Jeene Ke Bahaane
Author:
Prabhash JoshiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Media0 Reviews
Price: ₹ 479.2
₹
599
Available
प्रभाष जोशी ने ‘जीने के बहाने’ में अपने समय के चर्चित व्यक्तित्वों के चरित्र और विचार का दो टूक विश्लेषण किया है। जिन व्यक्तित्वों ने इतिहास की धारा को सही दिशा में ले जाने की कोशिश की है, प्रभाष जोशी ने ऐसे ऐतिहासिक व्यक्तित्वों के अवदान का रेखांकन किया है। कुछ व्यक्तित्व ऐसे हैं जिन्होंने अपनी वैचारिक विसंगतियों से इतिहास के प्रवाह में गतिरोध पैदा करने का प्रयास किया है, प्रभाष जी ने उनकी ख़बर ली है।</p>
<p>प्रभाष जोशी लिखते हैं : “ये व्यक्तिचित्र नहीं हैं। जीवनियाँ भी नहीं हैं, और तो और, संस्मरण भी नहीं हैं। जैसे गांधी के साथ मेरे क्या संस्मरण हो सकते हैं। दिल्ली में जब नाथूराम गोडसे ने उनको गोली मारी तो मैं इन्दौर में दस बरस का था। माताराम कहती हैं कि उन्होंने मुझे गांधी जी को दिखाया था। तब वे हिन्दी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता करने इन्दौर आए थे। लेकिन तब मैं साल-भर का था और कहना कि उन्हें मैंने देखा, गप्प लगाना होगा। लेकिन इस पुस्तक की शुरुआत ही गांधी पर लिखे लेख से होती है। और तीन निबन्ध हैं जिन पर लिखा है, वे सार्वजनिक जीवन के लोग हैं।...जिन-जिन रूपों और तरीक़ों से कोई हमारे जीवन में जा सकता है, उन्हीं रूपों और तरीक़ों, में मैंने उनको जिया और याद रखा है। ये बहाने हैं जिनके कारण मैं जीता हूँ।”</p>
<p>पुस्तक में जिन व्यक्तित्वों पर प्रभाष जी ने लिखा है, वे जीवन और समाज के विविध क्षेत्रों के लोग हैं। उनमें कुछ अन्य प्रमुख नाम हैं : विनोबा, जेपी, ज्ञानी जैलसिंह, के.आर. नारायणन, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चन्द्रशेखर, नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी, मधु लिमये, सोनिया गांधी, रामनाथ गोयनका, राहुल बारपुते, एस. मुलगावकर, रामविलास शर्मा, त्रिलोचन, गिरिजा कुमार माथुर, धर्मवीर भारती, हरिशंकर परसाई, वी.एस. नॉयपाल, अरुंधती राय, सत्यजित राय, लता मंगेशकर, जे.आर.डी. टाटा, राधाकृष्ण, सिद्धराज ढड्ढा, सी.के. नायडू, गावसकर, तेंदुलकर, नवरातिलोवा आदि।
ISBN: 9788126716333
Pages: 480
Avg Reading Time: 16 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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यानी अगर आपने इतने शब्दों की जानकारी हासिल कर ली तो यक़ीन मानिए, आप भाषा के लिहाज़ से हिन्दी के अच्छे टेलीविज़न पत्रकार तो ज़रूर बन जाएँगे। अफ़सोस की बात है कि ये जानकारी भी टेलीविज़न पत्रकारों को भारी लगती है। शब्दों की सही समझ की कमी, भाषा के आधे–अधूरे ज्ञान की वजह से टेलीविज़न पत्रकार ऐसी ग़लतियाँ कर बैठते हैं कि कई बारगी मज़ाक़ का पात्र तक बन जाते हैं। यही नहीं, शब्दों के ग़लत इस्तेमाल से अर्थ का अनर्थ तक हो जाता है। इसलिए पत्रकारिता के लिहाज़ से भाषा की सही जानकारी बेहद ज़रूरी है।
