Saanchi Danam
Author:
Motilal AlamchandraPublisher:
Shivna PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Language-linguistics0 Reviews
Price: ₹ 160
₹
200
Available
Book
ISBN: 9789387310254
Pages: 120
Avg Reading Time: 4 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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अजित वडनेरकर कई वर्षों से शब्दों के इस रोमांचक सफ़र में हम सबको शामिल करते रहे हैं। कमाल की सूझ-बूझ है उनकी और कमाल की मेहनत। कहने का अन्दाज़ निराला। ‘शब्दों का सफ़र’ कितने रोचक, प्रामाणिक और विश्वसनीय ढंग से एक-एक शब्द के विकास-क्रम और अन्य शब्दों के साथ उसके सम्बन्ध को पाठक के सामने रखता है, यह पढ़कर ही जाना जा सकता है। सफ़र के इस तीसरे पड़ाव पर उन्हें बधाई और साथ ही शुक्रिया भी।
—डॉ. पुरुषोत्तम अग्रवाल
Muktibodh : Kavita Aur Jeevan Vivek
- Author Name:
Chandrakant Devtale
- Book Type:

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Description:
मुक्तिबोध प्रथमत: और अन्तत: कवि थे। जिस तरह उन्होंने अपने विचार को कविता में लाने के लिए आन्तरिक संघर्ष किया, उसी तरह अपने जीवनानुभूतियों को भी अपनी कला में रूपान्तरित किया। उनका व्यक्तित्व जिन तत्त्वों से निर्मित हुआ है, उनके सरलीकृत, वर्गीकृत और सुविधावादी विश्लेषण से हम सही निष्कर्षों तक नहीं पहुँच सकते हैं।
इस पुस्तक का उद्देश्य मुक्तिबोध के लगभग मिथक बन चुके जीवन और व्यक्तित्व को खोलना नहीं, बल्कि समझना है। उनका काव्य और चिन्तन उनके व्यक्तित्व और जीवन से दूर-दूर तक प्रभावित है, लेकिन इस प्रभाव को किसी यांत्रिक रिश्ते के आधार पर रेखांकित करना न तो सम्भव है, और न उचित ही। उन्होंने अपने दु:ख को निजी मर्सिया की शक्ल में कहीं भी नहीं लिखा है, उनके जीवन में झाँककर उनकी कष्टपूर्ण स्थितियों को मानवीय पीड़ा के व्यापक रूप में कविताओं में देखना एक रोमांचक अनुभव है। यह पुस्तक मुक्तिबोध के जीवन और व्यक्तित्व की रेखाओं को उनके अन्तर्विरोधों सहित पहचानने का प्रयत्न करती है।
कवि चन्द्रकान्त देवताले मुक्तिबोध के जीवन और उनकी कविता में लम्बे समय से दिलचस्पी लेते रहे हैं; यह पुस्तक इसी का नतीजा है। अपनी भूमिका में वे कहते हैं : “मैं समझता हूँ मुक्तिबोध जैसे कवि और बेहद सचेत मनुष्य की कविताओं और उनके विचारों का आकलन एक और अन्तिम बार का कार्य नहीं है। कवि के प्रति अपने आत्मीय लगाव के साथ ही मैंने उन्हें समझने की कोशिश की। पर यह आत्मीय लगाव इस अर्थ में कहीं बन्धनकारी नहीं रहा कि मैं जो महसूस कर रहा हूँ, उसे कहने में संकोच करूँ।”
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