Aadhunik Kavita Ka Punarpath
Author:
Karunashankar UpadhyayPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 796
₹
995
Available
प्रस्तुत पुस्तक भारतेन्दु से लेकर समसामयिक कविता तक में विद्यमान नए पाठ की सम्भावना का सन्धान करते हुए उसका वस्तुनिष्ठ एवं गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है। इसमें ‘भारतेन्दु का काव्यदर्शन’, ‘शलाकापुरुष महावीर प्रसाद द्विवेदी की नारी चेतना’, ‘साकेत की उर्मिला का पुनर्पाठ’, ‘गुप्त जी की कैकेयी का नूतन पक्ष’, ‘जयशंकर प्रसाद के पुनर्मूल्यांकन के ठोस आयाम’, ‘प्रसाद साहित्य में राष्ट्रीय चेतना का स्वरूप’, ‘कामायनी में प्रकृति-चित्रण का स्वरूप’, ‘कामायनी : एक उत्तर आधुनिक विमर्श’, ‘स्त्री-विमर्श और प्रसाद काव्य के शिखर नारी चरित्र’, ‘निराला की आलोचना-दृष्टि का विश्लेषण’, ‘दिनकर का कुरुक्षेत्र’, ‘रश्मिरथी का पुनर्पाठ’, ‘शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ के काव्य में राष्ट्रीय चेतना’, ‘अज्ञेय के काव्य में संवेदनशीलता’, ‘भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य में गांधीवादी चेतना’, ‘नरेश मेहता का संवेदनात्मक औदात्य’, ‘मुक्तककार बेकल’, ‘अन्तस् के स्वर : कवि मन की पारदर्शी अभिव्यक्ति’, ‘धूमिल अर्थात् कविता में लोकतंत्र’, ‘ग़ज़ल दुष्यन्त के बाद : एक विश्लेषण’, ‘कविता का समाजशास्त्र एवं शोभनाथ यादव की कविताएँ’, ‘कविताओं का सौन्दर्यशास्त्र और शोभनाथ की कविताएँ’, ‘रुद्रावतार : अद्भुत भाषा सामर्थ्य की विलक्षण कविता’, ‘संशयात्मा के ख़तरे से आगाह कराती कविताएँ’, ‘हिन्दी ग़ज़ल का दूसरा शिखर : दीक्षित दनकौरी’, ‘ग़ज़ल का अन्दाज़ ‘कुछ और तरह से भी’’, ‘चहचहाते प्यार की गन्ध से घर-बार महकाते गीत’, ‘सामाजिक प्रतिबद्धता का दलित-स्त्रीवादी वृत्त’, ‘समकालीन हिन्दी कविता : दशा एवं दिशा’ तथा ‘समकालीन कविता के सामाजिक सरोकार’ जैसे विषयों के अन्तर्गत इस युग के समूचे काव्य का विशद् विश्लेषण किया गया है। साथ ही परिशिष्ट के अन्तर्गत ‘जन अमरता के गायक विंदा करंदीकर’ तथा ‘परम्परा एवं आधुनिकता के समरस कवि अरुण कोलटकर’ जैसे शीर्षकों के अन्तर्गत मराठी के दो शिखर कवियों का सम्यक् विश्लेषण किया गया है।</p>
<p>छात्रों, मनीषियों, चिन्तकों तथा सामान्य पाठकों के लिए समान रूप से उपयोगी यह पुस्तक आधुनिक काव्य पर विशिष्ट अध्ययन होने के साथ-साथ नवीन समीक्षात्मक प्रतिमानों के सन्धान द्वारा उसका पुनर्पाठ तैयार करने का एक गम्भीर और साहसिक प्रयास है।
ISBN: 9788183612593
Pages: 304
Avg Reading Time: 10 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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‘साहित्यालोचन’ का प्रकाशन 1922 में हुआ था। हिन्दी भाषा के अध्ययन-अध्यापन और विकास के लिए बाबू श्यामसुन्दर दास ने जो प्रयास किए थे, उनमें इस पुस्तक का विशिष्ट स्थान है।
