Ekakipan Ke Sau Varsh
Author:
Gabriel Garcia MarquezPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 399.2
₹
499
Available
‘एकाकीपन के सौ वर्ष’ की कहानी आपको विस्मित करती है; इसकी अतिरंजनाएँ आपको अवाक् और हास्य के आवेग में विह्वल छोड़ देती हैं; आप एक विराट स्मृति-गाथा के अतिमानवीय मायाजाल में धीरे-धीरे यथार्थ और वास्तविकता के कठोर पत्थरों पर पैर रखते हुए आगे बढ़ते हैं; और इस तरह मानव नियति के साथ बिंधे अनन्त अकेलेपन की एक सामूहिक गाथा के दूसरे छोर तक जाते हैं।
ISBN: 9789390971091
Pages: 440
Avg Reading Time: 15 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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इस पौराणिक फैंटेसी में वे भाषा, शैली, कथन तथा कहन के स्तर पर एकदम निराली तथा नई ज़मीन पर खड़े दीखते हैं। यहाँ वे व्यंग्य को एक सार्वभौमिक चिंता में तब्दील करते हुए ‘पादुकाराज’ के मेटाफर के माध्यम से समकालीन भारतीय आमजन और दरिद्र समाज की व्यथा-कथा को अपने बेजोड़ व्यंग्यात्मक लहजे में कुछ इस प्रकार कहते हैं कि पाठक के समक्ष निरंकुश सत्ता का भ्रष्ट तथा जनविरोधी तंत्र, राजकवि तथा राज्याश्रयी आश्रमों के रूप में सत्ता से जुड़े भोगवादी बुद्धिजीवी और पादुकामंत्री, सेनापति-पादुका राजसभा आदि के ज़रिए तथाकथित श्रेष्ठिजनों के बीच जारी सत्ता-संघर्ष का मायावी परंतु भयानक सत्य–सब कुछ अपनी संपूर्ण नग्नता में निरावृत हो जाता है। ‘पादुकाराज’, ‘अयोध्या’ तथा ‘रामराज’ के बहाने ज्ञान चतुर्वेदी मात्र सत्ता के खेल और उसके चालाक कारकों का ही व्यंग्यात्मक विश्लेषण नहीं करते हैं, वे मूलतः इस क्रूर खेल में फँसे भारतीय दरिद्र प्रजा के मन में रचे-बसे उस यूटोपिया की भी बेहद निर्मम पड़ताल करते हैं, जो उस ‘रामराज’ के स्थापित होने के भ्रम में ‘पादुका-राज’ को सहन करती रहती है, जो सदैव ही मरीचिका बनकर उसके सपनों को छलता रहा है।
स्वर्ग तथा देवता की एक समांतर कथा भी उपन्यास में चलती रहती है, जो भारत के आला अफ़सरों की समांतर परन्तु मानो धरती से अलग ही बसी दुनिया पर बेजोड़ टिप्पणी बन गई है। आधुनिक भारत के इन ‘देवताओं’ का यह स्वर्ग ज्ञान के चुस्त फिकरों, अद्भुत विट और निर्मल हास्य के प्रसंगों के जरिए पाठकों के समक्ष ऐसा अवतरित होता है कि वह एक साथ ही वितृष्णा भी उत्पन्न करता है और करुणा भी। और शायद क्रोध भी।
हिन्दी में फैंटेसी गिनी-चुनी ही है। विशेष तौर पर हिन्दी व्यंग्य में पौराणिक फैंटेसी जो लिखी भी गई है, वे प्रायः फूहड़ तथा सतही निर्वाह में भटक गई हैं। इस लिहाज से भी ‘मरीचिका’ एक महत्त्वपूर्ण उपन्यास है।
Naari
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Siyaramsharan Gupt
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Description:
चिरन्तन नारी युग-युग के अन्धकार में, उसे तुच्छ करके चिरकाल से आगे बढ़ती जा रही है, दु:ख और विपत्ति के अँधियारे पथ को पददलित करती हुई। उसे कोई भय नहीं है, कोई चिन्ता नहीं है। यही वह भाव है, यही वह मूल-मंत्र है, जिसके इर्द-गिर्द प्रसिद्ध उपन्यासकार सियारामशरण गुप्त जी ने इस उपन्यास का ताना-बाना बुना है, जो रोचक है, उत्कृष्ट मनोरंजन प्रदान करनेवाला है, और दिशाहीन होते समाज को सही दिशा दिखानेवाला भी है।
नारी सहित प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर की सृष्टि है। इसी कारण ईश्वर की तरह वह गहन भी है। ईश्वर की तरह ही कष्ट सहन करके ही उसे ईश्वरीय शक्ति उपलब्ध करना होगा। उचित यही है, करणीय यही है। यही वह मान्यता है, यही वह सिद्धान्त है, जिसे इस उपन्यास में निरूपित किया गया है, स्थापित किया गया है। उपन्यास के पात्र जैसे सजीव होकर इन सर्वोच्च मान्यताओं को अपने क्रिया-कलापों और संवादों से इस प्रकार पूर्णता से स्थापित करते चलते हैं कि पाठक के मन-मस्तिष्क पर उसका स्थायी प्रभाव पड़े।
Teri Hi Tasveer
- Author Name:
Harsh Ranjan
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- Description: महाभारत और गीता के कृष्ण भूले-भटके, थके-थके से सूरदास और मीराबाई के भजन सुन रहे थे... वो हाथ के सुदर्शन औरकुरुक्षेत्र के रण से अलग अपनी एक नयी पहचान बुन रहे थे...फिर मैंने उनकी गैया नहीं देखी... मैया भी नहीं देखी... सिर्फपरकटे मोर-मोरनी और कभी की रंग-बिरंगी चिडि़यां देखी। ...फिर सारे मोरपंख मैंने स्याही में डाले और हजार पन्नों का सफर सिर्फकृष्ण-कृष्ण लिखकर निकाल डाले। हरेक सौवां पन्ना मील का एक पत्थर था जिसे कृष्ण का अभय और वर था...और खुद ये उनके लिएआश्वासन था कि उनकी पहचान लिखने का साधन आखिरी हर नये युग के नये कृष्ण का आह्वाहन था।
Pagalkhana
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Gyan Chaturvedi
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Description:
ज्ञान चतुर्वेदी का यह पाँचवाँ उपन्यास है। इसलिए उनके कथा-शिल्प या व्यंग्यकार के रूप में वह अपनी औपन्यासिक कृतियों को जो वाग्वैदग्ध्य, भाषिक, शाब्दिक तुर्शी, समाज और समय को देखने का एक आलोचनात्मक नज़रिया देते हैं, उसके बारे में अलग से कुछ कहने का कोई औचित्य नहीं है। हिन्दी के पाठक उनके 'नरक-यात्रा', 'बारामासी' और 'हम न मरब' जैसे उपन्यासों के आधार पर जानते हैं कि उन्होंने अपनी औपन्यासिक कृतियों में सिर्फ़ व्यंग्य का ठाठ खड़ा नहीं किया, न ही किसी भी क़ीमत पर पाठक को हँसाकर अपना बनाने का प्रयास किया, उन्होंने व्यंग्य की नोक से अपने समाज और परिवेश के असल नाक-नक़्श उकेरे।
इस उपन्यास में भी वे यही कर रहे हैं। जैसा कि उन्होंने भूमिका में विस्तार से स्पष्ट किया है, यहाँ उन्होंने बाज़ार को लेकर एक विराट फैंटेसी रची है। यह वे भी मानते हैं कि बाज़ार के बिना जीवन सम्भव नहीं है। लेकिन बाज़ार कुछ भी हो, है तो सिर्फ़ एक व्यवस्था ही जिसे हम अपनी सुविधा के लिए खड़ा करते हैं। लेकिन वही बाज़ार अगर हमें अपनी सुविधा और सम्पन्नता के लिए इस्तेमाल करने लगे तो?
