Pratham Phalgun
Author:
Shri Naresh MehtaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Unavailable
इसका कथानक उस प्रथम प्रेम की मार्मिकता को अभिव्यक्त करता है जिसका सम्मोहन सार्वकालिक तथा सार्वदेशिक होता है। इस उपन्यास में दो पात्र—गोपा और महिम। आज से तीस-चालीस वर्ष पहले का लखनऊ। परिपार्श्व की इस ऐकान्तिकता के साथ-साथ दो पात्रों का अपना निजपन, जहाँ किसी तीसरे का कोई अर्थ या महत्त्व नहीं। रागात्मकता के किन-किन और कैसे-कैसे प्रसंगों, स्थितियों तथा मुद्राओं से होकर गोपा और महिम यात्रा करते हैं, यह इस उपन्यास की बुनावट, भाषा तथा प्रतीकों के माध्यम से देखा जा सकता है। जिस प्रकार गोपा और महिम को किसी अन्य की अपेक्षा नहीं, वैसी ही तन्मयता इसे पढ़ते हुए मिलती हैं।
ISBN: 9788180317187
Pages: 219
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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- Description: सितारे रात में ही चमकते हैं या कहें कि हर सितारे का एक अँधेरा भी होता है। लेकिन दर्शक की नज़र अक्सर सितारों पर ही जाती है, उनके अँधेरों पर नहीं। यह प्रक्रिया हमारी फ़ितरत से भी सम्बन्ध रखती है, और सीमा से भी। शोभा डे इसी प्रक्रिया में हस्तक्षेप करती हैं। वे उन अँधेरों को भी उघाड़कर देखती हैं, जिन्हें रोशनी ने छुपाया हुआ है। विडम्बना यह कि लेखिका की आँख से देखे और दिखाए गए ये अँधेरे 'बॉलीवुड' की जिन सच्चाइयों को उजागर करते हैं, उन्हें अक्सर ही 'गॉसिप' कहकर नकार दिया जाता है। लेखिका ने इस पुस्तक में मुम्बई की फ़िल्मी दुनिया के जिन चरित्रों को चित्रित किया है, वे अमूर्त नहीं हैं। उन्हें पहचाना जा सकता है—ख़ासकर इसकी केन्द्रीय चरित्र आशा रानी को। यथार्थ और लेखकीय कल्पना के बावजूद उसे हम जीवित-जाग्रत अभिनेत्री के रूप में भी पहचान सकते हैं, और एक प्रतीकात्मक चरित्र के रूप में भी। उसके इर्द-गिर्द और भी कितने ही तारों-सितारों की पहचान की जा सकती है। दरअसल यह एक ऐसी रंगीन दुनिया है, जिसका उद्दाम आकर्षण किसी भी कलाकार को किसी भी हद तक ले जा सकता है। देह इस दुनिया में सिर्फ़ उपभोग और ऊँचाई पर पहुँचने का माध्यम है। निषेध और नैतिकता यहाँ सिर्फ़ शब्द हैं। स्त्री है, जो बिछी हुई है और पुरुष है, जो तना हुआ है। कहना न होगा कि अंग्रेज़ी से अनूदित शोभा डे की यह कृति हिन्दी पाठकों के लिए एक नया अनुभव होगा। अलग-अलग फ़िल्मी चरित्रों की पेशगोई के बावजूद इसे एक दिलचस्प उपन्यास की तरह पढ़ा जा सकता है।
Pramod
- Author Name:
Chitra Singh
- Book Type:

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Description:
जीवन का हर पल यदि इस भाव से जिया जाए, जैसे वही अन्तिम पल हो, तो जीवन की सार्थकता बढ़ जाती है। ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जब कुछ लोगों ने जीवन को इसी भाव से जिया और समाज पर गहरी छाप छोड़ गए। यह कृति आत्मकथ्यात्मक शैली में लिखा गया एक ऐसा उपन्यास है, जिसे लेखिका ने 30 वर्षों के निजी अनुभवों और भावनाओं के निचोड़ की स्याही से लिपिबद्ध किया है। बेहद प्रवाहमय और भावपूर्ण शब्दांकन के इस ताने-बाने में आपको कई चित्रों में अपने जीवन के ही ऐसे परिचित अक्स नज़र आएँगे जो आपको संघर्षों से उबरने और धीरज के साथ हर समस्या को सुलझाने की प्रेरणा देंगे।
Aanjaney Jayte
- Author Name:
Giriraj Kishore
- Book Type:

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Description:
‘आंजनेय जयते’ गिरिराज किशोर का सम्भवत: पहला मिथकीय उपन्यास है। इसकी कथा संकटमोचन हनुमान के जीवन-संघर्ष पर केन्द्रित है। रामकथा में हनुमान की उपस्थिति विलक्षण है। वे वनवासी हैं, वानरवंशी हैं, लेकिन वानर नहीं हैं; बल्कि अपने समय के अद्भुत विद्वान, शास्त्र-ज्ञाता, विलक्षण राजनीतिज्ञ और अतुलित बल के धनी हैं। उन्होंने अपने समय के सभी बड़े विद्वान ऋषि-मुनियों से ज्ञान हासिल किया है। उन्हें अनेक अलौकिक शक्तियाँ हासिल हैं।
तमाम साहित्यिक-सांस्कृतिक स्रोतों के माध्यम से गिरिराज किशोर ने हनुमान को वानरवंशी आदिवासी मानव के रूप में चित्रित किया है, जो अपनी योग्यता के कारण वानर राजा बाली के मंत्री बनते हैं। बाली और सुग्रीव के बीच विग्रह के बाद नीतिगत कारणों से वे सुग्रीव की निर्वासित सरकार के मंत्री बन जाते हैं।
इसी बीच रावण द्वारा सीता के अपहरण के बाद राम उन्हें खोजते हुए हनुमान से मिलते हैं। हनुमान सीता की खोज में लंका जाते हैं। सीता से तो मिलते ही हैं, रावण की शक्ति और कमज़ोरियों से भी परिचित होते हैं। फिर राम-रावण युद्ध, सीता को वनवास, लव-कुश का जन्म और पूरे उत्तर कांड की कहानी वही है—बस, दृष्टि अलग है।
लेखक ने पूरी रामकथा में हनुमान की निष्ठा, समर्पण, मित्रता और भक्तिभाव का विलक्षण चित्र खींचा है। उनकी अलौकिकता को भी महज़ कपोल-कल्पना न मानकर एक आधार दिया है। लेखक ने पूरे उपन्यास में उन्हें अंजनी-पुत्र आंजनेय ही कहा है, उनकी मातृभक्ति के कारण उपन्यास में सबसे महत्त्वपूर्ण उत्तरार्ध और क्षेपक है जो शायद किसी राम या हनुमान कथा का हिस्सा नहीं।
यहाँ हनुमान सीता माता के निष्कासन के लिए राम के सामने अपना विरोध जताते हैं और उन्हें राजधर्म और निजधर्म की याद दिलाते हैं। यहाँ यह कथा अधुनातन सन्दर्भों में गहरे स्तर पर राजनीतिक हो जाती है। वैसे, मूल रामकथा में बिना कोई छेड़छाड़ किए लेखक ने आंजनेय के चरित्र को पूरी गरिमा के साथ स्थापित किया है। यह एक बड़ी उपलब्धि है।
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