Swachchhand
Author:
Sumitranandan PantPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 316
₹
395
Available
कविश्री सुमित्रानंदन पंत का काव्य-संसार अत्यन्त विस्तृत और भव्य है। प्रायः काव्य-रसिकों के लिए इसके प्रत्येक कोने-अँतरे को जान पाना कठिन होता है। पंत जी की काव्य-सृष्टि में, किसी भी श्रेष्ठ कवि की तरह ही, स्वाभाविक रूप से श्रेष्ठता के शिखरों के दर्शन होते हैं, नवीन काव्य-भावों के अभ्यास का ऊबड़-खाबड़, निचाट मैदान भी मिलता है और अवरुद्ध काव्य-प्रयासों के गड्ढे भी। किन्तु किसी कवि के स्वभाव को जानने के लिए यह आवश्यक होता है कि यत्नपूर्वक ही नहीं, रुचिपूर्वक भी उसके काव्य-संसार की यात्रा की जाए। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने पंत जी के बारे में लिखा कि आरम्भ में उनकी प्रवृत्ति इस जग-जीवन से अपने लिए सौन्दर्य का चयन करने की थी, आगे चलकर उनकी कविताओं में इस सौन्दर्य की सम्पूर्ण मानव जाति तक व्याप्ति की आकांक्षा प्रकट होने लगी। प्रकृति, प्रेम, लोक और समाज-विषय कोई भी हो, पंत-दृष्टि हर जगह उस सौन्दर्य का उद्घाटन करना चाहती है, जो प्रायः जीवन से बहिष्कृत रहता है। वह उतने तक स्वयं को सीमित नहीं करती, उस सौन्दर्य को एक मूल्य के रूप में अर्जित करने का यत्न करती है।</p>
<p>सुमित्रानंदन पंत की जन्मशती के अवसर पर उनकी विपुल काव्य-सम्पदा से एक नया संचयन तैयार करना पंत जी के बाद विकसित होती हुई काव्य-रुचि का व्यापक अर्थ में अपने पूर्ववर्ती के साथ एक नए प्रकार का सम्बन्ध बनाने का उपक्रम है। यह चयन पंत जी के अन्तिम दौर की कविताओं के इर्द-गिर्द ही नहीं घूमता, जो काल की दृष्टि से हमारे अधिक निकट हैं; बल्कि उनके बिलकुल आरम्भिक काल की कविताओं से लेकर अन्तिम दौर तक की कविताओं के विस्तार को समेटने की चेष्टा करता है। चयन के पीछे पंत जी को किसी राजनीतिक-सामाजिक विचारधारा, किसी नई नैतिक-दार्शनिक, दृष्टि जैसे काव्य-बाह्य दबाव में नए ढंग से प्रस्तुत करने की प्रेरणा नहीं है—यह एक नई शताब्दी और सहस्राब्दी की उषा वेला में मनुष्य की उस आदिम, साथ ही चिरनवीन सौन्दर्याकांक्षा का स्मरण है, पंत जी जैसे कवि जिसे प्रत्येक युग में आश्चर्यजनक शिल्प की तरह गढ़ जाते हैं।</p>
<p>किसी कवि की जन्मशती के अवसर पर परवर्ती पीढ़ी की इससे अच्छी श्रद्धांजलि क्या हो सकती है कि वह उसे अपने लिए सौन्दर्यात्मक विधि से समकालीन करे। पंत-शती के उपलक्ष्य में उनकी कविताओं के संचयन को ‘स्वच्छंद’ कहने के पीछे मात्र पंत जी की नहीं, साहित्य मात्र की मूल प्रवृत्ति की ओर भी संकेत है। संचयन में कालक्रम के स्थान पर एक नया अदृश्य क्रम दिया गया है, जिसमें कवि-दृष्टि, प्रकृति, मानव-मन, व्यक्तिगत जीवन, लोक और समाज के बीच संचरण करते हुए अपना एक कवि-दर्शन तैयार करती है। ‘स्वच्छन्द’ के माध्यम से पंत जी के प्रति विस्मरण का प्रत्याख्यान तो है ही, इस बात को नए ढंग से चिह्नित भी करना है कि जैसे प्रकृति का सौन्दर्य प्रत्येक भिन्न दृष्टि के लिए विशिष्ट है, वैसे ही कवि-संसार का सौन्दर्य भी अशेष है, जिसे नई दृष्टि अपने लिए विशिष्ट प्रकार से उपलब्ध करती है।
ISBN: 9788126700929
Pages: 171
