Pighalti Dhoop Mein Saye
Author:
Amar KushwahaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
यह उपन्यास उस युवा वर्ग पर आधारित है जिसने ग्रामीण परिवेश के निम्न मध्यवर्गीय परिवार में संक्रमण के दौर में जन्म लिया और तेज़ी से बढ़ रहे भूमंडलीकरण के कारण बड़े सपने देखने लगा।</p>
<p>उत्तर भारत के राज्यों में आज भी 'बड़े सपने' का मतलब केवल 'भारतीय प्रशासनिक सेवा' में चयन होना है, ऐसा कहना बिलकुल भी ग़लत नहीं होगा। और इसी स्वप्न को पूरा करने की चाह में यह युवा वर्ग इस स्वप्न में इतना डूब जाता है कि कभी-कभी तो वह अपनी स्वयं की पहचान तक भूलने को विवश हो जाता है। वह मनुष्य न होकर मशीन जैसा होने लगता है और चयन के बाद संघर्ष के पथ में बिखरे अनेक क्षणों को बस देखता-सा रह जाता है।</p>
<p>यह कहानी एक ऐसे ही नायक की है, जो एक स्वप्न की पूर्ति के लिए कितने ही सपनों को तिलांजलि दे देता है, यहाँ तक कि अपने अन्तर्मन से भी कट जाता है।</p>
<p>टूटता घर, एकाकीपन, बेरोज़गारी, पारिवारिक महत्त्वाकांक्षा और ‘एक बड़े स्वप्न के बीच के मानसिक द्वन्द्व का चित्रण इस उपन्यास के महत्त्वपूर्ण पक्ष को दर्शाता है।
ISBN: 9788183619813
Pages: 192
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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जब पूर्वांचल में सूती-मिल की स्थापना हुई, तो लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सैकड़ों लोगों को छोटी-बड़ी नौकरियाँ मिलीं। रहने के लिए घर, बिजली-पानी आदि अनेक सुविधाएँ उन्हें प्राप्त हुईं। वे खुश थे। पर उनकी खुशी दीर्घकालिक न रह सकी। मिल अपने जीवन के दो दशक भी पूरे नहीं कर पाई और दम तोड़ दिया। लोग बेघर और बेरोज़गार हो गए। लोगों का परिवार बिखर गया। उन्हीं में एक परिवार पद्मिनी का भी था। उसके भी सपने टूटकर बिखर गए थे। उसी की कहानी से शुरू होता है, यह उपन्यास। पद्मिनी को किन्हीं कारणवश बहुत छोटी उम्र में ही माँ-बाप का घर छोड़कर नाना-नानी के साथ रहने के लिए विवश होना पड़ा था। उसके पिता मिल में अधिकारी थे। उनकी आय का एकमात्र स्रोत सूती-मिल जब बन्द हो गई, तब उसका परिवार एक गहरे संकट में पड़ गया। पद्मिनी की परेशानियाँ तब और भी बढ़ गई थीं।
पद्मिनी की कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, उसके साथ ही मिल से जुड़े अनेक चेहरे जैसे : दयालु चाचा, मार्कण्डेय भाई, राय साहब, संतोष, भीमसेन, आदि एक-एक कर किरदार बनकर खड़े होते जाते हैं। उनका संघर्ष, उनकी पीड़ा और उनके आँसू शब्द बनकर स्वयं ही कहानी रचने लगते हैं। उनकी कहानियाँ अनेक सवाल भी उठाती हैं : मिलों-कारखानों में मजदूरों के नाम पर चलाए जाने वाले आन्दोलन, क्या सचमुच उनके हित-साधक होते हैं? मरजादपुर सूती-मिल बन्द कराकर आखिर किसका फायदा हुआ? ...मजदूरों का? कर्मचारियों का? या पूर्वांचल के लोगों का? नहीं! इनमें से किसी का भी नहीं। हाँ, कुछ की तिजोरियाँ अवश्य भर गईं और कुछ लोगों की नेतागिरी भी खूब चमकी। किन्तु, जो जानें गईं, विकलांग हुए, परिवार उजड़े, उन सबका जिम्मेदार आखिर कौन है? क्या इन प्रश्नों के उत्तर ढूँढ़ने नहीं चाहिए?
Jai Baba Felunath
- Author Name:
Satyajit Ray
- Book Type:

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Description:
शरलक होम्स और जेम्स बॉण्ड की तरह ही सत्यजित राय के एक दुर्धर्ष पात्र हैं फेलूदा। जटिल से जटिल परिस्थितियों को परत-दर-परत खोलकर सच को सामने लाना उनका काम है। बांग्लाभाषी समाज की एक पूरी पीढ़ी फेलूदा के जासूसी कारनामों को पढ़-पढ़कर सयानी हुई है। आकर्षण कुछ ऐसा कि किशोरावस्था को पीछे छोड़ चुके प्रौढ़ पाठकों के बीच भी इसकी लोकप्रियता कम नहीं है।
‘जय बाबा फेलूनाथ’ सत्यजित राय के फेलूदा सीरीज़ का एक प्रतिनिधि उपन्यास है। आधुनिक हिन्दी साहित्य में रहस्य-रोमांच और जासूसी पर आधारित लेखन का श्रीगणेश भले ही हुआ हो, परवर्ती रचनाकारों की लिखी ऐसी मनमोहक कृतियाँ नहीं मिलतीं। सत्यजित राय की प्रस्तुत कृति का अनुवाद इस कमी को पूरा करने की दिशा में एक विनम्र प्रयास है जिस पर उनके द्वारा निर्मित फिल्म भी अत्यन्त लोकप्रियता हासिल कर चुकी है।
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