़ा ख़ूबसूरत कदम अकेला ने उठाया है...।
—गुलज़ार
मैं सम्पादक विजय अकेला साहब के बारे में यह कहना चाहूँगा कि ये बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। इन्होंने इसी तरह की आनन्द बख़्शी और जाँ निसार अख्तर पर जो किताबें की थीं, उनसे मैं वाक़िफ़ हूँ। उम्मीद करता हूँ कि शायरों से महब्बत रखनेवाली दुनिया में इनकी भी क़द्र होगी।
—जावेद अख़्तर
Pratinidhi Kavitayein : Gagan Gill
- Author Name:
Gagan Gill
- Book Type:

- Description: गगन गिल की कविताओं की एक यात्रा स्पष्ट दिखाई देती है—बाहर से भीतर की ओर की। ‘एक दिन लौटेगी लड़की’ शीर्षक उनका संग्रह अपने समय की एक घटना थी। हिन्दी के कविता-संसार ने उसे ख़ूब ही उत्साह से ग्रहण किया था। इस संग्रह की कविताओं ने भीतर से उदास लेकिन फिर भी संसार में अपनी जगह को लेकर पर्याप्त सजग एक लड़की की छवि को प्रकाशित किया। भीतर की वह उदासी, अकेलापन, अपने ‘होने’ और अपने एक ‘स्त्री होने’ का वह अहसास जैसे बड़ा होता गया; संसार का बाहरी शोर और दिल की थपक-थपक जैसे आमने-सामने खड़ी इकाइयाँ हो गईं। इस दौर में उन्होंने जो लिखा वह सृष्टि के पवित्रतम की खोज थी, जो मनुष्य के आत्म की कंदराओं में स्थित होता है। आकांक्षाओं से मुक्त, अपने होने की कील से बिंधा हुआ, सम्पूर्ण और व्यथित। इस चयन में उनकी पूरी चेतना-यात्रा को सुविचारित ढंग से सँजोया गया है—‘मैं जब तक आई बाहर’ संग्रह तक, जिसमें पीड़ा का संचार भीतर और बाहर दोनों तरफ़ होता है। देश और काल की पौरुषपूर्ण व्यवस्था के बीच स्त्री की सूक्ष्म असहमति और अपने दुःख को देखने का साक्षी भाव उनके संवेदनशील और सटीक शब्द-संयोजन में एक अविस्मरणीय अनुभव की तरह अंकित होता है।
Bhuri-Bhuri Khak-Dool
- Author Name:
Gajanan Madhav Muktibodh
- Book Type:

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Description:
“मुक्तिबोध एक ऐसे कवि हैं जो अपने समय में अपने पूरे दिल और दिमाग़ के साथ, अपनी पूरी मनुष्यता के साथ रहते हैं। वे अपनी एक ऐसी निजी प्रतीक-व्यवस्था विकसित करते हैं कि जिसके माध्यम से सार्वजनिक घटनाओं की दुनिया और कवि की निजी दुनिया एक सार्थक और अटूट संयोग में प्रकट हो सके। एक सच्चे कवि की तरह वे सरलीकरणों से इनकार करते हैं। वे विचार या अनुभव से आतंकित नहीं होते। वे यथार्थ को जैसा पाते हैं वैसा उसे समझने और उसका विश्लेषण करने की कोशिश करते हैं और उनकी कविता का एक बड़ा हिस्सा अनुभव की अनथक व्याख्या और पड़ताल का उत्तेजक साक्ष्य है। मुक्तिबोध मनुष्य के विरुद्ध हो रहे विराट षड्यंत्र के शिकार के रूप में ही नहीं लिखते, बल्कि वे उस षड्यंत्र में अपनी हिस्सेदारी की भी खोज करते और उसे बेझिझक ज़ाहिर करते हैं। इसीलिए उनकी कविता निरा तटस्थ बखान नहीं, बल्कि निजी प्रामाणिकता और ‘इन्वॉल्वमेंट’ की कविता है। उनकी आवाज़ एक दोस्ताना आवाज़ है और उनके शब्द मित्रता में भीगे और करुणा-भरे शब्द हैं। ब्रेख़्त की तरह उन्हें मालूम है कि ‘जो हँसता है, उसे भयानक ख़बर बताई नहीं गई है। वे भयानक ख़बर के कवि हैं—हिन्दी में शायद अकेले। उन्होंने हमारे समय में आदमी की हालत की पूरी परिभाषा अलभ्य साहस और शक्ति से करने की अद्वितीय कोशिश की है।’
‘भूरी-भूरी ख़ाक धूल’ में मुक्तिबोध की कविता की इन सभी ख़ूबियों का एक नया स्तर खुलता है। ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ के बाद, प्रकाशन-क्रम के लिहाज़ से, यह उनकी कविताओं का दूसरा संग्रह है। इसमें उनकी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित कविताएँ हैं, साथ ही अधिकांशतः ऐसी कविताएँ भी हैं जो अब तक बिलकुल अप्रकाशित रही हैं। इन कविताओं में आज के उत्पीड़न-भरे समाज को बदलने का आकुल आग्रह तथा ‘जनसंघर्षों की निर्णायक स्थिति’ में अमानवीय व्यवस्था के ‘कालान्त द्वार’ तोड़ डालने का दृढ़ संकल्प विस्मयकारी शक्ति के साथ अभिव्यक्त हुआ है। अपनी प्रचंड सर्जनात्मक ऊर्जा के कारण ये कविताएँ मन को झकझोरती भी हैं और समृद्ध भी करती हैं। यह आकस्मिक नहीं है कि मृत्यु के वर्षों बाद आज भी मुक्तिबोध हिन्दी के सर्वाधिक चर्चित कवि हैं।
Mook Bimbon Se Bahar
- Author Name:
Aarti
- Book Type:

