Kahani : Vastu Aur Antarvastu
Author:
Shambhu GuptPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 636
₹
795
Available
हिन्दी में कहानी-आलोचना पर्याप्त समृद्ध और बहुआयामी होते हुए भी आलोचना की मुख्यधारा में अनादृत ही रही है। हिन्दी में केवल कथाकार या कहानीकार तो बहुत-से मिल जाएँगे लेकिन केवल कथा या कहानी का आलोचक ढूँढ़ने पर बहुत मुश्किल से ही मिल पाएगा। जो दो-चार कहानी-आलोचक हमारे यहाँ रहे या हैं भी तो उनका कार्य इतना सीमित और कालबद्ध रहा है कि उससे कहानी-आलोचना की कोई सामान्य सैद्धान्तिकी निर्मित हो पाना सम्भव नहीं हो पाया।</p>
<p>हिन्दी की कहानी-समीक्षा पर अधिकांशतः एक आरोप यह लगाया जाता रहा है कि उसके प्रतिमान कविता-समीक्षा के क्षेत्र से आयत्त किए जाते हैं, हिन्दी-आलोचना के पास कहानी-समीक्षा के ऐसे प्रतिमान लगभग न के बराबर हैं, जो कहानी को कहानी की तरह देख सकें, जो नितरां कहानी-विधा के और उसी के लिए हों। फ़िलहाल यह कहना पर्याप्त होगा कि एक कहानी की समीक्षा एक कहानी की तरह ही की जानी चाहिए, उसे कविता या उपन्यास की तराजू में नहीं चढ़ा देना चाहिए।</p>
<p>कविता और उपन्यास के प्रतिमानों से यदा-कदा मदद तो ली जा सकती है, एक सप्लीमेंट के रूप में उनका उपयोग तो किया जा सकता है लेकिन कहानी-समीक्षा की असल ज़मीन तो स्वयं कहानी-विधा के संघटक तत्त्वों से ही निर्मित की जा सकती है। परम्परा में इस असल ज़मीन की पहचान कई बार की भी गई है। जहाँ नहीं है, या कहीं कोई चीज़ छूट गई है तो नए प्रयोगों द्वारा उसकी सम्भावनाओं की तलाश की जा सकती है। इससे परम्परा का मूल्यांकन भी होगा और आगे के नए रास्ते भी खुलेंगे।
ISBN: 9788183615860
Pages: 216
Avg Reading Time: 7 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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निराला आज खड़ी बोली के सर्वश्रेष्ठ कवि के रूप में मान्य हैं, लेकिन इस मान्यता तक उनके पहुँचने की भी एक कहानी है—संघर्षपूर्ण। उन्होंने एक तरफ़ कविता को मुक्त किया और दूसरी तरफ़ उसमें ऐसे अनुशासन की माँग थी, जिसकी पूर्ति बहुत थोड़े कवि कर सकते हैं। उनकी विशेषता यह है कि प्रचंड भावुक होते हुए भी वे एक विचारवान कवि थे और उनकी विचारशीलता स्थिर न होकर अपनी जटिलता में भी गतिशील थी। वे वस्तुतः भारतीय स्वाधीनता-आन्दोलन की देन थे, लेकिन उनकी स्वाधीनता की धारणा अपने समकालीन कवियों से बहुत आगे ही नहीं थी, बल्कि क्रान्तिकार थी। यही कारण है कि वे नई पीढ़ी के लिए भी प्रासंगिक बने हुए हैं। ‘निराला-काव्य की छवियाँ’ नामक इस पुस्तक का पहला खंड इन तमाम बातों का विश्लेषणपूर्ण साक्ष्य प्रस्तुत करता
है।दूसरा खंड निराला की कुछ पूर्ववर्ती और परवर्ती चुनी हुई कविताओं की पाठ-केन्द्रित आलोचना से सम्बन्धित है। ‘प्रेयसी’, ‘राम की शक्ति-पूजा’, ‘तोड़ती पत्थर’, ‘वन-बेला’ और ‘हिन्दी के सुमनों के प्रति पत्र’ निराला की ऐसी कविताएँ हैं, जो उनके पूर्ववर्ती काव्य के विषय-वैविध्य को दर्शाती हैं। यहाँ उनकी व्याख्या के प्रसंग में उनकी अखंडता को ध्यान में रखते हुए उन्हें परत-दर-परत उधेड़कर देखने का प्रयास किया गया है। पुस्तक के दूसरे खंड की अप्रतिम विशेषता यह है कि इसमें कदाचित् पहली बार निराला के परवर्ती काव्य का मार्क्सवाद और हिन्दी प्रदेश के कृषक-समाज से सम्बन्ध पूर्वग्रहमुक्त होकर निरूपित किया गया है। जैसे ‘सुमनों के प्रति पत्र’ निराला की पूर्ववर्ती आत्मपरक सृष्टि है, वैसे ही ‘पत्रोकंठित जीवन’ उनकी परवर्ती आत्मपरक सृष्टि। निराला-काव्य के अध्येता डॉ. नंदकिशोर नवल ने, जो निराला रचनावली के सम्पादक भी हैं; प्रस्तुत पुस्तक में निस्सन्देह निराला के काव्य-लोक की बहुत ही भव्य फलक दिखलाई है।
Urdu Sahitya Ka Alochnatmak Ithas
- Author Name:
Ahtesham Hussain
- Book Type:

