Kanyadan • Dwiragaman
Author:
Harimohan JhaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
‘कन्यादान’ मिथिलाक एहन व्यथा-कथा अछि, जकरा सँ अजुका समाज सेहो मुक्त नहि भ सकल अछि। उपन्यासक पहिल संस्करण नौ दशक पहिने, यानी 1933 मे पुस्तकाकार छपल छल, मुदा आइ धरि मिथिलाक समाज मे ‘बुच्चिदाइ’ देखल जायत छैथ, आ हुनकर संघर्ष अनवरत चलि रहल छैन। कन्यादान नाम कें साकार करैत घरक मुखिया आइयो अपन कन्या कें जड़ पदार्थ जकाँ दान करबाक हेतु निमित्त रहैत छैथ आ ‘बुच्चिदाइ’ कें विवाहक हेतु सूत्रधार भाँति-भाँतिक तिकड़म लगबैत छैथ। बेस, आइ परिस्थिति बदलल अछि। आब गाम-घरक बुच्ची सेहो स्कूल जायत छैथ। मुदा लड़का-लड़किक भेद एखनो बनल अछि। आइयो कतेको घर मे लड़का कें दूध मिलैत अछि, त लड़की कें माँड़ सँ सन्तोष करऽ पड़ैत छैन।</p>
<p>इ पोथी कें लोकप्रियता सिर्फ समाजक यथार्थ चित्रण सँ नहि मिलल। एकर भाषा आ शिल्प अप्रतिम अछि। इ उपन्यास मैथिली समाजक मनोवृत्ति आ विसंगति कें बिना लाग-लपेट अभिव्यक्त करैत अछि। हास्यक रस होयतो इ पुस्तक मर्मस्पर्शी अछि। अहि लेल एकरा पढ़बा लेल गैर-मैथिली भाषी सेहो मैथिली सिखलाह। आ जे पढ़बा मे समर्थ नहि छलाह, से वाचन सं एकर रसास्वादन कैलाह। हरिमोहन झा हास्य सम्राट जरूर कहल जायत छैथ, मुदा ओ एहन दक्ष गद्यकार सेहो छलाह, जे मनोरंजक ढंग सँ कथा कहैत पाठक कें यथार्थक भूमि पर विस्मित कऽ दैत छथिन। हुनकर लेखनी विमर्शक एतेक द्वारि खोलैत अछि कि पाठकगण सोचबा लेल विवश होयत छैथ। ‘कन्यादान’ सेहो इ कसौटी कें सार्थक करैत अछि। इ उपन्यास मे अपन बिटियाक विवाहक हेतु माय-बाप कें चिन्ता अछि, विवाह कें सम्भव बनैबाक हेतु सूत्रधारक दाँव-पेच, नव रंग-ढंग मे रंगल पतिक आकांक्षा, अनपढ़ आ गामक संस्कृति मे रमल पत्निक कायान्तरण, आ सबसँ उल्लेखनीय, पुरातन बनाम आधुनिक परम्पराक जंग अछि। हरिमोहन झा कें नजर से केओ बाँचल नहि छैथ, अहि लेल ‘कन्यादान’ अनवरत प्रासंगिक बनल अछि।</p>
<p>इ पोथी मे ‘कन्यादान’ तथा ‘द्विरागमन’ (1943)— जे वस्तुत: एके उपन्यासक दू भाग अछि—एक संग प्रकाशित अछि। पाठक लोकनि हरिमोहन झा कऽ इ करिश्मा कें स्वयं अनुभव करू...
