Bhagat Singh Ko Fansi : Vol. 1
Author:
Rajwanti Mann, Malvender Jit Singh WaraichPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Historical-fiction0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
भगत सिंह को फाँसी-1 यह कैसे हुआ कि मामूली हथियारों से लैस कुछ नौजवानों को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने का दोषी पाया गया, जिसके चलते उन्हें उम्रकैद और फाँसी की सजा हुई! ‘युद्ध’, जो उन्होंने लड़ा हालाँकि ‘‘यह युद्ध उपनिवेशवादियों व पूँजीपतियों के विरुद्ध लड़ा गया।’’ और जो ‘‘ न ही यह हमारे साथ शुरू हुआ और न ही यह हमारे जीवन के साथ खत्म होगा।’’ और, मात्र 30 महीने की उल्लेखनीय अवधि में 8-9 सितम्बर 1928 को ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन’ की स्थापना के साथ शुरू होकर, यह सम्पन्न हो गया। विश्वास से भरपूर भगत सिंह के शब्द थे, कि ‘‘मैं अपने देश के करोड़ों लोगों की ‘इंकलाब जिंदाबाद’ की हुंकार सुन पा रहा हूँ। काल-कोठरी की मोटी दीवारो के पीछे बैठे हुए भी मुझे कहै कि यह नारा हमारे स्वतंत्राता संघर्ष को प्रेरणा देता रहेगा।’’ इस पुस्तक में प्रस्तुत है इसका प्रथमद्रष्टया विवरण।
ISBN: 9788126719075
Pages: 251
Avg Reading Time: 8 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: अंतर्वस्तु यह उपन्यास एक ऐसे राजवंश से संबंधित है, जो सम्राट् पृथ्वीराज चौहान केवंशज रहे। पानीपत की पहली लड़ाई के दौरान परिस्थितिवश उन्हें इसलाम स्वीकार करना पड़ा, लेकिन सगोत्रियों तथा अपने पूर्वजों के संस्कारों पर उनकी आस्था यथावत् बनी रही; ठीक वैसे ही, जैसे इंडोनेशिया के निवासी पंथ बदलने के बाद भी अपने पूर्वजों की संस्कृति पर आज भी आस्था रखते हैं। रामकथा लगभग संपूर्ण एशिया की आस्था का केंद्र रही है और आज भी इसमें इस पूरे क्षेत्र को एकता केसूत्र में पिरोने की अद्भुत क्षमता है। अयोध्या में भव्य राम-मंदिर के निर्माण ने इस आस्था को और अधिक बलवती किया है। ‘पंथ बदलने पर भी हम अपनी संस्कृति से बँधे रहते हैं’ यह भाव इस ऐतिहासिक उपन्यासका प्राण-तत्त्व है। यह ऐतिहासिक उपन्यास अपने तरीके से भारतीय संस्कृति की जिजीविषा की अनूठी कहानी एक अनूठे अंदाज में प्रस्तुत करता है। यह कहानी खंड-खंड से प्रचंड शक्ति बनने की कहानी है। यह अंधकार को चीरकर प्रकाश का नया सूरज उगाने की कहानी है। यह अनेक रोचक ऐतिहासिक तथ्यों का उद्घाटन भी करता है, जो भारतीय इतिहास को नए दृष्टिकोण से देखने का कुतूहल पैदा करता है। यह अनेक उलझी हुई समस्याओं के समाधान के रास्ते भी सुझाता है।
An Account of the Maithil Marriage
- Author Name:
Pt. Bhavnath Jha
- Book Type:

- Description: Maharajadhiraja Rameshwar Singh (16 January 1860 – 3 July 1929) was the 21st ruler of the Khandawala dynasty of Darbhanga in the Mithila region from 1898 till his death. On the one hand, he was a scholar of Indian scriptures and worshiper of divine powers, on the other hand, he was proficient in the English language and an efficient administrator. As the president of Bharat Dharma Mahamandal, he propagated Sanatan Dharma all over India and strengthened it socially and religiously. For the promotion of education in Mithila as well as social political awakening, he established a press and started a newspaper Mithila Mihir. Many important books were published under his supervision. Maharaj Rameshwar Singh established many factories for economic development and played an important role in the establishment of Kashi Hindu University. The ruins of the grand palace of Rajnagar in the present Madhubani district and many grand temples in that complex remind us of his glory. He was made a Knight Commander of the Order of the Indian Empire (KCIE) and was promoted to a Knight Grand Commander (GCIE) and a Knight Commander of the Order of the British Empire, Civil Division (KBE).
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