Khel Patrakarita
Author:
Suresh Kaushik, Sushil DoshiPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Media0 Reviews
Price: ₹ 476
₹
595
Available
आजकल मीडिया में क्रिकेट इस क़दर छाया हुआ है कि वह खेल का पर्याय-सा बन गया है। सौभाग्यवश इस देश के कुछ हिस्सों में, कुछ व्यक्तियों में, और दुनिया के बहुत से देशों में दूसरे खेलों की लोकप्रियता खेल के व्यापक फलक को सही ढंग से उजागर करती है। खेल पत्रकारिता के लिए आप में एक अच्छे पत्रकार के सभी गुण होने चाहिए, परन्तु उसके अलावा खेल के क्षेत्र की विशिष्टताओं को ध्यान में रखते हुए कुछ और बातें भी ज़रूरी हैं। खेल पत्रकारिता केवल वर्णनात्मक नहीं है, उसमें विश्लेषण और मौलिकता के लिए भी एक बड़ा दायरा उपलब्ध रहता है। खेल अपने आप में तो दिलचस्प होता ही है, परन्तु समाचार-पत्रों में उसकी प्रस्तुति उसे और अधिक दिलचस्प बना देती है। खेल के रस और आनन्द को शब्दों के माध्यम से ऐसे पेश करना जिसमें खेल देखने से अधिक उसका समाचार पढ़ने में रस और आनन्द आए सफल खेल पत्रकारिता का मापदंड है।</p>
<p>अच्छी खेल पत्रकारिता के लिए ज़रूरी ज्ञान और कौशल देनेवाली यह पुस्तक उन सबके लिए उपयोगी है जो खेल के निरन्तर लोकप्रिय हो रहे क्षेत्र में अपनी पहचान बनाना चाहते हैं।
ISBN: 9788171198481
Pages: 135
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: ‘अनसोशल नेटवर्क’ किताब भारत के विशिष्ट सन्दर्भों में सोशल मीडिया का सम्यक् आकलन प्रस्तुत करती है। जनसंचार का नया माध्यम होने के बावजूद, सोशल मीडिया ने इस क्षेत्र के अन्य माध्यमों को पहुँच और प्रभाव के मामले में काफी पीछे छोड़ दिया है और यह दुनिया को अप्रत्याशित ढंग से बदल रहा है। इसने जितनी सम्भावनाएँ दिखाई हैं, उससे कहीं अधिक आशंकाओं को जन्म दिया है। वास्तव में राजनीति और लोकतंत्र से लेकर पारिवारिक और व्यक्तिगत सम्बन्धों तथा उत्पादों और सेवाओं की खरीद-बिक्री तक शायद ही कोई क्षेत्र होगा, जो सोशल मीडिया के असर से अछूता हो। यह एक ओर जनसंचार के क्षेत्र को अधिक लोकतांत्रिक बनानेवाला नजर आया तो दूसरी ओर इस क्षेत्र को प्रभुत्वशाली शक्तियों के हित में नियंत्रित करने का साधन भी बना है। ऐसे ही अनेक पहलुओं का विश्लेषण करते हुए यह किताब सोशल मीडिया की बनावट के उन अहम बिन्दुओं की शिनाख्त करती है जो इसे ‘अनसोशल’ बनाती हैं। यह किताब सोशल मीडिया के अध्येताओं के साथ-साथ इसके यूजरों के लिए भी खासी उपयोगी है।
Videsh Reporting : Siddhant Aur Vyavhar
- Author Name:
Ramsharan Joshi
- Book Type:

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Description:
दैनिक पत्रकारिता के विविध रूपी रिपोर्टिंग क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है विदेशी घटना एवं विशिष्ट व्यक्ति की विदेश यात्रा रिपोर्टिंग। विदेश मामलों और राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री जैसे अति विशिष्ट व्यक्तियों की राजकीय विदेश यात्राओं का दैनिक समाचार संकलन (रिपोर्टिंग) जितना आकर्षक है, उससे कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण है। सक्रिय पत्रकारिता क्षेत्र से सम्बद्ध औसत पत्रकार की इच्छा रहती है कि वह विदेश रिपोर्टिंग की बीट (क्षेत्र) से जुड़े। वह कूटनीतिक संवाददाता (डिप्लोमेटिक कॉरसपोंडेंट) बने। विशिष्ट व्यक्तियों की राजकीय यात्राओं का कवरेज करे। क्योंकि इससे एक विश्व उद्घाटित (वर्ल्ड एक्सपोजर) होता है। संवाददाता का अद्भुत अनुभवों और विश्व विभूतियों से साक्षात्कार होता है। विश्व स्तरीय घटनाओं (संयुक्त राष्ट्र महासभा अधिवेशन, गुटनिरपेक्ष आनन्द, राष्ट्र मंडलीय सम्मेलन आदि) के दैनिक कवरेज का उसे अवसर प्राप्त होता है। राष्ट्र की राजधानी दिल्ली में रहकर भी कूटनीतिक संवाददाता के रूप में उसे प्रतिदिन भारत सरकार के विदेश मंत्रालय, विदेशी दूतावासों तथा अन्य विदेशी संस्थानों की गतिविधियों की रिपोर्टिंग करनी होती है। सतह पर यह बीट जितनी आसान दिखाई देती है, वास्तव में उतनी है नहीं।
