Namo Andhakaram
Author:
Doodhnath SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
दूधनाथ सिंह के कथा-साहित्य को पढ़ते हुए लगता है कि सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर उन्होंने हमेशा अपनी पैनी और सचेत निगाह रखी। वे अपने समीपतर परिवेश में भी विश्वव्यापी बदलावों और संकटों के चिन्ह देख लेते थे। यही कारण है कि उनकी कहानियाँ, उपन्यास विशेष तौर पर किसी विराट परिस्थिति का सूक्ष्म-अध्ययन जैसे मालूम पड़ते हैं।</p>
<p>‘नमो अंधकारं’ भी ऐसी ही एक कथा-कृति है जिसमें उन्होंने समाज, विचारधारा, व्यक्ति की गिरावट आदि बिन्दुओं के सापेक्ष अपने नैतिक क्रोध को अंकित किया है। आज़ादी के बाद भारतीय समाज में जो एक खाता-पीता तबक़ा कभी विचार तो कभी ईश्वर की आड़ में सिर्फ़ अपने आसपास की दुनिया नहीं, बल्कि मानवीयता के अखिल विचार के लिए ख़तरा हो गया है, यह उपन्यास उसका राजनीतिक शोकगीत है। यह एक संवेदनशील व्यक्ति की पतन-गाथा का चित्र खींचता है, जो और भी दुखद है।</p>
<p>दूधनाथ जी कहा करते थे कि ‘कथा-लेखन में वास्तविक ज़़िन्दगी की एक भीतरी छाया रहती है जिसको एक लेखक अपनी कल्पना से रचता है।’ और इस रचने में वह उस भीतरी छाया को बड़े फलक पर सामान्यीकृत करके एक सत्य के रूप में स्थापित करता है। ‘नमो अंधकारं’ पर उठे विवादों के चलते बार-बार पाठकों ने इसे पढ़ा, और इस मान्यता की ताईद की। किसी भी पाठक के लिए यह एक ज़रूरी पाठ है।
ISBN: 9788183614054
Pages: 116
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Pighalti Dhoop Mein Saye
- Author Name:
Amar Kushwaha
- Book Type:

-
Description:
यह उपन्यास उस युवा वर्ग पर आधारित है जिसने ग्रामीण परिवेश के निम्न मध्यवर्गीय परिवार में संक्रमण के दौर में जन्म लिया और तेज़ी से बढ़ रहे भूमंडलीकरण के कारण बड़े सपने देखने लगा।
उत्तर भारत के राज्यों में आज भी 'बड़े सपने' का मतलब केवल 'भारतीय प्रशासनिक सेवा' में चयन होना है, ऐसा कहना बिलकुल भी ग़लत नहीं होगा। और इसी स्वप्न को पूरा करने की चाह में यह युवा वर्ग इस स्वप्न में इतना डूब जाता है कि कभी-कभी तो वह अपनी स्वयं की पहचान तक भूलने को विवश हो जाता है। वह मनुष्य न होकर मशीन जैसा होने लगता है और चयन के बाद संघर्ष के पथ में बिखरे अनेक क्षणों को बस देखता-सा रह जाता है।
यह कहानी एक ऐसे ही नायक की है, जो एक स्वप्न की पूर्ति के लिए कितने ही सपनों को तिलांजलि दे देता है, यहाँ तक कि अपने अन्तर्मन से भी कट जाता है।
टूटता घर, एकाकीपन, बेरोज़गारी, पारिवारिक महत्त्वाकांक्षा और ‘एक बड़े स्वप्न के बीच के मानसिक द्वन्द्व का चित्रण इस उपन्यास के महत्त्वपूर्ण पक्ष को दर्शाता है।
Puddan Katha : Corona Kal Mein Ganv-Giranv
- Author Name:
Devesh
- Book Type:

-
Description:
एक रहे पुद्दन। गाँव रहा नरहरपुर। वे चले ससुराल–नौशादपुर। ब्याह था साली का। दौर था कोरोना का। वायरस की थी उत्सवों और मेलजोल से यारी। फैलाने लगा अपना पंजा। लोगों ने जिसे लिया हल्के में, वही पड़ा भारी। और उनकी बिंदास जिंदगी पर डाल दिया डर और आशंकाओं का जाल। फिर क्या हुआ? क्या हो सकी पुद्दन की साली की शादी? कथा बीच नउनिया की कथा क्या है? क्या होता है उसकी जिंदगी में? जयनाथ का आइसोलेशन गाँव में कौतूहल क्यों है? मखंचू शहर से लौटकर गाँव में क्या पाता है?
किरदारों की ठेलमठेल भीड़ नहीं है। जो हैं उनका असर गहरा होता है कथा पढ़ते हुए। अपनी-अपनी अच्छाई और बुराई के साथ जिंदादिल लोग हैं। धोखे और विश्वास, प्रपंच और लगाव से भरे हुए। सारी मुसीबतों के बीच वे रोते-रोते हँसी-ठट्ठा भी कर लेते हैं। गीत भी गा लेते हैं।
पुद्दन कथा गाँव-गिराँव की कोरोनाकालीन ऐसी कथात्मक रपट है जिसे पढ़ते हुए आँखें भर आती हैं। गुदगुदी उठती है। मुस्कान चुहल करती है।
एक प्राणवान देशज कथा!
Rooptilli Ki Katha
- Author Name:
Shriprakash Mishra
- Book Type:

