Kata Hua Aasman
Author:
Jagdamba Prasad DixitPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 239.2
₹
299
Available
जगदम्बा प्रसाद दीक्षित ने अपने पहले उपन्यास ‘कटा हुआ आसमान’ का लेखन सन् 1964 में शुरू किया था। तीन साल बाद अर्थात् 1967 में उपन्यास पूरा हो गया। किन्तु इसका प्रकाशन तुरन्त ही नहीं हो सका। 1971 में यह उपन्यास पहली बार प्रकाशित हुआ। अपने प्रकाशन के साथ इस उपन्यास ने हिन्दी जगत् में सनसनी पैदा कर दी। महानगर के व्यस्त और खंड–खंड जीवन के अकेलेपन, अजनबीपन और संत्रास को लेकर वैसे तो काफ़ी कुछ लिखा गया था, लेकिन अनुभूति के स्तर पर इस जीवन की तीव्र अभिव्यक्ति पहली बार ‘कटा हुआ आसमान’ में हुई है।</p>
<p>पहली बार उपन्यास के केन्द्र में त्रासदी से गुज़रने वाले मानस–पटल को रखा गया और उसके दृष्टिकोण से वर्तमान के यथार्थ के साथ अतीत और भविष्य के कल्पना–चित्रों को संगुम्फित कर दिया गया। कथ्य और शैली, दोनों के क्षेत्र में यह एक अभूतपूर्व प्रयोग था और इसका प्रभाव भी चमत्कारिक था। कुछ लोगों ने इस उपन्यास को चेतना–प्रवाही शैली का हिन्दी का पहला उपन्यास कहा है। चेतना–प्रवाही शैली को पश्चिम में जेम्स ज्वायस ने एक नितान्त व्यक्तिवादी अभिव्यक्ति के रूप में प्रयुक्त किया था। ‘कटा हुआ आसमान’ को पूरी तरह चेतना–प्रवाही शैली का उपन्यास नहीं कहा जा सकता। इसमें व्यक्ति की चेतना को सामाजिक और वर्गीय सन्दर्भों के साथ जोड़कर समग्रता में देखा गया है।</p>
<p>उपन्यास के मूल में एक कथानक है जो स्त्री–पुरुष सम्बन्धों के एक ऐसे पक्ष को प्रस्तुत करता है जो वर्गीय अन्तर्विरोधों पर आधारित है। ये अन्तर्विरोध वर्गीय तो हैं ही, क़स्बाई और महानगरीय जीवन–शैलियों, मान्यताओं और मूल्यों को भी प्रतिबिम्बित करते हैं। लेकिन ‘कटा हुआ आसमान’ मात्र चिन्तन और विचार–शक्ति की अभिव्यक्ति नहीं है। यह एक तीव्र जीवनानुभव है। इस उपन्यास को जब आप पढ़ते हैं तो आप कोई पुस्तक नहीं पढ़ते हैं, एक सनसनीखेज़ अनुभव–संसार से गुज़रते हैं। भागते हुए लोगों और वाहनों की तेज़ आवाज़ें, फेरीवालों और भिखारियों की चीख़ें, सारे माहौल में व्याप्त एक विलक्षण तनाव की अनुगूँजें और यांत्रिक मानव–जीवन की तीव्रताएँ आपको लगातार झकझोरती रहती हैं। खंड–खंड यथार्थ को जीने का अनुभव आपको पल–भर के लिए भी नहीं छोड़ता। इसमें शक नहीं कि ‘कटा हुआ आसमान’ हर दृष्टि से हिन्दी उपन्यास–संसार की एक अनूठी रचना है।
ISBN: 9788171198962
Pages: 179
Avg Reading Time: 6 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: ‘बनिया-बहू’ की कथा 16वीं शताब्दी के एक आख्यान पर आधारित है, जिसे तत्कालीन कवि मुकुंदराम चक्रवर्ती ने अपनी कृति ‘चंडीमंगल’ में लिपिबद्ध किया था। महाश्वेता देवी ने यह आख्यान इसी पुस्तक से उठाया है और उसे एक अत्यन्त मार्मिक उपन्यास में ढाला है। महाश्वेता जी का मानना है : “बनिया-बहू सम्भवतः आज भी प्रासंगिक है। क़ानून को धता बताकर आज भी बहुविवाह प्रचलित है।...और ‘बेटे की माँ’ न हो सकने की स्थिति में आज भी स्त्रियाँ ख़ुद को अपराधी मानती हैं...अर्थात् अभी भी हम बीसवीं शताब्दी तथा अन्य बीती शताब्दियों में एक साथ रह रहे हैं।” भूमिका से ‘बनिया-बहू’ बहुविवाह प्रथा की इसी चिराचरित त्रासदी की कहानी है। एक स्त्री के बाँझपन के हाहाकार के साथ उसके द्वारा एक दूसरी अत्यन्त कोमल, कमनीय तथा सरल बालिका पर किए गए अकथ अत्याचार से नष्ट होते पारिवारिक जीवन और सुख-शान्ति का मर्मस्पर्शी आख्यान है यह उपन्यास। अन्ततः दोनों ही स्त्रियाँ सामाजिक कुरीतियों, अन्धविश्वासों के मकड़जाल में फँसकर दम तोड़ देती हैं, जबकि उनका कोई दोष नहीं। लेखिका ने दोनों स्त्रियों के साथ पूरी सहानुभूति के साथ, तन्मय होकर, उन स्थितियों का विश्लेषण तथा उद्घाटन किया है, जिनमें एक भयानक सामाजिक विनाश के बीज निहित हैं। एक सिद्धहस्त कथा लेखिका की क़लम से निकली एक अनुपम औपन्यासिक कृति।
Panch Aangnon Wala Ghar
- Author Name:
Govind Mishra
- Book Type:

- Description: क़रीब पचास वर्षों में फैली ‘पाँच आँगनों वाला घर’ के सरकने की कहानी दरअसल तीन पीढ़ियों की कहानी है—एक वह जिसने 1942 के आदर्शों की साफ़ हवा अपने फेफड़ों में भरी, दूसरी वह जिसने उन आदर्शों को धीरे-धीरे अपनी हथेली से झरते देखा और तीसरी वह जो उन आदर्शों को सिर्फ़ पाठ्य-पुस्तकों में पढ़ सकी। परिवार कैसे उखड़कर सिमटता हुआ क़रीब-क़रीब नदारद होता जा रहा है—व्यक्ति को उसकी वैयक्तिकता के सहारे अकेला छोड़कर! गोविन्द मिश्र के इस सातवें उपन्यास को पढ़ना अकेले होते जा रहे आदमी की उसी पीड़ा से गुज़रना है।
Kandid
- Author Name:
Valtaire
- Book Type:

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Description:
आशावाद बनाम यथार्थ, यह वाल्टेयर के इस प्रसिद्ध फ़्रेंच उपन्यास की मुख्य थीम है। आशावादी नज़रिए की अपूर्णता और अपर्याप्तता को व्यंग्यात्मक शैली में रेखांकित करनेवाले इस उपन्यास की रचना लेखक ने 1759 में की थी।
मध्य अठारहवीं सदी की दुखमयी घटनाओं, विशेषकर 1755 के लिस्बन भूकम्प, जर्मन राज्यों में सात वर्ष लम्बे युद्ध आदि से गहरे में प्रभावित इस उपन्यास में प्रबोधन काल के चरम आशावाद की सीमाओं को व्यंग्य शैली में इंगित किया गया है।
यह पुस्तक विशेष रूप से किशोरों को ध्यान में रखकर किया गया ‘कांदीद’ का संक्षिप्त रूपान्तरण है। रूपान्तर किया है हिन्दी के प्रगतिशील उपन्यासकार भैरवप्रसाद गुप्त ने।
विश्व क्लासिक कथा-रचनाओं की किशोरों के लिए सरल, संक्षिप्त रूप में पुनर्प्रस्तुति की इस शृंखला में गोर्की, दोस्तोयेव्स्की, मार्क ट्वेन और वाल्टर स्कॉट आदि लेखकों की विश्व-प्रसिद्ध कृतियाँ भी उपलब्ध हैं।
Trymbakam Yajamahe
- Author Name:
Mahendra Madhukar
- Book Type:

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Description:
शिव-चेतना का अनुभव एक अद्वैत अनुभव है। यह विरोधों में सामंजस्य की प्रवृत्ति है। यों कहें कि विरुद्ध को अनुकूल बनाने की दृष्टि है। हम जानते हैं कि मृत्यु एक बड़ी सच्चाई है पर फिर भी हम अमरत्व की कामना करते हैं। हम तो अमर नहीं हो सकते पर हमारा कर्म हमें अमर कर सकता है।
परमात्मा के त्रिगुण रूपों में भगवान शिव परम अनुरक्त और परम विरक्त देवता हैं। इसलिए ये महादेव हैं, क्योंकि महान वही हो सकता है जो सभी स्थितियों में महान लगे। जो नीचे से ऊपर तक, बाहर से भीतर तक एक समान हो। शिव का 'कैलास' शिखर मन का प्रतीक है।
महादेव शिव के लिए 'त्रयम्बकं यजामहे' कहकर उनका पूजन और सम्मान किया गया है। समस्त दिशाएँ उनके वस्त्र हैं, सजल मेघ उनके जटाजूट हैं, आकाश उनका दृप्त भाल, विद्युत् उनका तीसरा नेत्र और पृथ्वी उनकी रंगशाला है, जिसमें निरन्तर अणुओं का नृत्य (dancing atoms) चलता रहता है। शिव ज्ञान के, औषधि के, नृत्य और नाद के, जीवन और मृत्यु के, अमृत और विष के विलक्षण समन्वय हैं। शिव के बाएँ आधे भाग में पार्वती सुशोभित हैं, माथे पर आधा चन्द्रमा चमक रहा है। वे शिव के साथ मिलकर पूर्णत्व प्राप्त करते हैं। शिव स्वीकृति के देवता हैं। उनके लिए सभी ग्राह्य हैं। वहाँ निषेध के लिए अवकाश नहीं। उनके भक्त ताल-बेताल नाचें या गाएँ, मुँह से बम-बम का स्वर निकालें, गाल बजाएँ, उनके दरबार में सब जायज़ है।
शिव-केन्द्रित इस उपन्यास के शिव भूत-प्रेत जैसे दिव्यांग जीवों के शरणदाता और पोषक हैं। वे बहुमुखी, बहुआयामी हैं, गायक, वादक, नर्तक, स्वयंभू, जीव और जन्तुओं के उद्धारक, महावीर, महादेव, अर्द्धनारीश्वर और लोकोपकारक हैं। उनका रोदन-रस ही रुद्राक्ष है। उनकी पार्वती स्त्री-शक्ति और पर्यावरण संरक्षा की प्रतिनिधि हैं। इस इकार रूपा शक्ति के अभाव में शिव भी शव रूप हो जाते हैं। उन पर केन्द्रित यह पौराणिक महाकाव्यात्मक उपन्यास, हमें आशा है, संसार को देखने की हमारी दृष्टि को विस्तृत करेगा।
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