Mere Sandhi-Patra
Author:
SuryabalaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
्दी साहित्य में जिस रचना पीढ़ी को साठोत्तरी पीढ़ी कहा जाता है, सूर्यबाला उसकी प्रमुख हस्ताक्षर हैं। उनकी लेखकीय पहचान के केन्द्र में उनका पहला उपन्यास ‘मेरे संधि-पत्र’ है। उपन्यास का प्रकाशन सत्तर के दशक के मध्य में प्रसिद्ध साप्ताहिक ‘धर्मयुग’ में हुआ था। उपन्यास की कथा के केन्द्र में ‘शिवा’ नामक स्त्री का किरदार है जो अपने समय की नारी का प्रतिनिधित्व करती है और नारी-जीवन को लेकर उठनेवाले सतत सवालों की चुनौती को स्वीकार करती है। वह मध्यवर्गीय शिक्षित स्त्री है और उपन्यास में उसके कई रूप दिखाई देते हैं। वह आत्मविश्वास से भरपूर है, स्वाभिमानी है। अपनी पहचान को लेकर सजग है लेकिन विद्रोह नहीं करती है, न ही अपने आपको परिस्थितियों का दास बन जाने देती है; बल्कि अपने विवेक से ऐसे निर्णय लेती है जो उसके, परिवार और समाज के हित में हों। यही उसके संधि-पत्र हैं।
‘मेरे संधि-पत्र’ के केन्द्र में मध्यवर्गीय स्त्री के मन के द्वन्द्व हैं, निर्णय-अनिर्णय की स्थितियाँ हैं, इसमें स्त्री का शोषण नहीं है, बल्कि उसको बेपनाह प्यार करनेवाला पति है और उसके सौतेले बच्चे। समाज, परिवार, मान-मर्यादा को लेकर उपन्यास में जो सवाल उठाए गए हैं, वे आज भी स्त्री-विमर्श के लिए गौण मुद्दे नहीं हैं। उपन्यास में यह बात तो है कि स्त्री ऐसे पुरुष के सामने ही समर्पण कर पाती जो बौद्धिक रूप से उससे श्रेष्ठ हो, लेकिन उपन्यास की नायिका अन्त में सामाजिकता का वरण करती है। मुखर स्त्री-विमर्श के दौर में मितकथन वाला यह उपन्यास अपने प्रश्नों के कारण समकालीन लगने लगता ह
ISBN: 9789388933957
Pages: 136
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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अरुणाचल प्रदेश के 26 मुख्य आदिवासी समाजों में न्यीशी भी शामिल है। न्यीशी समाज में प्रचलित लोक कथाओं में एक प्रसिद्ध पुरखे तानी (पिता) को अनेक पत्नियां रखने वाले, प्रेमविहीन, बलात्कारी और आवारा व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है जो अपनी असाधारण बल-बुद्धि का इस्तेमाल भी सिर्फ औरतें हासिल करने के लिए करता है। लेखिका ने तानी की इस छवि पर सवाल उठाया है। न सिर्फ सवाल उठाया है बल्कि उसकी मूल छवि और उससे जुड़े अन्य मिथकीय प्रसंगों को अपनी कल्पना से फिर से निर्मित करने का बीड़ा उठाया है। इसी का सुफल है यह उपन्यास ‘जंगली फूल’।
भारत के आदिवासी समाजों में एक छोटे से शिक्षित बौद्धिक वर्ग द्वारा लिखे जा रहे आधुनिक साहित्य में ‘जंगली फूल’ एक असाधारण कृति है। यह कृति न सिर्फ न्यीशी आदिवासी समाज की ऐतिहासिक जीवन-यात्रा और उसकी संस्कृति तथा समाज का एक प्रामाणिक अन्दरूनी चित्र प्रस्तुत करती है बल्कि पूर्वोत्तर के आदिवासियों में प्रचलित कुछ अन्धविश्वासों, विवेकहीन परम्पराओं, परस्पर युद्धों तथा स्त्रियों पर अत्याचार करने वाली प्रथाओं के खिलाफ संघर्ष करते हुए सुख-शान्ति से जीने वाले एक नए समाज का चित्र भी साकार करती है। लेखिका के प्रगतिशील मानवतावादी दृष्टिकोण ने इस उपन्यास के माध्यम से आदिवासी समाजों में एक नवजागरण लाने का प्रयास किया है।
प्रेम की महिमा का गुणगान करने वाले इस उपन्यास में कई शक्तिशाली स्त्री चरित्र हैं जिनकी नैसर्गिकता से प्रभावित हुए बिना हम नहीं रह सकते। स्त्री-पुरुष के बीच मित्रता के सम्बन्ध को अपना आदर्श घोषित करने वाली यह साहसिक कृति अपनी खूबसूरत और चमत्कारिक भाषा के कारण बेहद पठनीय बन गई है।
