Doosari Duniya
Author:
Nirmal VermaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 479.2
₹
599
Available
‘दूसरी दुनिया’ निर्मल वर्मा की चर्चित और पाठक-प्रिय रचनाओं का संकलन है। यात्रावृत्त, कहानी, डायरी और चिन्तनपरक निबन्धों का यह चयन स्वयं निर्मल जी ने किया था, जिसमें ज़ाहिर है, उनकी वे रचनाएँ शामिल हैं जो उन्हें स्वयं भी प्रिय थीं।</p>
<p>कहना ग़लत न होगा कि निर्मल जी ने हिन्दी गद्य को जो ऊष्मा दी, वह पाठक को एक जीवित इकाई की तरह आकर्षित करती है। कहानी हो या निबन्ध या फिर यात्रा-कथाएँ, कहीं भी निर्मल वर्मा का पाठक उस आन्तरिक छुअन और साहचर्य से वंचित नहीं रहता, जो उनका गद्य उसे उपलब्ध कराता है।</p>
<p>कई लोग कहते हैं कि आप निर्मल जी का एक वाक्य पढ़ते हैं, और अपनी दुनिया से उठकर उनकी रची हुई दुनिया में चले जाते हैं। कभी पात्रों के साथ जीते हुए, कभी उस परिवेश को महसूस करते हुए जिसकी रचना वे उन्हीं शब्दों और वाक्यों में करते हैं, जिनसे हम हमेशा से परिचित थे, लेकिन जो पहले कभी इतने प्रभावशाली नहीं लगे थे।</p>
<p>यह पुस्तक ऐसी ही रचनाओं का संकलन है; चाहें तो इसे आप उस लेखक की दुनिया में प्रवेश करने का द्वार भी कह सकते हैं, जो आपके स्मृति-तंत्र में हमेशा-हमेशा के लिए बस जानेवाला है। और यह दुनिया दूसरी नहीं है, आपकी अपनी ही है, वहाँ जाकर बस आप दूसरे हो जाते हैं।
ISBN: 9789360866556
Pages: 432
Avg Reading Time: 14 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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भारतीय काव्यशास्त्र की पृष्ठभूमि में संस्कृत काव्य की अनेक विशेषताओं का योगदान रहा है।... भारतीय काव्यशास्त्र के मूल प्रेरक बिन्दुओं में संस्कृत साहित्य की प्रधानता रही है। प्रायः 12 सौ वर्षों से कुछ अधिक समय तक संस्कृत साहित्य की अबाध धारा प्रवाहित होती रही है।... कई विचारक संस्कृत साहित्य की एकरूपता को उसकी सीमा बताते हैं, लेकिन ध्यानपूर्वक देखने से यह तर्क निरस्त हो जाता है।... कहने के लिए संस्कृत के महाकाव्य का विषय प्रचलित परम्परा का अनुगमन करता है, पर उनमें भी भाषा की मौलिकता, सौन्दर्यशास्त्रीय तत्त्वों जैसे बिम्बों, प्रतीकों, मिथकों और कल्पनाओं का अपूर्व विन्यास देखते ही बनता है।
संस्कृत साहित्य की एक अन्य मुख्य विशेषता है उसकी आशावादी दृष्टि, जो आत्मा की अमरता और पूर्वजन्म के सिद्धान्त से प्रेरित है।... इसी बिन्दु पर भारतीय काव्यशास्त्र और पाश्चात्य काव्यशास्त्र में एक मौलिक अन्तर मिलता है। यहाँ मुख्यतः कॉमेडी प्रधान रचनाओं का सृजन हुआ है तो पाश्चात्य देशों में त्रासदी या ‘ट्रेजेडी’ का—यह मौलिक अन्तर भारतीय काव्य और काव्य के आनन्दवादी लक्ष्य तक हमें पहुँचाने में सहायक सिद्ध होता है।
संस्कृत आलोचना-शास्त्र की एक अन्य विशेषता है कि वह मुख्यतः सिद्धान्तवादी है। उसका ध्यान इस बात पर है कि काव्य कैसा होना चाहिए, उसकी विशेषताएँ क्या हों, पर किसी काव्य की व्यावहारिक आलोचना का वहाँ प्रायः अभाव दीखता है। आचार्यों ने काव्य की आत्मा की खोज पर ध्यान दिया है। कविता क्या है, इसकी पड़ताल की है, पर कोई अमुक कविता कैसी है—इस पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं समझी गई है।
‘भारतीय काव्यशास्त्र’ में काव्यशास्त्र विषयक चिन्तन, भारतीय काव्यशास्त्र के बीज-भाव का संकेत और परम्परा का प्रामाणिक अध्ययन प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है जिसमें प्राचीनता, विवेचन-प्रभाव की दृष्टि से संस्कृत काव्यशास्त्र को भारतीय काव्यशास्त्र के प्रतिनिधि के रूप में लिया गया है।