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Description:
‘यह समय मेरा समय नहीं है फिर भी मैं इस समय में हूँ’, इस द्वन्द्व के चलते अपने समय के सच को पाने के लिए आरती समय के अन्तर्द्वन्द्वों और अन्तर्विरोधों को समझने-परखने के लिए, उसकी अनेक अन्दरूनी परतों में झाँकती हैं। इस समय को कहने के लिए वो मिथकों, स्मृतियों और इतिहास के स्मृत-विस्मृत संदर्भों को खँगालती हैं। लेकिन उनकी नज़रें मिथकीय आख्यान को मिथक की तरह या इतिहास की तरह नहीं वर्तमान की तरह देखती हैं। ऐसा करते हुए वह बार-बार मिथक और इतिहास के सन्दर्भों से बाहर अपने समय की सच्चाई से रूबरू होने की जद्दोजहद से गुजरती हैं। इस संग्रह की कविताओं को पढ़ते हुए इस द्वैत और द्वन्द्व को लगातार महसूस किया जा सकता है।
क्या ये कविताएँ सिर्फ़ स्त्री की आँख से देखा हुआ समय हैं? अगर ऐसा है भी तो भी ये उन सीमा रेखाओं का अतिक्रमण करती हैं। इनमें पुरुष वर्चस्व और स्त्री के संघर्ष की दीर्घ परम्परा की ध्वनियों और उसके अनुरणन को तो सुना ही जा सकता है, लेकिन संघर्ष के वर्तमान दृश्यों को भी लक्ष्य किया जा सकता है। इन दृश्यों में—सिरफिरे और आवारा समझे जाने वाले लेखक-कलाकार बैनर, पोस्टर लिये राजमार्गों पर खड़े युद्ध के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी कर रहे हैं और दूसरी तरफ़ हमारे समय की लोकतान्त्रिक सत्ताएँ जेल की दीवारों को मज़बूत करने में लगी हैं।
‘विधवा उत्सव मनाती मेरे गाँव की औरतें’ एक लम्बी कविता है। आरती की कविता मिथकों और इतिहास के सन्दर्भों में ही नहीं जाती वह उन कर्मकाण्डों को भी लक्ष्य करती है जो आज भी ज़ारी हैं। आत्यन्तिक परिणितियाँ अब कर्मकाण्डों से अलग कर दी गई हैं। ‘औरतों को ज़िन्दा मार सकने के नए तरीक़े समाज ने अपने विकास के साथ ईजाद कर लिए हैं’ लेकिन कर्मकाण्डों का स्वरूप बहुत नहीं बदला है। धर्मग्रन्थों के पास अपने तर्क हैं जिनके आगे ज्ञान-विज्ञान के सारे तर्क और धाराएँ झूठी पड़ जाती हैं। इस समय समाज के एक हाथ में मनुस्मृति है और दूसरे में संविधान—संविधान सबके लिए है लेकिन स्त्रियों के लिए मनुस्मृति सुरक्षित है।
आरती की इन कविताओं में विशेषरूप से ‘विधवा उत्सव मनाती मेरे गाँव की औरतें’ लम्बी कविता के शिल्प और भाषा में पूरा नाटकीय विधान मौजूद है। बल्कि इस लम्बी कविता में तो आरती ने नाटक की अनेक प्रविधियों का भी जगह-जगह इस्तेमाल किया है।
—राजेश जोशी
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