Rang Raachi
Author:
Sudhakar AdeebPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 280
₹
350
Available
मीराँ अपना एकतारा और खड़ताल हाथों में लेकर बिना किसी भूमिका के गा उठीं— “सिसोदिया वंश के राणा यदि मुझसे रूठ गए हैं तो मेरा क्या कर लेंगे?... मुझे तो गोविन्द का गुण गाना है।... राणा जी रूठकर अपना देश बाख लेंगे।” दूसरे शब्दों में, देश में व्याप्त कुप्रथाओं एवं रूढ़ियों की रक्षा कर लेंगे।...किन्तु “यदि हरि रूठ जाएँगे तो मैं कुम्हला जाऊँगी। अर्थात् मेरी भक्ति व्यर्थ चली जाएगी।”</p>
<p>“मैं लोक-लज्जा की मर्यादा को नहीं मानती।... मैं निर्भय होकर अपनी समझ का नगाड़ा बजाऊँगी!... श्याम नाम रूपी जहाज़ चलाऊँगी... इस तरह मैं इस भवसागर को पार कर जाऊँगी!... मीराँ अपने साँवले गिरधर जी की शरण में हैं तथा उनके चरणकमलों से लिपटी हुई हैं!...”</p>
<p>इस प्रकार मीराँ का यह सात्त्विक विद्रोह ही तो था। अपनी मान्यताओं के प्रति उनकी दृढ़ता का प्रतीक। तत्कालीन झूठी लोक-मर्यादाओं की बेड़ियाँ जो शताब्दियों से स्त्री के पैरों में स्वार्थी पुरुष ने विभिन्न नियम संहिताएँ रचकर अपने हितलाभ के लिए पहना रखी थीं। मीराँ चुनौती दे रही थीं, उस सामन्ती युग में स्त्रियों के सम्मुख कड़ी कुप्रथाओं, कुपरम्पराओं का। वह अपूर्व धैर्य के साथ सामना कर रही थीं लौह कपाटों के पीछे स्त्री को धकेलने और उसे पत्थर की दीवारों की बन्दिनी बनाकर रखने, पति के अवसान के बाद जीते जी जलाकर सती कर देने, न मानने पर स्त्री का मानसिक और दैहिक शोषण करने की पाशविक प्रवृत्तियों का। मीराँ का सत्याग्रह अपने युग का अनूठा एकाकी आन्दोलन था जिसकी वही अवधारक थीं, वही जनक थीं और वही संचालक। मीराँ ने स्त्रियों के संघर्ष के लिए जो सिद्धान्त निर्मित किए उन पर सबसे पहले वे ही चलीं।
ISBN: 9789352210169
Pages: 448
Avg Reading Time: 15 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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‘क़िस्सागो’ मारियो वार्गास ल्योसा के सबसे महत्त्वाकांक्षी उपन्यासों में से एक है। यह लातिन अमरीकी देश पेरु के एक प्रमुख आदिवासी समूह के इर्द-गिर्द घूमता है। आदिवासी जीवन-दृष्टि और हमारी आज की आधुनिक सभ्यता के बरक्स उसकी इयत्ता को एक बड़े प्रश्न के रूप में खड़ा करनेवाला यह सम्भवतः अपनी तरह का अकेला उपन्यास है। मिटने-मिटने की कगार पर खड़े इन समाजों के पृथ्वी पर रहने के अधिकार को इसमें बड़ी मार्मिक और उत्कट संवेदना के साथ प्रस्तुत किया गया है।
एक साथ कई स्तरों पर चलनेवाले इस उपन्यास में एक तरफ़ आधुनिक विकास की उत्तेजना में से फूटे तर्क-वितर्क हैं तो दूसरी तरफ़ नदी, पर्वत, सूरज, चाँद, दुष्ट आत्माओं और सहज ज्ञानियों की एक के बाद एक निकलती कथाओं का अनवरत सिलसिला है।