ISBN: 9788119028078
Pages: 192
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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अक्सर देखा गया है कि संगीत, कला और साहित्य से जुड़े लोग अपनी एक निजी और आन्तरिक दुनिया में रमे रहते हैं। वे बाहरी दुनिया की बड़ी-से-बड़ी घटनाओं को भी निरपेक्ष भाव से लेते हैं। उनके भीतरी संसार में बाहर के घटनाचक्र का, यथार्थ का प्रवेश कुछ विचित्र क़िस्म के ऊहापोह और उथल-पुथल पैदा करता है।
उपन्यास का नायक भवनाथ ऐसा ही एक संगीतज्ञ है—बजाने-गाने में मस्त। चारों ओर की चीख़-पुकार में उसे खोए हुए सुरों का ख़याल आता है। वह दिव्यास्त्रों की तरह दिव्यरागों की कल्पना करता है। गन्धर्व कौन-सा सुर जगाते होंगे, कौन-सा राग मूर्त करते होंगे, हमसे कहीं ऊपर उनका सुर होगा—ऐसा सोचता रहता है। संगीत की खोई हुई दुनिया के झिलमिले सपने आते और चले जाते।
गन्धर्व के बहाने हरी चरन प्रकाश द्वारा रचा गया एक बेहद मार्मिक और रोचक उपन्यास है—‘एक गन्धर्व का दुःस्वप्न’।
स्वतंत्रता-प्राप्ति से लेकर आज तक के सामाजिक-राजनीतिक घटनाचक्रों को इस उपन्यास में बड़ी बेबाकी से रेखांकित किया गया है। चाहे वह महात्मा गांधी की हत्या हो या फिर बाबरी मस्जिद के विध्वंस से उपजे दंगे-फ़साद, वह मंडल-कमंडल की राजनीति हो या फिर जाति-धर्म की—देश की सम्प्रभुता को ख़तरे में डालनेवाले तत्त्वों को बड़ी संजीदगी से बेनक़ाब किया गया है इस उपन्यास में।
Pikadili Circus
- Author Name:
Nimai Bhattacharya
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बहुत बातें सुन चुकी हूँ, बोल चुकी हूँ मगर आज दिल्ली जाने के दौरान लग रहा है, नहीं, कोई बात न बोल सकी हूँ और न ही सुन सकी हूँ। फिर जा क्यों रही हूँ? दूर से संवेदना प्रकट करना या प्यार करना मुश्किल बात नहीं है, लेकिन समाज के अनगिन लोगों की आलोचना अनसुनी कर मुझ जैसी भाग्यहीन युवती को सम्मान के साथ जीवन में स्वीकार कर लेना आसान काम नहीं है। विवेक क्या वह कर सकेगा?
मालूम नहीं। सचमुच मालूम नहीं है। किसी को अच्छी तरह जानने-पहचानने के लिए जितने दिनों तक घनिष्ठता के साथ मिलने-जुलने की आवश्यकता पड़ती है, विवेक से उस रूप में मैं कभी मिल-जुल नहीं सकी हूँ। प्याली को बिना जताए, किसी भी व्यक्ति को समझने का मौक़ा दिए बग़ैर कलकत्ते में विवेक और मैं मिलते-जुलते रहे हैं, साथ-साथ घूमते-फिरते रहे हैं और सिनेमा देखते रहे हैं। अच्छा ज़रूर लगता था मगर उसे अपने निकट पाने के लिए मन में कभी बेचैनी का अहसास नहीं होता था। प्यार सिर्फ़ अच्छा ही नहीं लगता, वह आदमी के जीवन में पूर्णता और तृप्ति ले आता है। प्यार तुच्छता के अँधेरे को बेधकर महान जीवन की ओर ले जाता है। विवेक को अपने निकट पाकर मैंने कभी उस पूर्णता, तृप्ति और तुच्छता की ग्लानि से मुक्त महान जबान का स्वाद नहीं पाया था। पाने की प्रत्याशा भी नहीं की थी।
—इसी पुस्तक से
Varshavan Ki Roopkatha
- Author Name:
Vikas Kumar Jha
