Sewasadan
Author:
PremchandPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
‘सेवा सदन’ को प्रेमचन्द की वह औपन्यासिक रचना माना जाता है जिसने उन्हें उपन्यासकार के रूप में प्रतिष्ठित किया। मूल रूप से उर्दू में ‘बाज़ारे-हुस्न’ नाम से लिखे गए इस उपन्यास की रचना को 2019 में सौ साल पूरे हुए और इस अवसर पर अनेक स्थानों पर इस सम्बन्ध में कार्यक्रम भी आयोजित किए गए। इस मूल उर्दू उपन्यास का हिन्दी संस्करण पहले प्रकाशित हुआ था, बाद में मूल उर्दू भी प्रकाशित हुआ।</p>
<p>उपन्यास के केन्द्र में सुमन है जिसके जीवन की कथा के बहाने प्रेमचन्द ने उस समय के समाज और उसकी अनेक उलटबाँसियों का चित्रण किया है। दहेज की समस्या, धन के चलते पैदा हुए सामाजिक असन्तुलन, अनमेल विवाह और वेश्या-जीवन की विसंगतियों पर प्रकाश डालनेवाले इस उपन्यास को कुछ लोग हिन्दी का पहला आधुनिक उपन्यास भी मानते हैं।</p>
<p>बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में, वाराणसी की पृष्ठभूमि में एक ब्राह्मण युवती को अनमेल विवाह से निकलकर वेश्या बनते और तदनन्तर एक समाज-सुधारक के रूप में ढलते दिखाना उस समय रचनाकार के लिए बेहद साहसिक काम था जो प्रेमचन्द ने बख़ूबी किया।
ISBN: 9788180316401
Pages: 212
Avg Reading Time: 7 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
नितान्त अपनी ज़रूरत, अपने सुख, अपनी महत्त्वाकांक्षा, समृद्धि-लालसा की ख़ुदग़र्ज़ी के तक़ाज़े पर, इनसान ‘समूह’ बनाता है; समाज गढ़ता है; परिवार रचता है और अनगिनत रिश्तों के जाल में, अपने को उलझाए रखता है। लेकिन हैरत है, फिर भी हर इनसान निपट अकेला है, ज़िन्दगी-भर अकेला ही जीता है। ‘अपने लोग’ उपन्यास इसी निःसंग निर्जनता की तलाश है।
इस विशाल कथा की रूपरेखा समसामयिक है, पृष्ठभूमि समकालीन समाज है। माँ और बेटी के माध्यम से दो पीढ़ियों का इतिहास है और इनके इर्द-गिर्द अनगिनत रंग-बिरंगे चरित्र हैं; जिनमें कामयाब इनसान की गोपन नाकामी की स्वीकृति है; नाकामयाब इनसान का कामयाब न हो पाने का दर्द है, वहीं भावी पीढ़ी आशा-आकांक्षाओं, वर्तमान समाज की लाचारी और पापबोध के इर्द-गिर्द घूमती है। निरर्थक विद्रोह की पीड़ा और दो-दो पीढ़ियों के टकराव की दास्तान है। इसी के समानान्तर, पुरानी हवेली के खँडहरों पर नई इमारत के निर्माण की उपकथा है। नई इमारत, मानो समय के विवेक, मूल्यबोध और अनुशासन की मिसाल है। इन्हीं सबके माध्यम से लेखिका ने निःसंगता का उत्स ढूँढ़ने का प्रयास किया है।
इस वृहद उपन्यास में अनगिनत चरित्रों का जुलूस है—कोई बूढ़ा, कोई अधेड़, कोई किशोर, कोई किशोरी; जवान औरत-मर्द या फिर निरा शिशु। अलग-अलग पीढ़ियों से सम्बद्ध होने के बावजूद ये सब अभिन्न और एकमेक हैं। इन सबके अन्तस में दुःख और अवसाद चहलक़दमी कर रहा है। उपन्यास का नाम भी विराट व्यंजना का प्रतीक है। उपन्यास के सभी पात्र हमारे बेहद जाने-पहचाने, नितान्त क़रीबी लोग हैं, लेकिन नितान्त अपने होने के बावजूद, क्या सच ही कोई, किसी के क़रीब है ? क्या सचमुच नितान्त सगा, बिलकुल अपना है ? इन तमाम जीवनमुखी सवालों का जवाब है—‘अपने लोग’।
Kisi Aur Subah
- Author Name:
Lakshmidhar Malviya
- Book Type:

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