Hindi Ka Manak Vyakaran
- Author Name:
Surendra Narayan Yadav
- Book Type:

- Description: ठीक ही तो कहा है दोस्तोयेव्स्की ने—“कोई विषय कभी इतना पुराना नहीं होता कि अब उस पर कुछ नया कह पाना सम्भव ही नहीं हो।” नाना व्याकरण-सम्मत होना इस पुस्तक की मुख्य विशेषता नहीं है। इसमें जो ‘क्वचित् अन्योपि’ है, वही इसके नयेपन और महत्त्वपूर्ण होने का आधार है। कारण-कार्य सिद्धान्त पर रचे इस व्याकरण में ‘अन्वयमुख’ और ‘व्यतिरेक मुख’ कथन का सुप्रयोग करते हुए व्याकरणिक अवधारणाओं का गम्भीर और समग्र विवेचन प्रस्तुत करने का प्रयास परिलक्षित है। हिन्दी, चूँकि एक अलग भाषिक संरचना है, इसलिए उसे संस्कृत और अंग्रेजी के डंडे से नहीं चलाया जा सकता। हिन्दी का अपना यथार्थ उसके लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इस कारण संस्कृत अथवा अंग्रेजी का सिद्धान्त और व्यवहार उसके निर्धारणों का आधार कतई नहीं हो सकता। लेखक की नजर में हिन्दी एक बहुत ही वैज्ञानिक भाषा है। इसमें अपवादों का अत्यन्त सीमित अवसर है। जो हैं भी वे कतई अकारण नहीं हैं। अतः कारणों की तथ्यपरक गम्भीर पड़ताल इस पुस्तक में है। ‘पाण्डित्यः परिच्छेदम्’, ‘विशेषदर्शित्व’, रूपभेद से अर्थभेद और अर्थभेद के लिए रूपभेद आदि इसकी वैज्ञानिकता के ही आयाम हैं। इनका सम्यक्-सुप्रयोग न किये जाने से ही हिन्दी के रूप गड्ड-मड्ड-से हो गये हैं। फलतः हिन्दी में मानकीकरण की गम्भीर समस्या पैदा हो गयी है। हिन्दी की समस्त व्याकरणिक समस्याओं पर यह पुस्तक इन्द्र, बृहस्पति, यास्क, पाणिनि, पतंजलि और भर्तृहरि से लेकर कामताप्रसाद गुरु, पंडित किशोरीदास वाजपेयी और बदरीनाथ कपूर तक की ज्ञान-परम्परा को दृष्टिपथ में रखकर विशद समग्रता के साथ विचार करती है। इसके द्वारा निर्धारित किये गये मानक ‘परिच्छेद’ और ‘विशेषदर्शित्व’ के अभिनव उदाहरणों को प्रस्तुत करते हैं। अस्तु, यह पुस्तक पठनीय तो है ही, आचरणीय भी है।
Poorva-Rang
- Author Name:
Namvar Singh
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“ऐसे युग में जहाँ मान्यताएँ विवादग्रस्त और अनिश्चित हों, ऐन्द्रिय विषय ही निश्चित हैं और उन्हीं का यथातथ्य चित्रण सम्भव भी है। यही वजह है कि आज के अधिकांश किशोर तथा किशोर-मति कवि प्राकृतिक चित्रों की खोज में विकल हैं। झंझटों से बाहर निकलने का यह आसान तरीक़ा है। समाज से कम झंझट प्रकृति में है और प्रकृति में भी इन्द्रियग्राह्य प्रभावों के चित्रण में सबसे कम झंझट है।” नामवर जी ने यह टिप्पणी 1957 में 'कवि' पत्रिका के 'विशिष्ट कवि' शीर्षक स्तम्भ में मुक्तिबोध से अन्य कवियों की तुलना करते हुए की थी। उल्लेखनीय है कि इस काल-खंड में उन्होंने श्री विष्णुचन्द्र शर्मा द्वारा सम्पादित पत्रिका ‘कवि' के लिए ‘कविमित्र' नाम से काफ़ी समय तक एक स्तम्भ लिखा था जिसमें वे समकालीन कविता और कवियों पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ करते थे। इस संकलन में उनमें से ज़्यादातर को ले लिया गया है।
पुस्तक में शामिल अन्य आलेख भी ज़्यादातर पाँचवें दशक में लिखे गए थे जिनमें से कुछ प्रकाशित हैं और कुछ अप्रकाशित। ऐसे अधूरे आलेख भी यहाँ जुटाए गए हैं जो किसी कारण से पूरे नहीं लिखे जा सके और जिन्हें काशीनाथ जी ने अपने पास सहेजकर रखा था। कहना न होगा कि इस पुस्तक में उस दौर के नामवर जी से हमारा परिचय होगा जब वे अपनी स्थापनाओं को आकार दे रहे थे और जिन्हें हमने बाद में आई उनकी पुस्तकों में देखा।
