
Anchalik Samwaddata
Author:
Suresh PanditPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Media0 Reviews
Price: ₹ 48
₹
60
Unavailable
लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण के बावजूद संचार के विकेन्द्रीकरण का मुद्दा अभी विमर्श का विषय नहीं बन सका है। इसके बिना लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण की सफलता भी आंशिक ही रहेगी। जब ज्ञान और सूचना को शक्ति माना जाता है तो भला केन्द्रीकृत सूचना-व्यवस्था से विकेन्द्रीकृत शासन-व्यवस्था की आशा कैसे की जा सकती है! जनता के क़रीब के शासकीय पायदानों अर्थात् पंचायतों, नगर पंचायतों, नगर निकायों और गाँवों तथा क़स्बों के समाचारों की महत्ता अख़बारों में बढ़े, तो ही विकेन्द्रित सत्ता का सही आभास हो पाएगा। राजधानी और बड़े शहरों की चमक-दमक-भरे समाचारों को उनका सही स्थान दिखा देने की ज़रूरत है। यह तभी सम्भव है जब कुशल आंचलिक संवाददाता ग्रामीण समाज और नवीन विकेन्द्रीकृत व्यवस्था पर केन्द्रित अच्छे समाचारों को प्रकाशन के लिए भेज सकें जिनमें लोगों के दिल की धड़कन सुनाई पड़े। इसके सामने राज्य और केन्द्र की सत्ता तथा शहर की चमकीली छवि भी फीकी पड़ जाएगी। इस परिप्रेक्ष्य में आंचलिक संवाददाता की मदद के लिए तैयार की गई यह पुस्तक बहुत प्रासंगिक है। निश्चय ही यह पुस्तक कुशल आंचलिक संवाददाता तैयार करने और उनके निरन्तर विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकेगी।
ISBN: Anchalik Samwaddata-Paper Back
Pages: 94
Avg Reading Time: 3 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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प्रभाष जोशी अपनी भूमिका में लिखते हैं :
“ ‘लुटियन के टीले का भूगोल’ में ऐसे कागद हैं जो मैंने राजनीति पर कारे किए। नई दिल्ली में जहाँ केन्द्र सरकार बैठकर काम करती है—वह लुटियंस हिल कहलाती है। वहाँ अंग्रेज़ राजधानी लाए, उसके पहले रायसीना गाँव था और जिस पर अंग्रेज़ों ने अपनी सरकार के बैठने के लिए भवन बनवाए, वह रायसीना की पहाड़ी कही जाती थी। लुटियन उस वास्तुशास्त्री का नाम था जिसने रायसीना पहाड़ी पर वायसराय की लॉज (जो अब राष्ट्रपति भवन है) नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक और उसके नीचे एसेम्बली (जो अब संसद भवन है) बनवाए। बाद में यह पूरा परिसर लुटियंस हिल कहलाने लगा। उज्जैन के विक्रम के टीले की तर्ज पर इसे मैंने लुटियन का टीला बना लिया—दोनों का अन्तर्विरोध और विडम्बना दिखाने के लिए। आज की राजनीति और सत्ता का केन्द्र यह लुटियन का टीला है।
लेकिन ये मेरे राजनीति पर लिखे लेख नहीं हैं। वे मैंने ‘जनसत्ता’ के सम्पादकीय पेज पर लिखे और यहाँ संकलित नहीं हैं। ‘कागद कारे’ में राजनीति के मानवीय और निजी पहलुओं को खोलने की कोशिश करता हूँ। इनमें उन दस सालों की सभी राजनीतिक घटनाओं और उनके नायक-नायिकाओं के मानवीय और निजी पक्षों को समझने की कोशिश की गई है। नरसिंह राव, सोनिया गांधी, चन्द्रशेखर, विश्वनाथ प्रताप सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवानी, मायावती आदि राजनीतिक व्यक्तित्वों को महज़ राजनीति के नज़रिए से नहीं देखा गया है। इनमें वे पहलू खोजे गए हैं जिनके बिना राजनीति नहीं होती। राजनीति के बिना लोकतंत्र नहीं हो सकता।”
