Sahitya Siddhant
Author:
Rene WellekPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 360
₹
450
Available
प्रसिद्ध अमेरिकी आलोचकों ‘रेने वेलेक और आस्टिन वारेन’ की यह कृति अपने विषयगत वैज्ञानिक विवेचन एवं शैलीगत सहजता के कारण अभूतपूर्व लोकप्रियता प्राप्त कर चुकी है। विद्वान् लेखकों ने एक ओर तो काव्यशास्त्र और अलंकारशास्त्र (जिसकी परम्परा अरस्तू से शुरू होकर ब्लेयर, कैम्पबेल और केम्स तक आई हुई है) के विभिन्न पक्षों का सम्यक् विवेचन प्रस्तुत किया है और दूसरी ओर ललित साहित्य की विधाओं और शैलीशास्त्र तथा साहित्यालोचन के प्रमुख सिद्धान्तों से भी पाठकों को परिचित कराया है। इसके साथ ही अनुसन्धान, साहित्य का इतिहास, साहित्य का मूल्यांकन, कॉलेजों में साहित्य का अध्ययन जैसी ज्वलन्त समस्याओं का समाधान भी सुझाने का सफल प्रयास किया है।</p>
<p>प्रस्तुत पुस्तक में ‘काव्यशास्त्र’ (या साहित्य-सिद्धान्त) और ‘आलोचना (साहित्य का मूल्यांकन) को पांडित्य (अनुसन्धान) और साहित्यिक इतिहास (सिद्धान्त और आलोचना के रूढ़पथ के विपरीत, साहित्य के गतिशील पक्ष) से भी जोड़ना चाहा है। शब्दावली, टोन और बल में निःसन्देह दोनों लेखकों में थोड़ी-बहुत असंगतियाँ रह गई हैं। परन्तु वे यह भी सोचते हैं कि इस कमी की पूर्ति इस रूप में हो जाती है कि दो व्यक्ति मूलत: एक ही निष्कर्ष पर पहुँचे हैं।
ISBN: 9788180316364
Pages: 377
Avg Reading Time: 13 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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द्विवेदी-युग के उत्तरार्ध में आचार्य शुक्ल के रूप में पहली बार हिन्दी-आलोचना ने पारम्परिक भारतीय काव्य-चिन्तन की अन्तरवर्ती प्राणधारा और आधुनिक यूरोप के विज्ञानालोकित कला-चिन्तन के उल्लसित प्रवाह की संश्लिस्ट शक्ति का आधार लेकर अपने मौलिक व्यक्तित्व का निर्माण किया, उनका मूल स्वर रीति-विरोधी और लोक-मंगल की साधना के गत्यात्मक सौन्दर्य का पोषक है। छायावादकालीन सौन्दर्यबोध का प्रेरक तत्त्व स्वातंत्र्य चेतना है जो देश की अभिनव आकांक्षा और नवीन सांस्कृतिक मूल्यों के स्वीकार का द्योतक है रचना के कलावादी रुझान का नहीं। छायावादोत्तर प्रगतिशील आलोचना का प्रेरक-तत्त्व सामाजिक न्याय की प्रतिष्ठा की सात्त्विक आकांक्षा है। वैचारिक ग्रहजन्य सीमाओं के बावजूद हिन्दी-साहित्य में उसकी ऐतिहासिक भूमिका का महत्त्व सर्वमान्य है।
प्रस्तुत पुस्तक में आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, डॉ. नगेन्द्र, डॉ. रामविलास शर्मा, मुक्तिबोध, डॉ. नामवर सिंह, डॉ. बच्चन सिंह तथा डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी जैसे महान समीक्षकों पर एक गवेषणात्मक दृष्टि डाली गई है।
Dakshina
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Sirpi Balasubramaniam
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- Description: A literary digest of South Indian Languages.
Doosare Shabdon Mein
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Description:
निर्मल वर्मा के लिए निबन्ध हमेशा ऐसी विधा रही जिसके माध्यम से उन्होंने सभ्यता, संस्कृति, साहित्य और रचनात्मकता के मूलभूत प्रश्नों पर सोचते हुए जितनी बाहर, उतनी ही अपने भीतर भी यात्रा की। किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से ज़्यादा सत्य के पीछे एक सजग यात्रा।
इस पुस्तक में शामिल निबन्ध इस लिहाज से और भी विशेष हैं। भाषा, अस्मिता, परम्परा और आधुनिकता के बार-बार चिह्नित प्रश्नों को यहाँ उन्होंने एक बार फिर से अपने चिन्तन का विषय बनाया है।
इसमें कुछ साक्षात्कार भी संकलित हैं जिनके प्रश्नों ने निर्मल वर्मा को पुन: एक अवसर दिया कि वे अपने सोचे और कहे गए को नए ढंग से व्यक्त करें। इस बहाने उनके कुछ अप्रत्याशित पहलू भी उजागर हुए।
स्वतंत्रता के समय देश को नए सिरे से रचने के जो स्वप्न हमने देखे, ख़ासकर सांस्कृतिक सन्दर्भ में, क्या वे हमारे साथ बने रहे या धीरे-धीरे हमारे हाथ से छूट गए? हमारी प्राथमिकताओं ने हमें क्या दिया, और अगर कोई नई शुरुआत करनी ज़रूरी है तो वह कहाँ से हो?
ऐसे अनेक प्रश्नों पर मनन-रत ये निबन्ध हमारी वर्तमान दुविधाओं और दुश्चिंताओं के लिए भी उपयोगी कहे जा सकते हैं।
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