
Mere Bete Ki Kahani
Author:
Nadine GordimerPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 60
₹
75
Unavailable
‘नोबेल पुरस्कार’ सम्मानित लेखिका नादिन गोर्डाइमर का उपन्यास ‘मेरे बेटे की कहानी’ दक्षिण अफ्रीका के नस्लवादी, रंगभेदवादी निरंकुश, अमानवीय शासन के निषेध-दर-निषेध की चक्की में पीसे जाते उन 87 प्रतिशत बहुसंख्य कालों, अश्वेतों तथा अन्यवर्णी जनों पर 13 प्रतिशत विशेष सुविधाभोगी गोरों के संवेदनहीन अत्याचार और शोषण-चक्र की स्मृतियाँ जगानेवाली कृति है। यहाँ से गुज़रना अँधेरी सुरंग की कष्टकर किन्तु अनिवार्य यात्रा की तरह है—एक ऐसी लम्बी, काली रात जिसकी कोई सुबह नहीं है। जैसे-जैसे हम पृष्ठ पलटते हैं एक भयानक बेचैनी जकड़ती चलती है, लेकिन हम उससे भाग नहीं सकते। हमारे अन्दर बैठा मनुष्य अपने नियतिचक्र का यह उद्वेलन अपनी हर शिरा में महसूस करना चाहता है—अगले संघर्ष की तैयारी के लिए, जो कहीं, कभी शुरू हो सकता है।</p>
<p>‘मेरे बेटे की कहानी’ एक ऐसे संसार में ले जाती है जहाँ मनुष्य होने के हर अधिकार को निषेधों और वर्जनाओं के बुलडोज़रों के नीचे कुचल दिया गया है। लेकिन इस दमनचक्र में पीसे जाने के बावजूद संघर्ष जीवित है।</p>
<p>उपन्यास में कथा कई स्तरों पर चलती है। पीड़ा भोगते अधिसंख्य जन, उन्हीं के बीच से उभरकर संघर्ष करनेवाले क्रान्तिबिन्दु किशोर और युवक, जो बड़ी बेरहमी से भून दिए जाते हैं। उनकी क़ब्रों पर श्रद्धांजलि अर्पित करने जुटी भीड़ पर फिर गोलियाँ बरसाई जाती हैं। हर रोज़, हर कहीं यही होता है। कथा का आरम्भ ऐसा आभास कराता है जैसे यह विवाहेतर अवैध काम सम्बन्धों की चटपटी कथा है। ‘दूसरी औरत’ के साथ अपने क्रान्तिकारी पिता को, जो हाल ही में जेल से छूटकर आया है, देखनेवाली किशोर बेटे की आँख इस सन्दर्भ को नए आयाम देती है। एक भयानक, विद्रूपित कंट्रास्ट की क्षणिक आश्वस्ति—और पाठक को लगता है वह क्षण-भर को खुलकर साँस ले सकता है। लेकिन अन्ततः यह किंचित् रोमानी स्थिति भी हमें बेमालूम तौर पर बहुत ऊँचाई से इस संघर्ष के भँवर में फेंक देती है, और हम अन्दर ही अन्दर उतरते चले जाते हैं। स्थितियों का यह प्रतिगामी विचलन एक नए शिल्प के तहत रचना के समग्र प्रभाव को और भी धारदार बना देता है।
ISBN: 9788126708697
Pages: 228
Avg Reading Time: 8 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति के मर्मज्ञ विद्वान् कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी उपन्यासकार के नाते न केवल गुजराती, बल्कि समूचे भारतीय साहित्य में समादृत हैं! कई खंडों में प्रकाशित विशाल औपन्यासिक रचना ‘कृष्णावतार’, ‘भगवान परशुराम’, ‘लोपामुद्रा’ जैसे वैदिक और पौराणिक काल का दिग्दर्शन करनेवाले उपन्यासों के क्रम में ‘लोमहर्षिणी’ उनकी एक और महत्त्वपूर्ण कथाकृति है।
लोमहर्षिणी राजा दिवोदास की पुत्री और परशुराम की बाल-सखी थीं, जो युवा होने पर उनकी पत्नी बनीं। भृगुकुलश्रेष्ठ परशुराम ने अत्याचारी सहस्रार्जुन के विरुद्ध व्यूह-रचना का जो लम्बा संघर्ष किया, उसमें लोमहर्षिणी की भूमिका भारतीय नारी के गौरवपूर्ण इतिहास का एक उज्ज्वलतर पृष्ठ है। साथ ही इस उपन्यास की पृष्ठभूमि में ऋषि विश्वामित्र और मुनि वसिष्ठ के मतभेदों की कथा भी है। उनके यह मतभेद त्रित्सुओ के राजा सुदास के पुरोहित-पद को लेकर तो थे ही, इनके मूल में विश्वामित्र द्वारा आर्य और दस्युओं के भेद का विवेचन तथा वसिष्ठ द्वारा आर्यों की शुद्ध सनातन परम्परा का प्रतिनिधित्व करना भी था।
वस्तुतः लोमहर्षिणी में मुंशी जी ने नारी की तेजस्विता तथा तत्कालीन समाज, धर्म, संस्कृति और राजनीति के जटिल अन्तर्सम्बन्धों का प्राणवान उद्घाटन किया है।
Aastha Ke Swar
- Author Name:
Dhirendra Verma
- Book Type:
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Description:
आस्था के स्वर में लेखक धीरेन्द्र वर्मा ने निराशा और हताशा के दौर से गुजर रही आज की पीढ़ी के समक्ष एक ऐसे पात्र को पेश किया है जो हाल की चुनौतियों को बिना किसी प्रकार का समझौता किए निर्विकार भाव से झेल जाता है। संघर्षों की राह में उसके साथ होता है एक पुरुष—एक सुदर्शन पुरुष जो उसे भटकने से रोकता है। वह जो अदृश्य होते हुए भी सच्चा पथ-प्रदर्शक है, सृष्टि के उस काल का प्रतिनिधित्व करता है जो हमारे जीवन से बहुत पहले था और उसके बहुत बाद तक रहेगा।
धीरेन्द्र वर्मा ने आस्था के स्वर के माध्यम से उन बिन्दुओं को रेखांकित किया है जहाँ से भटकाव शुरू होता है और उससे बचने के लिए उस प्रकाश का परिचय दिया है जो हर समय हमारे साथ रहता है, परन्तु हम उसकी सहायता नहीं ले पाते। केवल हमारी आत्मा, हमारा विवेक ही उस अदृश्य शक्ति से ऊर्जस्वित होकर प्रकाश बिन्दुओं से जुड़ पाता है। यह पुस्तक उन परिभाषाओं को तोड़ने का प्रयास भी करती है जिन्हें आज के समाज में धन-बल और बाहुबल ने नए सिरे से गढ़ने का काम किया है। भटकाव के इस दौर में धीरेन्द्र वर्मा की यह पुस्तक सचमुच पथ-प्रदर्शक की भूमिका अदा करेगी।
Chay Sharab Aur Zehar
- Author Name:
Rohit Michu
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Description:
यह उपन्यास कई मायनों में विशेष है। पहली विशेषता इसकी यह है कि यह प्रेम के विषय में है, और आज के उन उपन्यासों से भिन्न है जो केवल आलोचक-सन्तोष और ‘पोलिटिकली करेक्टनेस’ के फेर में पड़कर निहायत ही अप्रामाणिक अनुभवों के विवरणों से भरे होते हैं। यह उपन्यास समाज से, उसकी कटु सच्चाइयों से भी दूर नहीं, बल्कि अपने पाठ में प्रेम और उसकी पीड़ा के सघन, प्रामाणिक और छू जानेवाले बिम्बों को इतनी ईमानदारी से उकेरता है, कि हमें हमारे वर्तमान समाज में प्रेम की असम्भवता स्पष्ट दिखने लगती है।
यही सघनता इसकी दूसरी विशेषता है। यह कथा चमत्कार पर निर्भर नहीं है, न यह चौंकानेवाले स्थिति-संयोजन का सहारा लेती है, बस अपनी पीड़ा को कुरेदते हुए, जीवन के साथ मद्धम गति से बढ़ते हुए हमें अपने साथ बनाए रखती है।
और तीसरी विशेषता इस उपन्यास की यह है कि यह दो लेखकों की संयुक्त रचना है, दोनों युवा हैं और उनकी यह पहली पुस्तक है। इस औपन्यासिक कृति से हम अपने समय की उस युवा रचनात्मकता से रू-ब-रू होते हैं जो अपनी पारम्परिक साहित्यिक संवेदना से भी उतनी ही जुड़ी है, जितनी अपने आधुनिक व्यक्ति-बोध से।
The Doctor's Heart : A Chamber Of Sorrow
- Author Name:
Mannit Mann
- Book Type:
- Description: Should I enter this ward? Should | tend to the sick? Or should I succumb to the stark reality that surrounds us? Can a doctor have such thoughts? Does a doctor’s heart have the right to feel Low after choosing his profession? Aarav is equipped with knowledge and compassion, two qualities that make him an outstanding doctor. Hailing from Chandigarh, he is employed at the Medict Health Care Hospital as Assistant Clinical Coordinator, where he is trusted and loved by both his seniors and peers for his dedication to his work. He is engaged to Ishika, who is the cynosure of his life. But before they can marry, a catastrophic disease storms into their lives and turns it upside- down. Does Aarav handle this catastrophe, both at professional and personal levels? Or does he break down? What goes on in a doctor’s head when he pushes aside his personal life to give his all to his patients? This book is not a mere story; it’s an unforgettable journey into a doctor’s heart
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