Aadhunik Hindi Kavita
Author:
Vishwanath Prasad TiwariPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 476
₹
595
Available
v data-content-type="html" data-appearance="default" data-element="main"><p>प्रस्तुत पुस्तक में प्रसिद्ध कवि-आलोचक डॉ. विश्वनाथप्रसाद तिवारी ने आधुनिक हिन्दी कविता के तेरह प्रमुख कवियों—मैथिलीशरण गुप्त, रामनरेश त्रिपाठी, माखनलाल चतुर्वेदी, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, सुमित्रानन्दन पन्त, महादेवी वर्मा, भगवतीचरण वर्मा, सुभद्राकुमारी चौहान, हरिवंशराय बच्चन, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, नरेन्द्र शर्मा और स.ही. वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ की कविताओं का विश्लेषण-मूल्यांकन किया है। उपर्युक्त कवियों के काव्य का यह अध्ययन अपने संक्षिप्त रूप में विराट विस्तार को समेटने वाला है। बूँद में समुद्र की तरह। यह उन कवियों की मुख्य काव्य-विशेषताओं को उद्घाटित करता है, साथ ही एक लम्बी कालावधि की काव्य प्रवृत्तियों को भी। पुस्तक में किसी प्रकार का पूर्वग्रह नहीं है, न उखाड़-पछाड़ वाली दृष्टि। लेखक ने पूरी तरह सन्तुलित-तटस्थ दृष्टि से सहृदयता के साथ कवियों के काव्यानुभव और उनकी काव्यभाषा की समीक्षा की है। अवश्य ही यह पुस्तक पाठकों का ध्यान सही निष्कर्षों की ओर आकृष्ट करेगी।</p>
<p>इस पुस्तक से हिन्दी कविता के कुछ अत्यन्त विशिष्ट कवियों के माध्यम से कविता के एक महत्वपूर्ण युग की उपलब्धियों के बारे में स्पष्ट जानकारी मिलेगी। इसमें सन्देह नहीं कि आकार में यह लघु पुस्तक साहित्य के अध्येताओं के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी।</p></
ISBN: 9788180315336
Pages: 148
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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Description:
हिन्दी में कृति की राह से गुज़रने की बहुत बात की जाती है, लेकिन सच्चाई यह है कि उसमें आलोचना और रचना का आपसी सम्बन्ध काफी कुछ टूट चुका है। जहाँ तक कविता की बात है, ज़्यादा शक्ति उसके सामाजिक और राजनीतिक सन्दर्भों को स्पष्ट करने में ख़र्च की जा रही है। जब कविता से अधिक उसके कारणों को महत्त्व दिया जाएगा, तो अनिवार्यतः उसके सम्बन्ध में जो निष्कर्ष निकाले जाएँगे, वे पूरी तरह से सही नहीं होंगे। कविता अन्ततः एक कलात्मक सृष्टि है, जिसमें उसके देश और कालगत सन्दर्भ स्वयं छिपे होते हैं। आलोचना का काम रचना से ही आरम्भ कर उन सन्दर्भों तक पहुँचना है, न कि उन सन्दर्भों को अलग से लाकर उनमें रचना को विलीन कर देना। प्रस्तुत पुस्तक में इस कठिन काम को अंजाम देने का भरसक प्रयास किया गया है।
निराला, शमशेर और मुक्तिबोध हिन्दी के ऐसे कवि हैं, जिनकी कविता का पाठ अत्यधिक जटिल है। हिन्दी काव्यालोचन उस पाठ से उलझने से बचता रहा है, जबकि संज्ञान और सौन्दर्य दोनों का मूल स्रोत वही है। डॉ. नंदकिशोर नवल निराला और मुक्तिबोध के विशेष अध्येता हैं और शमशेर में उनकी गहरी दिलचस्पी है। स्वभावतः उन्होंने इस पुस्तक के लेखों में उक्त कवियों की कुछ प्रसिद्ध कविताओं का पाठ-विश्लेषण करते हुए उनके सौन्दर्योन्मीलन की चेष्टा की है। उनका कहना है कि पाठ-विश्लेषण काव्यालोचन का प्रस्थानबिन्दु है। निश्चय ही उससे शुरू करके वे वहीं तक नहीं रुके हैं।
अज्ञेय, केदार और नागार्जुन अपेक्षाकृत सरल कवि हैं, लेकिन चूँकि कविता-पात्र एक जटिल वस्तु है, इसलिए प्रस्तुत पुस्तक में उनकी कुछ कविताओं से भी आत्मिक साक्षात्कार किया गया है। नमूने के रूप में रघुवीर सहाय की एक कविता की भी पाठ-केन्द्रित आलोचना दी गई है। इस तरह की पुस्तक हिन्दी काव्य-प्रेमियों के लिए एक ज़रूरी पुस्तक है, जो उनकी आस्वादन क्षमता को विकसित करेगी।
Mere Samay Ke Shabda
- Author Name:
Kedarnath Singh
- Book Type:

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केदारनाथ सिंह हमारे समय के सुप्रतिष्ठित कवि हैं। उन्होंने समय-समय पर विभिन्न साहित्यिक विषयों पर विश्लेषणपूर्ण लेख लिखे हैं। कई बार तर्कपूर्ण विचारप्रवण टिप्पणियाँ की हैं। एक शीर्षस्थ कवि का यह गद्य-लेखन संवेदना व संरचना की दृष्टि से अनूठा है। ‘मेरे समय के शब्द’ में केदारनाथ सिंह की रचनाशीलता का यह सुखद आयाम उद्घाटित हुआ है।
प्रस्तुत पुस्तक में कविता की केन्द्रीय उपस्थिति है। हिन्दी आधुनिकता का अर्थ तलाशते हुए सुमित्रानन्दन पंत ज्ञेय, नागार्जुन, मुक्तिबोध, त्रिलोचन, रामविलास शर्मा और श्रीकान्त वर्मा आदि के कविता-जगत की थाह लगाई गई है। इस सन्दर्भ में ‘आचार्य शुक्ल की काव्य-दृष्टि और आधुनिक कविता’ लेख अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
इसके अनन्तर पाँच खंड हैं—‘पाश्चात्य आधुनिकता के कुछ रंग’, ‘कुछ टिप्पणियाँ’, ‘व्यक्ति-प्रसंग’, ‘स्मृतियाँ’ और ‘परिशिष्ट’। पहले खंड में एजरा पाउंड, रिल्के और रेने शा की कविता पर विचार करने के साथ समकालीन अंग्रेज़ी कविता का मर्मान्वेषण किया गया है। दूसरे खंड में विभिन्न विषयों पर की गई टिप्पणियाँ लघु लेख सरीखी हैं।
‘व्यक्ति-प्रसंग’ के दो लेख त्रिलोचन और नामवर सिंह का आत्मीय आकलन हैं। अज्ञेय, श्रीकान्त वर्मा
और सोमदत्त की ‘स्मृतियाँ’ समानधर्मिता की ऊष्मा से भरी हैं। ‘परिशिष्ट’ में तीन साक्षात्कार हैं। एक उत्तर में केदारनाथ सिंह कहते हैं, ‘...नई पीढ़ी को एक नई मुक्ति के एहसास के साथ लिखना चाहिए और अपने रचनाकर्म में सबसे अधिक भरोसा करना चाहिए अपनी संवेदना और अपने विवेक पर।’
यह पुस्तक शब्द की समकालीन सक्रियता में निहित संवेदना और विवेक को भलीभाँति प्रकाशित करती है।
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