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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प्रसाद का कवि-कर्म 'आन्तर हेतु' की ओर अग्रसर होता है, क्योंकि वे मूलत: सूक्ष्म अनुभूतियों के कवि हैं। इनकी अभिव्यक्ति के लिए वे रूप, रस, स्पर्श, शब्द और गंध को पकड़ते हैं—कहीं एक की प्रमुखता है तो कहीं सभी का रासायनिक घोल। ...वे अनेक विधियों से संवेगों को आहूत करते हैं। ...प्रसाद ने करुणा का आह्वान अनेक स्थलों पर किया है। मूल्य रूप में इसकी महत्ता को आज भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता। बल्कि आज तो इसकी आवश्यकता और बढ़ गई है। ...'ले चल मुझे भुलावा देकर' में पलायन का मूड है तो 'अपलक जागती हो एक रात' में रहस्य का। किन्तु इन क्षणों को प्रसाद की मूल चेतना नहीं कहा जा सकता। वे समग्रत: जागरण के कवि हैं और उनकी प्रतिनिधि कविता है—'बीती विभावरी जाग री।'
इस संग्रह में प्रसाद की उपरिवर्णित कविताओं के साथ 'लहर' से कुछ और कविताएँ, तथा इसके अलावा 'राज्यश्री', 'अजातशत्रु', 'स्कन्दगुप्त', 'चन्द्रगुप्त' व 'ध्रुवस्वामिनी' नाटकों में प्रयुक्त कविताओं को भी संकलित किया गया है।
Kamayani
- Author Name:
Jaishankar Prasad
- Book Type:

- Description: प्रसाद जी ने प्राचीन भारतीय ग्रन्थों से कामायनी-कथा की प्रेरणा प्राप्त की और भारतीय दर्शन के योग से उसका निरूपण किया। उपनिषदों का अद्वैत, शैव-दर्शन की समरसता, आनन्द, बौद्धों की करुणा—सभी की छाया के दर्शन इसमें होते हैं। चिन्तन-मनन अथवा यों कहें कि दार्शनिकता और काव्य का अद् भुत सामंजस्य ‘कामायनी’ में देखने को मिलता है। ‘कामायनी’ का मनु अपने कठिन संघर्ष के बाद जीवन में समरसता स्थापित कर आनन्द प्राप्त कर लेता है। यह श्रद्धाजन्य आनन्द ही ‘कामायनी’ का लक्ष्य है। देश, काल और जाति की सीमाओं से ऊपर उठकर, मानव और मानवता की विषय-वस्तु के साथ कामायनी नए युग का गौरवशाली महाकाव्य बन गया है।
Aag Jo Jalati Nahin
- Author Name:
Doris Kareva
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Description:
डोरिस कारेवा एस्टोनिया और बाल्टिक देशों की ही नहीं, यूरोप की सबसे अहम कवियों और क़द्दावर सांस्कृतिक हस्तियों में शुमार हैं, उन कविताओं के लिए प्रशंसित जो लाघव और शिल्पगत कसाव के साथ-साथ जुनून और साहस-प्रदर्शन के सूक्ष्म तवाज़ुन को अंजाम देती हैं। पत्रिका एस्टोनियन लिटरेचर के अनुसार डोरिस की उपलब्धि यह है कि वे ऐसी कविता लिखती हैं जो मनुष्य की आत्मा और सृष्टि के बीच, ध्वनि के साथ-साथ मौन के बीच लरज़ रही रेखा पर सन्तुलन क़ायम करने का प्रयास करती हैं।
‘आग जो जलाती नहीं’ में डोरिस कारेवा की चार दशकों से भी अधिक सुदीर्घ काव्य-यात्रा समाहित है, इस बात को दर्शाती कि वे अपनी कविता में सतत गहराई और सुस्पष्टता के साथ-साथ अर्थ-बाहुल्य और सुर-संगति को एक साथ साधने में सक्षम हैं। यह अनेकार्थता एक ओर सुस्पष्टता का विलोम रचती है और दूसरी ओर ऐसी व्यंजना जो अपने प्रदीपन के चरम पर आप्त वाणी का-सा प्रभाव पैदा करती है।
उनकी कविता की तात्त्विक संवेदना ऐसी है कि उसके नैतिक आवेश की प्रतीति एकदम दैहिक स्तर पर होती है। उन्हें प्रेम की ऐसी तपस्विनी भी कहा जाता है जो प्रेम के चित्रण में निर्भीक भी है और विचारशील भी। प्रेम का यह रचाव “पर्वतीय पवन-सा इतना विशुद्ध एवं उदात्त” है, कि वे किसी अन्य समय और आयाम से लिख रही प्रतीत होती हैं।
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