विषम परिस्थितियों से जूझते, बार-बार स्थानान्तरित होने को विवश, टुकड़ों-टुकड़ों में बँटे माचीग्वेंगा समाज को जोड़नेवाली, उनकी जातीय स्मृति को बार-बार जाग्रत् करनेवाली एकमात्र जीती-जागती कड़ी है ‘क़िस्सागो’ यानी ‘आब्लादोर’। यह चरित्र उपन्यास के समूचे फलक के आर-पार छाया हुआ है। इस उपन्यास का रचयिता स्वयं एक किरदार के रूप में उपन्यास के भीतर मौजूद है। वह और यूनिवर्सिटी के दिनों का उसका एक अभिन्न मित्र साउल सूयतास आब्लादोर की केन्द्रीय अवधारणा के प्रति तीव्र आकर्षण महसूस करते हैं, पर उसे ठीक-ठीक समझ नहीं पाते। वे एक दूसरे से अपने इस सबसे गहरे ‘पैशन’ को छुपाते हैं जो अन्ततोगत्वा उनके जीवन की अलग-अलग किन्तु आपस में नाभि-नाल सम्बन्ध रखनेवाली राहें निर्धारित करता है। एक उसमें अपने उपन्यास का किरदार तलाशता भटकता है तो दूसरा स्वयं वह किरदार बन जाता है। यह उपन्यास इस अर्थ में एक आत्मीय सहचर के लिए मनुष्य की अनवरत तलाश या भटकन की कथा भी
है।उपन्यास यथार्थ और मिथकीय, समसामयिक और प्रागैतिहासिक के ध्रुवीय समीकरणों को एक साथ साधने का सार्थक उपक्रम है। आज भारत में आदिवासी समाजों की स्थिति को लेकर चलती बहस के मद्देनज़र सम्भवतः यह उपन्यास हमारे लिए विशेष प्रासंगिक और महत्त्वपूर्ण हो उठता है।
YUG GEET USI KE GAYEGA
- Author Name:
Jai Shankar Mishra
- Book Type:

- Description: प्रस्तुत कविता-संग्रह ‘युग गीत उसी के गाएगा’ श्री जय शंकर मिश्र की काव्य-यात्रा का सप्तम सोपान है। इसमें कुल 101 कविताएँ एवं गीत सम्मिलित किए गए हैं। श्री मिश्र का संपूर्ण रचना संसार उनकी निजी अनुभूतियों का ही प्राकट्य है। सूक्ष्म संवेदनाओं की सलिल सरिता उनके अंतस में निरंतर प्रवहमान रही है। इसीलिए इनकी रचनाओं में जहाँ प्रकृति अपनी संपूर्ण विविधता एवं समग्रता के साथ प्रतिबिंबित होती हुई दृष्टिगोचर होती है, वहीं दूसरी ओर जीवन-जगत्, प्रीति-प्रणय, समाज-संबंध एवं जीवन के लौकिक-अलौकिक पक्षों की भी विविधवर्णी आभा विद्यमान है। श्री मिश्र की कविताओं में भाषा की सहजता, सरलता एवं सुगमता के साथ ही अंतर्निहित पारिवारिक एवं सामाजिक समरसता की महत्ता, युग-मंगल की कामना, जीवन के उद्देश्यों के प्रति सतत चिंतन तथा परिवेश की विविध जटिलताओं के बावजूद जीवन को सौंदर्यमय एवं शिवमय बनाने की बलवती भावना रचनाकार को एक विशिष्ट पहचान देती है। सकारात्मकता और आशावाद से परिपूर्ण ये काव्य रचनाएँ पाठकों को मानवीय मूल्यों और संबंधों का बोध कराएँगी और कुछ ऐसा कर गुजरने के लिए प्रेरित करेंगी कि ‘युग गीत उसी के गाएगा’।
Surkh Aur Syah
- Author Name:
Standhal
- Book Type:

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Description:
इस उपन्यास की शुरुआत में स्तान्धाल ने दांते की इस उक्ति को आदर्श वाक्य के रूप में दिया है, “सच; बस तल अपने पूरे तीखेपन के साथ...।” और फिर पूरा उपन्यास मानो इस पुरालेख का औचित्य सिद्ध करने में लगा दिया है। किसानी धूर्तता से भरा हुआ, नायक जुलिएं सोरेल का लालची बाप, भरे-पेट और चैन-भरे जीवन की चाहत रखनेवाले मठवासी, अपने ही देश पर हमले का षड्यंत्र रच रहे प्रतिक्रान्तिकारी अभिजात, अपने फ़ायदे के लिए पूणित अवसरवादी ढंग से राजनीतिक दल बदलते रहनेवाले रेनाल और वलेनो जैसे लोग उत्तर-नेपोलियनकालीन फ़्रांस में जारी घिनौने नाटक के लगभग सभी केन्द्रीय पात्र यहाँ मौजूद हैं।
आम तौर पर पूरा परिदृश्य नितान्त निराशाजनक है। इसके साथ ही वेरियेरे का औद्योगीकरण, मुद्रा की बढ़ती सर्वग्रासी शक्ति, बुर्जुआ नवधनिकों द्वारा पुराने अभिजातों की नक़ल की भौंडी कोशिशें, बे-ल-होत में मठ के पुनर्निर्माण के पीछे निहित प्रचारवादी उद्देश्य, जानसेनाइटों और जेसुइटों के झगड़े, जेसुइटों की गूँज सोसाइटी का सर्वव्यापी प्रभाव और धर्म सभा आदि के ब्योरों से स्तान्धाल ने इस उपन्यास में तत्कालीन फ़्रांस की तस्वीर को व्यापक फलक पर उपस्थित किया है।
जुलिएं सोरेल अपने ऐतिहासिक युग का एक विश्वसनीय प्रातिनिधिक चरित्र है जिसमें एक ही साथ, नायक और प्रतिनायक—दोनों ही के गुण निहित हैं। अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के लिए और उद्देश्यपूर्ति के लिए वह नैतिकता-अनैतिकता का ख़्याल किए बग़ैर कुछ भी करने को तैयार रहता है। यह खोखले और दम्भी-पाखंडी बुर्जुआ समाज के ऊँचे लोगों के प्रति उसके उस सक्रिय-ऊर्जस्वी व्यक्तिवादी व्यक्तित्व की नैसर्गिक प्रतिक्रिया है जो महज सामान्य परिवार में पैदा होने के चलते एक गुमनाम, मामूली और ढर्रे से बँधी ज़िन्दगी जीने के लिए तैयार नहीं है। वह उस समाज के विरुद्ध हर तरीक़े से संघर्ष करता है जहाँ महज कु़ल और सम्पत्ति के आधार पर पद, सम्मान और विशिष्टता हासिल हुआ करती है।
Yeh Kothewaliya
- Author Name:
Amritlal Nagar
- Book Type:

- Description: आज के भारतीय समाज में वेश्याओं के जीवन का हिन्दी या किसी भी अन्य भारतीय भाषा में, यह पहला विश्लेषणात्मक अध्ययन है। श्री अमृतलाल नागर ने बहुत समीप से और बहुत ही सहानुभूति से इस जीवन को देखा है, जिसे आम तौर पर रंगीन और ऐयाशी से पूर्ण समझा जाता है, लेकिन जो संघर्ष और निराशाओं से वैसे ही भरा है, जैसे कि अन्य सामान्य जीवन। इस अध्ययन में किसी उपन्यास से भी अधिक रोचकता है और सत्य पर आधारित होने के करण इसकी प्रमाणिकता अद्धितीय है। भारतीय समाज के अध्येताओं के लिए एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पुस्तक।
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