आज यही हो रहा है। बाज़ार अब समाज के किनारे बसा ग्राहक की राह देखता एक सुविधा-तंत्र-भर नहीं है। वह समाज के समानान्तर से भी आगे जाकर अब उसकी सम्प्रभुता को चुनौती देने लगा है। वह चाहने लगा है कि हमें क्या चाहिए, यह वही तय करे। इसके लिए उसने हमारी भाषा को हमसे बेहतर ढंग से समझ लिया है, हमारे इंस्टिंक्ट्स को पढ़ा है, समाज के रूप में हमारी मानवीय कमज़ोरियों, हमारे प्यार, घृणा, ग़ुस्से, घमंड की संरचना को जान लिया है, हमारी यौन-कुंठाओं को, परपीड़न के हमारे उछाह को, हत्या को अकुलाते हमारे मन को बारीकी से जान-समझ लिया है, और इसीलिए कोई आश्चर्य नहीं कि अब वह चाहता है कि हमारे ऊपर शासन करे।
इस उपन्यास में ज्ञान चतुर्वेदी बाज़ार के फूलते-फलते साहस की, उसके आगे बिछे जाते समाज की और अपनी ताक़त बटोरकर उसे चुनौती देनेवाले कुछ बिरले लोगों की कहानी कहते हैं।
Love 2 : A Sweet Poison
- Author Name:
Rajeev Pundir
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- Description: What’s love? Since the dawn of life itself, this question has continuously baffled humanity. And this puzzle has not been solved yet. This cannot because the day This abracadabra is known, the very purpose of life and to live will cease to exist. Therefore, the mystery must go on… this is such a factor that where some find it quite encouraging, inspirational, soothing like a balm for the day-to-day problems, and prepare them to strive hard against all odds of life; the others feel it worse even than poisoning them down and ruining their lives. However—people will continue to fall in love! Sixteen excellent writers have tried to explore the world of this governing force of life—love, through their unique stories. Grab this anthology par excellence and indeed, you’ll not only feel and love but—live them!!
Ek Karore Ki Botal
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Krishna Chander
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Description:
ज़िन्दगी एक फूल होती है जो मुरझा जाती है; ज़िन्दगी एक पत्थर होती है और घिस जाती है; ज़िन्दगी लोहा होती है और जंग खा जाती है; ज़िन्दगी आँसू होती है और गिर जाती है; ज़िन्दगी महक होती है और बिखर जाती है; ज़िन्दगी समन्दर होती है और...“यही है कृश्न चंदर की जादुई क़लम, जिसने जीवन की भयावह सचाइयों को अत्यन्त रोमैंटिक लहज़े में पेश किया है।
'एक करोड़ की बोतल' उनका एक महत्त्वपूर्ण उपन्यास है, जिसमें उन्होंने नारी के समस्त कोमल मनोभावों एवं उसकी आन्तरिक पीड़ा को मार्मिक अभिव्यक्ति दी है। एक कुशल कथाकार के नाते उनकी लेखनी ने बहुत सफलता के साथ सेक्स, रोमांस, धनाभाव और माया-लोक की सम-विषम परिस्थितियों में फँसे अपने मुख्य पात्रों को इस बात की पूरी स्वतंत्रता दी है कि वे अपने-आपको पाठक के सामने स्वयं उपस्थित करें।
वास्तव में कृश्न चंदर का यह उपन्यास मानव-मन की दुर्बलताओं का दर्पण तो है ही, इसमें सामाजिक विघटन एवं कुंठा से उत्पन्न वे घिनौने प्रसंग भी हैं, जो हमें चिन्तन के नए छोरों तक ले जाकर रचनात्मक पुनर्रचना के लिए प्रेरित भी करते हैं।
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