Aadhunik Hindi Kavya Aur Puran Katha
Author:
Malti SinghPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 240
₹
300
Unavailable
प्राचीनता पुराणों का गुण है, लेकिन वे नव्या, नूतन और नवीन भी हैं। अमरकोशकार ने इनकी इस विशेषता की ओर संकेत किया है—प्रत्यग्रोऽभिनवो <em>नव्यो नवीनो</em> नूतनो नवः। इस दि्-आयामी विशेषता के कारण पुराणकथाएँ प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक साहित्य की उपजीव्य बनती रही हैं।</p>
<p>आधुनिक हिन्दी-काव्य में भारतेन्दु युग से लेकर अब तक पुराणकथाओं के प्रयोग की विस्तृत, विविध एवं अविछिन्न परम्परा प्राप्त होती है। विशेष बात यह है कि आधुनिक हिन्दी-काव्य में प्रयुक्त पुराणकथाएँ, पुराण निर्दिष्ट आशय से भिन्न, परिवर्तित होती हुई काव्य-चेतना के परिप्रेक्ष्य में नवीन भावों से अनुवेशित होकर नितान्त नवीन सन्दर्भों की सृष्टि करती हैं।</p>
<p>भारतीय जनता की स्वातंत्र्य-चेतना एवं जीवित जोश को अभिव्यक्ति के लिए पौराणिक कथा-प्रसंगों एवं पत्रों का उपयोग भारतेन्दुयुगीन एवं द्विवेदीयुगीन कवियों की विवशता बन गई थी। छायावादी सूक्ष्म भावानुभूती एवं विचारानुभूती की अभिव्यक्ति के लिए पौराणिक कथाएँ सशक्त माध्यम सिद्ध होती हैं। भौतिक यथार्थवाद को स्वीकृति प्रदान करनेवाले प्रगतिवादी कवियों ने भी पुराणिक प्रतीकों का प्रयोग ख़ूब किया है।
ISBN: 9788180311635
Pages: 299
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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प्रेमचन्द के बाद हिन्दी कहानी ने अपनी रचना-यात्रा में अनेक नए और सम्भावनापूर्ण शिखरों का स्पर्श किया। लेकिन कहानी के मूल्यांकन की वास्तविक शुरुआत ‘नई कहानी’ से ही हुई। ‘नई कहानी’ से ही आन्दोलनों की व्याख्या स्वयं रचनाकारों द्वारा आरम्भ होने की परम्परा का भी सूत्रपात हुआ—बहुत कुछ ‘छायावाद’ और ‘नई कविता’ के ढंग पर। आगे चलकर ‘सचेतन कहानी’, ‘अ-कहानी’, ‘समान्तर कहानी’ और ‘जनवादी कहानी’ तक आन्दोलनों की उपलब्धियों का बखान प्राय: उनके रचनाकारों की ही ज़िम्मेवारी समझा जाता रहा। उपलब्धियों के इस कैसे ही एकांगी बखान से बचकर 'हिन्दी कहानी का विकास' में इन विभिन्न आन्दोलनों की पड़ताल उनके सामाजिक कारकों के बीच की गई है। अतियों और सामाजिक कारकों के बीच की गई है। अतियों और एकांगिता से बचते हुए अपनी सुस्पष्ट और सुनिश्चित शैली में मधुरेश ने हिन्दी कहानी के लगभग एक शताब्दी के विकास-क्रम को अत्यन्त संक्षेप में प्रस्तुत करने का सराहनीय प्रयास किया है। मधुरेश के साथ और बाद में आए जहाँ अनेक आलोचक आज आलोचना के परिदृश्य से लगभग ग़ायब हो चुके हैं, वे पिछले तीन दशकों से निरन्तर अपनी उपस्थिति से कहानी की आलोचना में सार्थक हस्तक्षेप करते रहे हैं। ‘हिन्दी कहानी का विकास' उनकी इस उपस्थिति का ही महत्त्वपूर्ण साक्ष्य है।
‘हिन्दी कहानी का विकास' में कदाचित् पहली बार हिन्दी कहानी के समूचे विकास-क्रम को समझते हुए उसके प्रमुख आन्दोलनों का मूल्यांकन सामाजिक-राजनीतिक पृष्ठभूमि में किया गया है। सम्भवत: इसीलिए यह रचनाकारों की आत्ममुग्ध और प्रशस्तकारी व्याख्याओं से अधिक प्रामाणिक और विश्वसनीय है।
Antastal Ka Poora Viplav : Andhere Mein
- Author Name:
Nirmala Jain
- Book Type:

