Ramchandra Shukla
Author:
MalayajPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Available
विस्मरण के इस हाहाकारी उत्सवी दौर में भुला दिए गए विलक्षण कवि-आलोचक मलयज और उनकी पुस्तक ‘रामचन्द्र शुक्ल’ की पुनर्प्रस्तुति का साहित्यिक और अकादमिक महत्त्व निर्विवाद है। मलयज की आलोचना पद्धति के कायल वे सब लोग हैं, जिन्होंने उनका लिखा कुछ भी पढ़ा है। भौतिक रूप से मिले छोटे से जीवन में मलयज ने सृजन के कई मानक स्थापित किए। यह पुस्तक भी अपने संक्षिप्त कलेवर में ही एक प्रतिमान की तरह है। मलयज ने एक अपूर्व आलोचक-चिन्तक के रूप में रामचन्द्र शुक्ल का जिस प्रकार मूल्यांकन किया है, उसका सानी कोई दूसरा नहीं है। यह अकारण नहीं है कि इस पुस्तक को सम्पादित करने वाले सुप्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह ने अपनी भूमिका का शीर्षक ही दिया था—मलयज की संघर्ष मीमांसा। मलयज रामचन्द्र शुक्ल की ‘रस-मीमांसा’ के बड़े प्रशंसक थे। उनकी अन्तर्दृष्टि मलयज की अन्तर्दृष्टि में उसी प्रकार घुली है जिस प्रकार दाल में नमक घुल जाता है। लेकिन यहाँ यह याद रखना ज़रूरी है कि दाल में नमक का बहुत महत्त्व है लेकिन वह पूरी दाल नहीं है। वह उसका एक घटक भर है। कहने की आवश्यकता नहीं कि रामचन्द्र शुक्ल के दाय को स्वीकार करते हुए मलयज ने नया बहुत कुछ जोड़ा और हिन्दी आलोचना को गहरी विश्वसनीयता भी दी। हिन्दी के युवा आलोचकों के लिए मलयज की विश्लेषण पद्धति और भाषा में सीखने के लिए बहुत कुछ है। उनकी आलोचना एक पाठशाला की तरह है।</p>
<p>—जितेन्द्र श्रीवास्तव
ISBN: 9789392757754
Pages: 134
Avg Reading Time: 4 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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हिन्दी आलोचना में डॉ. नंदकिशोर नवल का मुख्य कार्य-भार रहा है पाठ से हटी हुई आलोचना को पाठाधारित करना। यह काम उन्होंने इस तरह किया है कि आलोचना पाठ-केन्द्रित भी हो और वह अपने भीतर रचना के अदृश्य विस्तार को भी समेट सके। वे निराला-काव्य के समर्पित अध्येता रहे हैं और उन्होंने निराला पर शोध करने के साथ विश्वविद्यालय में लम्बे समय तक निराला-काव्य का अध्यापन भी किया है। हिन्दी संसार उनके द्वारा सम्पादित ‘निराला रचनावली’ के आठ खंडों में उनका श्रम और निष्ठा देख चुका है। प्रस्तुत पुस्तक के दो खंडों में उन्होंने निराला की महत्त्वपूर्ण काव्य-कृतियों का ऐसा पाठाधारित विश्लेषण किया है, जो जितना ही पांडित्य के पाखंड से शून्य है, उतना ही सरस और रचनात्मक। उचित ही उन्होंने कहा है कि उन्होंने निराला की कविता की पंखुड़ियाँ छिन्न-भिन्न नहीं कीं, सिर्फ़ इसके लिए प्रयास किया है कि वह अपनी नाल पर प्रस्फुटित हो जाए।
‘कृति से साक्षात्कार’ के प्रथम खंड में निराला की कालजयी पूर्ववर्ती कविताओं का विवेचन है और द्वितीय खंड में गीतों के साथ उनकी मध्यवर्ती और परवर्ती उन कविताओं का, जिन्होंने हिन्दी कविता में नए-नए वाग्द्वार खोले। 1936 में निराला ऐसा मानते थे कि उनकी शमा पूरी-पूरी नहीं जली, उसमें हज़ार-दो हज़ार बत्तियों की ताक़त नहीं आई। उनके पूर्ववर्ती कृतित्व के साथ मध्यवर्ती और परवर्ती कृतित्व को भी दृष्टि में रखने पर वह अपनी रोशनी से आँखें चौंधियाती दिखलाई पड़ती हैं।
डॉ. नवल के इस अध्ययन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह परवर्ती पीढ़ी के एक आलोचक द्वारा किया गया अध्ययन है, जिसमें दृष्टि की वस्तुपरकता तो है ही, नई काव्य-संवेदना की दीप्ति भी है।
Bhramar Geet : Saundaryashastriya Anushilan
- Author Name:
Rajendra Prasad Singh
- Book Type:

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Description:
हिन्दी में जिस समय आधुनिक काल से पहले की साहित्यिक घटनाओं पर शोध कार्य अत्यन्त अल्प हो चुका है, उस समय श्री राजेन्द्र प्रसाद सिंह की पुस्तक ‘भ्रमरगीत : सौन्दर्यशास्त्रीय अनुशीलन’ का प्रकाशन आश्वस्तिकारक है। शोध और आलोचना के क्षेत्र में यह पुस्तक विज्ञ जन और आम पाठक दोनों के लिए उपादेय होगी, ऐसा विश्वास है। हिन्दी में भ्रमरगीत की सुदीर्घ परम्परा का अवगाहन कर लेखक ने उसे समझने और उसमें निमग्न होने के विस्तृत आधार प्रस्तुत किए हैं। मध्य युग से लेकर आधुनिक समय तक चली आती इस वैभवशाली काव्य-परम्परा का सौन्दर्यशास्त्रीय मान-मूल्यों के आलोक में अनुशीलन जिस गम्भीर अध्यवसाय की माँग करता है, उसका प्रमाण पुस्तक के हरेक अध्याय में मिलता है। आशा है यह पुस्तक हिन्दी साहित्य के रिक्थ को और समृद्ध करेगी।
—प्रो. प्रणय कृष्ण
विभागाध्यक्ष, हिन्दी विभाग,
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज
Keshavdas
- Author Name:
Vijaypal Singh
- Book Type:

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Description:
केशवदास ऐतिहासिक दृष्टि से हिन्दी ही के प्रथम आचार्य नहीं हैं, वरन् प्रौढ़ता, व्यापकता एवं मौलिकता की दृष्टि से वे रीतिकाल के भी सर्वश्रेष्ठ आचार्य हैं। वे रीतिकाल के युग-निर्माता साहित्यकार हैं। समस्त रीतिकाल में केशव के समान व्यापक अध्ययन, गहरी एवं मौलिक दृष्टि वाला अन्य आचार्य दिखाई नहीं देता।
केशव के महत्त्व को व्याख्यायित करनेवाले प्रस्तुत ग्रन्थ को सम्पादित करते समय विद्वान सम्पादक ने रीतिकालीन साहित्य के मूर्धन्य विद्वानों और आलोचकों का सहयोग प्राप्त किया है। पूरी पुस्तक का संयोजन इस तरह किया गया है, जिससे अध्येताओं और शोधार्थियों के साथ छात्रों को केशवदास और उनके काव्य अवदान का सम्पूर्ण ज्ञान एक जगह उपलब्ध हो जाए। आचार्य केशवदास सम्बन्धी अध्ययन के क्षेत्र में प्रस्तुत पुस्तक एक बड़े अभाव की पूर्ति करती है।
Bharat Mein Nag Parivar Ki Bhashain
- Author Name:
Rajendra Prasad Singh
- Book Type:

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Description:
भारत में दुनिया के चार सबसे प्रमुख भाषा-परिवारों की भाषाएँ बोली जाती हैं। सामान्यतया उत्तर भारत में बोली जानेवाली भारोपीय परिवार की भाषाओं को आर्यभाषा समूह, दक्षिण की भाषाओं को द्रविड़भाषा समूह, आस्ट्रो-एशियाटिक परिवार की भाषाओं को मुंडारी भाषा समूह तथा पूर्वोत्तर में रहनेवाली तिब्बती-बर्मी नृजातीय समूह की भाषाओं को नाग-भाषा समूह के रूप में जाना
जाता है।
पूर्वोत्तर की मंगोलायड प्रजाति के नृजातीय समूह (जनजातियों) को प्राचीन साहित्य में नाग अथवा किरात के रूप में वर्णित किया गया है। भाषा और नस्ल—दोनों ही दृष्टियों से इनका गहरा सम्बन्ध चीनी-तिब्बती भाषा-परिवार से है, लेकिन सांस्कृतिक दृष्टि से यह समूह भारत का अभिन्न अंग है और भारतीयजन के रूप में इनकी पहचान सुस्थापित है। इनकी संख्या भले ही कम हो, मगर सांस्कृतिक वैभव और भाषिक विविधता अनमोल है। डॉ. ग्रियर्सन ने भाषा-सर्वेक्षण के दौरान कुल 179 भाषाओं को चिह्नित किया था, जिनमें से 113 भाषाएँ केवल इस समूह द्वारा बोली जाती हैं। इस दृष्टि से इनकी भाषाओं का अध्ययन जितना रोचक है, उतना ही ज़रूरी भी। परन्तु दुर्भाग्य से भाषाविज्ञान सम्बन्धी अध्ययन केवल भारत में आर्य और द्रविड़ भाषाओं तक ही सीमित रहा है।
जाने-माने भाषा वैज्ञानिक राजेन्द्रप्रसाद सिंह ने अपनी पहली पुस्तक ‘भाषा का समाजशास्त्र’ में अन्य भाषाओं के साथ-साथ आस्ट्रो-एशियाटिक समूह की एक भारतीय भाषा—मुंडारी—को भी अपने विश्लेषण का आधार बनाया था। अब इस पुस्तक में उन्होंने नाग-परिवार की भाषाओं की विस्तृत विवेचना की है और इसके माध्यम से पूर्वोत्तर की संस्कृति पर भी प्रकाश डाला है। भाषाविज्ञान के अध्येता इस क्षेत्र में डॉ. रामविलास शर्मा के कार्य को आगे बढ़ाने के इस सार्थक प्रयत्न को निश्चित रूप से रेखांकित करेंगे।
Kathakar Kamleshwar Aur Hindi Cinema
- Author Name:
Ujjwal Agrawal
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Description:
कमलेश्वर के साहित्यिक अवदान का विवेचन बारम्बार हुआ है, किन्तु दृश्य-
श्रव्य माध्यम में उनके योगदान पर दृष्टि नहीं डाली गई। यहाँ तक कि उनके टेलीविज़न धारावाहिकों पर यदा-कदा दृष्टिपात हुआ, लेकिन वर्तमान में सबसे प्रभावशाली कला माध्यम में उनके विराट योगदान को लगभग अनदेखा ही किया गया।
प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध कमलेश्वर के हिन्दी सिनेमा में विराट योगदान को रेखांकित करता है। इस तरह यह अप्रतिम कथाकार कमलेश्वर और हिन्दी सिनेमा के रचनात्मक अन्तर्सम्बन्धों का पहला विवेचनात्मक अध्ययन है। रिसर्च इन ह्यूमिनिटीज ऑफ़ इंडियन यूनिवर्सिटीज में हिन्दी से सम्बन्धित शोध में यह विषय अब तक अनुपस्थित है।
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