Kaun Taar Se Bini Chadariya
Author:
Vyas MishraPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 319.2
₹
399
Available
v data-content-type="html" data-appearance="default" data-element="main">‘कौन तार से बीनी चदरिया’ की पृष्ठभूमि सत्तर और बाद के दशकों में फैले लगभग तीस-बत्तीस वर्षों का कालखंड है जिसे जेपी आन्दोलन के लिए जाना जाता है। उपन्यास में इस आन्दोलन की सामाजिक-राजनीतिक महत्ता को रेखांकित करते हुए इसमें सक्रिय ताक़तों के अन्तर्विरोधों, न्यस्त स्वार्थों, नेतृत्व की दिशाहीनता तथा संकीर्ण मानसिकता की पड़ताल भी की गई है।
आन्दोलन के बाद मध्य बिहार में सदियों के अँधेरों में सिसकते एवं शोषण की चक्की में पिसते दबे-कुचले वर्गों के भीतर उबलती परिवर्तन की हुंकारों और आकांक्षाओं के उतार-चढ़ाव के कुछ चित्र भी इसमें हमें मिलते हैं और भीषण दैन्य, व्यवस्था-जन्य हिंसा और कठोर शासकीय दमन के बीच मानवीय जिजीविषा का अक्षय संगीत भी इस उपन्यास की पंक्तियों में हमें सुनाई देता है। क्रान्ति के नाम पर हिंसा की अन्धी सुरंगों में भटकाव के ख़तरों की निशानदेही भी इस आख्यान में की गई है।
उपन्यास का मुख्य पात्र डॉक्टर अमिय न तो पूरा डॉक्टर है, न ही पूरा संन्यासी। जेपी के बुलावे पर बिहार आने के बाद मध्य बिहार की केवाल मिट्टी की गंध में रच-बस गया वह पात्र अमानुषिक यथार्थ के खिलाफ मानवीय गरिमा, न्याय और समानता का अलख जगाने में अपना पूरा जीवन खपा देता है।
समर्पित युवाओं का एक बड़ा समूह भी उसके साथ खड़ा होता है जिनके लिए वह मित्र, दार्शनिक और पथ-प्रदर्शक के रूप में हमारे सामने उभरता है। संन्यास की दीक्षा लेने के बाद हिमालय की खोहों में ईश्वर की तलाश में भटका उसका यायावर मन अन्ततः ‘परायी पीर’ के विरुद्ध जन-संघर्षों में ही परम सत्य का दर्शन पाता है।
किसी शैल्पिक प्रयोग में उलझे बगैर यह उपन्यास एक सहज और पठनीय कथात्मकता का निर्माण करता है और पाठक को एक विशेष समय-खंड में ले जाकर मानवीय उदात्तता और संघर्षशीलता का एक जिम्मेदार सामाजिक-राजनीतिक पाठ बुनता है।</
ISBN: 9789391950095
Pages: 408
Avg Reading Time: 14 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
50 Mahan Swatantrata Senani
- Author Name:
Rishi Raj
- Book Type:

- Description: "जिन लोगों ने देश को स्वाधीन कराने का स्वप्न देखा, इसकी कल्पना की और दृढ निश्चय कर अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया, उनका पुण्य स्मरण करना हमारा पुनीत कर्तव्य है। उनके बलिदान को आज की युवा पीढ़ी तक पहुँचाना हमारा परम धर्म है। जिस आजादी की हवा में हम साँस ले पा रहे हैं, अपने लिए, अपने घर-परिवार के लिए कुछ कर पा रहे हैं, इसमें कहीं-न-कहीं उन सभी के बलिदान की सुगंध है। इसलिए इन हुतात्माओं को कोटि-कोटि वंदन-अभिनंदन! शहीदों से जुडे़ स्थानों पर जाना, उनको समय-समय पर याद करना व उनको श्रद्धांजलि देना, यह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा होना चाहिए। आनेवाली पीढि़यों को अपने गौरवमयी अतीत व हमारे शूरवीरों के महान् जीवन से परिचय करवाना हम सबका धर्म बनता है। राष्ट्र के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करनेवाले हुतात्माओं की एक लंबी शृंखला है। उनमें से 50 अमर सपूतों के प्रेरणाप्रद जीवन से पाठकों को परिचित कराने का यह उपक्रम है, जो निश्चित रूप से हर भारतीय को पढ़ना ही चाहिए।"
Pratigya
- Author Name:
Premchand
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Narvanar
- Author Name:
Sharankumar Limbale
- Book Type:

-
Description:
‘नरवानर’ 1956 से 1996 तक के समय पर आधारित यह उपन्यास दरअसल आत्मचिन्तन है। दलित-विमर्श के संवेदनशील विस्फोटक सन्दर्भ का एक साहित्यिक विश्लेषण। लेखक के अनुसार इस आत्मचिंतन या विश्लेषण के मूल में हैं कुछ स्मृतियाँ, कुछ बहसें, कुछ समाचार, कुछ साहित्य-पाठ, समाज की गतिविधियाँ और उनसे उत्पन्न प्रतिक्रियाएँ, बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार और व्यभिचार की ओर उन्मुख दैनंदिन नैतिकता, दंगे और हिंसा, राजनीति का अपराधीकरण, अपराधियों को प्राप्त प्रतिष्ठा, राष्ट्रीय नेतृत्व का भ्रष्टाचार, बढ़ती हुई बेरोज़गारी, महँगाई, ग़रीबी और आबादी।
लेकिन मराठी में ‘उपल्या’ नाम से प्रकाशित और चर्चित इस उपन्यास की केन्द्रीय चिन्ता समकालीन दलित आन्दोलन है। पहले अध्याय में एक सनातनी ब्राह्मण परिवार के दलितीकरण का चित्रण है तो तीसरे अध्याय में एक ब्राह्मण परिवार की ही बेटी एक दलित से विवाह करके नया जीवन शुरू करती है। बाकी दो अध्यायों में दलित आन्दोलन के उभार, संघर्ष और विखंडन पर दृष्टिपात किया गया है।
कहना न होगा कि हिन्दी और मराठी में समान रूप से लोकप्रिय लेखक शरणकुमार लिंबाले का यह उपन्यास समकालीन दलित विमर्श के सन्दर्भ में एक ज़रूरी पुस्तक है।
Pakistan Mail
- Author Name:
Khushwant Singh
- Book Type:

-
Description:
भारत-विभाजन की त्रासदी पर केन्द्रित ‘पाकिस्तान मेल’ सुप्रसिद्ध अंग्रेज़ी उपन्यासकार खुशवंत सिंह का अत्यन्त मूल्यवान उपन्यास है। सन् 1956 में अमेरिका के ‘ग्रोव प्रेस एवार्ड’ से पुरस्कृत यह उपन्यास मूलतः उस अटूट लेखकीय विश्वास का नतीजा है, जिसके अनुसार अन्ततः मनुष्यता ही अपने बलिदानों में जीवित रहती है।
घटनाक्रम की दृष्टि से देखें तो 1947 का भयावह पंजाब! चारों ओर हज़ारों-हज़ार बेघर-बार भटकते लोगों का चीत्कार! तन-मन पर होनेवाले बेहिसाब बलात्कार और सामूहिक हत्याएँ! लेकिन मज़हबी वहशत का वह तूफ़ान मनो-माजरा नामक एक गाँव को देर तक नहीं छू पाया; और जब छुआ भी तो उसके विनाशकारी परिणाम को इमामबख़्श की बेटी के प्रति जग्गा के बलिदानी प्रेम ने उलट दिया।
उपन्यास के कथाक्रम को एक मानवीय उत्स तक लाने में लेखक ने जिस सजगता का परिचय दिया है, उससे न सिर्फ़ उस विभीषिका के पीछे क्रियाशील राजनीतिक और प्रशासनिक विरूपताओं का उद्घाटन होता है, बल्कि मानव-चरित्र से जुड़ी अच्छाई-बुराई की परम्परागत अवधारणाएँ भी खंडित हो जाती हैं। इसके साथ ही उसने धर्म के मानव-विरोधी फ़लसफ़े और सामाजिक बदलाव से प्रतिबद्ध बौद्धिक छद्म को भी उघाड़ा है।
संक्षेप में कहें तो अंग्रेज़ी में लिखा गया खुशवंत सिंह का यह उपन्यास भारत-विभाजन को एक गहरे मानवीय संकट के रूप में चित्रित करता है; और अनुवाद के बावजूद उषा महाजन की रचनात्मक क्षमता के कारण मूल-जैसा रसास्वादन भी कराता है।
Devdas
- Author Name:
Sharatchandra
- Book Type:

-
Description:
‘देवदास’ शरतचन्द्र का पहला उपन्यास है। लिखे जाने के सोलह साल बाद तक यह अप्रकाशित रहा। शरत स्वयं इसके प्रकाशन के लिए उत्साही नहीं थे, लेकिन 1917 ई. में इसके छपने के साथ ही व्यापक रूप से इसकी चर्चा शुरू हो गई थी। विभिन्न भारतीय भाषाओं में इसके अनेक अनुवाद हुए। अनेक भारतीय भाषाओं में इस पर फ़िल्में बनीं। आख़िर ‘देवदास’ की इतनी लोकप्रियता के क्या कारण हैं? यह कृति क्यों कालजयी बन गई? असल में ‘देवदास’ सामन्ती ढाँचेवाले भारतीय समाज में घटित एक ऐसी प्रेमकथा है जिसमें गहरी संवेदनशीलता है। शरत ने उसे इतनी अन्तरंगता से लिखा है कि ‘देवदास’ की कहानी में सबको कहीं-न-कहीं अपनी ज़िन्दगी भी दिखाई दे जाती है। ‘देवदास’ भारतीय समाज-व्यवस्था की अनेक विसंगतियों पर एक कड़ी टिप्पणी भी है।
पत्रकार सुरेश शर्मा ने ‘देवदास’ की विस्तृत भूमिका में पहली बार इस कृति और उसके सर्जक शरतचन्द्र के बारे में अनेक नई जानकारियाँ दी हैं। यह भूमिका न सिर्फ़ इस कृति का नया मूल्यांकन करती है, बल्कि इस बात की भी तलाश करती है कि ‘देवदास’ की पारो और चन्द्रमुखी कौन थी? शरत को ये पात्र जीवन में कहाँ और कब मिले?—इन जानकारियों के साथ ‘देवदास’ को पढ़ना उसमें नया अर्थ पैदा करेगा।
Vaidehi Ke Ram
- Author Name:
Chitra Chaturvedi 'Kartika'
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
The Gift
- Author Name:
Ruchi Prabhu
- Rating:
- Book Type:

- Description: Don’t read this book. Do NOT read this book Go watch YouTube videos Go watch series on Netflix Go listen to some songs on Ganna.com But, Just put the book down quietly and walk away… WARNING! In this book I have had my share of experiencing romance, hatred, longing and drops the most. An individual observes a bunch to pick up nuisance of personalities and relationship dynamics of those around him/her. This book contains my way of expressing through haiku or Epigrams which evoke my personal feelings dealing with a good ending and sometimes with the ray of no hope in a scalding weather.
Vaidhanik Galp
- Author Name:
Chandan Pandey
- Book Type:

-
Description:
गहरी राजनैतिक, सामाजिक पक्षधरता का गद्य होते हुए भी चन्दन का ‘वैधानिक गल्प’ तीव्र आन्तरिक भावनाओं और संवेदनाओं का साथ नहीं छोड़ता। इस मुश्किल जगह से रचे जाने के बावजूद कमाल यह भी है कि यह गल्प के पारम्परिक तत्त्वों जैसे–रहस्य, रोचकता और अन्तत: पठनीयता को बचाए रखता है। प्यार, क्रूरता और प्रतिरोध चन्दन के यहाँ अपने सूक्ष्म और समकालीन रूपों में प्रकट होते हैं जो न सिर्फ़ चकित करता है बल्कि पाठक की चेतना में कुछ सकारात्मक जोड़ जाता है।
—महेश वर्मा
चन्दन पाण्डेय की लेखकी को समकाल के पूर्ण साहित्यिक विनियोग के रूप में देखा-रखा जा सकता है। चन्दन का कथाकार क़िस्से में ग़ाफ़िल नहीं, बल्कि सतर्क व अचूक है, जिससे समकाल के अद्यतन संस्करण का भी प्रवेश उनके कथादेश में सहज ही सम्भव है। कहन की साहिबी उन्हें ईर्ष्या का पात्र बनाती है।
—कुणाल सिंह
Bhojan, Poshan Aur Swachchhata
- Author Name:
Dr. Virendra Singh Yadav +1
- Book Type:

