Ganga Maiyya
Author:
Bhairavprasad GuptPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 120
₹
150
Available
प्रस्तुत पुस्तक ‘गंगा मैया’ में भारतीय ग्रामीण जीवन-संघर्ष का जो सहज, स्वाभाविक और वास्तविक अंकन हुआ है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। यही कारण है कि यह लघु उपन्यास आज विश्व कथा-साहित्य में हिन्दी कथा-साहित्य के प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार किया जा रहा है। अन्यान्य विदेशी भाषाओं में प्रकाशित होने के अतिरिक्त फ्रांसीसी तथा पुर्तगाली भाषाओं में प्रकाशित होनेवाली हिन्दी की पहली पुस्तक ‘गंगा मैया’ (1967-69) ही है। फ़्रांसीसी समीक्षकों ने इस उपन्यास की जो प्रशंसा की है, यह इसलिए अधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि आज फ्रांसीसी कथा-साहित्य विश्व में सर्वोच्च स्थान पर प्रतिष्ठित है। हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में ‘गंगा मैया’ कलेवर में सबसे छोटा है, किन्तु अपने आत्मिक सौष्ठव में यह उपन्यास महान है। यह हमारी गर्वोक्ति नहीं, विद्वान समीक्षकों की सामान्य उक्ति है। कथ्य, शिल्प और शैली में यह उपन्यास बेजोड़ माना गया है।
ISBN: 9788180317460
Pages: 128
Avg Reading Time: 4 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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उदयपुरम कहीं दूर एक उजाड़ गाँव है। गाँव के बाहर टीलों के बीच प्रज्ञादेवी का मन्दिर। नवरात्रि में यहाँ मेला लगता है। यहाँ आनेवाला हर श्रद्धालु प्रज्ञादेवी को अपनी कुलदेवी मानता है, जो आश्चर्यजनक है।
शताब्दियों पूर्व यह स्थान राजनीति, शिक्षा, व्यापार और संस्कृति का केन्द्र हुआ करता था। यही महानगर एक ऐतिहासिक सत्ता परिवर्तन का भी साक्षी रहा। जनशक्ति ने एक शासन व्यवस्था को सत्ता के शिखरों से नीचे ला खड़ा किया और यह सब किसी राजनीतिज्ञ के नहीं, एक संन्यासिन के नेतृत्व में हुआ था। जनता से मिली शक्ति से उसने सत्ता-परिवर्तन तो कर दिखाया, लेकिन सत्ता के कुटिल तंत्र को वह नहीं समझ सकी। उसके संगी-साथी सत्ता मिलते ही विलास में डूब गए और उसके विरुद्ध खड़े हो गए।
कहते हैं कि षड्यंत्रपूर्वक संन्यासिन को राजधानी से निष्कासित कर दिया गया। समाजशास्त्रियों का मत है कि वही संन्यासिन अब विभिन्न जातियों और समुदायों की कुलदेवी के रूप में पूजित है। यह उसी साध्वी प्रज्ञादेवी की कथा है, जो एक रूपक का सहारा लेकर आज की दिशाभ्रष्ट राजनीति का एक विस्तृत चित्र उपस्थित करती है।
जनसाधारण को कभी मालूम नहीं होता कि उनसे शक्ति और धन प्राप्त कर उनके प्रतिनिधि राजधर्म के अपने सुरक्षित कक्षों में क्या करते हैं। रोज़-रोज़ पक्ष-परिवर्तन और नित नूतन सन्धियाँ किसके लिए होती हैं। साध्वी के संघर्ष के साथ-साथ यह कथा उनकी भी है, जिन्हें आज हम अलग वेशभूषा में देखते हैं, लेकिन उनका चरित्र अभी भी वही है जैसा इस बृहत् उपन्यास के पृष्ठों पर अंकित है—धूल-धूसरित सड़कों पर रेंग रहे लोगों पर झपट पड़ने को तैयार गिद्धों का और चीलों का।
Valentine Baba
- Author Name:
Shashikant Mishra
- Book Type:

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Description:
बागी बलिया का कड़क लौंडा शिवेश वैलेंटाइन बाबा की मोहब्बत की मल्टी डायमेंशनल कम्पनी का फुल टाइम इम्प्लॉई है, जिसका एकमात्र धर्म है ‘काम’। ठीक इसके उलट है उसके बचपन का जिगरी यार, दिलदार, नाक की सीध में चलने वाला—मनीष, जिसकी सुबह है—सुजाता जिसका शाम है—सुजाता! जो ठीक-ठाक मॉडर्न है, थोड़ी स्टाइलिस्ट है, नई ज़बान में सेक्सी है, मस्ती की भाषा में बिन्दास है; लेकिन बलिया की यह ठेठ देसी लडक़ी कलेजे से ऐसी मज़बूत है कि अगर कोई उसे चिड़िया समझकर चारा चुगाने की कोशिश करने आगे बढ़े तो उसके इरादे का वह कचूमर बनाकर रख देती है। सुजाता की रूममेट है मोहिनी, जिसका दिल मोहब्बत के मीनाबाज़ार से बुरी तरह बेजार हो चुका है। लव-सव-इश्क़-विश्क की फ़िलॉसफ़ी को ठहाके में उड़ाती वह अक्सरहाँ कहने लगी है—जिसका जितना मोटा पर्स, वो उतना बड़ा आशिक़! सबकी ज़िन्दगी में कोई एक मक़सद है, सबको कुछ-न-कुछ मिलता है, लेकिन क्या ज़िन्दगी उन्हें वही देती है, जो वे चाहते थे?
चार नौजवान दिलों की हालबयानी है यह उपन्यास—‘वैलेंटाइन बाबा’! ढाई आखर वाले प्यार और वन नाइट स्टैंड वाले लस्ट की सोच का टकराव आख़िर किस मोड़ पर ले जाकर छोड़ेगा आपको, उपन्यास के आख़िरी पन्ने तक कायम रहेगा यह रहस्य! माना कि लाइफ़ में बहुत फ़ाइट है, सिचुएशन हर जगह, हर मोर्चे पर टाइट है तो क्या हुआ, दिल भी तो है! यक़ीनन, शशिकांत मिश्र का यह दूसरा उपन्यास बेलगाम बाज़ार की धुन पर ठुमकते हरेक दिल की ईसीजी रिपोर्ट है, इसे पढ़ना आईने के सामने होना है, जाने क्या आपको अपने-सा दिख जाए...!
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