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‘वर्षा वन की रूपकथा’ कर्नाटक प्रान्त के शिमोगा ज़िले में बसे एक छोटे-से गाँव अगुम्बे की अन्तरंग-अप्रतिम कथा है। सघन वर्षा होने के कारण इसे भारत का दूसरा ‘चेरापूँजी’ कहा जाता है। कन्नड़ थिएटर और सिनेमा के महानायक शंकर नाग ने इस गाँव को अपने सीरियल ‘मालगुडी डेज़’ में अमर कर दिया है। दरअसल, अंग्रेज़ी के उद्भट लेखक आर.के. नारायण लिखित ‘मालगुडी डेज़’ पर सीरियल बनाने का निर्णय लेकर इस काल्पनिक ग्राम को साकार करने का स्वप्न सँजोए शंकर नाग जब घूमते-भटकते अगुम्बे पहुँचे, तो उन्हें छूटते हुए लगा कि यही तो है नारायण का अद्भुत मालगुडी! घने जंगल, पहाड़ और बादलों की अहर्निश मधुर युगलबन्दी के बीच स्थित मलनाड अंचल के इस गाँव के सरल-सहज लोगों से मिलकर शंकर नाग को लगा कि शूटिंग के लिए यहाँ उन्हें अलग से कोई सेट लगाने की भी ज़रूरत नहीं। पूरा गाँव ही इस सीरियल का क़ुदरती सेट है। शूटिंग के दौरान आर.के. नारायण भी जब एक बार अगुम्बे आए, तो विस्मित हुए बिना न रह सके। बहरहाल, ‘मालगुडी डेज़’ सीरियल के बने वर्षों बीत चुके हैं पर अगुम्बे अभी भी मालगुडी को अपनी आत्मा के आलोक में बड़े दुलार से बसाये हुए है। और यह यों ही नहीं है। बाज़ारवाद के इस भीषण पागल समय में यह गाँव मनुष्यता का एक ऐसा दुर्लभ हरित मंडप है, जहाँ के विनोदप्रिय निष्कलुष लोग समस्त कामनाओं और आतप को हवा में फूँककर उड़ाते हुए मौन उल्लास की सुरभि में निरन्तर मधुमान रहते हैं। जीवनानंद के पराग से पटी पड़ी है अगुम्बे की धरती। अगुम्बे की ख्याति दुनिया में ‘किंग कोब्रा’ के एकमात्र मुख्यालय के रूप में भी है। जंगल-पर्वत और झमझम बारिश के बीच निरन्तर आलोड़ित कर्नाटक के इस गाँव की जैसी धारासार तन्मय गाथा एक हिन्दी भाषी लेखक द्वारा लिखी गई है, वह पृष्ठ-दर-पृष्ठ चकित करती हुई साधारण मनुष्य के जीते-जागते स्वप्नजगत में अद्भुत रमण कराती है। तृप्त और दीप्त करती है।
‘सुन्दरता ही संसार को बचाएगी’ यह टिप्पणी हर समय, हर समाज, हर देश और हरेक भाषा के वास्ते महान साहित्यकार दोस्तोयेव्स्की की है। सुन्दरता का आशय मात्र किसी महारूपा स्त्री या महारूपा प्रकृति से ही नहीं है। सुन्दरता का मतलब ठेठ ‘अगुम्बेपन’ से भी है। प्रेम का चिरन्तन आनन्द, उसकी अटूट शक्ति और विह्वल करुणा भी विशुद्ध अगुम्बेपन में ही है।
Ek Hathi Ka Safarnama
- Author Name:
Jose Saramago
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दो साल से लिस्बन में रह रहे हाथी सोलोमन को अब एक लम्बे सफ़र पर जाना है। राजा डोम जुआँऊ तृतीय वियना के हैप्सबर्ग के एक आर्चदुक को उसे शादी के तोहफ़े के रूप में भेंट करना चाहता है। अपने नए ठिकाने तक पहुँचने के लिए हाथी को पैदल ही पहुँचना है। इस तरह शुरू होता है वह दिलचस्प सफ़र जो इस बहादुर हाथी को कास्टील के धूल-भरे मैदानों से होते हुए समुद्र पार जेनोआ और उत्तरी इटली तक ले जाएगा। वहाँ उसे बर्फीले आल्प्स को पार करना होगा जैसे सदियों पहले हानिबल के योद्धा हाथियों ने किया था।
यह उपन्यास एक सच्ची घटना पर आधारित है जिसमें लेखक ने तथ्यों, किंवदन्तियों और कल्पना का अद्भुत मिश्रण किया है।
Global Gaon Ke Devta
- Author Name:
Ranendra
- Book Type:

- Description: ग्लोबल गाँव के देवता आदिवासी जनजीवन की ज्वलन्त गाथा है। असुर आदिवासी समुदाय को केन्द्र में रखकर लिखा गया यह उपन्यास उनकी लगातार बढ़ रही मुश्किलों का बयान करते हुए वर्तमान भारतीय समाज, संस्कृति, सियासत और सत्ता प्रतिष्ठान के सामने कई प्रासंगिक प्रश्न खड़े करता है। ये असुर आदिवासी ही हैं जिन्होंने आग और धातु की खोज की, धातु को गलाकर औजार बनाया। मानव सभ्यता और संस्कृति को आगे बढ़ाने में उनका योगदान किसी व्याख्या का मोहताज नहीं है लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि आज उन्हें अवरोध समझा जा रहा है? तमाम परिस्थितियों का सामना करते हुए हज़ारों सालों से जीवित रहते आए आदिवासी समुदायों के अस्तित्व पर आज संकट क्यों मंडरा रहा है? वस्तुतः यह उपन्यास हमारी सभ्यता-संस्कृति के उस अँधेरे अन्तराल को उजागर करता है जहाँ समाज के छोटे प्रभावी हिस्से द्वारा समाज के अधिकतर सामान्य हिस्से के लोगों को उनकी ज़मीन से उखाड़ने, उन्हें साधनहीन बनाने को ही ‘विकास’ माना जाता है। इसमें भी विडम्बना यह कि ख़ुद को मुख्यधारा कहने वाला प्रभावी हिस्सा यह कार्य सामान्य हिस्से की भलाई के नाम पर करता है। असुर आदिवासियों के सन्दर्भ में इस मुख्यधारा के नज़रिये का हवाला इस प्रकार है कि अतीत की अनगिनत किंवदन्तियाँ और मिथक उनके संहार की कथाओं से भरे पड़े हैं, तो वर्तमान में उनके पारम्परिक इलाकों की ज़मीन में दबे खनिजों के लिए उन्हें वहाँ से बेदख़ल किया जा रहा है। इस उपन्यास की कथा यूँ तो झारखंड की पृष्ठभूमि में रची गई है लेकिन यह दुनिया के उन तमाम लोगों के जीवन संघर्ष का प्रतीक प्रतीत होती है जो अपनी ज़मीन, अपनी आबोहवा को बचाने के लिए लड़ रहे हैं।
Aanjaney Jayte
- Author Name:
Giriraj Kishore
- Book Type:

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‘आंजनेय जयते’ गिरिराज किशोर का सम्भवत: पहला मिथकीय उपन्यास है। इसकी कथा संकटमोचन हनुमान के जीवन-संघर्ष पर केन्द्रित है। रामकथा में हनुमान की उपस्थिति विलक्षण है। वे वनवासी हैं, वानरवंशी हैं, लेकिन वानर नहीं हैं; बल्कि अपने समय के अद्भुत विद्वान, शास्त्र-ज्ञाता, विलक्षण राजनीतिज्ञ और अतुलित बल के धनी हैं। उन्होंने अपने समय के सभी बड़े विद्वान ऋषि-मुनियों से ज्ञान हासिल किया है। उन्हें अनेक अलौकिक शक्तियाँ हासिल हैं।
तमाम साहित्यिक-सांस्कृतिक स्रोतों के माध्यम से गिरिराज किशोर ने हनुमान को वानरवंशी आदिवासी मानव के रूप में चित्रित किया है, जो अपनी योग्यता के कारण वानर राजा बाली के मंत्री बनते हैं। बाली और सुग्रीव के बीच विग्रह के बाद नीतिगत कारणों से वे सुग्रीव की निर्वासित सरकार के मंत्री बन जाते हैं।
इसी बीच रावण द्वारा सीता के अपहरण के बाद राम उन्हें खोजते हुए हनुमान से मिलते हैं। हनुमान सीता की खोज में लंका जाते हैं। सीता से तो मिलते ही हैं, रावण की शक्ति और कमज़ोरियों से भी परिचित होते हैं। फिर राम-रावण युद्ध, सीता को वनवास, लव-कुश का जन्म और पूरे उत्तर कांड की कहानी वही है—बस, दृष्टि अलग है।
लेखक ने पूरी रामकथा में हनुमान की निष्ठा, समर्पण, मित्रता और भक्तिभाव का विलक्षण चित्र खींचा है। उनकी अलौकिकता को भी महज़ कपोल-कल्पना न मानकर एक आधार दिया है। लेखक ने पूरे उपन्यास में उन्हें अंजनी-पुत्र आंजनेय ही कहा है, उनकी मातृभक्ति के कारण उपन्यास में सबसे महत्त्वपूर्ण उत्तरार्ध और क्षेपक है जो शायद किसी राम या हनुमान कथा का हिस्सा नहीं।
यहाँ हनुमान सीता माता के निष्कासन के लिए राम के सामने अपना विरोध जताते हैं और उन्हें राजधर्म और निजधर्म की याद दिलाते हैं। यहाँ यह कथा अधुनातन सन्दर्भों में गहरे स्तर पर राजनीतिक हो जाती है। वैसे, मूल रामकथा में बिना कोई छेड़छाड़ किए लेखक ने आंजनेय के चरित्र को पूरी गरिमा के साथ स्थापित किया है। यह एक बड़ी उपलब्धि है।
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