Maai
Author:
Geetanjali ShreePublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
उत्तर प्रदेश के किसी छोटे शहर की बड़ी-सी ड्योढ़ी में बसे परिवार की कहानी। बाहर हुक्म चलाते रोबीले दादा, अन्दर राज करतीं दादी। दादी के दुलारे और दादा से कतरानेवाले बाबू। साया-सी फिरती, सबकी सुख-सुविधाओं की संचालक माई। कभी-कभी बुआ का अपने पति के साथ पीहर आ जाना। इस परिवार में बड़ी हो रही एक नई पीढ़ी—बड़ी बहन और छोटा भाई। भाई जो अपनी पढ़ाई के दौरान बड़े शहर और वहाँ से विलायत पहुँच जाता है और बहन को ड्योढ़ी के बाहर की दुनिया में निकाल लाता है। बहन और भाई दोनों ही न्यूरोसिस की हद तक माई को चाहते हैं, उसे भी ड्योढ़ी की पकड़ से छुड़ा लेना चाहते हैं।</p>
<p>बेहद सादगी से लिखी गई इस कहानी में उभरता है आज़ादी के बाद भी औपनिवेशिक मूल्यों के तहत पनपता मध्यवर्गीय जीवन, उसके दु:ख-सुख, और सबसे अधिक औरत की ज़िन्दगी। बग़ैर किसी भी प्रकार की आत्म-दया के। पर शिल्प की यह सादगी भ्रामक सादगी है। इसमें छिपे हैं कचोटते सवाल और पैनी सोच।</p>
<p>कहानी तो एक बहाना है बड़ी-बड़ी कहानियों तक ले जाने का। ‘माई’ में हर बात किसी संकेत से होती है, और हर संकेत के आगे-पीछे भरी-पूरी कहानी का आभास होता है। पर कहानी कही नहीं जाती। मानो बात को पकड़ पाना उसको झुठला देना है, उस पर अपनी नज़र थोप देना है।</p>
<p>असल में अपने देखे और समझे के प्रति शक को लेकर ‘माई’ की शुरुआत होती है। माई को मुक्त कराने की धुन में बहन और भाई उसको उसके रूप और सन्दर्भ में देख ही नहीं पाते। उनके लिए—उनकी नई पीढ़ी के सोच के मुताबिक—माई एक बेचारी भर है। वे उसके अन्दर की रज्जो को, उसकी शक्ति को, उसके आदर्शों को—उसकी आग को देख ही नहीं पाते। अब जबकि बहन कुछ-कुछ यह बात समझने लगी है, उसके लिए ज़रूरी हो जाता है कि वह माई की नैरेटर बने।
ISBN: 9788126708741
Pages: 168
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘महाभारत’ व्यास-कृत ‘महाभारत’ की सरल-संक्षिप्त प्रस्तुति—हिन्दी को निराला जी का एक विशिष्ट और अत्यन्त उपयोगी अवदान है।
यह पुस्तक विशेष रूप से उन लोगों के लिए लिखी गई है जो संस्कृत ज्ञान से वंचित हैं।
निराला की इस पुस्तक से सभी महत्त्वपूर्ण घटना-प्रसंग समाविष्ट हैं। अपने संवादों में सारे प्रमुख पात्र भी पूरी तरह मुखर हैं।
अठारह सर्गों की क्रमबद्ध कथा ऐसी सरल और प्रवाहमयी भाषा-शैली में प्रस्तुत की गई है कि मूल ग्रन्थ को नहीं पढ़ पाने के बावजूद उसके सम्पूर्ण घटनाक्रम और विशिष्ट भावना-लोक से पाठक का सहज ही गहरा रिश्ता बन जाता है।
Radheya
- Author Name:
Ranjeet Desai
- Book Type:

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Description:
‘कर्ण’ के जीवन की विडम्बनाएँ और उसके चरित्र की उदात्तता बार-बार आधुनिक रचनाकारों को आकर्षित करती रही हैं। उसका जीवन-चरित बार-बार नाटकों, खंड-काव्यों और उपन्यासों का विषय बनता रहा है। यह उपन्यास भी कर्ण के जीवन पर आधारित है।
ऐतिहासिक-पौराणिक कथानकों पर प्रभावशाली औपन्यासिक सृष्टि करने में सिद्धहस्त लेखक रणजीत देसाई ने अपनी इस कृति में कर्ण की एक व्यक्ति और एक परिस्थिति, दोनों रूपों में व्याख्या की है। माता-पिता के स्नेह से वंचित, सतत उपेक्षित और अपमानित कर्ण जीवन-भर किसी ऐसे अपराध की सज़ा भोगता रहता है, जिसमें वह कहीं शामिल नहीं था। क़दम-क़दम पर उससे उसकी जातिगत श्रेष्ठता का प्रमाण माँगा जाता है, जो वह नहीं दे पाता, जिसके कारण उसके व्यक्तित्व का प्राकृतिक तेज धूमिल पड़ जाता है। वह अकेला पड़ जाता है। ‘महाभारत’ के इतने विस्तृत फलक पर जिस तरह का अकेलापन कर्ण झेलता है, वह और कोई पात्र नहीं।
प्रस्तुत उपन्यास में गंगा के किनारे जाकर कर्ण को ध्यानस्थ होते देखना सचमुच उसे उस करुणा और सहानुभूति का अधिकारी बनाता है जिसे उसका देश-काल अपनी धार्मिक-सामाजिक सीमाओं के चलते नहीं दे पाया।
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