Apni Gawahi
Author:
Mrinal PandePublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 159.2
₹
199
Available
जब कृष्णा पत्रकार बनने का फ़ैसला करती है तो अपना औरत होना और हिन्दी समाचार एजेंसी में काम करना, यही दो परेशानियाँ उसके सामने हैं। जैसाकि उसके मुन्नू चाचा कहते हैं उसका यह फ़ैसला भले ही उसे उसकी निराशा से क्षणिक मुक्ति दे, लेकिन आख़िरकार यह उसे बर्बाद कर देगा। मुन्नू ’चा के मन में इस बारे में कोई शक नहीं था।</p>
<p>सत्तर के दशक में अंग्रेज़ी मीडिया में आए उफान में अंग्रेज़ी और उसके पत्रकार सातवें आसमान पर पहुँच गए, जबकि भाषायी पत्र-पत्रिकाओं पर उनके मालिक कुंडली मारे बैठे रहे—ख़ासकर अब के दौर में मीडिया साम्राज्यों का संचालन करनेवाले मालिक-सम्पादकों की फ़ौज। पुरानी बिल्डिंग के अंधे और तंग दफ़्तर से शुरुआत करनेवाली कृष्णा नई बिल्डिंग के अंग्रेज़ी सम्पादकों और पत्रकारों के नाज़-नखरों को कुछ ईर्ष्या से, कुछ क्रोध से और कुछ मज़े लेकर देखती है। लगभग बेमतलब विषयों के रिपोर्टर से बढ़ते-बढ़ते एक राष्ट्रीय दैनिक की पहली महिला सम्पादक, देश के सबसे लोकप्रिय टीवी चैनलों में से एक की न्यूज़ एंकर बनने तक वह मीडिया के बदलते स्वरूप को बहुत पास से देखती है। वह देखती है कि राजनीतिक और आर्थिक फ़ायदों की लड़ाई मीडिया के सहारे कैसे लड़ी जाती है। और वह पाती है कि इन अधिकांश मामलों में सच्चाई ही बलि चढ़ती है।</p>
<p>समकालीन भारतीय परिदृश्य में सत्ता के पीछे भागनेवालों और दलालों की करतूतों के दिलचस्प और गुदगुदानेवाले विवरणों से भरा यह उपन्यास अपनी सचबयानी और समाचार रिपोर्टिंग की चकाचौंध-भरी दुनिया की वास्तविकताओं पर केन्द्रित है।
ISBN: 9788183614023
Pages: 196
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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भारतीय समाज में बेटी को पराया धन माना जाता है। ऐसा पराया धन जिसे विवाह के समय वधू के रूप में उसे वर रूपी, लगभग एक अपरिचित व्यक्ति को दानस्वरूप सौंप दिया जाता है। मगर हम भूल जाते हैं कि दान बेटी का नहीं, धन या पशुओं का किया जाता है। बेटी को तो सिर्फ़ अपने घर से उसके नए जीवन के लिए विदा किया जाता है।
विवाह उपरान्त घर से बेटी के विदा होने की व्यथा क्या होती है, उसे उस घर के माता-पिता और उसके दादा-दादी ही जानते हैं। उसकी कमी उस विलुप्त होती गौरैया की तरह रह-रह कर महसूस होती है, जिसकी चहचहाहट से घर-आँगन और उसकी मोखियाँ गूँजती रहती हैं। इसीलिए बेटियाँ तो उस ठंडे झोंके की तरह होती हैं, जो अपने माता-पिता पर किसी भी तरह के दुःख या संकट आने की स्थिति में सबसे अधिक सुकून-भरा सहारा प्रदान करती हैं।
हमारे समाज में आज भी बेटियों के बजाय बेटों को प्रधानता दी जाती है, मगर हम यह भूल जाते हैं कि समय आने पर बेटियाँ ही सुख-दुःख में सबसे अधिक काम आती हैं। आज गौरैया अर्थात् शकुंतिकाएँ हमारे आँगनों और घर की मुँडेरों से जिस तरह विलुप्त हो रही हैं, यह उपन्यास इसी बेटी के महत्त्व का आख्यान है। एक ऐसा आख्यान जिसकी अन्तर्ध्वनि आदि से अन्त तक गूँजती रहती है।
Anaro
- Author Name:
Manjul Bhagat