खुद एक न्यीशी लेखिका द्वारा अपने न्यीशी समाज का प्रामाणिक चित्रण और उसके सामाजिक रूपान्तरण का क्रान्तिकारी आह्वान आदिवासियों में लिखे जा रहे साहित्य में ‘जंगली फूल’ को एक दुर्लभ कृति बनाता है।
—वीर भारत तलवार
Kumbhipak
- Author Name:
Nagarjun
- Book Type:

- Description: नरक की रचना जिन जीवन-स्थितियों से हुई होगी, नागार्जुन का यह उपन्यास उन्हीं के शब्दांकन का परिणाम है। एक ही मकान में रहनेवाले छह किराएदारों की जीवनचर्या पर केन्द्रित यह उपन्यास हमारे ‘विकासमान' नागर-जीवन के जिस सामाजिक यथार्थ की परतें खोलता है, प्रकारान्तर से वह समूचे भारतीय जीवन का यथार्थ है, क्योंकि स्त्री के प्रति पदार्थवादी नज़रिए की कहीं कोई कमी नहीं। आर्थिक अभावों में पिसती अनेकानेक निर्दोष जीवनेच्छाएँ किस प्रकार भोगवाद की भट्टी में झोंक दी जाती हैं, उनकी पीड़ा और मुक्तिकामी छटपटाहट को नागार्जुन ने गहरी आत्मीयता से उकेरा है। साथ ही, नागार्जुन यहाँ उस दृष्टि को प्रस्थापित करते हैं जो स्त्री की सामाजिक भूमिका और मानवीय गरिमा के प्रति सचेत है।
Akbar
- Author Name:
Shazi Zaman
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''हिन्दू गाय खाएँ, मुसलमान सूअर खाएँ...” 3 मई, 1578 की चाँदनी रात को कोई भी हिन्दुस्तान के बादशाह अबुल मुज़फ़्फ़र जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर की इस बात को समझ नहीं पाया। इसीलिए उस वक़्त उनकी इस कैफ़ियत को 'हालते अजीब’ कहा गया। सत्ता के शीर्ष पर खड़ा ये बादशाह अपनी ज़िन्दगी में कभी कोई जंग नहीं हारा। लेकिन अब एक बहुत बड़ी और ताक़तवर सत्ता उसके सब्र का इम्तिहान ले रही थी। बादशाह अकबर का संयम टूट रहा था और उनकी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा संघर्ष शुरू होने को था।
कई रोज़ पहले लगभग पचास हज़ार शाही फ़ौजियों ने सल्तनत की सरहद के क़रीब एक बहुत बड़ा शिकारी घेरा बाँधा था। बादशाह अकबर के पूर्वज अमीर तैमूर और चंगेज़ ख़ान के तौर-तरीक़े के मुताबिक़ ये घेरा पल-पल कसता गया और अब वो वक़्त आ पहुँचा जब शिकार बादशाह सलामत के पहले वार के लिए तैयार था। लेकिन उस मुक़ाम पर आकर बादशाह अकबर ने एक हैरतअंगेज़ क़दम उठा लिया...
ये उपन्यास लेखक ने बाज़ार से दरबार तक के ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर रचा है। बादशाह अकबर और उनके समकालीन के दिल, दिमाग़ और दीन को समझने के लिए और उस दौर के दुनियावी और वैचारिक संघर्ष की तह तक जाने के लिए शाज़ी ज़माँ ने कोलकाता के इंडियन म्यूजि़यम से लेकर लन्दन के विक्टोरिया एंड ऐल्बर्ट तक बेशुमार संग्रहालयों में मौजूद अकबर की या अकबर द्वारा बनवाई गई तस्वीरों पर ग़ौर किया, बादशाह और उनके क़रीबी लोगों की इमारतों का मुआयना किया और 'अकबरनामा’ से लेकर 'मुन्तख़बुत्तवारीख़’, 'बाबरनामा’, 'हुमायूँनामा’ और 'तजि्करातुल वाक़यात’ जैसी किताबों का और जैन और वैष्णव सन्तों और ईसाई पादरियों की लेखनी का अध्ययन किया। इस खोज में 'दलपत विलास’ नाम का अहम दस्तावेज़ सामने आया जिसके गुमनाम लेखक ने 'हालते अजीब’ की रात बादशाह अकबर की बेचैनी को क़रीब से देखा। इस तरह बनी और बुनी दास्तान में एक विशाल सल्तनत और विराट व्यक्तित्व के मालिक की जद्दोजहद दर्ज है। ये वो शख़्सियत थी जिसमें हर धर्म को अक़्ल की कसौटी पर आँकने के साथ-साथ धर्म से लोहा लेने की हिम्मत भी थी। इसीलिए तो इस शक्तिशाली बादशाह की मौत पर आगरा के दरबार में मौजूद एक ईसाई पादरी ने कहा, ''ना जाने किस दीन में जिए, ना जाने किस दीन में मरे।”
Mrityoramamritam Gamya
- Author Name:
Renu Rajvanshi Gupta
- Book Type:

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