यह पुस्तक साहित्य और अन्यान्य कलाओं की मूल अवधारणाओं का निरूपण करते हुए, कला के भिन्न-भिन्न रूपों, और विशेष रूप से साहित्य की विभिन्न श्रेणियों के आस्वादन और तदनुरूप उनके विवेचन की आधारशिला रखनेवाली कृति है। ग़ौरतलब है कि बीसवीं सदी के आरम्भिक दशकों में जब हिन्दी की रचनात्मकता अपने शास्त्र की खोज ही कर रही थी, इस पुस्तक की मूल प्रस्थापनाओं में इस बात को रेखांकित करना उन्हें आवश्यक लगा था कि आलोचना-समीक्षा अथवा शास्त्र का काम साहित्य-रचना के लिए नियमों का निर्धारण नहीं है, बल्कि उसके साथ चलते हुए अपनी भी दृष्टि का विस्तार करना है। लेकिन आज भी आलोचना अक्सर इस भ्रम में भटक जाती है कि वह रचना को रास्ता दिखानेवाली कोई मशाल है।
इस पुस्तक को पढ़ते हुए हम जान पाते हैं कि हमारी भाषा का वह युग सत्य और तर्क को लेकर कितना सजग था और आज भी हमें उस दृष्टि की कितनी आवश्यकता है। कहने की ज़रूरत नहीं कि गत लगभग एक सदी से यह पुस्तक अपनी उपयोगिता को बरकरार रखे हुए है, और आज भी न सिर्फ़ छात्रों के लिए बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए उपादेय है जो हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रति गम्भीर है।
Sahitya Ka Bhashik Chintan
- Author Name:
Ravindranath Shrivastava
- Book Type:

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सर्जनात्मक समीक्षा पर यह एक अनूठी पुस्तक है। प्रो. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव के लेखों के इस संकलन से आन्तरिक और पाठ-केन्द्रित आलोचना की एक मुकम्मल तस्वीर सामने आ गई है।
आलोचना स्वयं में एक अनुशासन है, जो अपनी सिद्धि के लिए एक निश्चित कार्य-प्रणाली का विकास करती है। व्यावहारिक आलोचना के इस सूत्र कथन को प्रो. श्रीवास्तव ने हिन्दी साहित्य को साक्षी बनाकर समीक्षा का संक्रियात्मक प्रारूप तैयार किया है।
कविता या किसी भी कृति को भाषा की ही एक विधा मानते हुए समीक्षा की नवीन और वैज्ञानिक पद्धति के उद्देश्य प्रो. श्रीवास्तव ने भाषावादी समीक्षा-चिन्तन के परिप्रेक्ष्य में घटित करके दिखाए हैं कि कविता को शैली के रूप में देखना, नार्म से अलग हटी हुई भाषा के रूप में देखना, देखना कि शब्द ख़ुद क्या बोलते हैं, अधिक समीचीन और सार्थक दृष्टि है। अर्थात् पाठ को निकट से पढ़कर शिल्प और भाषा-कौशलों के विश्लेषण के माध्यम से कृति को आलोकित करना, समीक्षा का परम लक्ष्य है, क्योंकि कविता शब्द नहीं शाब्दिक होती है, वह भाषा के माध्यम द्वारा केवल व्यक्त नहीं होती, अपितु भाषा में ही अपना अस्तित्व पाती है।
रचना की स्वनिष्ठता या उसकी सत्ता की स्वायत्तता इस पुस्तक में मात्र सैद्धान्तिक स्तर पर विवेचित नहीं है और यही इसकी नव्यता है, विशेषता है। तुलसी, सूर, प्रेमचन्द, मैथिलीशरण गुप्त, हजारीप्रसाद द्विवेदी आदि के पाठ में और इनके बहाने पुनर्जागरण काल, छायावादी युग, गद्य-भाषा आन्दोलन में साहित्यिक भाषा हिन्दी के बनते-बिगड़ते भाषायी समीकरणों पर इतनी आन्दोलित करनेवाली सामग्री कम ही मिलती है।
