Kanyadan • Dwiragaman

Kanyadan • Dwiragaman

Authors(s):

Harimohan Jha

Language:

Hindi

Pages:

192

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

384 mins

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Book Description

‘कन्यादान’ मिथिलाक एहन व्यथा-कथा अछि, जकरा सँ अजुका समाज सेहो मुक्त नहि भ सकल अछि। उपन्यासक पहिल संस्करण नौ दशक पहिने, यानी 1933 मे पुस्तकाकार छपल छल, मुदा आइ धरि मिथिलाक समाज मे ‘बुच्चिदाइ’ देखल जायत छैथ, आ हुनकर संघर्ष अनवरत चलि रहल छैन। कन्यादान नाम कें साकार करैत घरक मुखिया आइयो अपन कन्या कें जड़ पदार्थ जकाँ दान करबाक हेतु निमित्त रहैत छैथ आ ‘बुच्चिदाइ’ कें विवाहक हेतु सूत्रधार भाँति-भाँतिक तिकड़म लगबैत छैथ। बेस, आइ परिस्थिति बदलल अछि। आब गाम-घरक बुच्ची सेहो स्कूल जायत छैथ। मुदा लड़का-लड़किक भेद एखनो बनल अछि। आइयो कतेको घर मे लड़का कें दूध मिलैत अछि, त लड़की कें माँड़ सँ सन्तोष करऽ पड़ैत छैन।</p> <p>इ पोथी कें लोकप्रियता सिर्फ समाजक यथार्थ चित्रण सँ नहि मिलल। एकर भाषा आ शिल्प अप्रतिम अछि। इ उपन्यास मैथिली समाजक मनोवृत्ति आ विसंगति कें बिना लाग-लपेट अभिव्यक्त करैत अछि। हास्यक रस होयतो इ पुस्तक मर्मस्पर्शी अछि। अहि लेल एकरा पढ़बा लेल गैर-मैथिली भाषी सेहो मैथिली सिखलाह। आ जे पढ़बा मे समर्थ नहि छलाह, से वाचन सं एकर रसास्वादन कैलाह। हरिमोहन झा हास्य सम्राट जरूर कहल जायत छैथ, मुदा ओ एहन दक्ष गद्यकार सेहो छलाह, जे मनोरंजक ढंग सँ कथा कहैत पाठक कें यथार्थक भूमि पर विस्मित कऽ दैत छथिन। हुनकर लेखनी विमर्शक एतेक द्वारि खोलैत अछि कि पाठकगण सोचबा लेल विवश होयत छैथ। ‘कन्यादान’ सेहो इ कसौटी कें सार्थक करैत अछि। इ उपन्यास मे अपन बिटियाक विवाहक हेतु माय-बाप कें चिन्ता अछि, विवाह कें सम्भव बनैबाक हेतु सूत्रधारक दाँव-पेच, नव रंग-ढंग मे रंगल पतिक आकांक्षा, अनपढ़ आ गामक संस्कृति मे रमल पत्निक कायान्तरण, आ सबसँ उल्लेखनीय, पुरातन बनाम आधुनिक परम्पराक जंग अछि। हरिमोहन झा कें नजर से केओ बाँचल नहि छैथ, अहि लेल ‘कन्यादान’ अनवरत प्रासंगिक बनल अछि।</p> <p>इ पोथी मे ‘कन्यादान’ तथा ‘द्विरागमन’ (1943)— जे वस्तुत: एके उपन्यासक दू भाग अछि—एक संग प्रकाशित अछि। पाठक लोकनि हरिमोहन झा कऽ इ करिश्मा कें स्वयं अनुभव करू...

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