- Description: प्रस्तुत उपन्यास मेघालय बसनेवाली ख़ासी जनजाति के सांस्कृतिक जीवन पर आधारित है। इसका कालखंड वह समय है जब एक तरफ़ अँग्रेज़ उन्हें ईसाई बनाने में लगा था तो आसपास का हिन्दू नेतृत्व उन्हें हिन्दू बनाने में। जनजाति दोनों से बचकर अपनी स्वतंत्र पहचान बनाए रखना चाह रही थी। उससे उत्पन्न संघर्ष की गाथा इस कृति में एक बढ़िया कहानी के माध्यम से उभरकर आई है। इसके पन्नों से गुज़रते हुए लगता है कि हम उस जीवन को न केवल देख रहे हैं, वरन् उसे जी भी रहे हैं। वहाँ की धूप, पानी, पहाड़, नदी, वायु, धरती, पेड़, पशु अपने समस्त सौन्दर्य, तेज, वेग और जीवन्तता के साथ मौजूद हैं, जिन्हें हम अपनी प्राणवायु में भरते चलते हैं। कवि होने के नाते लेखक का गद्य हमें बहुत आकृष्ट करता है।
Hemant Ka Panchhi
- Author Name:
Suchitra Bhattacharya
- Book Type:

-
Description:
क़ामयाब पति, दो-दो बुद्धिमान बेटे और अपनी घर-गृहस्थी में डूबी अदिति, उम्र के चालीसवें के मध्य तक पहुँचते-पहुँचते अचानक महसूस करती है कि वह भयंकर अकेली है। पति अपनी नौकरी में व्यस्त है, दोनों बेटे भी अपने-अपने आकाश में पंख फैलाए उड़ने लगे हैं। अकेली अदिति अब अपने दिन या तो अपने आपसे या पिंजरे की मैना से बातें करती हुई गुज़ारती है। उन्हीं दिनों उसकी ज़िन्दगी में हेमेन मामा दाख़िल होते हैं, उन्हीं की प्रेरणा से जाग उठती है—एक नई अदिति धीरे-धीरे वह अपनी रची-गढ़ी दुनिया में मग्न हो जाती है। ब्याह से पहले वह लेखन के क, ख, ग से परिचित हो चुकी थी। अब वह दुबारा लिखना शुरू करती है। अब जब वह अपने पति, सन्तान और गृहस्थी को नई निगाह से तौलना-परखना शुरू कर देती है, तो शुरू होता है—ज़बर्दस्त टकराव। भयंकर दर्द के काले बादल घिर आते हैं।
अदिति क्या सिर्फ़ सुप्रतिम की पत्नी-भर है? मात्रा बच्चों की माँ है? वह क्या सिर्फ़ ख़ून-मांस की मशीन-भर है, जिससे सिर्फ़ यह अपेक्षित है कि बेहद सहज-स्वाभाविक तरीक़े से गृहस्थी की गाड़ी आगे बढ़ाती रहे? इस दायरे से बाहर क्या अदिति का कोई अस्तित्व नहीं?
सुचित्रा भट्टाचार्य की सशक्त क़लम ने ‘हेमन्त का पंछी’ में औरत के इसी सच की बेचैन तलाश को उकेरा है।
Krantipurush Jyotirav Fule
- Author Name:
Mohandas Naimisharay
- Book Type:

-
Description:
भारतीय इतिहास में एक वक्त ऐसा भी था जब यहाँ के लोग एक तरफ ब्रिटिश पराधीनता की मार झेल रहे थे तो दूसरी तरफ वे अपनी ही भेदभावमूलक सामाजिक व्यवस्था के चक्के तले पिस रहे थे। मुट्ठी भर उच्च जातीय और उच्च वर्गीय लोग ही इस दोहरी मार से अप्रभावित थे लेकिन अधिसंख्य आबादी के लिए इससे बचना सम्भव नहीं था। इसमें भी, उन लोगों की मुश्किलों की तो कोई गिनती ही न थी, जो समाज के सबसे निचले पायदान पर थे। इन्हीं परिस्थितियों में परिवर्तन की वह सुगबुगाहट शुरू हुई जिसे आज 'पुनर्जागरण' कहा जाता है। जाहिर है, एक खंडित-विभाजित समाज में कोई पुनर्जागरण भी अखंड, सर्वस्वीकृत नहीं हो सकता था। उच्च जातीय-उच्च वर्गीय लोगों के लिए पुनर्जागरण का मतलब अगर अपना कथित धर्म और संस्कृति बचाने की जद्दोजहद थी तो उनसे इतर के लोगों के लिए समानता और शिक्षा की स्वतंत्रता हासिल करने का संघर्ष। यह दूसरी धारा जिन महान विभूतियों के जीवन और कर्म से मूर्तिमान हुई, ज्योतिराव फुले उन्हीं में से एक थे।
यह उपन्यास उन्हीं ज्योतिराव के जीवन और संघर्ष की कथा पेश करता है। समाज की रूढ़िवादी, ब्राह्मणवादी शक्तियों ने पग-पग पर उनके सामने बाधा रखी ताकि ज्योतिराव अपने उद्देश्यों से पीछे हट जाएँ। लेकिन ज्योतिराव ने कभी हार नहीं मानी और कभी अपने व्यवहार में अनुदारता नहीं आने दी। वे और उनकी जीवनसंगिनी सावित्रीबाई फुले ने अपने जीवन और कर्म से समाज के सामने ऐसा आदर्श उपस्थित किया, जिसमें एक स्वतंत्र, सक्षम आधुनिक राष्ट्र का अस्तित्व और भावी पीढ़ियों के लिए पथ-निर्देश निहित था।
एक अवश्य पठनीय और प्रेरक उपन्यास!
Suno Anand!
- Author Name:
Ramji Prasad 'Bhairav'
- Book Type:

-
Description:
मैं महापरिनिर्वाण के समीप था। रात्रि का अन्तिम प्रहर चल रहा था। लोगों के दर्शनों का क्रम टूटा नहीं था। वे सब दुखी थे, पर व्यर्थ में मेरी आँखों के सामने कुछ पुराने दृश्य उभरे। वैशाली में प्रवास के दौरान आनन्द ने राहुल के निर्वाण की सूचना दी। गोपा का मुखमंडल उभरा। पिताश्री का मुस्कुराता हुआ मुख, माताश्री का मुख, सारिपुत्र और मौग्द, जाने कितने दृश्य स्मृति-पटल पर आए और चले गए।
मैंने आँखें खोलीं, “आनन्द!”
आनन्द रो रहा था, उसकी आँखें लाल थीं, कपोल आँसुओं से सिक्त थे। अन्य भिक्षु भी जो जहाँ था वह दुखी होकर अश्रु अर्घ्य दे रहा था।
मैंने पुनः कहा—“आनन्द।”
वह समीप आया, मैंने उसका हाथ अपने हाथों में लिया। वह फूट-फूटकर रो पड़ा।
“रोओ मत, आनन्द, जीवन का सत्य जानकर जब तुम रोते हो, तो भला इन सांसारिक लोगों को कौन सँभालेगा।”
मेरी जिह्वा फँसने लगी, होंठ सूख रहे थे।
मैंने जीभ होंठों पर फिराया, वह कुछ गीला हुआ।
“भगवन्! आपके बाद हम दुःख निवृत्ति के लिए किसके शरण में जाएँगे।” इतना कहकर वह पुनः रो पड़ा।
“सुनो आनन्द! मनुष्य मद के कारण पर्वत, वन, उद्यान, वृक्ष और चैत्य की शरण में जाता है। लेकिन यह उत्तम शरण नहीं है, यहाँ दुःख की निवृत्ति नहीं है। सर्वाधिक उत्तम शरण हैं—बुद्ध पुरुषों की शरण, उन्हीं की शरण में कल्याण है।”
—इसी पुस्तक से
Pashupati
- Author Name:
Rajshree
- Book Type:

-
Description:
पशुपति उपन्यास का आधार संस्कृति की स्थापना और विध्वंस है। इस उपन्यास के दो प्रमुख नायक हैं—वैदिककालीन महाअसुर वरुण व महारुद्र शिव। इस उपन्यास के ये दो महानायक भारतीय संस्कृति के इतिहास से सम्बन्ध रखते हैं। इनके आचरण से मिलनेवाली शिक्षा हर युग में युगपरक है।
जम्बूद्वीप के सर्वश्रेष्ठ देश भारत की पृष्ठभूमि पर लिखी गई कथा विश्व के किसी भी देश के लिए सत्य है। इस कथा से ज्ञात होता है कि विचारों की सरलता में, विषमता व जटिलता का समावेश सभ्यता के साथ होता जाता है। सीधी रेखाओं से किस प्रकार न सुलझने वाली गाँठ बन जाती है— ऐसी गाँठ, जो मानव को पग-पग पर अपने में बाँधती है? शिव, जिन्हें पुराणों में सृष्टि संहारक कहा गया है, उन्होंने विश्व की रक्षा के लिए हलाहल का पान किया। संहार व रक्षा एक-दूसरे के विपरीत हैं। जो संहार करता है, उसने विषपान क्यों किया? क्या था वह विषपान? आज विश्व पुनः उसी अवस्था में है जहाँ महारुद्र शिव का हलाहल-पान भी विध्वंस को नहीं रोक सका था।
यदि मानव मौलिक सरलता खोता है तो परिणाम विध्वंस है। जिस संस्कृति के विस्तार का स्वप्न इन युगपुरुषों ने देखा, वह आज हमारा दायित्व है। हम संस्कृति के मानवीय भाव व प्रकृति को समझें। इस कथा का प्रारम्भ प्रकृति करती है। वह मानव को यह समझाना चाहती है कि विध्वंस व विसर्जन में भेद है। समय मानव-मस्तिष्क की विभिन्न अवस्थाओं—कद्रू के स्वप्न, वराह की रेखाएँ और बाबा देवल की लोककथा—के माध्यम से कहता है। कद्रू अचेतन, वराह चेतन, बाबा देवल लोकमानस में चेतन-अचेतन से बननेवाली कहानी का प्रतीक हैं। इनके माध्यम से युग-विशेष के विचारों की दिशा व विषमता ज्ञात होती है।
Pratibandhit Hindi Sahitya : Vol. 1-2
- Author Name:
Rustam Roy
- Book Type:

-
Description:
‘प्रतिबंधित हिन्दी साहित्य’ के दो खंडों में स्वाधीनता आंदोलन के दिनों की प्रतिबंधित रचनाओं का संकलन किया गया है। आजादी की लड़ाई के दिनों की याद ताजा करने तथा उस समय के रचना-मूल्यों को समझने के लिए यह संकलन ऐतिहासिक महत्त्व का है। पुस्तक के पहले खंड में प्रतिबंधित कहानियाँ और उपन्यास संकलित हैं तथा दूसरे खंड में कविताएँ। जिन रचनाकारों की रचनाएँ इनमें संकलित हैं, उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन के दौरान अपनी रचनाओं को हथियार की तरह इस्तेमाल किया। अपनी रचनाओं द्वारा उन्होंने साम्राज्यवादी ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आम लोगों में विद्रोह और अवज्ञा की मानसिकता तैयार करने की कोशिश की। अंग्रेजों ने ऐसे लेखकों का दमन किया, उनकी क्रांतिकारी रचनाओं के लिए उन पर मुकद्दमा चलाया और प्रतिबंध लगा दिया। इन दो खंडों में हमने ऐसी ही प्रतिबंधित रचनाओं का संकलन किया है।
श्री रुस्तम राय ने काफी मेहनत करके काल कोठरी के अँधेरे से ये रचनाएँ निकाल कर पाठकों तक पहुँचाने में हमारी मदद की है। आशा है, इन रचनाओं से उस दौर के साहित्य की कुछ अछूती विशेषताएँ हमारे सामने आएँगी। साथ ही हम स्वाधीनता आंदोलन से सीधे जुड़े साहित्य का जायजा ले सकेंगे। आज भी देश की सामाजिक परिस्थितियों में कोई निर्णायक बदलाव नहीं आया है इसलिए ये रचनाएँ अब भी प्रासंगिक हैं।
पुस्तक के पहले खंड में पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’, ऋषभ चरण जैन तथा मुनीश्वर दत्त अवस्थी की कहानियों के अलावा जिन कथाकारों की कहानियाँ शामिल हैं, उनके नाम हैं—यशपाल, लक्ष्मीचंद्र वाजपेयी ‘चन्द्र’, मुक्त, लीलावती बी.ए., जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’, आचार्य चतुर सेन शास्त्री, विश्वंभर नाथ शर्मा ‘कौशिक’ तथा प्रेम बंधु । इस खंड में ब्रजेन्द्र नाथ गौड़ का उपन्यास ‘पैरोल पर’ भी संकलित है। इस उपन्यास ने स्वाधीनता आंदोलन के दिनों में क्रांतिकारियों के बीच नया उत्साह पैदा कर दिया था। आशा है, ये रचनाएँ स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ी रचनाशीलता पर नए सिरे से विचार करने के लिए प्रेरित करेंगी।
‘प्रतिबंधित हिन्दी साहित्य’ के दूसरे खंड में स्वाधीनता आंदोलन के दिनों की प्रतिबंधित कविताओं का संकलन किया गया है। अंग्रेजी साम्राज्यवाद के विरुद्ध भारतेन्दु युग में भी कविताएँ लिखी गईं, लेकिन बीसवीं सदी के द्विवेदी युग और छायावाद युग में भी क्रांतिकारी कविताओं की संख्या काफी है। ऐसी कविताएँ सैकड़ों की संख्या में ब्रिटिश शासन द्वारा प्रतिबंधित भी हुईं। इस खंड में ऐसे काव्य-संग्रह संकलित हैं जिन्हें ब्रिटिश हुकूमत ने प्रतिबंधित कर दिया था। संकलन और उनके रचनाकारों के नाम इस प्रकार हैं—‘खून के छींटे’ (बलभद्र गुप्त विशारद ‘रसिक’), ‘मुक्त संगीत’ (अभिराम शर्मा एवं प्रणयेश शर्मा), ‘विद्रोहिणी और तूफान’ (प्रह्लाद पांडेय ‘शशि’)।
स्वाधीनता आंदोलन से हिंदी कविता का रिश्ता बहुआयामी रहा है। द्विवेदी युग के मैथिलीशरण गुप्त और उनके मंडल के कवियों ने सांस्कृतिक पुनरुत्थान की घोषणा करके ब्रिटिश साम्राज्यवाद का विरोध किया। राष्ट्रीय धारा के माखनलाल चतुर्वेदी और दिनकर आदि कवियों ने राष्ट्रीय जागरण के लिए आह्वानपरक कविताएँ लिखीं। प्रसाद, निराला, महादेवी और पंत जैसे छायावादी कवियों ने ‘स्वच्छंद’ मानसिकता को प्रश्रय देकर प्रकृति और प्रेम के आधार पर मुक्ति का आह्वान किया। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान इन तीनों धाराओं के समानांतर एक और भी धारा थी जिसके कवियों ने सीधे ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ आवाज बुलंद की। इस खंड में शामिल रचनाकार ऐसे ही कवि हैं। इनकी रचनाओं के स्वरूप और तत्कालीन समाज पर पड़े उनके प्रभाव का अध्ययन अभी शेष है। आशा है, यह संकलन इस कमी को पूरा करेगा।
ये क्रांतिकारी कविताएँ कलात्मकता और लोकप्रियता— दोनों ही स्तरों पर नए प्रतिमान गढ़ती हैं।
Ukhde Huye Log
- Author Name:
Rajendra Yadav
- Book Type:

-
Description:
स्वातंत्र्योत्तर भारतीय समाज की त्रासदी को यह उपन्यास दो स्तरों पर उद्घाटित करता है—पूँजीवादी शोषण और मध्यवर्गीय भटकाव। आकस्मिक नहीं कि सूरज-सरीखे संघर्षशील युवा पत्रकार के साहस और प्रेरणा के बावजूद उपन्यास के केन्द्रीय चरित्र—शरद और जया जिस भयावह यथार्थ से दूर भागते हैं, उनका कोई गंतव्य नहीं। न वे शोषक से जुड़ पा रहे हैं, न शोषित से।
छठे दशक के पूर्वार्द्ध में प्रकाशित राजेन्द्र यादव की इस कथाकृति को पहला राजनीतिक उपन्यास कहा गया था और अनेक लेखकों एवं पत्र-पत्रिकाओं ने इसके बारे में लिखा था। मसलन, श्रीकान्त वर्मा ने कलकत्ता से प्रकाशित ‘सुप्रभात' में टिप्पणी करते हुए कहा कि “शासन का पूँजी से समझौता है, ग़रीब मज़दूरों पर गोलियाँ चलाकर कृत्रिम आँसू बहानेवाली राष्ट्रीय पूँजी की अहिंसा है। इन सबको लेकर लेखक ने एक मनोरंजक और जीवन्त उपन्यास की रचना की है (और) पूँजीवादी संस्कृति की विकृतियों की अनेक झाँकियाँ दिखाई हैं।” अथवा ‘आलोचना’ में लिखा गया कि “ ‘उखड़े हुए लोग' में जिन लोगों का चित्रण किया गया है, वे एक ओर रूढ़ियों के कठोर पाश से व्याकुल हैं तथा दूसरी ओर पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में निरन्तर लुटते रहने के कारण जम पाने में कठिनाई का अनुभव कर रहे हैं। इस दोतरफ़ा संघर्ष में रत उखड़े हुए चेतन मध्यवर्गीय जीवन का एक पहलू प्रस्तुत उपन्यास में प्रकट हुआ है। बौद्धिक विचारणा की दृष्टि से यह उपन्यास पर्याप्त स्पष्ट और खरा है।” या फिर चन्द्रगुप्त विद्यालंकार की यह टिप्पणी कि, “सम्पूर्ण उपन्यास में एक ऐसी प्रभावशाली तीव्रता विद्यमान है, जो पाठक के हृदय में किसी न किसी प्रकार की प्रतिक्रिया उत्पन्न किए बिना न रहेगी और (इसमें) अनुभूति की एक ऐसी गहराई है जो हिन्दी के बहुत कम उपन्यासों में मिलेगी।” कहना न होगा कि इस उपन्यास में लेखक ने “जहाँ एक ओर कथानक के प्रवाह, घटनाचक्र की निरन्तर और स्वाभाविक गति तथा स्वच्छ और अबाध नाटकीयता को निभाया है, वहीं दूसरी ओर उसने जीवन से प्राप्त सत्यों और अनुभूतियों को सुन्दर शिल्प और शैली में यथार्थ ढंग से अंकित भी किया है।”
Ratinath Ki Chachi
- Author Name:
Nagarjun
- Book Type:

-
Description:
हिन्दी उपन्यास में लोकोन्मुखी रचनाशीलता की जिस परम्परा की शुरुआत प्रेमचन्द ने की थी, उसे पुष्ट करनेवालों में नागार्जुन अग्रणी हैं। ‘रतिनाथ की चाची’ उनका पहला हिन्दी उपन्यास है। सर्वप्रथम इसका प्रकाशन 1948 में हुआ था। इसके बाद उनके कुल बारह उपन्यास आए। सब में दलितों-वंचितों-शोषितों की कथा है। ‘रतिनाथ की चाची’ जैसे चरित्रों से आरम्भ हुई यात्रा में बिसेसरी, उगनी, इन्दिरा, चम्पा, गरीबदास, लक्ष्मणदास, बलचनमा, भोला जैसे चरित्र जुड़ते गए। उनके उपन्यास में नारी-चरित्रों को मिली प्रमुखता ‘रतिनाथ की चाची’ की ही कड़ी है। इसीलिए इस कृति का ऐतिहासिक महत्त्व है।
‘रतिनाथ की चाची’ विधवा है। देवर से प्रेम के चलते गर्भवती हुई तो मिथिला के पिछड़े सामन्ती समाज में हलचल मच गई। गर्भपात के बाद तिल-तिल कर वह मरी। यह उपन्यास हिन्दी का गौरव है।
Pratham Phalgun
- Author Name:
Shri Naresh Mehta
- Book Type:

- Description: इसका कथानक उस प्रथम प्रेम की मार्मिकता को अभिव्यक्त करता है जिसका सम्मोहन सार्वकालिक तथा सार्वदेशिक होता है। इस उपन्यास में दो पात्र—गोपा और महिम। आज से तीस-चालीस वर्ष पहले का लखनऊ। परिपार्श्व की इस ऐकान्तिकता के साथ-साथ दो पात्रों का अपना निजपन, जहाँ किसी तीसरे का कोई अर्थ या महत्त्व नहीं। रागात्मकता के किन-किन और कैसे-कैसे प्रसंगों, स्थितियों तथा मुद्राओं से होकर गोपा और महिम यात्रा करते हैं, यह इस उपन्यास की बुनावट, भाषा तथा प्रतीकों के माध्यम से देखा जा सकता है। जिस प्रकार गोपा और महिम को किसी अन्य की अपेक्षा नहीं, वैसी ही तन्मयता इसे पढ़ते हुए मिलती हैं।
Hamjad
- Author Name:
Manohar Shyam Joshi
- Book Type:

- Description: ‘हमज़ाद' कहानी है उस ‘कमीनगी’ की जो अपने ठोस आत्मविश्वास के बल पर सबसे चोट हमारे उन विभ्रमों पर करती है जिन्हें हम अपने ‘अबोध आशावाद’ के चलते अपने इर्द-गिर्द पाले रखते हैं। इसे पढ़ते हुए आप अचानक असहाय महसूस करेंगे और एक रूहानी शैथिल्य आपको घेर लेगा; आप पाएँगे कि आपका समय वास्तव में उससे कहीं ज़्यादा घटिया, क्रूर और लिजलिजा है जितना आप आज तक अफ़वाहों और अख़बारों के माध्यम से जानते आए हैं। बेशक यह कथा उम्मीद का अन्त कर देनेवाली है, इसका एक भी चरित्र ऐसा नहीं जो सीख देता हो, ‘सुन्दर भविष्य’ का कोई सपना बुनता हो; सब अपने-अपने नरक में इतने गहरे डूबे हुए हैं कि उन्हें अपने अलावा किसी और इकाई का ख़याल तक नहीं आता। लेकिन क्या थोड़ी-सी झूठी इनसानियत के साथ यह हम ही नहीं हैं? 'हमजाद' के चरित्र इस थोड़ी-सी इनसानियत से भी परे जा चुके हैं जिनके भीतर-बाहर को जोशी जी ने अपने सघन पाठ में अद्भुत ढंग से रूपायित किया है।
Kala Pahar
- Author Name:
Bhagwandas Morwal
- Book Type:

- Description: उपन्यास का काम समकालीन यथार्थ के प्रतिनिधित्व के माध्यम से अतीत को पुनर्जीवित और भविष्य के मिज़ाज को रेखांकित करना है। भगवान मोरवाल के ‘काला पहाड़’ में ये विशिष्टताएँ हैं। ‘काला पहाड़’ के पात्रों की कर्मभूमि ‘मेवात क्षेत्र’ है। हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश की सीमाओं में विस्तृत यह वह क्षेत्र है, जिसने मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर से टक्कर ली थी और जिसने भारत की ‘मिलीजुली तहज़ीब’ को आज तक सुरक्षित रखा है। ‘काला पहाड़’ एक उपन्यास का शीर्षक नहीं है, वरन् मेवात की भौगोलिक-सांस्कृतिक अस्मिता और समूचे देश में व्याप्त बहुआयामी विसंगतिपूर्ण प्रक्रिया का प्रतीक है। इसके पात्र—सलेमी, मनीराम, रोबड़ा, हरसाय, सुलेमान, छोटेलाल, बाबू ख़ाँ, सुभान ख़ाँ, रुमाली, अंगूरी, रोमदेई, तरकीला, मेमन, चौधरी करीम हुसैन व चौधरी मुर्शीद अहमद आदि ठेठ देहाती हिन्दुस्तान की कहानी कहते हैं। मेवात के ये अकिंचन पात्र अपने में वे सभी अनुभव, त्रासदी, ख़ुशियाँ समेटे हुए हैं, जो किसी दूरदराज़ अनजाने हिन्दुस्तानी की भी जीवन-पूँजी हो सकते हैं। लेखक जहाँ ऐतिहासिक पात्र व मेवात-नायक ‘हसन ख़ाँ मेवाती’ की ओर आकृष्ट है, वहीं वह अयोध्या-त्रासदी की परछाइयों को भी समेटता है, इस त्रासदी में झुलसनेवाली बहुलतावादी संस्कृति को रचनात्मक अभिव्यक्ति देता है। उपन्यास की विशेषता यह है कि इसने समाज के हाशिए के लोगों को अपने कथा-फ़लक पर उन्मुक्त भूमिका निभाने की छूट दी है। मोरवाल की पृष्ठभूमि दलित ज़रूर है लेकिन किरदारों के ‘ट्रीटमेंट’ में वह दलित ग्रन्थि से अछूते हैं।
Choolaha Aur Chakki
- Author Name:
Omprakash Dutt
- Book Type:

-
Description:
किसी भी देश या समाज की सांस्कृतिक पहचान सिर्फ़ वहाँ जन्मे महापुरुषों से ही नहीं बनती बल्कि संस्कृति के निर्माण में उन अनाम लोगों की भी भागीदारी होती है जो रोज़मर्रा की गतिविधियों में संलग्न रहते हुए भी अपना एक जीवन–सन्देश छोड़ जाते हैं।
शहर चकवाल की भागवन्ती ऐसा ही चरित्र है जिसने अनपढ़ होते हुए भी अपने बच्चों को पढ़ा–लिखाकर न केवल क़ाबिल बनाया बल्कि इंसानियत के गुण भी उनमें विकसित किए। घर–गृहस्थी के चूल्हा, चरखा और चक्की में व्यस्त रहनेवाली भागवन्ती जितनी पारम्परिक है, उतनी ही आधुनिक भी। उसका चरित्र जैसे एक अबूझ पहेली हो। गांधी हत्या के बाद पहले तो वह अपने पति से कहती है कि, ‘‘सोग मनाना है तो मनाओ, तुम्हारे लिए महात्मा होगा या उन लोगों के लिए जो कुर्सियाँ सँभाले बैठे हैं।’’ लेकिन थोड़ी ही देर बाद जब बहू आकर पूछती है कि आज खाना क्या बनेगा तो एक पल रुककर ग़ुस्से में कहती है ‘‘कैसे घर से आई हो तुम, इतना बड़ा आदमी मर गया और तुम पूछ रही हो—खाना क्या पकेगा! शर्म नहीं आती?’’
सुख–दु:ख, हास्य–रुदन, जीवन–मरण, अच्छाई–बुराई की जीवन्त झलकियों का सुन्दर कोलाज है यह लघु औपन्यासिक कृति। इसमें आज़ादी के पूर्व से लेकर गांधी हत्या तक की राजनीतिक हलचलों की अनुगूँज भी सुनाई पड़ेगी। प्रवाहपूर्ण भाषा तथा बतकही के शिल्प में बुना यह उपन्यास बेहद पठनीय बन पड़ा है।
Akash Champa
- Author Name:
Sanjeev
- Book Type:

-
Description:
क्या जीवन आकाश चम्पा है?
दो-दो बार वसन्त आता है इसमें, दो-दो बार खिलती हैं आकाश चम्पा की कलियाँ–जिन्दगी की तरह। एक बार जो जीवन जिया उसमें कितना कुछ जीने से रह गया, जिस-जिस मोड़ पर मुड़ना था, नहीं मुड़े, जहाँ पलटकर पीछे देखना था नहीं देखे, जहाँ ठहरना था, नहीं ठहरे। सो, आकाश चम्पा उन भूलों को सुधारती है, पहली बार जिन डालों में फूल नहीं आये होते, दूसरी बार उन डालों पर भी फूल खिलते हैं।
गहन अनुभूतियों की बारीक बुनावट से रचा गया संजीव का यह नवीनतम उपन्यास मनुष्य की इस आदिम आकांक्षा का ऐसा मार्मिक आख्यान है, जिसमें व्यक्ति-जीवन के कोण से इतिहास, नियति, रिश्ते और संघर्ष के उन तमाम सवालों की पड़ताल की गई है, जो हमारे समय के विमर्श के केन्द्र में हैं। इन अर्थों में यह उपन्यास महज आख्यान नहीं रह जाता, बल्कि अपने समय से एक दुर्धर्ष टकराहट के रूप में पृष्ठ-दर-पृष्ठ ध्वनित होता है। संजीव ने इस उपन्यास में अपने दिक्काल का ऐसा निर्मम विवर्तन किया है, जिसे अन्यत्र देख पाना कठिन है।
विवर्तन की प्रक्रिया में लेखक की नजर निरन्तर इतिहास के अन्दर विलम्बित और निलम्बित पड़े सवालों और इतिहास के बाहर छूटे हुए लोगों तक जाती है। सामाजिक अवक्षय ने भले ही मनुष्य को हताश कर दिया हो, पर इस स्थिति में भी उसके हृदय के कोने में यह आकांक्षा अपनी पंखुड़ियाँ खोलने से नहीं चूकती कि क्या भूलों का फिर से संशोधन हो सकता है? इस तरह संजीव नियति नहीं नियन्ता की कथा कहते हैं, उस नियन्ता मनुष्य की जिसने अपनी जिजीविषा को आत्मसंघर्ष की ताकत से मूर्त किया है और अपने मुक्तिस्वप्न को एक ही जीवन में दो बार सम्भव किया है। उपन्यास की आनुषंगिक उपलब्धि है एक वर्जित पर मार्मिक प्रेम प्रसंग, जिसकी स्निग्धता और सुरभि उपन्यास में एक नया आयाम जोड़ती है।
Dudiya : Tere Jalte Hue Mulk Mein
- Author Name:
Vishwash Patil
- Book Type:

