Nishkasan
Author:
Doodhnath SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 396
₹
495
Available
...'दाँये देखना ठीक नहीं। 'गुरू जी ने कहा।'</p>
<p>और अगर दाँये गड्ढा-गुड्ढी हो तो गुरू जी?'</p>
<p>तो ज़्यादा बाँयें झुक जाओ।' गुरू जी बोले।</p>
<p>'और अगर उधर भी हो तो?'</p>
<p>'तो आगे-पीछे हो जाओ।'</p>
<p>'और आगे-पीछे भी हो तो?'</p>
<p>'तो सवाल यह होगा कि तुम उस सुरक्षित, विचारहीन जगह पर पहुँचे ही कैसे?' गुरू जी ने कहा।</p>
<p>'यही तो मेरी भी समझ में नहीं आता गुरू जी!'</p>
<p> </p>
<p>...'मान लीजिये आपकी बेटी है तब? मुफ़्ती की बेटी थी तब? तब तो सारा प्रशासन सिर के बल खड़ा हो गया था! अपहरण और आपूर्ति में ज़्यादा फ़र्क नहीं है पंडित जी! दोनों में अनिच्छित शोषण है। दोनों में हिंसा है। जबर्दस्त शारीरिक और मानसिक अपमान है। दोनों में बल-प्रयोग है, सिर्फ़ उसके तरीके में अन्तर है। दोनों में फिरौती है–एक में प्रत्यक्ष, दूसरे में परोक्ष। आप क्या समझते हैं, जो देवी जी वहाँ प्रतिष्ठित पद पर आसीन हैं और इस कुकर्म में लिप्त हैं उनका कोई निहित स्वार्थ नहीं होगा? सिर्फ़ एक घिनौने मज़े के लिए वे ऐसा करती होंगी?...लेकिन नहीं, किसी खटिक की बेटी होने का क्या मतलब? उसे नरक में डालो और हँसो। या उसे आपकी तरह 'अन्य मामलों' के घूरे पर डालकर रफ़ा-दफ़ा कर दो। 'महामहिम खाँसने लगे।'</p>
<p> </p>
<p>...कटुए, क्रिश्चियन और कम्यूनिस्ट, तीनों देशद्रोही हैं–अन्तत: यह उनका और उनकी पार्टी का खुला-छिपा राजनैतिक नारा है।</p>
<p> </p>
<p>...'यह कम्यूनिस्टों की साजिश है सर! 'कुलपति ने कहा। महामहिम ने पीछे खड़े अपने प्रमुख सचिव को देखा, जैसे कह रहे हों, उस दिन लॉन में टहलते हुए मैंने आपको बेकार ही डाँटा था।</p>
<p> </p>
<p>'ये फ़ाइल है सर।' कुलपति ने फ़ाइल प्रमुख सचिव की ओर बढ़ायी। 'नहीं, उसकी अब कोई ज़रूरत नहीं।' महामहिम ने हाथ के इशारे से मना किया।
ISBN: 9788171197392
Pages: 143
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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अब्दुल बिस्मिल्लाह बहुचर्चित और बहुमुखी प्रतिभा-सम्पन्न रचनाकार हैं। ‘झीनी-झीनी बीनी चदरिया’ उपन्यास के लिए इन्हें ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार' से भी सम्मानित किया जा चुका है।
‘समर शेष है’ अब्दुल बिस्मिल्लाह का आत्म-कथात्मक उपन्यास है। कथा-नाटक है, सात-आठ साल का मातृविहीन एक बच्चा, जो कि पिता के साथ-साथ स्वयं भी भारी विषमता से ग्रसित है। लेकिन पिता का असामयिक निधन तो उसे जैसे एक विकट जीवन-संग्राम में अकेला छोड़ जाता है। पिता के सहारे उसने जिस सभ्य और सुशिक्षित जीवन के सपने देखे थे, वे उसे एकाएक ढहते हुए दिखाई दिए। फिर भी उसने साहस नहीं छोड़ा और पुरुषार्थ के बल पर अकेले ही अपने दुर्भाग्य से लड़ता रहा। इस दौरान उसे यदि तरह-तरह के अपमान झेलने पड़े तो किशोरावस्था से युवावस्था की ओर बढ़ते हुए एक युवती के प्रेम और उसके ह्रदय की समस्त कोमलता का भी अनुभव हुआ। लेकिन इस प्रक्रिया में न तो वह कभी टूटा या पराजित हुआ और न ही अपने लक्ष्य को भूल पाया। कहने की आवश्यकता नहीं कि विपरीत स्थितियों के बावजूद संकल्प और संघर्ष के गहरे तालमेल से मनुष्य जिस जीवन का निर्माण करता है, यह कृति उसी की सार्थक अभिव्यक्ति है।
Kahi-Ankahi
- Author Name:
Dinanath Mishra
- Book Type:

- Description: "भारत उत्सवों का देश है। किसी का जन्म हो तो उत्सव, जन्म के एक साल बाद फिर जन्मोत्सव। आजकल जन्मदिन मनाने का बड़ा चलन है। पहले दिन पाठशाला जाने पर कई परिवार अक्षरोत्सव मनाते हैं। वसंतोत्सव भी मनता है। होली, दीवाली, दशहरा की बात ही छोडि़ए। ये सारे तो बड़े-बड़े उत्सव हैं ही। इन वर्षों में इश्कोत्सव भी मनाया जाता है। ‘वेलेंटाइन-डे’ को लेकर बड़े शहरों के बाजारों में बड़ा जोश दिखाई देता है। विवाहोत्सव की तो बात ही छोडि़ए। यह वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक उत्सव तो है ही, इससे भी कहीं बढ़कर है, क्योंकि यह आर्थिक उत्सव भी है। इस पर सैकड़ों उद्योग पलते हैं। बस एक उत्सव नहीं है, वह है मरणोत्सव। मगर सोचता हूँ—यह मरणोत्सव अभी तक उत्सव क्यों नहीं बना? बाजार का ध्यान इस तरफ क्यों नहीं गया? कुछ पश्चिमी और पूर्वी देशों में बाजार इस तरफ ध्यान दे रहा है। यह तो आपको मालूम ही है कि बाजार लग जाए तो क्या नहीं हो सकता? यह जो जीवन बीमा है, इसके बारे में सोचकर देखिए। अरबों-खरबों रुपए का यह व्यापार मृत्यु की आशंका पर ही टिका है। मृत्यु के आसपास अन्य उद्योग भी चल सकते हैं। शादी से तो फिर भी कुछ लोग बच निकलते हैं, मगर मरने से तो कोई बच ही नहीं सकता, अर्थात् इसका बाजार सबसे बड़ा है। —इसी संग्रह से प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री दीनानाथ मिश्र को अपनी विशिष्ट चुटीली शैली में समाज में व्याप्त कुरीतियों-अव्यवस्थाओं पर मारक प्रहार करने की अद्भुत क्षमता थी। यह संग्रह ऐसे ही धारदार व्यंग्यों का संकलन है।
Shekhar Ek Jeevani : Vol. 2
- Author Name:
Sachchidananda Hirananda Vatsyayan 'Ajneya'
- Book Type:

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Description:
‘शेखर : एक जीवनी’ को कुछ वैचारिक हलक़ों में आत्म-तत्त्व के बाहुल्य के कारण आलोचना का शिकार होना पड़ा था। साथ ही अपने समय के नैतिक मूल्यों के लिए भी इसे चुनौती की तरह देखा गया था। लेकिन आत्म के प्रति अपने आग्रह के बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि ‘शेखर’ समाज से विलग, या उसके विरोध में खड़ा हुआ कोई व्यक्ति है। अगर ऐसा होता तो शेखर अपने समय-समाज के ऐसे-ऐसे प्रश्नों से नहीं जूझता जो उस समय स्वाधीनता आन्दोलन के नेतृत्वकारी विचारकों-चिन्तकों के लिए भी चिन्ता का मुख्य बिन्दु नहीं थे, मसलन—जाति और स्त्री से सम्बन्धित प्रश्न।
जैसा कि स्वयं अज्ञेय ने संकेत किया है, शेखर अपने समय से बनता हुआ पात्र है। वह परिस्थितियों से विकसित होता हुआ और परिस्थितियों को आलोचनात्मक दृष्टि से देखता हुआ पात्र है।
उपन्यास के प्रथम भाग में जिस तरह से शेखर का मनोविज्ञान, उसके अन्तस्तल के निर्माण की प्रक्रिया उद्घाटित हुई है, उसी आवेग और सघनता के साथ इस दूसरे भाग में शेखर के वास्तविक जीवनानुभवों का वर्णन किया गया है। कहना न होगा कि 'शेखर एक जीवनी’ की बुनावट में ‘पैशन’ की वैसी ही उच्छल धारा प्रवाहित है जैसी, हमारे जीवन में होती है। अपने औपन्यासिक वितान में ‘शेखर : एक जीवनी’ इसीलिए एक कालजयी कृति के रूप में मान्य है।
Odyssey
- Author Name:
Homer
- Book Type:

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Description:
विश्वप्रसिद्ध ट्रॉय-युद्ध के महान योद्धा ओडिसियस की घर वापसी का वृत्तान्त है—‘ओडिसी’। प्राचीन यूरोप के महान रचनाकार होमर की कथाकारिता का बेमिसाल नमूना है। यह ग्रन्थ जिसकी विशेषताओं की पुनरावृत्ति परवर्ती कथाकारों से सम्भव नहीं हो सकी।
इस ग्रन्थ ने सम्पूर्ण विश्व के कथा साहित्य को प्रभावित किया है। इसका रचनाफलक व्यापक है जिसमें मानवीय सम्बन्ध, क्रिया-कलाप और समाज के सभी पक्षों का समावेश है।
नित परिवर्तनशील विश्व के सुख-दु:ख और संघर्षों के चित्रण के माध्यम से ‘ओडिसी’ में होमर ने जीवन और जगत् के यथार्थ को उजागर करते हुए यह रेखांकित किया है कि साहस, उत्साह और जिज्ञासावृत्ति से ही मनुष्य सफलता के शिखर पर पहुँचता है।
होमर के रचना-कौशल ने दृश्य-जगत् की वास्तविकताओं को कुछ इस तरह सहेजा है कि यह ग्रन्थ साहित्य ही नहीं अपितु इतिहास, पुरातत्त्व, समाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र और मनोविज्ञान के खोजी विद्वानों के आकर्षण की वस्तु बन गया है।
जटिल संरचना के बावजूद ‘ओडिसी’ का कथाप्रवाह पाठकों का औत्सुक्य बनाए रखता है। अपनी इन विशेषताओं के कारण ही ई.पू. 850 के आसपास जन्मे होमर की यह कृति आज भी प्रेरणादायी बनी हुई है।
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