Aalochanatmak Yatharthvad Aur Premchand
Author:
SatyakamPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 556
₹
695
Available
डॉ० सत्यकाम की यह आलोचनात्मक पुस्तक प्रेमचन्द के उपन्यासों को नई दृष्टि से देखने का एक सार्थक प्रयास है। स्पष्ट है कि लेखक की यह दृष्टि आलोचनात्मक यथार्थवाद के सिद्धान्त से विकसित हुई है। आलोचनात्मकता यथार्थवाद की प्रमुख और अनिवार्य विशेषता है और आलोचनात्मक यथार्थवाद यथार्थ को व्यक्त करने की एक दृष्टि। इसमें यथार्थ को हू-ब-हू नहीं रख दिया जाता, बल्कि उसके कारणों की परत-दर-परत छानबीन की जाती है। इसमें समस्या का समाधान नहीं प्रस्तुत किया जाता, क्योंकि उपन्यास कोई 'केस-स्टडी' या 'नुस्खा' नहीं होता। कहने की आवश्यकता नहीं कि प्रेमचन्द के उपन्यासों पर यह बात और अधिक लागू होती है, क्योंकि वे भारतीय जीवन का महाकाव्य हैं। सच्चाई यह भी है कि प्रेमचन्द स्वयं जीवन-यथार्थ को आलोचनात्मक दृष्टि से देखते हैं। उनकी दृष्टि वैज्ञानिक, तर्कसंगत और आधुनिक है। वे निरन्तर पराधीनता, भारतीय नारी, नीच-ऊँच, छुआछूत, आर्थिक असमानता और धर्म-सम्प्रदाय सम्बन्धी यथार्थ पर आलोचनात्मक दृष्टि से विचार करते हैं।</p>
<p>लेखक ने अपनी इस पुस्तक को पाँच अध्यायों में विभक्त किया है। पहले अध्याय में उसने यथार्थवाद सम्बन्धी अवधारणाओं और ख़ासकर आलोचनात्मक यथार्थवाद पर विस्तार से विचार किया है, और अन्य अध्यायों में इस अवधारणा के अनुसार प्रेमचन्द के यथार्थ विषयक दृष्टिकोण और उनके द्वारा विभिन्न समकालीन समस्याओं को उठाने पर विचार किया गया है ।
ISBN: 9788171191918
Pages: 180
Avg Reading Time: 6 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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''...हमलोग यह तो बिना झिझक मान लेते हैं कि उपन्यास में आत्मकथात्मक तत्त्व उपस्थित रहता है और कोई भी पाठक जो लेखक के जीवन में रुचि रखता है, उसे इन अंशों को पहचानने में आनन्द आता है। वहीं आत्मकथा में कल्पना या औपन्यासिकता की चर्चा मात्र हमें विचलित कर देती है। हम मानते हैं कि आत्मकथा का मूल चरित्र उसका उपन्यास न होना है।...’’
''...आत्मकथा में कल्पना का प्रवेश केवल लेखक के सामाजिक सरोकारों से सम्बन्धित नहीं है, बल्कि वह कला की एक आवश्यक माँग भी है। आत्मकथाकार के लिए प्रमुख समस्या यह है कि एक तरफ़ उसे ईमानदारी के साथ आत्म के छुपे स्तरों को उजागर करना होता है, साथ ही उसी समय उसे रूप, संरचना, ध्वनि आदि साहित्यिक सौन्दर्य की कलात्मक पूर्ति का भी प्रयास करना होता है। यथार्थ और तथ्य अपने आप में कलात्मक नहीं होते हैं। उन्हें लेखक अपनी सर्जनशील कल्पना के साँचे में कच्ची सामग्री की तरह प्रयुक्त करता है।...’’
—इसी पुस्तक से
Shreshth Lalit Nibandh : Vol. 2
- Author Name:
Krishna Bihari Mishra +1
- Book Type:

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Description:
‘ललित निबन्ध' नाम से ख्यात व्यक्तित्व-प्रधान निबन्ध-विधा की भारतीय भाषाओं में अलग-अलग संज्ञा है, पर सबकी प्रकृति एक ही है। निबन्ध शैली में रचित ललित निबन्ध के विधा-वैशिष्ट्य को संक्षेप में रेखांकित करने की चेष्टा प्रथम खंड के सम्पादकीय वक्तव्य में की गई है।
प्रस्तुत खंड में संकलित हिन्दीतर भारतीय भाषा के निबन्धों को देखकर भारतीय साहित्य की एक विशिष्ट विधा का परिचय मिल जाएगा। संक्रमण काल के जातीय परिदृश्य और संवेदना की व्यंजक अभिव्यक्ति से यह विधा अपेक्षाकृत अधिक उपयुक्त है। इसकी उन्मुक्त प्रकृति अधिक सम्भावनापूर्ण है। हास-परिहास और गपशप के व्याज से ज्वलन्त सांस्कृतिक प्रश्नों, मनुष्य की अस्मिता और धूमायित करनेवाले मानव-प्रणीत प्रपंच-प्रदूषण और समाज के अधोमुखी प्रवाह पर तीखा व्यंग्य-कटाक्ष इन निबन्धों में ललित मुद्रा में प्रकट हुआ है।
Adikal: Purani Hindi
- Author Name:
Dr. Surya Prasad Dixit
- Book Type:

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Description:
हिन्दी साहित्य के इतिहास का आदिकाल उसका स्वरूय-विकास एवं नामकरण विवादास्पद रहा है। इसका आरम्भ छठी शती से बारहवीं शती तक सिद्ध किया गया है। इसे अनेक नाम दिए गए हैं. जैसे- वीरगाथा काल, उदूभवकाल, उत्पत्तिकाल बीज बपन काल, सन्धिकाल, सिद्ध सामन्त काल, चारणकाल आदि। किन्तु अब 'आदिकाल' नाम ही बहुमान्य हो गया है।
प्राचीन हिन्दी भाषा के भी कई नाम सुझाए गए हैं, जैसे—परवर्ती अपभ्रंश प्रकृताभास भाषा, संघाभाषा, हिन्दवी, पुरानी हिन्दी, अवहट्ट अवहंस, देसिलबयनर, डिंगल, पुरानी राजस्थानी गूजरी, पिंगल, भाखा, कोसली, दक्खिनी हिन्दी, देशभाषा आदि। किन्तु अब राहुलजी और गुलेरीजी के द्वारा स्थापित 'पुरानी हिन्दी संज्ञा ही तर्क संगत लगती है।
आदिकाल में सिद्धनाथ, जैन, सन्त, सूफी रामकृष्णाश्रयी भक्त, चारण, लोककवि, नीतिकार वीरकाव्य परम्परा के प्रशस्तिकार, जीवनीकार, शृंगारी कवि, वैयाकरण गद्यकार सभी का योगदान रहा है।
आदि हिन्दी कवि के रूप में पुष्य, पुण्ड, पुष्पदंत, विमलसूरि आदि की अपेक्षा सरहपाद- सरह (स्थितिकाल-750-769) को मागधी-सौरसेनी अपभ्रंश से विकसित 'पुरानी हिन्दी' के सर्वाधिक सन्निकट होने के कारण यह श्रेय देना ज्यादा तथ्याश्रित होगा।
यह उल्लेखनीय है कि साहित्य की प्रायः प्रत्येक प्रवृत्ति के बीज इस अवधि में अंकुरित हुए हैं। इतिहास लेखन करते हुए जिन्हें पहले मध्यकालीन माना गया था, अब उनमें से कुछ आदिकाल में गणनीय हैं।
Prabhat Practical Hindi -English Dictionary
- Author Name:
Badrinath Kapoor
- Book Type:

- Description: प्रस्तुत हिंदी- अंग्रेज़ी शब्दकोश में हिंदी के लगभग सभी शब्दों को वर्णक्रम से रखा गया है । हिंदी शब्द के अंग्रेज़ी में कई-कई अर्थ उनके वाक्यों में प्रयोग बताकर दिए गए हैं । इससे पाठकों को शब्दों के विभिन्न अर्थ समझने में बड़ी आसानी होगी । शब्दों का उच्चारण सुगमतापूर्वक एवं व्यवस्थित ढंग से किया जा सके, इसलिए शब्दों को अक्षरों में विभाजित कर योजिका- के माध्यम से अलग- अलग करके दिखाया गया है और शब्द के जिस अक्षर पर बलाघात है उस पर चिह्न भी लगाया गया है ।
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