Hindu : Jeene Ka Samriddh Kabaad
Author:
Bhalchandra Nemade, Gorakh ThorathPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 479.2
₹
599
Available
‘हिन्दू’ शब्द के असीम और निराकार विस्तार के भीतर समाहित, ‘अपने-अपने ढंग’ से सामाजिक रूढ़ियों में बदलती ‘उखड़ी-पुखड़ी’, ‘जमी-बिखरी’ वैचारिक धुरियों, सामूहिक आदतों, ‘स्वार्थों’ और ‘परमार्थों’ की आपस में उलझी पड़ी अनेक बेड़ियों-रस्सियों, सामाजिक-कौटुम्बिक रिश्तों की पुख्तगी और भंगुरता, शोषण और पोषण की एक दूसरे पर चढ़ीं अमृत और विष की बेलें, समाज की अश्मीभूत हायरार्की में ‘साँस लेता-दम तोड़ता जन’, और इस सबके ऊबड़-खाबड़ से राह बनाता समय—मरण-लिप्सा और जीवनावेग की अतलगामी भँवरों में डूबता-उतराता, अपने घावों को चाटकर ठीक करता, बढ़ता काल...
देसी अस्मिता का महाकाव्य यह उपन्यास भारत के जातीय 'स्व’ का बहुस्तरीय, बहुमुखी, बहुवर्णी उत्खनन है। यह न गौरव के किसी जड़ और आत्ममुग्ध आख्यान का परिपोषण करता है, न 'अपने’ के नाम पर संस्कृति की रगों में रेंगती उन दीमकों का तुष्टीकरण, जिन्होंने 'भारतवर्ष’ को भीतर से खोखला किया है। यह उस विराट इकाई को समग्रता में देखते हुए चलता है जिसे भारतीय संस्कृति कहते हैं।
यह समूचा उपन्यास हममें से किसी का भी अपने आप से संवाद हो सकता है—अपने आप से और अपने भीतर बसे यथार्थ और नए यथार्थ का रास्ता खोजते रास्तों से। इसमें अनेक पात्र हैं, लेकिन उपन्यास के केन्द्र में वे नहीं, सारा समाज है, वही समग्रता में एक पात्र की तरह व्यवहार करता है। संवाद भी, पूरा समाज ही करता है, लोग नहीं। एक क्षरणशील, फिर भी अडिग समाज भीतर गूँजती, और 'हमें सुन लो’ की प्रार्थना करती जीने की ज़िद की आर्त पुकारें। कृषि संस्कृति, ग्राम व्यवस्था और अब, राज्य की आकंठ भ्रष्टाचार में लिप्त नई संरचना—सबका अवलोकन करती हुई यह गाथा—इस सबके अलावा पाठक को अपनी अँतड़ियों में खींचकर समो लेने की क्षमता से समृद्ध एक जादुई पाठ भी है।
ISBN: 9788126727964
Pages: 548
Avg Reading Time: 18 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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