Balchanma
Author:
NagarjunPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Literary-fiction0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
‘बलचनमा’ की गणना हिन्दी के कालजयी उपन्यासों में की जाती है। छठी दशाब्दी के आरम्भिक वर्षों में प्रकाशित होते ही इसकी धूम मच गई और आज तक यह</p>
<p>उसी प्रकार सर्वप्रिय है। इसे हिन्दी का प्रथम आंचलिक उपन्यास होने का भी गौरव प्राप्त <br>है।</p>
<p>दुनिया के अन्य देशों की तरह भारत का सामन्ती जीवन भी ग़रीबों की त्रासदी से भरा पड़ा है, और यह परम्परा अभी समाप्त होने में नहीं आ रही। इस उपन्यास में चौथे दशक के आसपास मिथिला के दरभंगा ज़िले के ज़मींदार समाज और उनके अन्यायों की कहानी बड़े मार्मिक ढंग से लिखी गई है। ‘बलचनमा’ दरअसल एक प्रतीक है अत्याचारों से उपजे विद्रोह का जो धनाढ्य समाज के अत्याचारों की कारुणिक कथा कहता है। ‘बलचनमा’ का भाग्य उसे उसी कसाई ज़मींदार की भैंस चराने के लिए विवश करता है जिसने अपने बग़ीचे से एक कच्चा आम तोड़कर खा जाने के अपराध में उसके पिता को एक खम्भे से बँधवाकर मरवा दिया था। लेकिन वह गाँव छोड़कर शहर भाग जाता है और ‘इंक़लाब’, ‘सुराज’ आदि शब्दों का ठीक उच्चारण तक न कर पाने पर भी शोषकों से संघर्ष करने के लिए उठ रहे आन्दोलन में शामिल हो जाता है।</p>
<p>मनीषी कवि-कथाकार नागार्जुन का यह उपन्यास साहित्य की महत्त्वपूर्ण धरोहर है।
ISBN: 9788126702664
Pages: 175
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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घर की बेटी, और फिर उसकी भी बेटी—करेला और नीमचढ़ा की इस स्थिति से गुज़रती अकाल–प्रौढ़ लेकिन संवेदनशील बच्ची की आँखों से देखे संसार के इस चित्रण में हम सभी ख़ुद को कहीं न कहीं पा लेंगे।
ख़ास बतरसिया अन्दाज़ में कहे गए इन क़िस्सों में कहीं कड़वाहट या विद्वेष नहीं है। बेवजह की चाशनी और वर्क़ भी नहीं चढ़ाए गए हैं। चीज़ें जैसी हैं वैसी हाज़िर हैं।
इनकी शैली ऐसी ही है जैसे घर के काम निपटाकर आँगन की धूप में कमर सीधी करती माँ शैतान धूल–भरी बेटी को चपतियाती, धमोके देती, उसकी जूएँ बीनती है। मृणाल पाण्डे की क़लम की संधानी नज़र से कुछ नहीं बच पाता—न कोई प्रसंग, न सम्बन्धों के छद्म। घर के आँगन से क़स्बे के जीवन पर रनिंग कमेंटरी करती बच्ची के साथ–साथ उसके देखने का क्षेत्र भी बढ़ता रहता है और उसके साथ ही सम्बन्धों की परतें भी। अन्त तक मृत्यु की आहट भी सुनाई देती है।
बच्चों की दुनिया में ऐसा नहीं होना चाहिए लेकिन होता है—इसीलिए यह किताब...
Hindu : Jeene Ka Samriddh Kabaad
- Author Name:
Bhalchandra Nemade +1
- Book Type:

- Description: ‘हिन्दू’ शब्द के असीम और निराकार विस्तार के भीतर समाहित, ‘अपने-अपने ढंग’ से सामाजिक रूढ़ियों में बदलती ‘उखड़ी-पुखड़ी’, ‘जमी-बिखरी’ वैचारिक धुरियों, सामूहिक आदतों, ‘स्वार्थों’ और ‘परमार्थों’ की आपस में उलझी पड़ी अनेक बेड़ियों-रस्सियों, सामाजिक-कौटुम्बिक रिश्तों की पुख्तगी और भंगुरता, शोषण और पोषण की एक दूसरे पर चढ़ीं अमृत और विष की बेलें, समाज की अश्मीभूत हायरार्की में ‘साँस लेता-दम तोड़ता जन’, और इस सबके ऊबड़-खाबड़ से राह बनाता समय—मरण-लिप्सा और जीवनावेग की अतलगामी भँवरों में डूबता-उतराता, अपने घावों को चाटकर ठीक करता, बढ़ता काल... देसी अस्मिता का महाकाव्य यह उपन्यास भारत के जातीय 'स्व’ का बहुस्तरीय, बहुमुखी, बहुवर्णी उत्खनन है। यह न गौरव के किसी जड़ और आत्ममुग्ध आख्यान का परिपोषण करता है, न 'अपने’ के नाम पर संस्कृति की रगों में रेंगती उन दीमकों का तुष्टीकरण, जिन्होंने 'भारतवर्ष’ को भीतर से खोखला किया है। यह उस विराट इकाई को समग्रता में देखते हुए चलता है जिसे भारतीय संस्कृति कहते हैं। यह समूचा उपन्यास हममें से किसी का भी अपने आप से संवाद हो सकता है—अपने आप से और अपने भीतर बसे यथार्थ और नए यथार्थ का रास्ता खोजते रास्तों से। इसमें अनेक पात्र हैं, लेकिन उपन्यास के केन्द्र में वे नहीं, सारा समाज है, वही समग्रता में एक पात्र की तरह व्यवहार करता है। संवाद भी, पूरा समाज ही करता है, लोग नहीं। एक क्षरणशील, फिर भी अडिग समाज भीतर गूँजती, और 'हमें सुन लो’ की प्रार्थना करती जीने की ज़िद की आर्त पुकारें। कृषि संस्कृति, ग्राम व्यवस्था और अब, राज्य की आकंठ भ्रष्टाचार में लिप्त नई संरचना—सबका अवलोकन करती हुई यह गाथा—इस सबके अलावा पाठक को अपनी अँतड़ियों में खींचकर समो लेने की क्षमता से समृद्ध एक जादुई पाठ भी है।
Katra Katra Aasakti
- Author Name:
Harsh Ranjan
- Book Type:

- Description: फिर कभी सोचूँगा कि अब वदन में कितनी आग बाकीं है। आजकल पानी पड़ती है आग भी सोचूंगा इसके लिये कितनी राख काफी है। गुजरते लोग आज भी देखते हैं इज्जत से मुझे इस गली में, लगता है कि मेरी साख अभी बाकीं है, और मेरी जो राह खुली है घर के आगे बड़ी सड़क पर लाख कदम चल चुके, लाख अभी बाकीं है। एक छोटा सा घर बनाया है अरमान उत्पात न करें मेरे यहाँ इसलिये उन्हें दूर बाहर ही छोड़ आया। यहाँ पीने के लिये मैं और सात पर्दों में छिपा मेरा इतिहास ही काफी है। शोध का विषय है कईयों के लिये कि गिरा हुआ आदमी संभ्हलने से पहले कितनी बार गिर सकता है और एक मरा हुआ आदमी जीने की शर्त पूरी करने को कितनी बार मर सकता है। मेरे अंदर जी रहे लोगों को मैं बार-बार विश्वास दिलाता हूँ जीने की कोशिशों में मरने का हिस्सा उन्हें बार-बार याद दिलाता हूँ और जो मैं कहलाता हूँ वो बहुत है कि जिंदगी और मौत, आग और राख, गुमनामी और साख से मैं क्या पाता हूँ।
Shadows of Solitude
- Author Name:
Aryani Banerjee
- Book Type:

- Description: Twenty-nine-year-old aniya finds it extremely difficult to cope after her fiancé abhishar Sen’s untimely demise. Solitude takes her on a roller coaster ride, and she suddenly develops feelings for her Jovial reporting manager Vinod Gupta, which she believes is an infatuation created by the void abhishar’s death has left in her life. Amidst all this, she comes to know that Mohan – one of her colleagues she becomes friends, has been in love with her for a long time. Droplets of hope trickle down the moist glass of her broken heart; who will she choose?
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