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Description:
‘जब तोप मुकाबिल हो’ पुस्तक में प्रभाष जोशी के पत्रकारिता और मीडिया के दूसरे माध्यमों से सम्बन्धित लेखों के अलावा भाषा, अर्थ, जगत और महिलाओं से जुड़े लेख संकलित हैं। पुस्तक की भूमिका में प्रभाष जोशी लिखते हैं :
“ जब तोप मुकाबिल हो’ तो अख़बार निकालो’—ऐसा अकबर इलाहाबादी ने कहा है। आज लोग तोप का मुक़ाबला करने को अख़बार नहीं निकालते। वे पैसा और थोड़ा-बहुत पव्वा कमाने के लिए अख़बार निकालते हैं। इसलिए छापने के पैसे माँगने में भी उन्हें कोई हिचक नहीं होती। अपन ऐसी पत्रकारिता करने नहीं आए थे। आज़ादी के बाद के दूसरे दशक में लगता था कि पत्रकारिता समाज बदलने और नया समतावादी और न्याय आधारित समाज बनाने का एक माध्यम है। आज आप ऐसी बातें करें तो लोग हँसने लगते हैं। फिर भी नरसिंह राव के कहने पर मनमोहन सिंह जब सन् इक्यानबे में नवउदार आर्थिक व्यवस्था लाए तब तक भारतीय पत्रकारिता में समाज परिवर्तन की वाहक बनने की इच्छा थी। आज जो प्रवृत्तियाँ आप देख रहे और दुखी हो रहे हैं, वे सब इसके बाद की हैं।
लेकिन यहाँ जो लेख संकलित हैं, वे आज की पत्रकारिता की आलोचना में नहीं हैं। ये पत्रकारिता करने या उसे कॉलेजों में पढ़ानेवालों के लिए भी नहीं हैं। मुझे हमेशा लगता रहा कि पत्रकारिता करने और करके दिखाने की चीज़ है, उपदेश देने या सिखाने की नहीं। यह अपने काम की आत्मालोचन है और जो कर न पाए, उसका अफ़सोस भी। लेकिन यह पत्रकारिता को जनसम्पर्क अभियान या प्रकाशन उद्योग बना देने के विरुद्ध तो है ही। मुझे अब कोई पचास साल हो जाएँगे लेकिन कभी मुझे नहीं लगा कि पत्रकारिता बेकार का काम है। ऐसा होता तो अपने अख़बार में मैं लगातार लिखता नहीं रह सकता था—न दैन्यम् न पलायनम्!”
Patrakarita Ka Mahanayak : Surendra Pratap Singh
- Author Name:
Surendra Pratap
- Book Type:
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“तो ये थीं ख़बरें आज तक, इन्तज़ार कीजिए कल तक।” एसपी यानी सुरेन्द्र प्रताप सिंह के कई परिचयों में यह भी एक परिचय था। दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रम ‘आज तक’ के सम्पादक रहते हुए एसपी सिंह सरकारी सेंसरशिप के बावजूद जितना यथार्थ बताते रहे, उतना फिर कभी किसी सम्पादक ने टीवी के परदे पर नहीं बताया।
एसपी ‘आज तक’ के सम्पादक ही नहीं थे। अपने दमखम के लिए याद की जानेवाली ‘रविवार’ पत्रिका के पीछे सम्पादक सुरेन्द्र प्रताप सिंह की ही दृष्टि थी। ‘दिनमान’ की ‘विचार’ पत्रकारिता को ‘रविवार’ ने खोजी पत्रकारिता और स्पॉट रिपोर्टिंग से नया विस्तार दिया। राजनीतिक-सामाजिक हलचलों के असर का सटीक अन्दाज़ा लगाना और सरल, समझ में आनेवाली भाषा में साफ़गोई से उसका खुलासा करके सामने रख देना, उनकी पत्रकारिता का स्टाइल था। एक पूरे दौर में पाखंड और आडम्बर से आगे की पत्रकारिता एसपी के नेतृत्व में ही साकार हो रही थी।
शायद इसी वजह से उन्हें अभूतपूर्व लोकप्रियता मिली और कहा जा सकता है कि एसपी सिंह पत्रकारिता के पहले और आख़िरी सुपरस्टार थे। यह बात दावे के साथ इसलिए कही जा सकती है क्योंकि अब का दौर महानायकों का नहीं, बौने नायकों और तथाकथित नायकों का है। एसपी जब-जब सम्पादक रहे, उन्होंने कम लिखा। वैसे समय में पूरी पत्रिका, पूरा समाचार-पत्र, पूरा टीवी कार्यक्रम, उनकी ज़ुबान बोलता था। लेकिन उन्होंने जब लिखा तो ख़ूब लिखा, समाज और राजनीति में हस्तक्षेप करने के लिए लिखा।