- Description: किसी भी व्यक्ति को स्वस्थ, स्फूर्तिमय और रोगमुक्त रहने के लिए स्वास्थ्यवर्धक भोजन, उत्तम पोषण और स्वच्छता का ध्यान सदैव रखना आवश्यक है। व्यक्ति प्रतिदिन संतुलित और पौष्टिक आहार लेकर, पर्याप्त जल एवं तरल पदार्थों का सेवन करके व्यक्ति कुपोषित होने से बच सकता है और रोगमुक्त होकर स्वस्थ जीवन जी सकता है। समाज में प्रचलित सामान्य गैर-संचारी बीमारियों, जैसे— डायबिटीज, उच्च रक्तचाप या अति तनाव, मोटापा या मेदुरता, कब्ज, अतिसार या डायरिया, टाइफायड या आंत्रज्वार के होने के कारण, बचाव और उपचार का ध्यान रखकर हम स्वयं तथा अपने परिवार और आसपास के इष्ट मित्रों को इन घातक बीमारियों से बचा सकते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा स्वीकृत राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुरूप प्रदेश के समस्त विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों हेतु पुनर्गठित-एकीकृत सह-पाठ्यक्रम के सभी संकायों के स्नातक अर्थात् बी.ए., बी.एस-सी., बी.कॉम., बी.एस-सी. कृषि आदि के प्रथम सेमेस्टर या अन्य सेमेस्टर हेतु निर्धारित इस पाठ्यपुस्तक में भोजन, पोषण एवं स्वच्छता से संबंधित और पाठ्यक्रम में निर्धारित उपर्युक्त सभी क्षेत्रों के विषय में सरल, सहज व सुबोध भाषा में विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है, ताकि प्रदेश सरकार द्वारा निर्धारित इस सह-पाठ्यक्रम के समस्त बिंदुओं को विद्यार्थी आसानी से समझ सकें।
Matrichhabi
- Author Name:
Mahashweta Devi
- Book Type:

-
Description:
‘माँ’ सिर्फ़ एक सम्बन्धवाचक शब्द नहीं, बल्कि बरगद की वृक्ष की तरह इसकी विशालता है। जिसकी असंख्य जड़ें हैं, जो ज़मीन में मज़बूती से पैठकर अपने हर छोटे तने को पेड़ बनते देखती है। महाश्वेता देवी की ‘मातृछवि’ में माँ रूपी बरगद के अनेक तने हैं जिनमें उसके भिन्न-भिन्न रूप दिखाई देते हैं। इसमें कौशल्या है जो अपनी ज़मीन के लिए, अपने अधिकार के लिए हसुआ लेकर अकेले पूरे गाँव का नेतृत्व करती है और अपनी ज़िन्दगी न्योछावर कर देती है। वहीं जाह्नवी माँ हैं, जिन्हें जीते-जी देवी अवतार का रूप बताकर उनके पोते उनकी कमाई खाते रहते हैं और असल में उन्हें एक कोठी में बन्द कर खाने के लिए भी तरसाते हैं। ‘मातृछवि’ सिर्फ़ माँ के भिन्न रूपों को नहीं गढ़ती, बल्कि आज़ादी के बाद के बंगाल की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परतों को भी उधेड़ती है। परतों के खुलते ही जहाँ नक्सलबाड़ी आन्दोलन की रक्तरंजित भूमि दिखाई देती है तो वहीं समाजवाद के निर्माण के नाम पर यमुनावती की माँ और उसके जैसे तमाम लोग, जो अपने को फालतू और अनावश्यक समझने पर मजबूर किए जाते हैं। वहीं अपनी इज़्ज़त को बचाए रखने और अपने बच्चे को भरपेट चावल खिलाने के लिए जटी को सुबह-शाम की माँ बनना पड़ता है। और दिन देवी बनकर गुज़ारना पड़ता है।
महाश्वेता देवी की कहानियों में भले ही औरत का मातृ रूप आज से पचास साल पहले का ही क्यों न हो, लेकिन इसकी प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है जितनी तब रही होगी।
Chhattisgarh Ki Lokkathayen
- Author Name:
Pardeshi Ram Verma
- Book Type:

- Description: लोककथा और लोकगाथा का विपुल भंडार है छत्तीसगढ़ के आदिवासी, दलित और पिछड़े समाज के पास। जीवन के विविध रंगों को भिन्न-भिन्न लोककथाओं में हम देख पाते हैं। मनुष्य की प्रवृत्तियों पर कथाओं में संकेत हैं। मनुष्य और वन-पशु तथा मछली, चूहा, मेढक, साँप, दीपक, खाद्यान्न, पेड़—सभी पशु, नदी, सूर्य, आकाश आदि कथाओं में पात्रों की भूमिका निभाते हैं। छत्तीसगढ़ की लोककथाओं के इस संकलन में ऐसी कथाएँ चुनी गई हैं, जिनमें छत्तीसगढ़ी रंग पूरे प्रभाव के साथ उपस्थित है। इन लोककथाओं में छत्तीसगढ़ की संस्कृति और युगीन परंपराओं का इतिहास झलकता है। यहाँ की संस्कृति, लोक-मान्यता, लोककला, लोकगीत और लोक-परंपराओं को इन लोककथाओं के माध्यम से पाठक जानें-समझें, यह प्रयास किया गया है।
Madhur Swapna
- Author Name:
Rahul Sankrityayan
- Book Type:

- Description: ‘मधुर स्वप्न’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है। इतिहास के अध्येता-अन्वेषक के रूप में राहुल सांकृत्यायन ने ऐसे पक्षों और प्रसंगों को उजागर करने में विशेष दिलचस्पी दिखाई जिनमें गणतांत्रिक, समाजवादी और साम्यवादी मूल्यों के चिह्न मिलते हैं। वस्तुतः पाठकों को वे यह दिखलाना चाहते थे कि भेद-भावमुक्त और बराबरी पर आधारित समाज के निर्माण के लिए जिन मूल्यों की वकालत की जा रही है उनका एक ठोस ऐतिहासिक आधार है; वे मानव समाज की विरासत का हिस्सा हैं। यह सोच ‘मधुर स्वप्न’ सहित उनकी सभी ऐतिहासिक कृतियों में स्पष्ट झलकती है। इस उपन्यास की कथाभूमि है मध्य एशिया में दजला नदी से यक्षु नदी तक की भूमि और काल है पाँचवीं सदी के अन्तिम दशक से लेकर छठी सदी के आरम्भिक तीन दशक। तब वहाँ सासानी वंश का पीरोजा पुत्र कवात् का शासन था। धर्माचार्यों का उन दिनों बड़ा जोर था। इस उपन्यास में उन्हीं दिनों के सामन्ती शासन के वैभव-विलास, धर्माचार्यों की अनीति और दुराचार तथा दीन-दुखियों के करुण चीत्कार का विश्वसनीय चित्रण हुआ है। इसमें इतिहास के दोनों प्रकार के पात्र जीवन्त रूप में उपस्थित हैं—वे जिन्होंने बल और धन के जोर पर जन सामान्य का शोषण करना अपना शाश्वत अधिकार समझा, और वे भी जो प्रतिकूल से प्रतिकूल परिस्थितियों में भी न्याय हासिल करने के स्वप्न को नहीं भूले और उसके लिए त्याग किया। धनिकों और गरीबों, शासकों और शासितों की विषम स्थिति के बीच न्याय और जनमुक्ति का यह मधुर स्वप्न ही इस उपन्यास का मूल सन्देश है। यह उपन्यास, वास्तव में, युग-युग के उस स्वप्न की सम्पूर्ण झलक है जो धीरे-धीरे, आंशिक रूप में ही सही, सत्य बनता जा रहा है।
Nano Tales
- Author Name:
Various Authors
- Rating:
- Book Type:

- Description: This book contains 38 Nano tales by different authors depicting life, motivation and inspiration. This is the world’s first book to be published on Nano tales. Nano tale is a small story written in little words with a strong message. The figure of speech used by the writers is at its best. Irony, rhetoric, sarcasm, pun, and satire are some essential tools of a Nano tale. The words are limited, but the message is loud and clear.
Love Me Like You Do
- Author Name:
Akarsh Raker
- Book Type:

- Description: We have been taught that opposites attract but do it apply everywhere? Love is one such feeling in the world which cannot be defined with a set of words. It can neither be created nor be destroyed. Vikram, an engineering student, aspiring to be a writer, has a rough patch with his parents. His only reason to enjoy life was Kriti, hoping things would get better. He meets Dhruv, a filmmaker based in Bangalore who was looking for a writer to make his first feature film. Vikram and Dhruv got along quickly, and with this, Vikram's dream to pursue writing was coming true. He also gave up college for this. But later, life had different plans for him. Two incidents changed his life forever. Incidents he could never forget. One gave him love, while the other took away his life. Can love heal everything? Or everything in the world is love? Love me as you do is a tale of love, friendship, passion and setting yourself free to cross the boundaries of life.
Chalni Mein Amrit
- Author Name:
Kamala Markande
- Book Type:

-
Description:
‘चलनी में अमृत’ यशपाल द्वारा अनूदित एक उपन्यास है जो 1950 के दशक में कमला पूर्नईया टेलर द्वारा ‘नेक्टर इन सीव’ नाम से अंग्रेज़ी में लिखा गया। यह लेखिका का पहला ही उपन्यास था, फिर भी इसे बेस्ट सेलर के रूप में ख्याति मिली और 1955 में अमेरिकन लाइब्रेरी एसोसिएशन ने इस उपन्यास को वर्ष की महत्त्वपूर्ण कृति कहते हुए दर्ज किया। कमला पूर्नईया को संस्कृतियों के टकराव पर लिखने के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।
‘चलनी में अमृत’ उपन्यास विपन्नता, भूख और व्यवस्थागत शोषण की मार्मिक कथा सामने लाता है। फ़्लैश बैक से खुलता हुआ यह उपन्यास कथा पात्र रुक्मिणी यानी रुकू की विवाह स्मृति से आरम्भ होता है। उसका विवाह तब हुआ था जब वह केवल बारह वर्ष की थी और सौभाग्य का एकमात्र टुकड़ा उसके हिस्से यही था कि उसका पति नाथन एक सज्जन व्यक्ति था। रुकू के जीवन में सपने और ख़ुशियाँ एक झलक-भर को आती हैं और फिर आर्थिक सामाजिक त्रासदी उन्हें झपट लेती है। खेती को निगलती हुई उद्योग की आहट भी इस उपन्यास में है, जो एक टेनरी (चमड़े का कारख़ाना) की तरह आकर रुकू के जीवन की यातना बनती है। विपन्नता की पराकाष्ठा है कि रुकू की बेटी देह व्यापार के लिए विवश होती है और एक माँ के रूप में रुकू को यह नियति सह लेनी पड़ती है। परिवार में शिशु का जन्म जो आह्लाद लाता है, उसे बच्चों की असमय मृत्यु, उनका पलायन क्रूरता से मिटा भी देता है। कठिन जीवन-यापन के दौरान समय के सच को नकारती सामाजिक मान्यताएँ रुकू और उसके पति दोनों को ब्लैकमेल होने को मजबूर करती हैं। इस तरह इनका पूरा जीवन बूँद-बूँद क्षणिक ख़ुशियों के बीच से गुज़रता है लेकिन कोई भी ख़ुशी इनके पास ठहरने नहीं पाती। इस त्रासदी के पीछे प्रकृति भी है और समाज रचित व्यवस्था भी।
इस तरह, यह उपन्यास अपने समाज के यथार्थ पर भी संवेदनापूर्वक उँगली रखता है। उपन्यास का अनुवाद अपने आस्वाद में इस कृति को मूलतः हिन्दी रचना-सा ही आभास देता है। ‘चलनी में अमृत’ अपने मुख्य सरोकार में आज भी एक प्रासंगिक कृति है।
Apaar Khushi Ka Gharana
- Author Name:
Arundhati Roy
- Book Type:

-
Description:
'अपार ख़ुशी का घराना' हमें कई वर्षों की यात्रा पर ले जाता है। यह एक कहानी है जो पुरानी दिल्ली की तंग बस्तियों से खुलती हुई फलते-फूलते नए महानगर और उससे दूर कश्मीर की वादियों और मध्य भारत के जंगलों तक जा पहुँचती है, जहाँ युद्ध ही शान्ति है और शान्ति ही युद्ध है और जहाँ बीच-बीच में हालात सामान्य होने का एलान होता रहता है।
अंजुम, जो पहले आफ़ताब थी, शहर के एक क़ब्रिस्तान में अपना तार-तार कालीन बिछाती है और उसे अपना घर कहती है। एक आधी रात को फुटपाथ पर कूड़े के हिंडोले में अचानक एक बच्ची प्रकट होती है। रहस्यमय एस. तिलोत्तमा उससे प्रेम करनेवाले तीन पुरुषों के जीवन में जितनी उपस्थित है उतनी ही अनुपस्थित रहती है।
'अपार ख़ुशी का घराना' एक साथ दुखती हुई प्रेम-कथा और असंदिग्ध प्रतिरोध की अभिव्यक्ति है। उसे फुसफुसाहटों में, चीख़ों में, आँसुओं के ज़रिये और कभी-कभी हँसी-मज़ाक़ के साथ कहा गया है। उसके नायक वे लोग हैं जिन्हें उस दुनिया ने तोड़ डाला है जिसमें वे रहते हैं और फिर प्रेम और उम्मीद के बल पर बचे हुए रहते हैं। इसी वजह से वे जितने इस्पाती हैं उतने ही भंगुर भी, और वे कभी आत्म-समर्पण नहीं करते। यह सम्मोहक, शानदार किताब एक नए अन्दाज़ में फिर से बताती है कि एक उपन्यास क्या कर सकता है और क्या हो सकता है। अरुंधति रॉय की कहानी-कला का करिश्मा इसके हर पन्ने पर दर्ज है।
Bhaya Kabeer Udas
- Author Name:
Usha Priyamvada
- Book Type:

-
Description:
शरीर की पूर्णता-अपूर्णता का प्रश्न किसी-न-किसी स्तर पर मन और जीवन की पूर्णता के प्रश्न से भी जुड़ जाता है। यह उपन्यास शुरू से लेकर आख़िर तक इसी सवाल से जूझता है कि क्या सौन्दर्य के प्रचलित मानदंडों और समाज की रूढ़ दृष्टि के अनुसार एक अधूरे शरीर को उन सब इच्छाओं को पालने का अधिकार है जो स्वस्थ और सम्पूर्ण देहवाले व्यक्तियों के लिए स्वाभाविक होती है। उपन्यास की नायिका विदेशी भूमि पर अपना सहज और अल्पाकांक्षी जीवन जी रही होती है कि अचानक उसे मालूम होता है, उसे स्तन-कैंसर है और यह बीमारी अन्तत: उसके शरीर से उसके सबसे प्रिय अंग को छीन ले जाती है। लेकिन मन! तमाम चोटों के बावजूद मन कब अधूरा होता है, वह फिर-फिर पूरा होकर मनुष्य से, जीवन से अपना हिस्सा माँगता है, अपना सुख।
उषा प्रियम्वदा बारीक और सुथरे मनोभावों की कथाकार रही हैं, उनके पात्र न कभी ऊँचा बोलते हैं, न कभी बहुत शोर मचाते हैं, फिर भी ज़िन्दगी और अनुभूति की उन गलियों को आलोकित कर जाते हैं, जहाँ से गुज़रना हर किसी के लिए उद्घाटनकारी होता है।
यह उपन्यास भी इसी अर्थ में महत्त्वपूर्ण है। इसमें उन्होंने बहुत नई-सी दिखनेवाली कथाभूमि पर, बहुत सहज ढंग से मानव-मन की चिरन्तन लालसाओं, कामनाओं, निराशाओं और उदासियों का अत्यन्त कुशल और समग्र अंकन किया है।
Distraught
- Author Name:
Amal Gupta
- Book Type:

- Description: Contemplative, down-to-earth, and abiding, Manoj moves away from his village when he is still a child. But then comes the trouble and the dilemma. He falters, rises, admires, smiles, fails, and witnesses events that scar him for a lifetime. He is tossed between different people and different ideologies. His conscience fails him as he moves between cities, struggles to earn his daily bread, and makes choices that push him to the extreme and define him forever. This highly relevant coming-of-age novel represents the emotional state of so many young people in their teens and twenties. It has a lucid narrative yet contains embedded bits of a complex, layered commentary on human psychology. Distraught brings forth a story from the times when many Indians had started moving out of their homes to study in different cities and how they struggled to keep their identity intact. Many made it through it, succumbing to the ever-growing emotional and social burden and a consequential conflict with their values. Read this wonderfully promising debut novel and delve deeper into the narrator's mind. Flip its pages, accompany Manoj on his journey and ask yourself: what would you do, were you in his place?
Vishva Dharma Sammelan
- Author Name:
Laxminiwas Jhunjhunwala
- Book Type:

- Description: इसके बाद यह प्रस्ताव पारित किया गया। यहाँ बहुधा यह कहा गया और मैं भी यह कहता रहा हूँ कि हम लोगों ने विगत सत्रह दिनों में जैसा आयोजन देखा है ऐसा अब इस पीढ़ी को तो उनके जीवनकाल में पुन: देखने का अवसर नहीं प्राप्त होगा; पर जिस प्रकार के उत्साह व शक्ति का संचार इस सम्मेलन ने किया है, लोग दूसरे धर्म सम्मेलन के स्वप्न देखने लगे हैं, जो इससे भी अधिक भव्य व लोकप्रिय होगा। मैंने अपनी बुद्घि लगाई है कि अगले धर्म सम्मेलन के लिए उचित स्थान कौन सा हो। जब मैं अपने अत्यंत नम्र जापानी भाइयों को देखता हूँ तो मेरा मन कहता है कि पैसिफिक महासागर की शांति में स्थित टोकियो शहर में अगला धर्म सम्मेलन किया जाए, पर मैं यह सोचता हूँ कि अंग्रेजी शासन के अधीन भारतवर्ष में यह सम्मेलन हो। पहले मैंने बंबई शहर के बारे में सोचा, फिर सोचा कि कलकत्ता अधिक उपयुक्त रहेगा, पर फिर मेरा मन गंगा के तट की प्राचीन नगरी वाराणसी पर जाकर स्थिर हो गया, ताकि भारत के सबसे ओंधक पवित्र स्थल पर ही हम मिलें। अब यह भव्य सम्मेलन कब होगा? हम आज यह निश्चय कर विदा ले रहे हैं कि बीसवीं सदी में अगला भव्य सम्मेलन वाराणसी में होगा तथा इसकी भी अपयक्षता जॉन हेनरी बरोज ही करेंगे।
Kaun Des Ko Vasi : Venu Ki Diary
- Author Name:
Suryabala
- Book Type:

-
Description:
प्रवासी भारतीय होना भारतीय समाज की महत्त्वाकांक्षा भी है, सपना भी है, कैरियर भी है और सब कुछ मिल जाने के बाद नॉस्टेल्जिया का ड्रामा भी। लेकिन कभी-कभी वह अपने आप को, अपने परिवेश को, अपने देश और समाज को देखने की एक नई दृष्टि का मिल जाना भी होता है। अपनी जन्मभूमि से दूर किसी परायी धरती पर खड़े होकर वे जब अपने आपको और अपने देश को देखते हैं तो वह देखना बिलकुल अलग होता है। भारतभूमि पर पैदा हुए किसी व्यक्ति के लिए यह घटना और भी ज़्यादा मानीख़ेज़ इसलिए हो जाती है कि हम अपनी सामाजिक परम्पराओं, रूढ़ियों और इतिहास की लम्बी गुंजलकों में घिरे और किसी मुल्क के वासी के मुक़ाबले क़तई अलग ढंग से ख़ुद को देखने के आदी होते हैं। उस देखने में आत्मालोचन बहुत कम होता है। वह धुँधलके में घूरते रहने जैसा कुछ होता है। विदेशी क्षितिज से वह धुँधलका बहुत झीना दीखता है और उसके पर बसा अपना देश ज़्यादा साफ़।
इस उपन्यास में अमेरिका-प्रवास में रह रहे वेणु और मेधा ख़ुद को और अपने पीछे छूट गई जन्मभूमि को ऐसे ही देखते हैं। उन्हें अपनी मिट्टी की अबोली कसक प्राय: चुभती रहती है—वे अपने परिवार जनों और उनकी स्मृतियों को सहेजे जब स्वदेश प्रत्यावृत्त होते हैं तो उनकी परिकर-परिधि में आए जन उनके रहन-सहन, आत्मविश्वास से प्रभावित होते हैं, किन्तु वेणु और मेधा के दु:ख, उदासी और अकेलापन नेपथ्य में ही रहते हैं। नई पीढ़ी की आकांक्षाओं में सिर्फ़ और सिर्फ़ बहुत सारा धनोपार्जन ही है ताकि एक बेहतर ज़िन्दगी जी सके, जबकि अमेरिका गए अनेक प्रवासी डॉलर के लिए भीतर ही भीतर कई संग्राम लड़ते हैं। कैरम की गोटियों को छिटका देनेवाली स्थितियाँ हैं, पर निर्मम चाहतें।
वरिष्ठ कथाकार सूर्यबाला का यह बृहत् उपन्यास एक विशाल फलक पर देश और देश के बाहर को उजागर करता है। इसका वितान जितना विस्तृत है उतना ही गझिन भी, मनुष्य-संवेदना और खोने-पाने की विकलताएँ जैसे यहाँ एक बड़े फ़्रेम में साकार हो उठी हैं।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Be the first to write a review...