विदेश मामलों और वी.वी.आई.पी. यात्राओं की रिपोर्टिंग के लिए विशेष दक्षता की आवश्यक्ता होती है। क्योंकि अन्तरराष्ट्रीय मामलों, विदेशों के साथ भारत के बहुपक्षीय दौत्य सम्बन्धों और वैश्विक संगठनों की पर्याप्त जानकारी के बिना कूटनीतिक संवाददाता की भूमिका को प्रभावशाली ढंग से निभाना मुश्किल होता है। संक्षेप में, इस बीट का चरित्र काफ़ी संवेदनशील होता है। अन्तरराष्ट्रीय घटनाक्रम की रिपोर्टिंग में तथ्यात्मक त्रुटियों का बहुआयामी प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, भारत-पाक सम्बन्ध, भारत-अमेरिका सम्बन्ध, परमाणु निःशस्त्रीकरण प्रक्रिया जैसे मामलों की रिपोर्टिंग में व्यावसायिक दक्षता के साथ-साथ अतिरिक्त सतर्कता अपेक्षित है। प्रस्तुत पुस्तक में विदेश रिपोर्टिंग और विशिष्ट व्यक्तियों की राजकीय विदेश यात्राओं की कवरेज प्रक्रिया पर व्यावहारिक व तकनीकी दृष्टि से फोकस डाला गया है। विभिन्न उदाहरणों व घटनाओं के माध्यम से यह बतलाया गया है कि एक कूटनीतिक पत्रकार के लिए कौन-सी बातें आवश्यक हैं? वह किस प्रकार अपनी भूमिका को सफलतापूर्वक निभा सकता है? किस प्रकार अन्तराष्ट्रीय विषयों में व्यावसायिक दक्षता अर्जित की जा सकती है? समाचार संकलन की प्रक्रिया के दौरान क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए—लेखक ने पत्रकारिता के विद्यार्थियों की दृष्टि से इस विधि पर विस्तार से प्रामाणिक प्रकाश डाला है।
लेखक प्रो. रामशरण जोशी स्वयं एक वरिष्ठ पत्रकार व समाजविज्ञानी हैं। अपने दो दशकीय सक्रिय पत्रकारिता जीवन (1980-99) के दौरान उन्होंने देश के श्रेष्ठतम अख़बारों में से एक ‘नई दुनिया’ (इन्दौर) के दिल्ली ब्यूरो प्रमुख के रूप में राष्ट्रीय राजधानी में निरन्तर विदेश रिपोर्टिंग की है। उन्होंने गुटनिरपेक्ष आनन्द, राष्ट्रमंडलीय सम्मेलन, दक्षेस सम्मेलन तथा कई शिखर-वार्ताओं को कवर किया है। इसके अतिरिक्त देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री (डॉ. शंकरदयाल शर्मा, राजीव गांधी, इन्द्रकुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी आदि) जैसे अति विशिष्ट व्यक्तियों की सरकारी विदेश यात्राओं की भी व्यापक रिपोर्टिंग की है। लेखक ने नामीबिया को एक ‘स्वतंत्र राष्ट्र’ के रूप में जन्म लेते हुए देखा है। इसके साथ ही लेखक ने अख़बार की ओर से पाकिस्तान, श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान जैसे संवेदनशील राष्ट्रों की महत्त्वपूर्ण घटनाओं का भी कवरेज किया है। प्रस्तुत पुस्तक में प्रो. जोशी ने अपने प्रामाणिक अनुभवों के आधार पर विदेश रिपोर्टिंग विधि को व्यवहार से जोड़कर अपनी बात कही है। चूँकि लेखक पत्रकारिता अध्यापन (माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर व कार्यपालक निदेशक—1999-2004) से भी सम्बद्ध रहे हैं, अतः उन्होंने इस पुस्तक में विद्यार्थियों की शैक्षणिक अपेक्षाओं को ध्यान में रखा है।
TRP : Media Mandi Ka Mahamantra
- Author Name:
Mukesh Kumar
- Book Type:

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Description:
पिछले ढाई दशकों में टेलीविज़न की सामग्री बड़े पैमाने पर बदली है। ख़ासतौर पर न्यूज़ चैनलों का चरित्र बुनियादी रूप से बदल गया है। मीडिया संस्थानों के स्वामित्व में आया बदलाव, बड़े कार्पोरेट घरानों का बढ़ता नियंत्रण और हस्तक्षेप, बाज़ार का प्रभाव इसके प्रमुख कारण हैं। आर्थिक उदारवाद के दौर में सत्ता के चरित्र में आए परिवर्तनों का भी इसमें योगदान रहा है। सत्ता के निरंकुशतावादी स्वरूप ने एक आतंक भी पैदा किया है, जिसके सामने मीडिया को नतमस्तक होना पड़ा है।
कार्पोरेट तथा सत्ता के अपने गणित भी हैं और मीडिया को उनसे तालमेल बैठाने के लिए भी बाध्य होना पड़ा है। मगर जहाँ तक बाज़ार का सवाल है तो उसका सबसे बड़ा हथियार है विज्ञापन। वह विज्ञापनों पर भारतीय मीडिया की निर्भरता का लाभ उठाता है। इसके लिए उसके पास एक बहुत ही कारगर हथियार है–टीआरपी यानी टेलीविज़न रेटिंग पॉइंट।
टीआरपी दरअसल क्या है, वह क्यों है और न्यूज़ चैनलों की सामग्री को कैसे नियंत्रित और संचालित करती है, इस बारे में ठोस जानकारियाँ कम ही उपलब्ध हैं। यही नहीं, अत्यधिक चर्चाओं में रहने के बावजूद टीआरपी मापने की प्रणाली में क्या ख़ामियाँ हैं, उसमें कैसे धाँधली की जाती है और वह कितनी विश्वसनीय है, है भी या नहीं, इस बारे में सामग्री का अभाव रहता है, जबकि इन सब पहलुओं के बारे में जाने बगैर न टीआरपी को समझा जा सकता है और न ही बाज़ार के ऑपरेट करने के तरीक़े को। यह किताब टीआरपी के इन तमाम रहस्यों से परदा उठाती है।
यह सवाल भी बड़ी अहमियत रखता है कि टीवी न्यूज़ या न्यूज़ चैनल टीआरपी के दुष्चक्र से निकल सकते हैं या नहीं? इस पुस्तक में इन प्रश्नों पर विचार करके कुछ रास्ते सुझाने की कोशिश भी की गई है।
शैक्षणिक, अकादमिक और पत्रकारिता तीनों ही क्षेत्रों में सक्रिय लोगों के लिए तो पुस्तक उपयोगी है ही, वे पाठक भी इससे लाभ उठा सकेंगे जिनकी दिलचस्पी मीडिया में आई विसंगतियों या नई प्रवृत्तियों को जानने-समझने में रहती है।
Feature Lekhan : Swarup Aur Shilpa
- Author Name:
Manohar Prabhakar
- Book Type:

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Description:
माखनलाल चतुर्वेदी कवि थे, नाटककार थे, निबन्ध लेखक भी थे, अर्थात् उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं पर अपनी क़लम चलाई थी। वे देश की स्वतंत्रता के लिए लेखनी चलानेवाले एक अग्रणी पत्रकार भी थे। उनकी पत्रकारिता ने स्वतंत्रता आन्दोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। साहित्य और पत्रकारिता का यह संगम हमारी परम्परा में हमेशा रहा है। फिर भी यह दुर्भाग्य की बात है कि आजकल पत्रकारिता और साहित्य को दो अलग-अलग खाँचों में बाँटा जाता है। इस विभाजक रेखा को भी लाँघनेवाली विधाएँ हैं। उनमें से कुछ हैं—फ़ीचर, रिपोर्ताज, यात्रा-वृत्तान्त एवं संस्मरण।
इस पुस्तक के ज़रिए फ़ीचर लेखन के कौशल को सरल ढंग से पेश करने की कोशिश की गई है। उम्मीद है कि इससे पाठक साहित्य और पत्रकारिता की विभाजक रेखा को जोड़कर इन दोनों के सम्मिश्रण को नए सिरे से स्थापित कर सकेंगे। फ़ीचर लेखन जितनी अधिक मात्रा में होगा, उतनी ही मात्रा में साहित्य और पत्रकारिता को जनमानस में भी जुड़ा हुआ देखने की प्रवृत्ति विकसित होगी।
डॉ. मनोहर प्रभाकर ने, जो स्वयं उच्च कोटि के फ़ीचर लेखक रहे हैं और जिन्होंने ‘राजस्थान पत्रिका’, ‘नवज्योति’ एवं अन्य समाचार पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से अपने लेखन कौशल को पाठकों के सामने प्रस्तुत किया है, इस पुस्तक में अपने अनुभवों का सार इस ढंग से प्रस्तुत किया है कि उसे सरलता से व्यवहार में लाया जा सके।
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