-
Description:
शाश्वत सत्य यह था कि आदिवासी जंगल की सन्तान हैं। मगर वस्तुस्थिति यह थी कि उनमें से किसी के पास भी जंगल की जमीन का कोई पट्टा नहीं लिखा था। न ही उनमें इतनी समझ थी कि उस जमीन को अपने नाम लिखाकर रखें। अपने पूर्वजों की तरह वह उस जमीन पर खेती करते थे। जंगल से जीवन यापन करते थे। लेकिन साठ के दशक में अचानक वन अधिकारी नए नियम-कायदों की लाठी से लैस होकर वहाँ घुस गए। आदिवासियों को चूल्हे में जलाने के लिए, जंगलों की सूखी लकड़ियाँ बीनने तक से रोका जाने लगा। उनके भेड़-बकरियों को जंगल में चराने पर रोक लगा दी गई। आदिवासी स्तब्ध रह गए कि यह क्या! जहाँ वे अपना हक समझते थे, पीढ़ी-दर-पीढ़ी जिन जंगलों में रहते थे, वहाँ किसका राज आ गया।
–इसी पुस्तक से
Agnibeej
- Author Name:
Markandey
- Book Type:

- Description: 'अग्निबीज' में प्रस्तुत कथा-योजना का समय स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद का है। उत्तर भारत के सामाजिक-राजनैतिक जीवन और यहाँ की असह्य वर्ण व्यवस्था का उस पर प्रभाव इस उपन्यास का मुख्य विचार तत्व है। इसी कारण इसके नायक तीन ऐसे पात्र बनाए गए हैं जो अल्पवय हैं और पिछड़ी तथा निचली जातियों से आते हैं। श्यामा, जो एक विक्षिप्त स्वतंत्रता सेनानी की कन्या है, इन बाल पात्रों में सर्वाधिक जागृत है। श्यामा के पिता को, स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान पुलिस की लाठियों और यातनाओं गूँगा बना दिया है। उनका भाई उनकी कृति और त्याग का पूरा फ़ायदा उठाता है और राजनीति तथा सामाजिक जीवन में निरन्तर लन्द-फन्द करके एक महत्त्वपूर्ण कांग्रेस नेता बन जाता है। 'अग्निबीज' का सत्य उत्तर भारत के ग्रामीण जीवन का ऐसा मुखर सत्य है जिसके कारण उच्च जातियों के बुद्धजीवियों और आलोचकों ने इस उपन्यास के विचार तत्व को एक रूप तले दबाने का प्रयत्न किया लेकिन इसके व्यापक प्रभाव को रोक पाना, उनके लिए सम्भव नहीं हो पाया। उपन्यास सारे देश में पढ़ा एवं सराहा गया और उसे अनेक विश्वविद्यालय अपने पाठ्यक्रमों में पढ़ा रहे हैं। 'अग्निबीज’ की मुख्य उपलब्धि उसमें वर्णित उत्तर भारत के गाँवों का सामाजिक जीवन है। पिछड़ी जातियों और हरिजनों के दुःखद और यातनामय जीवन की जैसी झाँकी 'अग्निबीज' में चित्रित है, उसका दर्शन प्रेमचन्द को छोड़कर किसी अन्य कथाकार के यहाँ उपलब्ध नहीं है। ख़ुशी की बात तो यह है कि ‘अग्निबीज’ का सत्य स्वतंत्रता प्राप्ति के इतने वर्षों बाद पुन: उजागर हो रहा है। समाज के उपेक्षित वर्ण जागृत होकर देश की मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं। उन्होंने सामाजिक-राजनीतिक जीवन में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया है।
Sant Ravidas Ratnawali
- Author Name:
Mamta Jha
- Book Type:

- Description: संत रविदास का जन्म वाराणसी के निकट मंडूर नामक गाँव में संवत् 1433 को माघ पूर्णिमा के दिन माना जाता है। उनके विभिन्न नाम हैं—रविदास, रैदास, रादास, रुद्रदास, सईदास, रयिदास, रोहीदास, रोहिदास, रूहदास, रमादास, रामदास, हरिदास। इनमें से रविदास तथा रैदास दो नाम तो ऐसे हैं, जो दोनों ही उनकी रचनाओं में उपलब्ध होते हैं। बचपन से ही उनकी रुचि प्रभु-भक्ति और साधु-संतों की ओर हो गई थी। बड़ा होने पर उन्होंने चर्मकार का अपना पैतृक काम अपना लिया। जूता गाँठते हुए वे प्रभु भजन में लीन हो जाते। जो कुछ कमाते, उसे साधु-संतों पर खर्च कर देते। रविदास ने उस समय के प्रसिद्ध भक्त गुरु रामानंद से दीक्षा ली। उन्होंने ऊँच-नीच के मत का खंडन किया। वे अत्यंत विनीत और उदार विचारों के थे। उनकी भक्ति उच्च दर्जे की थी। वे कठौती में ही गंगाजी के दर्शन कर लिया करते थे। ‘संत रैदास की वाणी’ में 87 पद तथा 3 साखियों का संकलन ‘रैदास’ के नाम से हुआ है, जिनमें से लगभग सभी में ‘रैदास’ नाम की छाप भी मिलती है। प्रस्तुत पुस्तक में संत रविदास के आध्यात्मिक जीवन, उनकी रचनाओं, उनके जप-तप और समाज-उद्धार के लिए किए गए कार्यों का सीधी-सरल भाषा में विवेचन किया गया है।
Jai Baba Felunath
- Author Name:
Satyajit Ray
- Book Type:

-
Description:
शरलक होम्स और जेम्स बॉण्ड की तरह ही सत्यजित राय के एक दुर्धर्ष पात्र हैं फेलूदा। जटिल से जटिल परिस्थितियों को परत-दर-परत खोलकर सच को सामने लाना उनका काम है। बांग्लाभाषी समाज की एक पूरी पीढ़ी फेलूदा के जासूसी कारनामों को पढ़-पढ़कर सयानी हुई है। आकर्षण कुछ ऐसा कि किशोरावस्था को पीछे छोड़ चुके प्रौढ़ पाठकों के बीच भी इसकी लोकप्रियता कम नहीं है।
‘जय बाबा फेलूनाथ’ सत्यजित राय के फेलूदा सीरीज़ का एक प्रतिनिधि उपन्यास है। आधुनिक हिन्दी साहित्य में रहस्य-रोमांच और जासूसी पर आधारित लेखन का श्रीगणेश भले ही हुआ हो, परवर्ती रचनाकारों की लिखी ऐसी मनमोहक कृतियाँ नहीं मिलतीं। सत्यजित राय की प्रस्तुत कृति का अनुवाद इस कमी को पूरा करने की दिशा में एक विनम्र प्रयास है जिस पर उनके द्वारा निर्मित फिल्म भी अत्यन्त लोकप्रियता हासिल कर चुकी है।
Tarang
- Author Name:
Kamlakant Tripathi
- Book Type:

-
Description:
देश के वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य की विसंगतियों, द्वंद्वों और दुविधाओं के उत्स की तलाश है ‘तरंग’। यह तलाश इतिहास के जिस कालखंड (1934-42 ) में ले जाती है उसकी धड़कनें स्वातंत्र्योत्तर भारत की बुनियाद में अन्तर्भुक्त हैं और उसकी यात्रा को लगातार विचलित-आलोड़ित करती रही हैं। उस कालखंड में इन विसंगतियों, द्वंद्वों और दुविधाओं को जिस तरह बरता गया, उसका फलित हमें आज भी उद्भ्रान्त किए हुए है। उपन्यास के रूप में ‘तरंग’ उसी कालखंड की गहन पड़ताल करती एक बहुआयामी कथा है जिसकी जड़ों के रेशे पिछली सदी के आरम्भ तक जाते हैं।
भगत सिंह और चन्द्रशेखर आज़ाद के बलिदान के साथ ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ की क्रान्तिकारी धारा का अवसान नहीं हो गया था, उसमें बिखराव ज़रूर आया था। ‘तरंग’ एक औपन्यासिक कृति के रूप में उसी अवशिष्ट धारा के एक विच्छिन्न समूह के गुमनाम क्रान्तिकारियों के अन्तरंग से साक्षात्कार कराती है। उसी धारा को केन्द्र में रखकर वैश्विक परिप्रेक्ष्य में स्वतंत्रत आन्दोलन की मुख्यधारा का प्रतिपाठ भी रचती है और इतिहास के कई मिथकों का भेदन करती है। इस अर्थ में ‘तरंग’ भारतीय और विश्व इतिहास के एक अहम अध्याय में उपन्यासकार का सुचिन्तित सृजनात्मक हस्तक्षेप है। गांधी-नेहरू-पटेल की अन्तर्विरोधी धारा के बरअक्स उपन्यास का विशाल फलक स्वामी सहजानन्द, डॉ. अम्बेडकर, एम.एन. रॉय और सुभाषचन्द्र बोस के गिर्द घूमता है और अकादमिक इतिहास-लेखन के कुहासे को भेदकर उसके उपेक्षित या अल्पज्ञात पक्ष को निर्मम यथार्थ की रोशनी में उद्घाटित करता है। इस अर्थ में उपन्यास उस कालखंड के ज़मीनी, अन्तरंग और ज़रूरी दस्तावेज़ की निर्मिति भी है। अकादमिक रिक्ति को भरने का एक श्रमसाध्य, निष्ठावान और सृजनात्मक उपक्रम।
उस कालखंड में किसान आन्दोलन की एक उत्कट क्रान्तिकारी धारा भी प्रवाहित है जो जमींदारों, ताल्लुकेदारों के विरुद्ध किसान-संघर्ष की नई प्रविधि ईजाद करती है। क्रान्तिकारियों का उक्त समूह स्वामी सहजानन्द के उत्प्रेरण में इस ईजाद के केन्द्र में है। इस ब्याज से उपन्यास सबाल्टर्न इतिहास के एक अँधेरे कोने को दीप्त करता है। क्रान्ति-पथ को स्खलित करने की ओर प्रवृत्त ऐन्द्रिक स्त्री-पुरुष सम्बन्ध का कलात्मक अतिक्रमण भी ‘तरंग’ का एक अहम उपजीव्य है।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...