Omkar The Stealth Warrior
Author:
Balraj TiwariPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
ओंकार' एक गुमनाम देश-सेवक के संस्मरणों का संग्रह है। इसका कालखंड अस्सी के दशक के आखिरी वर्षों से लेकर नब्बे के दशक के मध्य तक का है। यह वह समय था, जब देश में राजनीतिक व आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से हालात काफी नाजुक थे।1 उस समय भारत के कई राज्यों में कट्टरपंथी ताकतें व आतंकवाद अपने चरम पर था। ऐसे समय में भारत की सुरक्षा एजेंसियों द्वारा आतंकवाद से लड़ने के लिए अलग-अलग कदम उठाए गए।
'ओंकार' भी इन्हीं में से किसी एक टीम का सदस्य था, जिसने अपने छोटे से कार्यकाल में अलग-अलग तरह से व अलग-अलग जगहों पर जाकर कई ऑपरेशंस को अंजाम दिया था। वह समय ऐसा था, जब सीमित संसाधनों के सहारे ही गुप्त रूप से काम करने होते थे। संचार, यातायात व आश्रय के साधन बहुत सीमित होते थे। ओंकार का कार्यक्षेत्र उत्तर भारत के लगभग सभी राज्यों, जैसे पंजाब, कश्मीर, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, हिमाचल व हरियाणा में रहा।
हर तरह के मौसम, हालातों से जूझते हुए व अलग-अलग परिवेशों में उसने अपने कार्यों को पूरा किया। किसी भी इनसान का एक दोहरी जिंदगी को जीते हुए कार्य, परिवार व सामान्य जीवन में सामंजस्य बिठाना बहुत कठिन होता है। ओंकार ने अपने संस्मरणों में इस मनःस्थिति का भी जिक्र किया है। इस पुस्तक में ऐसे अनाम देशप्रेमी के संस्मरणों को संकलित कर हर भारतीय को प्रेरित करने का मंतव्य निहित है।
ISBN: 9789348724991
Pages: 112
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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और यही इस डायरी की बहुत सादा, लेकिन निर्णायक उपलब्धि है। इस डायरी के पन्नों से गुजरते हुए आप अनायास ही अपने आपको एक आश्चर्य की दुनिया में पाते हैं, कि क्या राजनेता भी ऐसा होता है ! क्या राजनीति में सक्रिय कोई व्यक्ति गिलहरियों, चींटियों और चिड़ियाओं के दुख-दर्द के बारे में भी सोच सकता है ?और न सिर्फ सोचता ही है, बल्कि बाकायदा चिंतित होकर उनके दुख-दर्दों को अपनी डायरी के पन्नों पर अंकित भी करता है।
जो लोग रोज मन लगाकर अखबार पढ़ते हैं और जो ऊबकर मात्र हेडलाइनों तक सिमट गए हैं, वे दोनों ही यह जानकर आश्चर्यचकित हो सकते हैं कि इस डायरी का लेखक जेल में रहते हुए भी राजनीतिक सक्रियता को ‘मिस’ नहीं कर रहा है, बल्कि अपने विद्रोही तेवरों से मुख्यधारा में उल्लेखनीय लहरें पैदा कर चुकने के बावजूद जेल के अपने कमरे में वह एक चित्रकार होना चाहता है। वह चाहता है कि काश, तूलिका उसका औजार होती ! उसी कमरे में बैठकर वह फाँसी की क्रूर प्रथा पर सिहरता है, कैदियों की विवशता पर शोकाकुल होता है, और होता है वक्त के साथ मुखौटा बदल लेने वाले दोस्तों पर क्रोधित और उदास भी।
यह सब एक अत्यंत संवेदनशील व्यक्ति के पोट्रेट की रेखाएँ हैं, जो अपने शारीरिक कष्ट को इसलिए भी छिपाता रहता है कि कहीं जेल-कर्मचारी परेशान न हों ! ऐसा संवेदनशील व्यक्ति ‘नेता’ के उस फ्रेम में फिट नहीं बैठता, जो इधर जनमानस में नेता की ‘छवि’ बनी है। लेकिन इस डायरी के पन्नों में वह व्यक्ति सुरक्षित है–अपनी पूरी संवेदनाओं के साथ, जिसमें दर्द है, पीड़ा है–उन पीड़ितों के प्रति, जो देश में प्रचुर संसाधनों के बावजूद कष्टमय जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं, और इसीलिए यह डायरी एक विशेष कृति के रूप में पठनीय और संग्रहणीय है।