Anviti - Khand : 2
- Author Name:
Kunwar Narain
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कुँवर नारायण हमारे समय के बड़े कवि हैं। यदि विश्व के कुछ चुनिन्दा कवियों की तालिका बनाई जाए तो उसमें निस्सन्देह उनका स्थान होगा। वे आधुनिक बोध और संवेदना के उन कवियों में हैं जिन्होंने सदैव कविता को मनुष्यता के आभरण के रूप में लिया है।
कुँवर नारायण का काव्य मानवीय गुणों का ही नहीं, मानवीय संस्कारों का काव्य है। कविता में उनका प्रवेश चक्रव्यूह से हुआ। अपने गठन में कलात्मक किन्तु दार्शनिक प्रतीतियों वाले इस संग्रह में जीवन की पेचीदगियों को कवि ने सलीक़े से उठाया है। ‘आत्मजयी’ की लगभग अधसदी के बाद ‘वाजश्रवा के बहाने’ की रचना बतौर कुँवर नारायण यह भी जताने के लिए है कि यदि ‘आत्मजयी’ में मृत्यु की ओर से जीवन को देखा गया है तो ‘वाजश्रवा के बहाने’ में जीवन की ओर से मृत्यु को देखने की एक कोशिश है। उनके इस कथन को हम इस रोशनी में देख सकते हैं कि सारा कुछ हमारे देखने के तरीक़े पर निर्भर है—कुछ ऐसे कि यह जीवन विवेक भी एक श्लोक की तरह सुगठित और अकाट्य हो।
उनके रचना-संसार पर समय-समय पर लिखा जाता रहा है। अनेक शोधार्थियों ने उनके व्यक्तित्व और साहित्य पर कार्य किया है। कहना न होगा कि कुँवर नारायण का कृतित्व बहुवस्तुस्पर्शी है। वर्ष 2002 से पहले तक उनके व्यक्तित्व एवं कृतियों पर लिखे महत्त्वपूर्ण लेख ‘उपस्थिति’ नामक संचयन में समाविष्ट हैं। उसके पश्चात् लिखे निबन्धों का यह संकलन दो खंडों में है : ‘अन्वय’ और ‘अन्विति’। ‘अन्विति’ उनकी कृतियों को केन्द्र में रखकर लिखे आलोचनात्मक निबन्धों का चयन है। इसमें हाल की कुछ प्रकाशित कृतियों को छोड़कर बाक़ी कृतियों पर लिखे लेखों को शामिल किया गया है जो उपस्थिति में सम्मिलित नहीं हैं। अधिकांश लेख 2015 तक के हैं जब कुँवर नारायण का प्रबन्ध-काव्य ‘कुमारजीव’ प्रकाशित हुआ।
आशा है, पाठकों को ये दोनों खंड उपयोगी और प्रासंगिक लगेंगे तथा कुँवर नारायण के साहित्य के प्रति रुचि विकसित करेंगे।
Premchand : Ek Vivechan
- Author Name:
Indranath Madan
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प्रेमचन्द हिन्दी के ऐसे श्रेष्ठतम उपन्यासकार हैं, जिनके ग्रन्थों में दमन और उत्पीड़न के युग के समाज की अवस्था का यथार्थ चित्रण और प्रतिबिम्ब मिलता है। उन्होंने उन समस्याओं और मान्यताओं का स्पष्ट चित्र अंकित किया है जो मध्यवर्ग, ज़मींदार, पूँजीपति, किसान, मज़दूर, अछूत और समाज से बहिष्कृत व्यक्तियों के जीवन को संचालित करती हैं। उन्होंने किसानों के मानसिक गठन और मध्यवर्ग के दृष्टिकोण को उस समय गम्भीर विश्वास और उत्साह के साथ वाणी दी, जिस समय इस देश के सामाजिक और राजनीतिक जीवन में क्रान्तिकारी परिवर्तन हो रहे थे। जिस वर्ग-संघर्ष को उन्होंने अपने उपन्यासों और कहानियों में स्पष्टता से चित्रित किया है, उसी वर्ग-संघर्ष की दृष्टि से प्रस्तुत पुस्तक में उनकी कला का विवेचन और उनके मस्तिष्क का अध्ययन करने का प्रयास किया गया है। प्रेमचन्द के समस्त उपन्यासों और कुछ प्रतिनिधि कहानियों का अध्ययन प्रस्तुत करनेवाली महत्त्वपूर्ण पुस्तक है यह।
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