
Kandho Par Ghar
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
248
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
496 mins
Book Description
काँधों पर घर दूर-दराज़ के इलाकों से अपने सपनों की गठरी बाँधकर दिल्ली आए लोगों की अनेक कहानियाँ कहता उपन्यास है। एक जीवन में अनेक पहचानों और अनेक संघर्षों से जूझते लोग इसमें नज़र आएँगे।</p> <p>पूनम इन्हीं में से एक है जो अपने सूरज का हाथ थामकर बदायूं से दिल्ली चली आई। शहर के जीवन ने पूनम को एक सपना सौंपा और साथ सौंपा उसके सपने को अपना मानने वाले लोगों का अटूट भरोसा। इस तरह एक सपने में अचानक कई-कई सपने झांकने लगे। जीवन के आंधी-तूफान में पूनम ने एक छोटा-सा सपना साकार किया पर सपने और हकीकत के बीच संघर्षों का दरिया तेज़ तूफान लिए था। इन लोगों के पांव तले जमीन कच्ची थी पर पूनम, फरीदा, सुगंधा, मुनमुन, नेचू, पंकज और सूरज का हौसला पक्का था। ये ऐसे ही ज़िन्दादिल लोगों की कहानी है जो एक से दो, दो से तीन और आगे बढ़ते-बढ़ते एक काफिला बनाते चलते गए। अपने खून-पसीने से जिन्होंने दूसरों के लिए स्वर्ग रचे। ऐसे लोग जो शहर को शहर बनाते हैं पर शहर का भरा-पूरा आसमान अक्सर ज़मीन के इन लोगों की तरफ देखता भी नहीं।</p> <p>ये कहानी दिल्ली के उस यमुना पुश्ते की कहानी है जिसका अपना एक इतिहास रहा है। वे लाखों लोग पुश्ते से हटाकर कहीं और बसा दिए गए पर वीरान पुश्ते में दबी आवाज़ें उस पूरे संसार को सामने ले आती हैं जो जीवन के आरोह-अवरोह की जीवंत शरणस्थली था। इनका जीवन जैसे विस्थापन के एक चक्र में उलझा रहता है। एक विस्थापन समाप्त होता है तो दूसरा शुरू हो जाता है।