इस किताब में मार्क्सवादी आलोचना का भाषाकेन्द्रित दृष्टिकोण, नई कविता की सम्प्रेषण-युक्तियों में परिवर्तन की दिशाओं, भिन्न समयों में साहित्यिक हिन्दी की भाषा-संघटना में आए विघटनों और उनके कारणों पर भी विस्तृत चर्चा है। पाठ-केन्द्रित आलोचना के इतिहास और विचारों पर तो इस पुस्तक में विपुल सामग्री है ही।
आज की उत्तर-आधुनिक साहित्य समीक्षा में वि-संरचना का जो पक्ष अनजाने में कहीं छूट-सा गया है, वह इस पुस्तक में भरपूर मौजूद है। अतः आज की हिन्दी समीक्षा को भी यह पुस्तक बहुत कुछ देने की सामर्थ्य रखती है।
Shabd Aur Deshkal
- Author Name:
Kunwar Narain
- Book Type:

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कवि और चिन्तक के रूप में कुँवर नारायण का हस्तक्षेप हिन्दी साहित्य में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। वस्तुतः वे कविर्मनीषी के रूप में सर्वसमादृत हैं।
‘शब्द और देशकाल’ पुस्तक कुँवर नारायण की विचार-सम्पदा का एक अनूठा उदाहरण है। इसमें विभिन्न विशिष्ट अवसरों पर दिए गए उनके व्याख्यानों के साथ कुछ लेख भी उपस्थित हैं। भाषा, साहित्य, समाज, मीडिया, अनुवाद और अन्य प्रश्नों पर केन्द्रित उनके विचार ध्यानपूर्वक पढ़े जाने की माँग करते हैं। कुँवर जी की केन्द्रीय चिन्ता जीवन को समरस बनाने की है। इस क्रम में शाश्वत सन्दर्भों के साक्ष्य उभरते हैं। साथ ही, वर्तमान विश्व जिस अन्याय-अनाचार से त्रस्त है, उसके मानवीय समाधान की दिशाएँ भी प्रशस्त होती हैं।
‘साहित्य के सामाजिक सरोकार के माने’ में कुँवर जी कहते हैं, ‘इतना ही काफ़ी नहीं कि साहित्य जीवन के दैनिक और व्यावहारिक पक्ष से ही अपनी पहचान बनाए। अगर समाज का आत्मिक और नैतिक पक्ष भी नहीं उभरता तो साहित्य का काम अधूरा रह जाएगा।’
कुँवर नारायण बहुअधीत रचनाकार हैं। यही कारण है कि उनका लेखन देश और काल की सीमित और सुविदित परिधियों का विस्तार करता है। ‘विश्व विवेक’ के साथ चिन्तन करनेवाले कुँवर नारायण के ये आलेख पाठक को तात्त्विक रूप से बसंशोधित और समृद्ध करते हैं। स्मृति, विचार, रचना और बोध के विरुद्ध खड़े समय-समाज के सम्मुख कुँवर जी एक मानवीय पक्ष उद्घाटित करते हैं। पढ़े और गुने जाने योग्य एक संग्रहणीय पुस्तक।
Hindi Kahani : Antarvastu ka shilp
- Author Name:
Rahul Singh
- Book Type:

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Description:
स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कहानी के महत्त्वपूर्ण रचनाकारों के बहाने यह किताब कहानी आलोचना के इलाके की एक बड़ी कमी को पूरा करती है। कविता और उपन्यासों को लेकर छिटपुट ढंग से ही सही आलोचना का जैसा एक स्टैंड बनता है, कहानी को लेकर वैसा व्यवस्थित विचार अक्सर सामने नहीं आ पाता है। ऐसे में यह पुस्तक अपने तरीके से आजादी बाद के एक अहम कालखंड के कहानीकारों और उनकी रचनात्मकता के साथ कहानी के सामान्य परिदृश्य का एक दिलचस्प और अर्थवान खाका खींचती है।