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इस ग्रन्थ के विद्वान लेखक प्रोफ़ेसर एहतेशाम हुसैन उर्दू के मान्य आलोचक हैं। यह पुस्तक मूल रूप से हिन्दी में ही लिखी गई थी और अब यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि इससे अच्छा उर्दू साहित्य का कोई दूसरा इतिहास न तो हिन्दी में उपलब्ध है और न ही उर्दू में। उर्दू साहित्य के अब तक जो इतिहास लिखे गए हैं, उनमें यह कमी रही है कि लेखकों ने सामाजिक चेतना और ऐतिहासिक समग्रता को अपनी दृष्टि में नहीं रखा है; कुछ भाषा सम्बन्धी विभिन्नताओं और शैलियों के भेदोपभेदों को सामने रखकर काल-विभाजन कर दिया है। इससे उर्दू साहित्य से सम्पूर्ण इतिहास के विकास और उसकी विभिन्न विधाओं की प्रगति का ठीक-ठीक ज्ञान नहीं हो पाता है। प्रस्तुत पुस्तक में चेष्टा की गई है कि उर्दू-साहित्य की जो रूपरेखा दी जाए, वह इस बात का सही-साफ़ परिचय दे सके कि कौन-सी ऐसी ऐतिहासिक परिस्थितियाँ थीं, जिनमें साहित्यिक विकास तथा परिवर्तन का क्रम निरन्तर गतिशील रहा और उसने भारतीय भाषाओं के साहित्य में उर्दू-साहित्य की महान् परम्परा को विकसित और समृद्ध किया।
चूँकि उर्दू-साहित्य के इतिहास का हिन्दी साहित्य के इतिहास से अविच्छिन्न सम्बन्ध है, इसलिए यह निश्चित ही है कि यह पुस्तक हिन्दी के उच्च कक्षा के विद्यार्थियों, जिज्ञासु पाठकों, सुधी आलोचकों तथा शोधकर्ताओं के लिए अत्यन्त उपयोगी है।
Dakshin Sahitya Ka Aalochantmak Itihas
- Author Name:
Iqbal Ahmed
- Book Type:

- Description: Literary Criticism
Shabd Aur Deshkal
- Author Name:
Kunwar Narain
- Book Type:

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कवि और चिन्तक के रूप में कुँवर नारायण का हस्तक्षेप हिन्दी साहित्य में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। वस्तुतः वे कविर्मनीषी के रूप में सर्वसमादृत हैं।
‘शब्द और देशकाल’ पुस्तक कुँवर नारायण की विचार-सम्पदा का एक अनूठा उदाहरण है। इसमें विभिन्न विशिष्ट अवसरों पर दिए गए उनके व्याख्यानों के साथ कुछ लेख भी उपस्थित हैं। भाषा, साहित्य, समाज, मीडिया, अनुवाद और अन्य प्रश्नों पर केन्द्रित उनके विचार ध्यानपूर्वक पढ़े जाने की माँग करते हैं। कुँवर जी की केन्द्रीय चिन्ता जीवन को समरस बनाने की है। इस क्रम में शाश्वत सन्दर्भों के साक्ष्य उभरते हैं। साथ ही, वर्तमान विश्व जिस अन्याय-अनाचार से त्रस्त है, उसके मानवीय समाधान की दिशाएँ भी प्रशस्त होती हैं।
‘साहित्य के सामाजिक सरोकार के माने’ में कुँवर जी कहते हैं, ‘इतना ही काफ़ी नहीं कि साहित्य जीवन के दैनिक और व्यावहारिक पक्ष से ही अपनी पहचान बनाए। अगर समाज का आत्मिक और नैतिक पक्ष भी नहीं उभरता तो साहित्य का काम अधूरा रह जाएगा।’
कुँवर नारायण बहुअधीत रचनाकार हैं। यही कारण है कि उनका लेखन देश और काल की सीमित और सुविदित परिधियों का विस्तार करता है। ‘विश्व विवेक’ के साथ चिन्तन करनेवाले कुँवर नारायण के ये आलेख पाठक को तात्त्विक रूप से बसंशोधित और समृद्ध करते हैं। स्मृति, विचार, रचना और बोध के विरुद्ध खड़े समय-समाज के सम्मुख कुँवर जी एक मानवीय पक्ष उद्घाटित करते हैं। पढ़े और गुने जाने योग्य एक संग्रहणीय पुस्तक।
Nirmal Verma
- Author Name:
Ashok Vajpeyi
- Book Type:

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यह पुस्तक ‘पूर्वग्रह’ में प्रकाशित निबन्धों और अन्य सामग्री का एक संचयन है। इसमें वरिष्ठ और युवा हिन्दी आलोचकों के अलावा दार्शनिक, समाजशास्त्री, और इतिहासकार द्वारा भी निर्मल वर्मा के साहित्य का विश्लेषण और विचार शामिल है, जो कि हिन्दी में यदा-कदा ही सम्भव हो पाया है।
इस पुस्तक में चौदह लेखक एकाग्र हैं एक लेखक या उसकी किसी कृति पर। आप पाएँगे कि हालाँकि उनमें गम्भरता और ज़िम्मेदारी का सहकार है, हरेक अपने ढंग से हमारे युग के एक मूर्धन्य लेखक या उसकी किसी कृति या अवधारणा को देख-परख रहा है और इस साक्षात्कार या मुठभेड़ से कुछ अर्थपूर्ण और विचारोत्तेजक हमारे लिए पा रहा है।
—अशोक वाजपेयी
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