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‘अँधेरे में’ उत्तरशती की सबसे महत्त्वपूर्ण और शायद सबसे विवादास्पद कविता है। विवाद भिन्न रुचि और विचारधारा वालों के बीच ही नहीं, समानधर्मा आलोचकों के बीच भी है। यह तथ्य कविता की सम्भावनाशीलता का प्रमाण है। यह भी सही है कि मुक्तिबोध के जीवन-काल में इस कविता को ख़ुद उनसे सुना तो कइयों ने होगा, लेकिन इसे सराहा उनकी मृत्यु के बाद ही गया। इस विलम्ब का कारण उपेक्षा या उदासीनता नहीं, बल्कि ऐतिहासिकता है।
अपने समय का अतिक्रमण हर कालजयी रचना में होता है। लेकिन आनेवाले समय के इस कदर साथ चलनेवाली रचनाओं की संख्या बहुत नहीं होती। इस दृष्टि से देखने पर यह बात हैरत में डालनेवाली है कि अपने सारे जटिल अर्थ-विन्यास और अपारदर्शी शिल्प के बावजूद इस कविता के पाठकों की संख्या उत्तरोत्तर बढ़ती गई है।
कविता के पाठक-आलोचकों ने तरह-तरह से इस बात को दोहराया है कि मध्यवर्ग के सुविधाजीवी, समझौतावादी और आदर्शजीवी मन का संघर्ष ही ‘अँधेरे में’ की काव्य-वस्तु है।
इस पुस्तक में ख्यात हिन्दी आलोचक निर्मला जैन ने ‘अँधेरे में’ पर आधारित आलोचनात्मक आलेखों को संकलित किया है। ये आलेख इस कालजयी कविता की विभिन्न पक्षों से व्याख्या करते हैं।
Sahitya Aur Samiksha
- Author Name:
Rajnath
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‘साहित्य और समीक्षा’ में किसी एक लेखक या आलोचक के कृतित्व पर विचार नहीं किया गया है। लेखक ने इस पुस्तक में साहित्य और समालोचना से जुड़ी कुछ ऐसे बिन्दुओं और समस्याओं पर विचार किया है जो किसी भी भाषा के साहित्य को समझने के लिए जरूरी हैं। राजनाथ अंग्रेजी साहित्य और पाश्चात्य साहित्य-आलोचना के मर्मज्ञ विद्वान हैं। पाश्चात्य साहित्य-समीक्षा के सन्दर्भ में लिखे गए उनके ये लेख साहित्य के अध्ययन, अध्यापन और विश्लेषण के विभिन्न आयामों पर विचार करते हैं।
पुस्तक में संकलित समीक्षात्मक निबंधों में साहित्य के विश्लेषण और मूल्यांकन पर सर्वाधिक बल दिया गया है। साहित्य, सिद्धान्त और आलोचना के क्षेत्र में काम करने वाले अध्येताओं के अलावा शोधार्थियों, अध्यापकों और छात्रों के लिए भी यह एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक साबित होगी।
50 Greatest Speeches of the World
- Author Name:
Ed. George Harris
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Bharat Ke Pracheen Bhasha Pariwar Aur Hindi : Vols. 1-3
- Author Name:
Ramvilas Paswan
- Book Type:

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भारतीय भाषाओं का आपस में बहुत गहरा रिश्ता है। आर्य, द्रविड़, कोल और नाग—भारत के इन चारों मुख्य भाषा-परिवारों में कई ऐसी भाषाएँ हैं जिन पर बहुत कम बातचीत हुई है, जबकि आधुनिक भारतीय भाषाओं के आपसी सम्बन्धों को जानने के लिए यह कार्य अत्यावश्यक है। दूसरे शब्दों में—आर्य, द्रविड़, कोल और नाग भाषा-परिवारों के अन्तर्गत कम परिचित जितनी भाषाएँ हैं, उनका वैज्ञानिक अध्ययन आम प्रचलित भाषाओं के सम्बन्धों की सही पहचान कराने में सक्षम होगा। साथ ही भारतीय भाषा-परिवारों का विश्व के ग़ैर-भारतीय भाषा-परिवारों से क्या सम्बन्ध है, इसकी भी गहरी पहचान सम्भव होगी। भारतीय भाषाओं के वैज्ञानिक अध्ययन के इसी महत्त्व को रेखांकित करते हुए सुविख्यात समालोचक डॉ. रामविलास जी ने यह कालजयी शोध-कृति प्रस्तुत की थी।
तीन खंडों में प्रकाशित इस ग्रन्थ का यह प्रथम खंड है, जिसमें उन्होंने हिन्दीभाषी क्षेत्र की बोलियों का गहन अध्ययन किया, और हिन्दी तथा सम्बद्ध बोलियों के विकास को प्राचीन आर्य कबीलाई भाषाओं के साथ रखा-परखा है। भाषाविज्ञान पर एक अप्रतिम और युगान्तरकारी ग्रन्थ।
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