जन-पक्षधरता एसपी सिंह के लेखन की केन्द्रीय विषयवस्तु है, जिससे वे न कभी बाएँ हटे, न दाएँ। इस मामले में उनके लेखन में ज़बर्दस्त निरन्तरता है। एसपी सिंह अपने लेखन से साम्प्रदायिक, पोंगापंथी, जातिवादी और अभिजन शक्तियों को लगातार असहज करते रहे। बारीक राजनीतिक समझ और आगे की सोच रखनेवाले इस खाँटी पत्रकार का लेखन आज भी सामयिक है।
यह सुरेन्द्र प्रताप सिंह की रचनाओं का पहला संचयन है।
Itna To Yaad Hai Mujhe
- Author Name:
Bobby Sing
- Book Type:
- Description: क्या आप हिंदी सिनेमा और हिंदी फिल्म संगीत से दीवानगी की हद तक प्रेम करते हैं? यदि हाँ, तो यह पुस्तक आपके लिए ही है। इस पुस्तक के 51 अध्याय तीन भागों में विभाजित किए गए हैं। पहले भाग में नब्बे के दशक से पहले की हिंदी फिल्मों के तथ्यों के बारे में विवरण दिया गया है अर्थात् भारत में केबल टीवी क्रांति से पहले। दूसरा भाग दोनों काल के मध्य की कड़ी/लिंक पर आधारित है और तीसरा नब्बे के दशक के बाद की फिल्मों और हमारे वर्तमान सिनेमा पर। पुस्तक के कुछ खास विषय हैं— ** चिरकालिक ‘गाइड’ और इसका अंग्रेजी संस्करण ** ‘डिस्को डांसर’ की अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि के बारे में कुछ अनकहे तथ्य ** 1989 में म्यूजिक एलबम ‘लाल दुपट्टा मलमल का’ से लिपटा रहस्य ** उत्पल दत्त—जो सिर्फ एक कॉमेडियन नहीं थे ** ‘सिलसिला’ और ‘रब ने बना दी जोड़ी’ को जोड़नेवाला तथ्य ** हिंदी फिल्म संगीत से पहेली-आधारित गीतों की गुम हो चुकी कला।
Sirf Patrakarita
- Author Name:
Dr. Ajay Kumar Singh
- Book Type:
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Description:
नई सदी की पत्रकारिता के समक्ष विभिन्न चुनौतियाँ हैं। मिशन पत्रकारिता का स्थान पेशेवर पत्रकारिता ने लिया है। ऐसे में वही समाचार-पत्र, मीडिया हाउस और संवाददाता अपने को स्थापित कर पाएगा, जो प्रशिक्षण के साथ-साथ अत्याधुनिक तकनीकों में दक्ष होगा। पत्रकारिता के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन के कारण प्रशिक्षण की आवश्यकता अनिवार्य हो चुकी है। वर्तमान में युवा पीढ़ी काफ़ी संख्या में पत्रकारिता का प्रशिक्षण ले रही है। यह पुस्तक पत्रकारिता के क्षेत्र में युवा समुदाय की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर लिखी गई है।
इस पुस्तक में पत्रकारिता के स्वरूप, संचार प्रक्रिया तथा मॉडल, समाचार एवं उसके तत्त्व, तथा प्रिंट पत्रकारिता में समाचार सम्पादन, मुद्रण एवं पृष्ठ सज्जा, फ़ोटो पत्रकारिता, प्रेस सम्बन्धी क़ानून समेत पत्रकारिता के विविध आयामों को अत्यन्त सहज तरीक़े से समझाने का प्रयास किया गया है। पुस्तक में प्रिंट पत्रकारिता को भली-भाँति समझने के लिए पारिभाषिक शब्दावली भी दी गई है जो कि इसकी उपादेयता बढ़ाती है। यह पुस्तक विभिन्न विश्वविद्यालयों में पत्रकारिता में स्नातक (बी.जे.एम.सी.), स्नातकोत्तर (एम.जे.एम.सी.) कर रहे विद्यार्थियों के लिए समान रूप से उपयोगी सिद्ध हो, ऐसा प्रयास किया गया है।
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