वे कहानीकार जिन्होंने अपने कौशल से कहानी की क्षमता को बढ़ाया, अपने समय के सवालों से दो-चार हुए, और जो भारतीय समाज के बहुमुखी बदलाव को सफलतापूर्वक पकड़ सके, ऐसे सभी प्रमुख कथाकार यहाँ चर्चा के केन्द्र में हैं। जनवादी विचार से समृद्ध संजीव और स्वयं प्रकाश हों, भाषा को कलात्मक सूझ से बरतने वाले प्रियंवद और आनन्द हर्षुल हों, कहानी विधा की गहरी समझदारी रखनेवाले लेकिन अपेक्षाकृत कम चर्चित रहे अरुण प्रकाश और नवीन सागर हों, दलित स्वानुभव से कहानी को समृद्ध करने वाले ओमप्रकाश वाल्मीकि हों या कहानी के क्षितिज पर परिघटना की तरह प्रकट होने वाले उदय प्रकाश, शिवमूर्ति, अखिलेश और योगेन्द्र आहूजा हों, सभी का एक आस्वादपरक क्रिटीक इस पुस्तक में शामिल है।
इन सभी कथाकारों ने अपने-अपने मोर्चे से मानवीय मूल्यों के पक्ष में लगातार संघर्ष किया, समय को समझने और समझाने के लिए घटनाओं और चरित्रों की एक बड़ी आकाशगंगा रची। निस्सन्देह आने वाले वक्त में उनकी रचनाएँ बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध के भारत को समझने में दस्तावेजों की तरह काम आएँगी। प्रखर युवा आलोचक राहुल सिंह ने यहाँ संकलित एक-एक आलेख में प्रयास किया है कि प्रत्येक लेखक की अपनी विशेषताओं के रेखांकन के साथ उनके दौर के सामाजिक-राजनीतिक मिजाज को भी पकड़ा जा सके, और यह वे सफलतापूर्वक कर सके हैं।
Madhyakaleen Hindi Kavya Bhasha
- Author Name:
Ramswaroop Chaturvedi
- Book Type:

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काव्यभाषा साहित्य चिन्तन की नई दिशा है। इस दृष्टि से यहाँ समूचे मध्यकालीन काव्य को एक साथ देखने-परखने का पहली बार प्रयास हुआ है। आधुनिक समीक्षा-प्रक्रिया और मध्यकालीन काव्य-धारा का यह सम्पर्क जितना जीवन्त है, उतना ही विचारोत्तेजक भी। सन्त कबीरदास से लेकर आचार्य भिखारीदास तक सभी प्रमुख भक्तिकाल और रीतिकाल के कवियों पर अलग-अलग अध्ययन है। भाषा, शिल्प, विधान के विविध पक्षों को इस कृति में एक सार्थक अन्विति मिलती है, जहाँ कविता बनने की प्रक्रिया ही समीक्षा के केन्द्र में है। अन्त में कई परिशिष्ट अध्ययन को व्यावहारिक स्तर पर उपयोगी बनाते हैं।
Alochak Ka Dayitva
- Author Name:
Ramchandra Tiwari
- Book Type:

- Description: प्रस्तुत कृति में आधुनिक हिन्दी-आलोचना की परिधि में आने वाले विविध सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक प्रश्नों के विश्लेषण-क्रम में आलोचक के गहन दायित्व के आकलन की चेष्टा की गई है। लेखक ने आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, डॉ. नगेन्द्र, डॉ. रामविलास शर्मा और डॉ. नामवर सिंह जैसे प्रख्यात् आलोचकों की सैद्धान्तिक मान्यताओं एवं व्यावहारिक समीक्षा-पद्धतियों के विश्लेषण द्वारा यह स्पष्ट करने की चेष्टा की है कि इन आलोचकों ने किस सीमा तक और किस रूप में एक आदर्श आलोचक के दायित्व का निर्वाह किया है। यह कृति हिन्दी के विवेकशील एवं आग्रहमुक्त सुधी पाठकों के बीच प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकेगी, ऐसा हमारा विश्वास है।
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