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आज आम शिकायत यह है कि सम्पादक नाम की संस्था का लोप हो रहा है। जहाँ वह मौजूद है, वहाँ या तो प्रतीकात्मक है या उसके कार्य-अधिकार, विवेक और निर्णय का दायरा घटता जा रहा है। वैश्वीकरण की अदम्य आँधी ने समाचार-पत्रों को भी एक बाज़ार की वस्तु का रूप ग्रहण करने के लिए बाध्य कर दिया है। ऐसी स्थिति में समाचार-पत्रों में प्रबन्धन की महत्ता और महिमा निरन्तर बढ़ती जा रही है।
समाचार-पत्र का एक व्यावसायिक वस्तु बनकर रह जाना दर्दनाक हादसा है। बाज़ारजनित दृष्टिकोण के कारण समाज में समाचार-पत्र के स्थान, सम्मान और विश्वसनीयता में परिवर्तन की प्रक्रिया धीरे-धीरे चल रही है।
इस माहौल में समाचार-पत्र प्रबन्धन के सम्बन्ध में एक ऐसी परिपक्व दृष्टि की ज़रूरत है जो बाज़ार की बढ़ती हुई ताक़त की व्यावहारिक ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए उन बुनियादी मूल्यों पर अडिग रहने की कला, दृष्टि और शक्ति दे, जिसके कारण समाचार-पत्रों ने लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का दर्जा पाया है। पत्रकारिता के पुरोधा गुलाब कोठारी की इस पुस्तक से यह सब मिल सकेगा, ऐसा विश्वास है।
Patkatha Lekhan : Vyavaharik Nirdeshika
- Author Name:
Asghar Wajahat
- Book Type:

- Description: फ़िल्मों और टी.वी. के सर्वाधिक लोकप्रिय कार्यक्रम, धारावाहिक के लिए पटकथा अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त डाक्यूड्रामा और डाक्यूमेंट्री फ़िल्मों के लिए भी दृश्य-श्रव्य केन्द्रित लेखन आवश्यक है। फ़िल्म और टेलीविज़न के व्यापक होते क्षेत्र में शिक्षापरक/ज्ञानपरक मल्टीमीडिया कार्यक्रम भी आकर जुड़ गए हैं। ज्ञान और शिक्षा के अपार भंडार को दृश्य-श्रव्य माध्यम से उपलब्ध कराने की चुनौती भारत सरकार के मानव-संसाधन मंत्रालय के अतिरिक्त अनेक अन्य संगठनों ने ली है। प्रोग्राम प्रोडक्शन के क्षेत्र में यदि अभाव है तो पटकथा लेखकों का है। इसके कई कारण हैं। प्रोग्राम प्रोडक्शन सम्बन्धी तकनीकी प्रशिक्षण देने की तुलना में पटकथा-लेखन के पाठ्यक्रम बहुत कम हैं। जिन संस्थानों में पटकथा-लेखन के कार्यक्रम चलाए जाते हैं, वहाँ प्रायः अच्छे शिक्षकों की कमी बनी रहती है और यह भी ज़रूरी नहीं है कि अच्छा पटकथा लेखक अच्छा शिक्षक भी हो। प्रस्तुत पुस्तक में सिनेमा के इतिहास, सैद्धान्तिकी और समीक्षा इत्यादि पर कोई चर्चा नहीं की गई है, क्योंकि पुस्तक का उद्देश्य पटकथा के व्यावहारिक पक्ष को सामने लाना है। यह पुस्तक पटकथा-लेखन में रुचि लेनेवाले विद्यार्थियों तथा अन्य सभी पाठकों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकती है। इस व्यावहारिक निर्देशिका में पटकथा के एक-एक बिन्दु की चर्चा की गई है। पुस्तक का उद्देश्य है कि इसके माध्यम से पटकथा-लेखन की तकनीक सीखी जा सके।
Bhojpuri Sanskar geet Aur Prasar Madhyam
- Author Name:
Shailesh Shrivastva
- Book Type:

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Description:
लोकगीत माटी की महक हैं, संस्कारों के स्वर हैं, अन्तर की आवाज़ हैं। इनकी पूरी व्यापक धरोहर श्रव्य परम्परा में सिमटी हुई है। शैलेश जी ने लुप्त होते लोकगीतों को सुरक्षित रखने और इनके संरक्षण हेतु स्तुतनीय प्रयास किया है। वह स्वयं एक जानी-मानी गायिका हैं। कुछ लोकगीतों की स्वरलिपि व सी.डी. देने से पुस्तक का महत्त्व और बढ़ गया है।
—गोपाल चतुर्वेदी
इस पुस्तक में संस्कार सम्बन्धी उत्सवों के अवसरों पर गाए जानेवाले भोजपुरी लोकगीतों का सामाजिक मूल्यांकन तथा उनके संरक्षण और प्रचार-प्रसार में संचार माध्यमों विशेषकर दूरदर्शन, आकाशवाणी की भूमिका पर एक संक्षिप्त अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। कुछ लोकगीतों की स्वरलिपियाँ व धुनों की सी.डी. संलग्न हैं, जो संरक्षण की दिशा में एक सार्थक प्रयास है।
—डॉ. विद्याविन्दु सिंह
शैलेश इन लोकगीतों को गाती नहीं, जीती हैं। इसलिए आधुनिकता के नाम पर लोकगीतों के विकृत स्वरूप उन्हें पीड़ा देते हैं। उनकी यह पुस्तक इस विकृति को समझने की उनकी एक सार्थक कोशिश है।
—विश्वनाथ सचदेव
शैलेश श्रीवास्तव पिछले अनेक वर्षों से बिना अपनी दुंदुभी बजाए हुए हिन्दी के लोकसंगीत प्रेमियों के बीच पाश्चात्य संस्कृति के अन्धानुकरण के चलते अपनी जड़ों से उखड़ लगभग विलुप्ति के कगार पर आ खड़े हुए संस्कार गीतों की जन-मानस में पुनर्प्रतिष्ठा के लिए प्रयत्नशील हैं। बच्चे के जन्म पर गाए जानेवाले सोहर से लेकर मुंडन, छेदन, घुड़चढ़ी, लगुन भाँवरे; झूला (सावन), होली (फाग), टोना, नजर, सगुन, चैती, ठुमरी आदि सभी को उन्होंने अपना कंठ ही नहीं दिया है, बल्कि सुदूर गाँव-जवार के ओने-कोने की यात्राएँ कर उन्हें बड़ी-बूढ़ियों की कंठस्थ संचित पूँजी से बीन-चुन अपनी संगीत मंजूषा को निरन्तर समृद्ध भी किया है। प्रस्तुत शोध पुस्तक ‘भोजपुरी संस्कार गीत और प्रसार माध्यम’ उनकी श्रम-साध्य मेहनत का ही नतीजा है।
—चित्रा मुद्गल
Patrakarita Mein Anuwad
- Author Name:
Priyadarshan
- Book Type:

- Description: अनुवाद की बात आते ही हमें दो भाषाओं का परिदृश्य ध्यान में आता है। अनुवाद की ज़रूरत केवल दो भाषाओं के सन्दर्भ में ही हो ऐसा ज़रूरी नहीं है। अनुवाद के कई ऐसे आयाम होते हैं जिन पर हम आम तौर पर ग़ौर नहीं करते। दो विरोधी दर्शन और विचार रखनेवालों के बीच संवाद के लिए भी अनुवाद की ज़रूरत होती है। अनुवाद के ऐसे ग़ैर-पारम्परिक अर्थ और प्रसंग को छोड़ भी दें तो भी पत्रकारिता के क्षेत्र में अनुवाद का अहम स्थान है।हिन्दी के प्रति प्रेम राष्ट्र-गौरव की भावना आत्म-सम्मान जैसे सराहनीय और वांछनीय आदर्शों के सशक्त हिमायती होने के बावजूद इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अख़बारों द्वारा अन्तरराष्ट्रीय परिदृश्य के निरन्तर अद्यतन और सही ढंग से अंकन के लिए अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद की ज़रूरत अभी भी बरकरार है। अनुवाद की कला कठिन है क्योंकि दो भिन्न भाषाओं की अभिव्यक्ति शैली भी भिन्न होती है। हर भाषा का एक अपना चरित्र होता है और उस चरित्र के कारण भाषा की शैली की विशिष्टता होती है। विद्वान लेखकों द्वारा तैयार इस पुस्तक के ज़रिए इस कला को विस्तार देने और सँवारने की कोशिश की गई है। पत्रकारिता से जुड़े हर व्यक्ति के लिए यह उपयोगी पुस्तक है।
