Revolution Highway
Author:
Dilip SimeonPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 480
₹
600
Available
‘रिवोल्यूशन हाइवे’ बेचैन दशक के नाम से विख्यात, पिछली सदी के सातवें दशक की स्मृतियों के गम्भीर, विचारोत्तेजक और संवेदनशील मन्थन का आख्यान है। नक्सलबाड़ी का किसान-विद्रोह, उस विद्रोह में बुद्धिजीवियों, छात्रों की भागीदारी, बांग्लादेश का जन्म, वियतनाम युद्ध और विश्वव्यापी छात्र-असन्तोष इस आख्यान की पृष्ठभूमि में हैं।</p>
<p>नक्सलवादी आन्दोलन के उस दौर में लेखक की व्यक्तिगत संलग्नता जहाँ इस उपन्यास को सर्जनात्मक संस्मरण की विश्वसनीयता देती है, वहीं समूचे घटनाक्रम पर नैतिक पुनर्विचार का साहस 'रिवोल्यूशन हाइवे' को एक वैचारिक चुनौती के धरातल पर भी ले जाता है। यह कथा हिंसा-अहिंसा, इतिहास-राजनीति, सही-ग़लत, वर्तमान-भविष्य के यक्ष-प्रश्नों से जूझती बेचैन आत्माओं की कथा है।</p>
<p>'रिवोल्यूशन हाइवे' भीतर-बाहर के द्वन्द्वों में व्याप्त जीवनानुभव और मोहभंग पर विचार-पुनर्विचार के ज़रिए अर्जित होनेवाले विवेक की कथा है। प्रतिशोध से पगलाया, विवेक-मणि से वंचित अमरता का अभिशाप ढो रहा अश्वत्थामा इस आख्यान की मूल वेदना का रूपक है। उपन्यास एक तरह से अश्वत्थामा की आत्मा की शान्ति का अनुष्ठान भी है।</p>
<p>—पुरुषोत्तम अग्रवाल
ISBN: 9788126725731
Pages: 316
Avg Reading Time: 11 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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Description:
‘रेहन पर रग्घू’ प्रख्यात कथाकार काशीनाथ सिंह की रचना-यात्रा का नव्य शिखर है। भूमंडलीकरण के परिणामस्वरूप संवेदना, सम्बन्ध और सामूहिकता की दुनिया में जो निर्मम ध्वंस हुआ है — तब्दीलियों का जो तूफान निर्मित हुआ है — उसका प्रामाणिक और गहन अंकन है ‘रेहन पर रग्घू’। यह उपन्यास वस्तुतः गाँव, शहर, अमेरिका तक के भूगोल में फैला हुआ अकेले और निहत्थे पड़ते जा रहे समकालीन मनुष्य का बेजोड़ आख्यान है।
उपन्यास में केन्द्रीय पात्र रघुनाथ की व्यवस्थित और सफल ज़िन्दगी चल रही है। सब कुछ उनकी योजना और इच्छा के मुताबिक़। अचानक कुछ ऐसा घटित होता है कि उनके जीवन का अर्जित यथार्थ इतना महत्त्वाकांक्षी, आक्रामक, हिंस्र हो जाता है कि मनुष्यता की तमाम सारी आत्मीय, कोमल अच्छी चीजे़ं टूटने, बिखरने, बरबाद होने लगती हैं। इस महाबली आक्रान्ता के प्रतिरोध का जो रास्ता उपन्यास के अन्त में अख़्तियार किया गया, वह न केवल विलक्षण और अचूक है, बल्कि ‘रेहन पर रग्घू’ को यादगार व्यंजनाओं से भर देता है।
‘रेहन पर रग्घू‘ नए युग की वास्तविकता की बहुस्तरीय गाथा है। इसमें उपभोक्तावाद की क्रूरताओं का विखंडन है ही, साथ में शोषित-प्रताड़ित जातियों के सकारात्मक उभार और नई स्त्री की शक्ति एवं व्यथा का दक्ष चित्रांकन भी है। दरअसल ‘रेहन पर रग्घू’ में वास्तविकताओं, चरित्रों, लोकेल, उपकथाओं आदि का ऐसा सधा हुआ अकाट्य अन्तर्गुम्फन है कि उसे एक प्रौढ़ रचनात्मकता के रूप में दर्ज किया जाना चाहिए। देशज सच्चाइयों, कल्पना, काव्यात्मकता, झीनी दार्शनिकता का सहमेल उपन्यास को मूल्यवान आभा से समृद्ध बनाता है।
—अखिलेश
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