Kaafi Hain Ek Zindagi
- Author Name:
Anjani Kumar Singh
- Book Type:

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Description:
‘हर व्यक्ति की एक कहानी होती है। उस कहानी में एक घर-गाँव होता है। मेरे गाँव का नाम है चमथा… बिहार के चार जिलों का संगम है मेरा गाँव।’
अंजनी कुमार सिंह के संस्मरण इन पंक्तियों के साथ शुरू होते हैं। इसके बाद के पन्नों में, हम एक उल्लेखनीय जीवन को प्रकट होते देखते हैं—एक ऐसा जीवन जो 'संगम' है परंपरा और आधुनिकता का, अनुभव के माध्यम से सीखने और बिहार की विविध दुनियाओं की खोज का, और सार्वजनिक सेवा और व्यक्तिगत जुनून का। शासन और विकास कार्य की चुनौतियों और संतुष्टि के बारे में असाधारण अंतर्दृष्टि के साथ, अंजनी कुमार सिंह ने भारत और विदेशों में यात्रा के और दुर्लभ पौधों के एक संग्रह के निर्माण के अपने अनुभव भी साझा किए हैं। और साझा किया है एक शानदार उपलब्धि का अनुभव—बिहार संग्रहालय की स्थापना, जो कि दक्षिण एशिया की शास्त्रीय और समकालीन कला का घर है, और जिसकी तुलना दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संग्रहालयों से की जा सकती है।
काफ़ी है एक ज़िंदगी को आप लोक सेवक और कला प्रेमी के सबसे रोचक और असामान्य संस्मरणों में से एक पाएंगे।
Sinhavlokan
- Author Name:
Yashpal
- Book Type:

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Description:
स्वाधीनता-संग्राम के लिए क्रान्तिकारियों के अवदान का इतिहास लिखने की बात एक लम्बे अरसे से उठ रही थी। कुछ प्रयत्न भी हुए लेकिन वे उन लोगों के द्वारा किए गए थे जो बाहर के लोग थे। उन्हें इस आन्दोलन के आन्तरिक परिप्रेक्ष्य का इस कारण भी पता नहीं था कि क्रान्तिकारियों ने अपनी गतिविधि का कोई लिखित विवरण अथवा डायरी प्रकाशित नहीं की थी। उनमें घटनाएँ तो थीं लेकिन अन्त: प्रसंगों के अभाव में वे प्राय: बेजान और अधूरे रह गए थे। ‘सिंहावलोकन’ के प्रकाशन ने इस कमी को पूरा किया पर यशपाल इसे इतिहास नहीं मानते। उनका कहना था कि क्रान्तिकारियों के कृतित्व और व्यक्तित्व के आन्तरिक प्रत्यक्षीकरण के बिना इस महान आन्दोलन का आकलन सम्भव नहीं है। निश्चय ही इसे सम्पन्न करने के लिए एक ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत थी जो इस आन्दोलन के वैचारिक एवं भावात्मक आयामों से वैयक्तिक रूप से जुड़ा हो। ‘सिंहावलोकन' द्वारा यशपाल ने इस महत्तम कार्य को अपनी रचनात्मक ऊर्जा देकर एक महाकाव्यात्मक रूप प्रदान कर दिया है जो इतिहास होने के साथ-साथ समूचे स्वाधीनता-आन्दोलन की समीक्षा और उनकी वैयक्तिक सम्पृक्ति का सृजनात्मक विवरण भी है।
‘सिंहावलोकन' के तीनों खंडों को एक जिल्द में प्रकाशित करने का महत्त्व इस कारण बहुत बढ़ जाता है कि इसमें चौथे खंड का वह अप्रकाशित हिस्सा भी दिया जा रहा है जो उनके जीवन-काल में प्रकाशित नहीं हो सका था।
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