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- Description: ''कहाँ गया गंजी का बाप?...दिल डूब रहा है...अनारो, तू डूब चली...उड़ चली तू...अनारो, उड़ मत...धरती? धरती कहाँ गई?...पाँव टेक ले...हिम्मत कर...थाम ले रे...नन्दलाल! हमें बेटी ब्याहनी है!...यहाँ तो दलदल बन गया!...मैं सन गई पूरी की पूरी...हाय! नन्दलाल...गंजी...छोटू!'' महानगरीय झुग्गी कॉलोनी में रहकर कोठियों में खटनेवाली अनारो की इस चीख़ में किसी एक अनारो की नहीं, बल्कि प्रत्येक उस स्त्री की त्रासदी छुपी है जो आर्थिक अभावों, सामाजिक रूढ़ियों और पुरुष अत्याचार के पहाड़ ढोते हुए भी सम्मान सहित जीने का संघर्ष करती है। सौत, ग़रीबी और बच्चे; नन्दलाल ने उसे क्या नहीं दिया? फिर भी वह उसकी ब्याहता है, उस पर गुमान करती है और चाहती है कि कारज-त्यौहार में वह उसके बराबर तो खड़ा रहे। दरअसल अनारो दु:ख और जीवट से एक साथ रची गई ऐसी मूरत है, जिसमें उसके वर्ग की सारी भयावह सच्चाइयाँ पूँजीभूत हो उठी हैं।
Voh Apana Chehra
- Author Name:
Govind Mishra
- Book Type:

-
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क़रीब-क़रीब अमानवीय और जड़ होता जाता संसार गोविन्द मिश्र के लेखन की मुख्य चिन्ताओं में से है। जहाँ वे एक परिवेश का केवल भीतरी-बाहरी कच्चा चिट्ठा-भर प्रस्तुत करते हैं, वहाँ भी सर्जनात्मक व्यथा मानवीयता और मूल्यों के न होने की ही होती है। गोविन्द मिश्र के लेखन का मूल स्वर सकारात्मक है जो उनकी रचनाओं में उत्तरोत्तर साफ़ होता चला गया है।
'वह अपना चेहरा’ एक तलाश है जो चेहरों से शुरू होकर जीवन-पद्धति एवं मान्यताओं से होती हुई नैतिकता और मूल्यों तक जाती है। नौकरशाही का परिवेश, दफ़्तरी मानसिकता, फ़ाइलों-इमारतों की दुनिया यहाँ एक ऐसे तनाव के माध्यम से उभारे गए हैं जो जितना उग्र है, उतना ही फ़िज़ूल—लालफीताशाही के अपने स्वभाव की तरह। यहाँ चेहरे भी फ़ाइलों की तरह घूम रहे हैं, 'अपना’ चेहरा 'वह’ हो जाता है, वही जिसके ख़िलाफ़ उसकी लड़ाई थी। चरित्रों की गहरी पकड़, कलात्मकता और भाषा का एक अपने ढंग का खुरदुरापन इस उपन्यास को विशिष्ट बनाते हैं।
And The Jhelum Flows
- Author Name:
Ramendra Kumar
- Book Type:

- Description: The protagonist of and the Jhelum flows. Is Kashmir itself. The novel looks at the lost paradise with empathy and concern, Shunning easy cliches. It goes beyond the binary divisions of black and white in which the Kashmir issue is usually depicted and instead shows the various shades of grey in between. It is the story of innocent Kashmir's: the mother who searches for her missing son, the father who dies for his daughter, the young bride murdered on the eve of her wedding, the student tortured and driven to suicide, the obsession with revenge, the betrayal of trust, the loss of innocence. And the Jhelum flows. Weaves together several narratives to create a moving portrait of a land marked by hatred, fear, violence, and suspicion, where despite all the pain and sorrow, there is yet optimism for a better tomorrow. The picture that the novel paints is a reflection of the reality in other parts of the country where peace is under siege and hope is the last resort.
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