Kahne Ko Bahut Kuchh Tha
- Author Name:
Prabhash Joshi
- Book Type:

- Description: प्रभाष जोशी की इस पुस्तक में उनके सम्पूर्ण लेखन से चुनकर प्रतिनिधि लेखों का संग्रह किया गया है। वे एक समाजधर्मी पत्रकार थे जिन्होंने अपने समय के बनते इतिहास का दो टूक विश्लेषण किया। उसके साथ ही अपने सक्रिय वैचारिक पहल से समकालीन इतिहास को बनाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज के समय में ऐसे पत्रकार और समाज चिन्तक की कमी एक गतिरोध और यथास्थिति का माहौल बना रही है। ऐसे में प्रभाष जोशी के ये लेख एक नई पहल के लिए प्रेरित करते हैं। पुस्तक में इन अध्यायों के अन्तर्गत लेख रखे गए हैं, उनके शीर्षक हैं : ‘पत्रकारिता है सदाचारिता’, ‘अपनी हिन्दी का हाल’, ‘शिखरों के आसपास’, ‘राजमंच का नेपथ्य’, ‘खेल का सौन्दर्यशास्त्र’ तथा ‘बार-बार लौटकर जाता हूँ नर्मदा’। ये शीर्षक ही पुस्तक में संकलित लेखों के कथ्य बयान कर देते हैं। एक बार फिर से प्रभाष जोशी को पढ़ना आपको इस मुश्किल समय से नए सिरे से परिचित कराएगा। सामाजिक बदलाव की पहल के लिए प्रेरित करेगा।
Reporter On The Ground
- Author Name:
Parimal Kumar
- Book Type:

- Description: ग्राउंड रिपोर्टिंग पत्रकारिता की बुनियाद है। साफ़-सुथरी और तथ्यपरक रिपोर्ट के बिना ऐसी पत्रकारिता सम्भव नहीं है जिसे लोकतंत्र का चौथा खम्भा कहा जाता रहा है। रिपोर्टिंग जितना अनुशासन की माँग करती है उतना ही अभ्यास की; यह जितना तैयारी की माँग करती है उतना ही तकनीक की। इसके लिए सजगता जितनी ज़रूरी है, सचाई भी उतना ही ज़रूरी है। वास्तव में, करियर के अन्य बहुतेरे माध्यमों की तरह रिपोर्टिंग भी जितनी कला है उतना ही विज्ञान भी है। इसकी अपनी बारीकियाँ हैं, अपना ग्रामर है जिनसे वाक़िफ़ हुए बिना पत्रकारिता के मैदान में उतरना लाइफ़ जैकेट पहने बिना किसी तूफ़ानी नदी के प्रवाह में कूदने जैसा हो जाता है। लेकिन पत्रकारिता का कोई छात्र यह बारीकी, यह ग्रामर कहाँ से जाने? इसी सवाल से जाने-माने रिपोर्टर परिमल कुमार के रू-ब-रू होने का नतीजा है यह किताब। ‘रिपोर्टर ऑन द ग्राउंड’ में सैद्धान्तिक के मुक़ाबले रिपोर्टिंग के व्यावहारिक पहलुओं पर ज़ोर दिया गया है। बेशक इसमें सैद्धान्तिक पहलू छोड़े नहीं गए हैं लेकिन परिमल ने रिपोर्टिंग के अपने लम्बे अनुभवों को आधार बनाकर ऐसा सिलसिलेवार पाठ तैयार किया है जिसे रिपोर्टिंग का ‘प्रैक्टिकल गाइड’ कहा जा सकता है।
Patkatha Lekhan : Vyavaharik Nirdeshika
- Author Name:
Asghar Wajahat
- Book Type:

- Description: फ़िल्मों और टी.वी. के सर्वाधिक लोकप्रिय कार्यक्रम, धारावाहिक के लिए पटकथा अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त डाक्यूड्रामा और डाक्यूमेंट्री फ़िल्मों के लिए भी दृश्य-श्रव्य केन्द्रित लेखन आवश्यक है। फ़िल्म और टेलीविज़न के व्यापक होते क्षेत्र में शिक्षापरक/ज्ञानपरक मल्टीमीडिया कार्यक्रम भी आकर जुड़ गए हैं। ज्ञान और शिक्षा के अपार भंडार को दृश्य-श्रव्य माध्यम से उपलब्ध कराने की चुनौती भारत सरकार के मानव-संसाधन मंत्रालय के अतिरिक्त अनेक अन्य संगठनों ने ली है। प्रोग्राम प्रोडक्शन के क्षेत्र में यदि अभाव है तो पटकथा लेखकों का है। इसके कई कारण हैं। प्रोग्राम प्रोडक्शन सम्बन्धी तकनीकी प्रशिक्षण देने की तुलना में पटकथा-लेखन के पाठ्यक्रम बहुत कम हैं। जिन संस्थानों में पटकथा-लेखन के कार्यक्रम चलाए जाते हैं, वहाँ प्रायः अच्छे शिक्षकों की कमी बनी रहती है और यह भी ज़रूरी नहीं है कि अच्छा पटकथा लेखक अच्छा शिक्षक भी हो। प्रस्तुत पुस्तक में सिनेमा के इतिहास, सैद्धान्तिकी और समीक्षा इत्यादि पर कोई चर्चा नहीं की गई है, क्योंकि पुस्तक का उद्देश्य पटकथा के व्यावहारिक पक्ष को सामने लाना है। यह पुस्तक पटकथा-लेखन में रुचि लेनेवाले विद्यार्थियों तथा अन्य सभी पाठकों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकती है। इस व्यावहारिक निर्देशिका में पटकथा के एक-एक बिन्दु की चर्चा की गई है। पुस्तक का उद्देश्य है कि इसके माध्यम से पटकथा-लेखन की तकनीक सीखी जा सके।
Photo Patrakarita
- Author Name:
Dhananjai Chopra
- Book Type:

- Description: हमारा समय विजुअल कम्युनिकेशन यानी दृश्य संचार का समय है। वास्तविक दुनिया हो या आभासी दुनिया, हर तरफ छवियां ही छवियां हैं। कास्टिंग के लगभग सारे उपक्रम यानी प्रिंटकास्ट, ब्रॉडकास्ट, टेलीकास्ट, वेबकास्ट और ह्यूमनकास्ट अनायास ही छवियों के अधिकाधिक प्रयोग की होड़ में शामिल हो गए हैं। संचार के क्षेत्र में छवियों यानी दृश्यों के इस तरह प्रयोग से जन-संप्रेषण की दुनिया में बड़ा बदलाव आया है। इस बदलाव का कारण बना, हमारे मोबाइल फोन में कैमरे का आ जाना। इक्वींसवीं सदी के प्रारंभ से ही लोगों ने अपने आसपास के दृश्यों को सहेजना शुरू कर दिया था। दृश्यों के माध्यम से जन इतिहास का लिखा जाना यह बता रहा था कि आने वाले समय में शब्दों से कहीं अधिक दृश्य पढ़े जाएंगे। हुआ भी यही, हमने एक ऐसे समाज की रचना कर ली है, जिसमें दृश्य संचार के बिना रह पाना मुश्किल हो रहा है। टेक्नोलॉजी के बलबूते बदलती दुनिया और बदलते समय में दृश्य संस्कृति विकसित हो रही है। दृश्य गढ़े जा रहे हैं, रचे जा रहे हैं, प्रस्तुत किए जा रहे हैं और पढ़े जा रहे हैं। अब से पहले इतने अधिक दृश्यों का आदान-प्रदान कभी नहीं हुआ था। दरअसल यह दृश्य विस्फोट यानी विजुअल एक्सप्लोजन का समय है। यह फोटोग्राफी और फोटो पत्रकारिता को सीखने, समझने, सहेजने और संचरित करने का अप्रतिम समय है।
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