Pakwa-Inar Ke Bhoot
Author:
Ram Kathin SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 156
₹
195
Available
जब पूर्वांचल में सूती-मिल की स्थापना हुई, तो लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सैकड़ों लोगों को छोटी-बड़ी नौकरियाँ मिलीं। रहने के लिए घर, बिजली-पानी आदि अनेक सुविधाएँ उन्हें प्राप्त हुईं। वे खुश थे। पर उनकी खुशी दीर्घकालिक न रह सकी। मिल अपने जीवन के दो दशक भी पूरे नहीं कर पाई और दम तोड़ दिया। लोग बेघर और बेरोज़गार हो गए। लोगों का परिवार बिखर गया। उन्हीं में एक परिवार पद्मिनी का भी था। उसके भी सपने टूटकर बिखर गए थे। उसी की कहानी से शुरू होता है, यह उपन्यास। पद्मिनी को किन्हीं कारणवश बहुत छोटी उम्र में ही माँ-बाप का घर छोड़कर नाना-नानी के साथ रहने के लिए विवश होना पड़ा था। उसके पिता मिल में अधिकारी थे। उनकी आय का एकमात्र स्रोत सूती-मिल जब बन्द हो गई, तब उसका परिवार एक गहरे संकट में पड़ गया। पद्मिनी की परेशानियाँ तब और भी बढ़ गई थीं।<br>पद्मिनी की कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, उसके साथ ही मिल से जुड़े अनेक चेहरे जैसे : दयालु चाचा, मार्कण्डेय भाई, राय साहब, संतोष, भीमसेन, आदि एक-एक कर किरदार बनकर खड़े होते जाते हैं। उनका संघर्ष, उनकी पीड़ा और उनके आँसू शब्द बनकर स्वयं ही कहानी रचने लगते हैं। उनकी कहानियाँ अनेक सवाल भी उठाती हैं : मिलों-कारखानों में मजदूरों के नाम पर चलाए जाने वाले आन्दोलन, क्या सचमुच उनके हित-साधक होते हैं? मरजादपुर सूती-मिल बन्द कराकर आखिर किसका फायदा हुआ? ...मजदूरों का? कर्मचारियों का? या पूर्वांचल के लोगों का? नहीं! इनमें से किसी का भी नहीं। हाँ, कुछ की तिजोरियाँ अवश्य भर गईं और कुछ लोगों की नेतागिरी भी खूब चमकी। किन्तु, जो जानें गईं, विकलांग हुए, परिवार उजड़े, उन सबका जिम्मेदार आखिर कौन है? क्या इन प्रश्नों के उत्तर ढूँढ़ने नहीं चाहिए?
ISBN: 9788119133246
Pages: 160
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
बागी बलिया का कड़क लौंडा शिवेश वैलेंटाइन बाबा की मोहब्बत की मल्टी डायमेंशनल कम्पनी का फुल टाइम इम्प्लॉई है, जिसका एकमात्र धर्म है ‘काम’। ठीक इसके उलट है उसके बचपन का जिगरी यार, दिलदार, नाक की सीध में चलने वाला—मनीष, जिसकी सुबह है—सुजाता जिसका शाम है—सुजाता! जो ठीक-ठाक मॉडर्न है, थोड़ी स्टाइलिस्ट है, नई ज़बान में सेक्सी है, मस्ती की भाषा में बिन्दास है; लेकिन बलिया की यह ठेठ देसी लडक़ी कलेजे से ऐसी मज़बूत है कि अगर कोई उसे चिड़िया समझकर चारा चुगाने की कोशिश करने आगे बढ़े तो उसके इरादे का वह कचूमर बनाकर रख देती है। सुजाता की रूममेट है मोहिनी, जिसका दिल मोहब्बत के मीनाबाज़ार से बुरी तरह बेजार हो चुका है। लव-सव-इश्क़-विश्क की फ़िलॉसफ़ी को ठहाके में उड़ाती वह अक्सरहाँ कहने लगी है—जिसका जितना मोटा पर्स, वो उतना बड़ा आशिक़! सबकी ज़िन्दगी में कोई एक मक़सद है, सबको कुछ-न-कुछ मिलता है, लेकिन क्या ज़िन्दगी उन्हें वही देती है, जो वे चाहते थे?
चार नौजवान दिलों की हालबयानी है यह उपन्यास—‘वैलेंटाइन बाबा’! ढाई आखर वाले प्यार और वन नाइट स्टैंड वाले लस्ट की सोच का टकराव आख़िर किस मोड़ पर ले जाकर छोड़ेगा आपको, उपन्यास के आख़िरी पन्ने तक कायम रहेगा यह रहस्य! माना कि लाइफ़ में बहुत फ़ाइट है, सिचुएशन हर जगह, हर मोर्चे पर टाइट है तो क्या हुआ, दिल भी तो है! यक़ीनन, शशिकांत मिश्र का यह दूसरा उपन्यास बेलगाम बाज़ार की धुन पर ठुमकते हरेक दिल की ईसीजी रिपोर्ट है, इसे पढ़ना आईने के सामने होना है, जाने क्या आपको अपने-सा दिख जाए...!
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