Sur-Sansar : Sudhir-Sanjay samvad
Author:
Sudhir ChandraPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Poetry0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
संगीत पर, शास्त्रीय संगीत पर हिन्दी में बहुत कम सामग्री प्रकाशित है : उसकी आलोचना और रसिकता की कोई व्यवस्थित परम्परा भी नहीं बन सकी। शास्त्रीय संगीत के रसिक सम्प्रदाय में अनेक विधाओं के लोग भी शामिल रहे हैं। उन्हीं में से एक हैं इतिहासकार सुधीर चन्द्र जिनकी संगीत की समझ, संवेदना और व्याख्या को कई लोग जानते रहे हैं। उनके अनुभवों, स्मृतियों, समझ आदि को सहेजते हुए यह सुर-संसार प्रस्तुत करते हुए हमें प्रसन्नता है।
—अशोक वाजपेयी
ISBN: 9789389598353
Pages: 254
Avg Reading Time: 8 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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नाभिक से फूटकर वृत्त की परिधि रेखा की तरफ़ ताबड़तोड़ बढ़ता यह विस्फोट हर उस दीवार, मठ और शक्ति-केन्द्र को ध्वस्त करना चाहता है जो एक उगते हुए अंकुर के विकास को लगभग अपना कर्त्तव्य मानकर बाधित करना चाहते हैं। एक तरह से यह बीसवीं सदी के आख़िरी दशक में उभरी प्रतिरोध की वह युवा-मुद्रा है जिसे अपना हर रास्ता या तो अवरुद्ध मिला या फिर बेहद चुनौतीपूर्ण। समाज में बाज़ार अपनी चकाचौंध के साथ पसरा हुआ था और भाषा में संवेदना, परदुख और सरोकार आदि शब्दों के बड़े व्यापारी अपनी उतनी ही चमकीली दुकानें फैलाए बैठे थे।
इस संग्रह में शामिल तीनों लम्बी कविताएँ—‘कबूलनामा’, ‘मैं में हम, हम में मैं’ और ‘फ़िलहाल साँप कविता’—इन सब आक्रान्ता बाज़ारों-दुकानों के पिछवाड़े टँगे ख़ाली कनस्तरों को पीटने और पीटते ही चले जाने का उपक्रम है। उम्मीद है, यह कर्ण-कटु ध्वनि आपको रास आएगी।
साथ में हैं ‘कोलकाता’ और विभिन्न चित्रकारों की चित्रकृतियों पर केन्द्रित दो कविता-शृंखलाएँ जिनमें निशान्त का कवि अपनी काव्य-भूमि को नई दिशाओं में बढ़ाते हुए अपने पाठक को अनुभूति की अपेक्षाकृत दूसरी दुनिया में ले जाता है।
Taak Dhinadhin Bacche Nache
- Author Name:
Rameshraaj
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- Book Type:

- Description: मन को लुभाते बालगीत - ताक धिना धिन बच्चे नाचें प्रख्यात कवि रमेशराज बहुआयामी प्रतिभा के धनी है। आपने ग़ज़ल के समानांतर 'तेवरी' आंदोलन चलाया। 'तेवरी' की सार्थकता को सिद्ध करने के लिए 'तेवरीपक्ष' त्रैमासिक पत्रिका के साथ-साथ अनेक तेवरी संग्रहों का संपादन किया। आपने रसपरंपरा में एक नए रस 'विरोध' की स्थापना की। यही नहीं 'साधारणीकरण' जैसे सर्वमान्य सिद्धांत को चुनौती देते हुए एक नए सिद्धांत 'आत्मीयकरण' को प्रतिपादित किया। कवि रमेशराज एक अच्छे बालगीतकार भी हैं। आपके विगत एक वर्ष के भीतर दो बालगीत संग्रह प्रकाशित होने के उपरांत सद्यः प्रकाशित बालगीत संग्रह 'ताक धिनाधिन बच्चे नाचे' में विविध मौसमों के ऐसे बालगीत हैं जिनमें जाड़े के प्रकोप में स्वेटर अलाव, अंगीठी, गर्म चाय का जिक्र है तो वसंत के आते ही फूल भंवरों, तितलियों की बच्चों के मन को लुभाती मोहक छटाओं के दृश्य हैं।कोयल की प्यारी प्यारी कुहू कुहू की बोली है। होली के वे मदमाते पल हैं जिनमें बच्चे नकली मूछें लगाकर, पिचकारी हाथ में लेकर हुरियारे बने हुए धमाचौकड़ी मचाते हैं। रंग गुलाल उड़ाते है। बच्चों के मन को हर्षित करने वाले प्राकृतिक दृश्यों जैसे बर्फ के पहाड़, नदी, झरनों, विविध त्योहारों पर लिखे गए इन बालगीतों में मिठास है, उल्लास है। इनमें चलते हुए पटाखे है, फुलझडियां हैं। रंगबिरंगी अनारों से फूटती आतिशबाजी है। पतंगें हैं, छक्के लगाता बल्ला है। गेंद है। टिकटिक करती घड़ी है। नाचते मोर हैं। टर्र टर्र करते मेढक हैं। इन गीतों की शब्दावली सरस और रोचक है। विश्वास है इस संग्रह का स्वागत बच्चे ही नहीं साहित्य जगत के रसिक पूरे मनोयोग से करेंगे। आपकी 30 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है।अलीगढ़ के ग्रन्थायन प्रकाशन की ओर से आपको *साहित्यश्री* पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
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