Data Peer
Author:
Hrishikesh SulabhPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
‘दाता पीर’ विविधताओं से भरे भारतीय समाज के ऐसे एक हिस्से से रू-ब-रू कराता है जो हमारी नजरों से लगभग ओझल रहा है।</p>
<p>यह सवाल अकसर पूछा जाता रहा है कि आधुनिक हिन्दी साहित्य में मुस्लिम जनजीवन की उपस्थिति इतनी विरल क्यों है, और अगर उसका उल्लेख होता भी है तो प्रायः साम्प्रदायिकता जैसे मसलों के साथ ही क्यों होता है। इस सन्दर्भ में ‘दाता पीर’ निश्चय ही एक उल्लेखनीय कृति है। इसमें मुजाविरों और शहनाई बजाने वाले एक घराने की कथा है जो, अपने आस-पड़ोस को समेटती हुई चलती है और आम भारतीय जनजीवन का आख्यान बनकर सामने आती है। यह उनके जीवन संघर्ष को उनकी धार्मिक पहचान तले नहीं दबाती, न ही कथा को मौजूदा दौर के बँधे-बँधाए विमर्श के खाँचे में फिट कर कोई ‘पॉलिटिकली करेक्ट’ फॉर्मूला पेश करती है। उपन्यासकार जीवन का सूत्र पकड़कर पाठक को विशाल भारतीय समाज के उन हिस्सों तक ले जाता है, और ऐसी सचाइयाँ दिखलाता है जिसे मौजूदा सामाजिक-राजनीतिक परिवेश पर तेजी से हावी हो रही संकीर्णता के कारण देख पाना आज आसान नहीं रहा।</p>
<p>इस उपन्यास में स्मृतियों की कई पेंचदार गलियाँ हैं जिनमें खानकाहों-दरगाहों-मज़ारों और पीर-फकीरों की कहानियाँ बिखरी पड़ी हैं तो मौसिकी के सदियों पुराने सिलसिले के सुर भी। साथ ही इसमें मौजूद हैं वर्तमान की ऐसी धड़कनें जहाँ कब्रिस्तान में भी प्रेम के बिरवे फूट पड़ते हैं।</p>
<p>वस्तुतः उपन्यासकार ने इस कृति में बिना किसी बड़बोलेपन के ऐसा एक अर्थगर्भी संसार रचा है जिसमें प्रवेश कर पाठक मनुष्य के जीवनानुभव को उसकी सम्पूर्णता में देख सकता है। यह उपन्यास बतलाता है कि जीवन का राग हो या विराग, अन्ततः एक मानवीय जीवनदृष्टि ही जीने की राह निर्मित करती है।</p>
<p>एक अत्यन्त पठनीय और संग्रहणीय उपन्यास।
ISBN: 9789392757112
Pages: 216
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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